COVID19 महामारी को फैलने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को देशव्यापी लॉक डाउन को 3 मई तक आगे बढ़ाने का फैसला किया है। 20 अप्रैल तक सख्त नियम रहेंगे और स्थिति की समीक्षा के आधार पर, 20 अप्रैल के बाद कुछ राहत दी जा सकती है। "20 अप्रैल तक, सभी जिलों, इलाकों, राज्यों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी, कि वे कितनी सख्ती से मानदंडों को लागू कर रहे हैं। जिन राज्यों में हॉटपॉट की वृद्धि नहीं हुई है, उन्हें कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियों को फिर से शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। "अगले एक सप्ताह में कोरोनो वायरस के खिलाफ लड़ाई को और अधिक कठोर बनाया जाएगा। नए हॉटस्पॉट नए संकट पैदा करेंगे", उन्होंने कहा। इस पर विस्तृत दिशानिर्देश बुधवार को जारी किए जाएंगे। शनिवार को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित चार घंटे के लंबे सम्मेलन के बाद यह निर्णय हुआ। मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में पीएम ने अंबेडकर जयंती के मौके पर डॉ अंबेडकर को याद किया। उन्होंने कहा कि नागरिकों द्वारा COVID -19 के खिलाफ लड़ाई में जो सामूहिक प्रयास दिखाया गया है, वह "वी द पीपल" और बाबासाहेब को एक श्रद्धांजलि है। पीएम ने कहा कि भारत ने COVID-19 के नियंत्रण के लिए पहले ही कदम उठा लिए थे। जब COVID -19 के मामले 500 के पार हो गए तो निवारक उपाय के रूप में 21 दिन केे लॉकडाउन की घोषणा की गई। COVID-19 के नियंत्रण के संबंध में कई विकसित देशों की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर है। पीएम ने लोगों से प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय की सलाह का पालन करने की अपील की। उन्होंने COVID-19 की जानकारी के लिए आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करने की भी अपील की। पीएम ने नियोक्ताओं से आग्रह किया कि वे अपने कर्मचारियों की देखभाल करें, न कि लॉकडाउन के दौरान उनकी सेवाएं समाप्त करें।
हकीकत एक्सप्रेस हिंदी दैनिक समाचार भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त समाचार पत्र है। जिसमे सामान्य खबरो के साथ साथ अपराधिक खबरे, खोजी खबरे, गाव गिरांव की खबरे, समाज मे घटित हो रही नित नई खबरो को संकलित कर प्रकाशित करने का कार्य हकीकत एक्सप्रेस के माध्यम से किया जाता है।
बुधवार, 15 अप्रैल 2020
प्रधानमंत्री ने COVID-19 को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ाई
मंगलवार, 14 अप्रैल 2020
जौनपुर के सीएचसी और पीएचसी पर मिलेगी टेलीफोनिक मेडिसीन की सुविधा
जौनपुर। कोरोना के संक्रमण को देखते हुए ग्रामीणों इलाकों को लोगों को इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिए हर सीएचसी और पीएचसी पर टेलीफोनिक मेडिसिन की व्यवस्था की गई है। घर बैठे मरीज फोन के जरिए अपनी परेशानी बता कर चिकित्सक से दवा की जानकारी ले सकेंगे।
सभी सीएचसी और पीएचसी प्रभारियों को निर्देश दिया गया है की किसी भी मरीज का फोन आने पर उसकी समस्या सुनकर इलाज करें। यदि किसी कारण कोई मरीज दवा का नाम नहीं पा रहा है तो वह नजदीक किसी मेडिकल स्टोर पर पहुंचकर चिकित्सक से बात कराकर दवा ले सकेंगे। कोरोना के संक्रमण के चलते आवागमन पर रोक लगा दिया गया है। ऐसे में लोगों को इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिए यह निर्णय लिया गया है। जिले में 73 पीएचसी और 22 सीएचसी हैं जिन पर टेलोफोनिक मेडिसीन के जरिए इलाज शुरू कर दिया गया है।
