बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

घाटे बहुत हैं चाहतों के रोज़गार में


                       हीरालाल यादव "हीरा"
पड़ता नहीं हूँ सोच के ये बात प्यार में I
घाटे बहुत हैं चाहतों के रोज़गार में   ।।
 
हाथों में ईश के है ज़माने की बागडोर  I
कुछ भी नहीं है आदमी के इख़्तियार में ।।
 
है देश का भविष्य इसी पर टिका हुआ  
मत बेचिएगा वोट को सौ या हज़ार में   ।।
 
आएँगे जाने ज़िन्दगी में कब वो अच्छे दिन 
पलकें बिछाए जिनके खड़े इंतज़ार में  ।।
 
तुम और कुछ बढ़ा के बिगाड़ोगे क्या मेरा    
यूँ भी खड़े हैं दर्द हज़ारों क़तार में          ।।
 
चर्चे तेरी जफ़ाओं के सुनकर भी ज़िन्दगी   
हर्गिज़ कमी न आई मेरे ऐतबार में         ।।
 
*हीरा* दबा-दबा के ये रखते हो किसलिए  
दिल का गुबार बहने दो अश्क़ों की धार में ।।
 

सच झूठ अपना जानता है ख़ुद ही आदमी छोड़ी है उसने अपनी शराफ़त कहाँ कहाँ

 

            हीरालाल यादव  ” हीरा”

चाहत कहाँ कहाँ है अदावत कहाँ कहाँ
मैं जानता हूँ मुझको है राहत कहाँ कहाँ

करनी है किसकी ज़ीस्त में कीमत कहाँ कहाँ
पहचान किसकी कब है ज़रूरत कहाँ कहाँ

कुछ अपने दम भी मुश्किलों का हल निकालिए
माँगेंगे रब से आप मुरव्वत कहाँ कहाँ

सच झूठ अपना जानता है ख़ुद ही आदमी
छोड़ी है उसने अपनी शराफ़त कहाँ कहाँ

देखा जो तूने प्यार की नज़रो़ से ऐ सनम
मत पूछ हुई ज़िस्म में हरकत कहाँ कहाँ

दुनिया भरी हुई है हसीनों से दोस्तो
दिल की करेंगे आप हिफाज़त कहाँ कहाँ

कर लीजिए कुबूल वफ़ायें मेरी सनम
ढूँढेंगे और जग में मुहब्बत कहाँ कहाँ

मनमानियों की ठान लें जो हुक्मरान तो
करते फिरेंगे लोग बगावत कहाँ कहाँ

हर वक़्त आँखें मूँद के चलता है जो बशर
हीरा करोगे उसको नसीहत कहाँ कहाँ