स्वास्थ्य केंद्र पर चस्पा है दो चिकित्सकों का नाम
जौनपुर। जिले के सभी सीएचसी और पीएचसी पर तैनात दो चिकित्सकों का नाम चस्पा कर दिया गया है जो स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात मिलेंगे। कोई भी मरीज उनके फोन नंबर पर फोन करने अपनी परेशानी बताएगा। चिकित्सक मरीज की परेशानी को सुनेंगे और फोन पर ही दवा का नाम बताएंगे। यदि किसी कारण से मरीज दवा का नाम नहीं लिख पाते हैं तो वह नजदीक के मेडिकल स्टोर पर जाकर बात करा देंगे। तो उन्हें आसानी से दवा मिल जाएगी।
कैसे मिलेगा डाक्टर का फोन नंबर
जौनपुर। मरीज अपने गांव के प्रधान, किसी समाज सेवी या किसी मेडिकल स्टोर और स्वास्थ्य कर्मी से सीएचसी और पीएचसी के डाक्टर का फोन नंबर प्राप्त कर सकते हैं। स्वास्थ्य केंद्र पर डाक्टर का फोन नंबर चस्पा करने के साथ ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को फोन नंबर मुहैया करा दिया गया है।
कोरोना के चलते लाक डाउन से हो रही परेशानी को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग की ओर से निर्देश मिला है कि ग्रामीण इलाको से मरीजों के आने वाले फोन पर उनकी परेशानी को समझकर दवा की जानकारी दी जाए। ताकि वह अपने घर रहकर इलाज का लाभ पा सकें। विभाग से निर्देश मिलने के बाद इलाज की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। - डा. विशाल पीएचसी प्रभारी करंजाकला जौनपुर
जिले के सभी सीएचसी और पीएचसी प्रभारियों को निर्देश दिया गया है कि वह क्षेत्र के मरीजों का फोन आने पर गंभीरता से उनकी समस्या सुने और बीमारी का इलाज करें। यदि मरीज की हालत गंभीर हो तो एंबुलेंस भेजकर उसे केंद्र पर ला कर इलाज करें। - डा. रामजी पांडेय, सीएमओ जौनपुर
लॉकडाउन: किसान भारी संकट में, गेंहू की फसल काटने को नहीं मिल रहे मजदूर
देश में कोविड-19 महामारी से मुकाबले के लिए लागू 21 दिनों के लॉकडाउन को 14 अप्रैल के बाद बढ़ाए जाने की आशंका ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं. मौजूदा बंद के कारण गन्ने की फसल नहीं काट पाने से परेशान किसान को अब गेहूं की लगभग तैयार खड़ी फसल की चिंता ने भी आ घेरा है. बंद के कारण मजदूर नहीं मिलने से जहां उसे गेहूं की कटाई का कोई जरिया नहीं सूझ रहा है, वहीं गेहूं निकालने वाली मशीनें (थ्रेसर) उपलब्ध होने की भी स्थिति दिखाई नहीं दे रही. दरअसल थ्रेसिंग मशीने ज्यादातर गेहूं कटाई के सीजन में पंजाब और राजस्थान जैसे इलाकों से पश्चिमी यूपी में आती हैं और किराये पर फसल निकालने का काम करती हैं, लेकिन इन राज्यों भी लॉकडाउन जारी है.गौरतलब है कि ओडिशा सरकार ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए बृहस्पितवार को लॉकडाउन (बंद) की अवधि 30 अप्रैल तक के लिए बढ़ा दी. साथ ही उसने केंद्र सरकार से भी बंद की अवधि बढ़ाने का अनुरोध किया है. केंद्र सरकार द्वारा देशव्यापी बंद 25 मार्च से लागू किया गया जो 14 अप्रैल को समाप्त होना हैं. जिला गन्ना विभाग के अनुसार, मिलों में पेराई शुरू होने के वक्त जिले में करीब 72 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की फसल थी. फिलहाल लगभग 30 फीसदी गन्ना (करीब 10 लाख टन) अभी खेतों में खड़ा है.बड़ौत निवासी किसान नेता ब्रजपाल सिंह का कहना है बंद के कारण कई किसानों की लगभग आधी गन्ने की फसल अभी भी खेत में खड़ी है, लेकिन एक तो बंद के कारण गन्ना छीलने के लिए मजदूर ही नहीं मिल रहे ऊपर से किसान किसी तरह से खुद दिन-रात कर यदि गन्ना छील भी ले तो उसे मिल पर डालने की कोई व्यवस्था नहीं है. उन्होंने कहा कि बंद के बाद से चीनी मिल गन्ने की पर्चियां जारी नहीं कर रही हैं. ब्रजपाल ने कहा कि बंद ने इस संकट को और बढ़ा दिया है, क्योंकि गुड़ बनाने वाले अधिकतर क्रेशर भी मजदूरों के संकट और गुड़ की बिक्री नहीं होने के कारण बंद हैं. ऐसी स्थिति में किसान अपना गन्ना यहां भी नहीं डाल सकता. हालांकि जो क्रेशर चल रहे हैं, वे गन्ने का दाम 180 से 200 रुपये प्रति क्विंटल भाव दे रहे हैं जबकि मिल द्वारा गन्ने का समर्थन मूल्य 319 रुपये प्रति क्विंटल दिया जा रहा है.
बड़ौत निवासी किसान राममेहर सिंह का कहना है कि कोरोना वायरस संक्रमण के डर से मजदूर खेत में ही नहीं जा रहे. इससे गन्ने की फसल के साथ-साथ अब गेहूं की कटाई को लेकर भी बेहद परेशान हैं. राममेहर ने कहा कि सरकार एक तरफ तो सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर पांच से ज्यादा लोगों को एकत्र नहीं होने दे रही है, जिससे खेत में मजदूर नहीं मिल रहे वहीं, बैंकों के बाहर मजदूरों की लंबी लाइनें लग रही हैं जो अपनी हजार-हजार रुपये की राशि का पता लगाने के लिए जमा हो रहे हैं. यह राशि सरकार द्वारा खातों में जमा कराई जा रही है. जब ये लोग बैंक जा सकते हैं, तो खेतों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए काम क्यों नहीं कर सकते.उधर, जिलाधिकारी शकुंतला गौतम ने दावा किया कि बागपत में किसानों के खेतों में जाने और काम करने पर कोई रोक नहीं नहीं है. कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर जनपद की स्थिति आसपास के जनपदों (मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुध नगर) से बेहतर है और इसी लिए यहां मजदूरों का संकट उस तरह का नहीं है. सामाजिक मेलजोल से दूरी को बरकरार रखते हुए मजदूर यहां खेतों में काम कर रहे हैं. बदरखा (छपरौली) निवासी किसान शिवकिशोर शर्मा ने कहा कि उनकी लगभग एक तिहाई गन्ने की फसल (आठ बीघा गन्ना) खेत में खड़ी है जबकि अब तक गन्ना, छिलाई होकर मिल पर डल जाना चाहिए था और अगली फसल की बुआई हो जानी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि गन्ना मिल से देर-सबेर पर्चिया जारी होने की उम्मीद है और इसी उम्मीद में वह परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रोज थोड़ा-थोड़ा गन्ना छील रहे हैं.इसके साथ ही शिवकिशोर ने कहा कि गन्ने की कटाई में तो एक बार देर चल भी जाएगी, लेकिन अभी असल समस्या गेहूं की कटाई को लेकर आ खड़ी हो गई है. फसल लगभग पककर तैयार है, पर इसे काटकर कैसे घर तक पहुंचाया जाएगा सूझ नहीं रहा. खेकड़ा निवासी किसान संजीव ने कहा कि गेहूं की कटाई के लिए मजदूरों से भी बड़ी समस्या जो किसानों के सामने मुंह बाए खड़ी है वह है थ्रेसर मशीनों की. संजीव ने कहा कि हर गांव में एक दो किसान को छोड़ दें तो लगभग सभी हर सीजन में किराये पर गेहूं निकालने वाली मशीनों पर निर्भर हैं.संजीव कहते हैं कि हर साल राजस्थान के अलवर और तिजारा से बड़ी संख्या में थ्रेसर मशीन संचालक यहां अपनी मशीनों के साथ गेहूं की थ्रेसिंग के लिए आते हैं. ये लोग किराये पर गेहूं निकालते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण इस बार इनका आना संभव नहीं है, ऐसे में क्या विकल्प होगा? संजीव ने कहा कि मोटे अनुमान के तहत सिर्फ खेकड़ा ब्लाक में 100 से 150 मशीनें आती हैं और पूरे जिलें में इनकी संख्या 500-1000 के आस पास होती है. संजीव ने सरकार से मजदूरों को सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक मेलजोल से दूरी) बनाते हुए खेतों में काम करने की इजाजत देने की मांग की.खेकड़ा निवासी एक अन्य किसान बिंदर ने कहा कि लॉकडाउन के बाद यूरिया और डाई की कीमतों में वृद्धि हुई है. बाजार में पहले जो यूरिया का कट्टा 270 रुपये का था उसमें अब 100 रुपये तक का उछाल आ गया है. डीएपी की कीमतों में भी इजाफा हुआ है. बिंदर ने कहा कि पशुचारे जैसे खल, चौकर आदि के दाम में भी स्थानीय स्तर पर 300 से 400 रुपये प्रति बोरी का उछाल आया है. खल की जो बोरी पहले 1200 की थी वह अब 1600 रुपये की हो गय़ी है जबकि जो खल की बोरी 1500 रुपये की थी वह अब 2000 रुपये में मिल रही है.जिला गन्ना अधिकारी ए.के. भारती ने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर जिले में मिलों पर गन्ना डालने के लिए कागज की पर्चिया बंद कर एसएमएस के जरिये किसान को सूचित किया जा रहा है. इसके लिए किसानों के मोबाइल नंबर अद्यतन किए जा चुके हैं. भारती ने दावा किया कि जिले के गन्ना किसानों के लिए मजदूरों का संकट नहीं है, क्योंकि उनके पास स्थायी मजदूर होते हैं.उधर, उत्तर प्रदेश के कृषि समृद्धि आयोग के सदस्य धर्मेंद्र मलिक का कहना है इस बार गन्ना कटाई नहीं होने से किसानों की समस्या दोगुनी हो गई है. खेत में गन्ना खड़ा है और गेहूं की फसल भी तैयार है. दोनों की कटाई के लिए ही मजदूर जरूरी है और अगर गेहूं की फसल फकने के बाद समय पर खेत से नहीं काटी गई तो फसल चौपट हो जाएगी, क्योंकि बालियां खेत में ही फूट जाएंगी. मलिक ने कहा सरकार को मनरेगा के तहत किसानों को मजदूर उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि मजदूरों को रोजगार भी उपलब्ध हो जाए और किसानों को मजदूर भी मिल जाए.उन्होंने कहा कि उद्योगों की भांति किसानों को भी राहत पैकज दिया जाना चाहिए, लेकिन इसे लेकर कोई बात नहीं हो रही है. यही नहीं, किसानों की गन्ना मिलों पर बकाया रकम के भुगतान को लेकर भी कोई सुगबुगाहट नहीं दिखती, जबकि लगभग 1200 करोड़ रू की भारी भरकम रकम मिलों पर बकाया है. यदि यह भुगतान तत्काल हो जाए तो किसानों को थोड़ी राहत मिलेगी.भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत का कहना है इस बार उत्तर प्रदेश में गन्ने का रकबा ज्यादा है इसलिए मिलों के चलने के बावजूद गन्ने की लगभग 25 फीसदी फसल खेतों में खड़ी है. टिकैत ने कहा कि इसी के चलते किसान तीन तरफ से चुनौती से घिर गया है. इनमें पहली है गन्ने की कटाई, दूसरी खाली खेत में गन्ने की बुआई और तीसरी गेहूं की तैयार फसल की कटाई. टिकैत ने कहा कि संकट तो वास्तव में बड़ा है, लेकिन इस स्थिति में किसान को धैर्य बनाकर रखना होगा. उन्होंने कहा कि अगर किसान पारंपरिक व्यवस्था ‘डंगवारा’ पर अमल करे तो मजदूर संकट से काफी हद तक निपट सकता है. डंगवारा में आपस में किसान मिलकर एकदूसरे की फसल की कटाई और बुआई में मदद करते हैं. टिकैत ने कहा अगर स्थितियां नहीं संभाली गई और खेती-किसानी से जुड़ी समस्याओं को समय रहते नहीं सुलझाया गया तो बीमारी से ज्यादा भुखमरी से मौतें होंगी.
होम क्वारेंटाइन में वृद्ध की मौत, फर्श और घर की दीवारों पर रेंग रहे थे कीड़े, योगी सरकार के खोखले दावों की कहानी
बाराबंकी जिले में होम क्वारंटाइन किए गए 82 साल के एक वृद्ध की मौत हो गई। शनिवार को उसका मृत शरीर घर में मिला, जिसमें कीड़े पड़ गए थे। जानकारी के मुताबिक, वृद्ध कुछ सप्ताह पहले गुजरात से बाराबंकी आया था। प्रशासन ने एहतियातन उसे 22 मार्च को होम क्वारंटाइन किया था।
22 मार्च को क्वारेंटाइन किया गया था बुजुर्ग
शनिवार को घर से लोगों को महसूस हुई दुर्गंध
काम में उलझा था, नहीं दे पाया ध्यान : प्रधान
सीएमओ का जवाब
महिला ने 3 बेटियों और 2 बेटों को गंगा में डुबोकर मार डाला। पुलिस अभी गोताखोरों की मदद से बच्चों के शव की खोजबीन कर रही है।
बलात्कार या दबाव : थाना प्रभारी भी असमंजस में, पुलिस को अब युवती के बयानों पर शंका
- 164 के बयानों के बाद की जाएगी विवेचना..
- दुष्कर्म के मामले मे युवती ने पूर्व मे नही की दुष्कर्म की पुष्टि.
- बाद मे कहा की हां हुआ हे दुष्कर्म
क्या है पुरी घटना -
ऐसा अपराध जिसमें क़ैद की सज़ा हो सकती है और जिसमें तीन साल के लिये सज़ा बढ़ाई जा सकती है, संज्ञेय है या असंज्ञेय, बड़ी पीठ करेगी फैसला
राजस्थान हाईकोर्ट की बड़ी पीठ इस मुद्दे पर ग़ौर करने वाली है कि ऐसा अपराध जिसमें तीन साल तक की क़ैद की सज़ा हो सकती है, उसकी प्रकृति (संज्ञेय या असंज्ञेय) क्या है? एकल पीठ ने इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का फ़ैसला किया। इस पीठ को यह निर्णय करना है कि भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 91(6)(a) (बिना किसी क़ानूनी अधिकार के भूमि पर क़ब्ज़ा करना) और कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 और 68A के तहत होने वाला अपराध दोनों ही संज्ञेय हैं या असंज्ञेय? न्यायाधीश ने कहा कि पिंटू देवी बनाम राजस्थान राज्य मामले में एक अन्य एकल पीठ ने जो फ़ैसला सुनाया वह क़ानून की दृष्टि से सही नहीं है और हमारी राय इससे अलग है। पीठ ने कहा, "इस प्रावधान के अध्ययन से मालूम होता है कि भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 91(6)(a) के तहत तीन माह तक की सज़ा का प्रावधान है। इस तरह, इस धारा के तहत आने वाले अपराध के लिए तीन साल की क़ैद की सज़ा दी जा सकती है…सुप्रीम कोर्ट ने राजीव चौधरी के मामले में सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत कारावास की विभिन्न अवधि की व्याख्या की…इस धारा के तहत तीसरी श्रेणी के अपराध जिसे असंज्ञेय बताया जाता है वे हैं जिसमें तीन साल से कम अवधि की क़ैद की सज़ा मिलती है या सिर्फ़ जुर्माना लगाए जाते हैं …इसलिए (…) 'तीन साल की वास्तविक क़ैद की सज़ा' ऐसे अपराध के लिए देना जो कि इस क्लाज़ के तहत संज्ञेय नहीं है, इसकी अनुमति का विकल्प उपलब्ध नहीं है।…" अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 91(6)(a) के तहत अपराध निश्चित रूप से असंज्ञेय अपराध होगा क्योंकि 91(6)(a) के तहत अधिनियम के अनुसार अपराधी को तीन साल तक की क़ैद की सज़ा दी जा सकती है। इस तरह इस प्रावधान के तहत सज़ा तीन सालों तक जारी रहेगी और इस अपराध के लिए तीन साल की क़ैद की सजा की अनुमति है। अदालत ने कहा, "इस प्रावधान का क़ानूनी उद्देश्य इसे संज्ञेय बनाना है। यह इसकी धारा 91 के प्रावधानों से स्पष्ट है, अदालत ने कहा क्योंकि इस धारा 91का दूसरा प्रावधान कहता है कि इस क्लाज़ के तहत हुए अपराध की जांच डीएसपी से निचली रैंक का अधिकारी नहीं करेगा। चूंकी जांच सिर्फ़ संज्ञेय अपराधों की होती है और असंज्ञेय अपराधों के लिए इस तारा की कार्रवाई की अनुमति नहीं है, क्योंकि असंज्ञेय अपराध की स्थिति में कोई एफआईआर दर्ज कराए जाने की अनुमति नहीं है। जान बूझकर पुलिस को जांच का अधिकार दिया गया है और क्लाज़ (a) के लिए यह प्रावधान नहीं किया गया है, जबकि क्लाज़ (b) जिसमें क़ैद की सजा का प्रावधान है और जिसे एक माह तक बढ़ाया जा सकता है, इस तरह का अधिकार नहीं है।"
असम के हिरासत केंद्रों में 2 साल से अधिक समय से बंद कैदियों की रिहाई के लिए आदेश जारी करेगा सुप्रीम कोर्ट
COVID-19 महामारी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि असम के हिरासत केंद्रों में 2 वर्ष से अधिक समय से रखे गए कैदियों को एक निश्चित जमानत के साथ व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एम एम शांतनागौदर की पीठ ने एक लाख रुपये की कठोर जमानत को भी कम कर दिया। COVID-19 महामारी के मद्देनज़र देश भर में बाल संरक्षण घरों की स्थितियों से संबंधित एक मामले में ये कदम उठाया।
मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने उल्लेख किया, "हम इस संबंध में आदेश पारित करेंगे। हम आज आदेश पारित करेंगे।" वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पीठ को अवगत कराया कि कैदियों की व्यवस्थित रिहाई के निर्देशों के आलोक में विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। एमिक्स क्यूरी और वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि पीठ को कैदियों की स्थायी रिहाई की घटना को ध्यान में रखना चाहिए। वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने भी कहा कि बेंच, कैदियों की रिहाई के अलावा राज्यों को हिरासत केंद्रों के बंदियों को रिहा करने का भी निर्देश दे। इसके आलोक में, न्यायालय ने जेलों की क्षमता और इस संकट में कैदियों को रिहा करने के लिए आवश्यक विभिन्न अन्य तौर-तरीकों की जांच की। राष्ट्रीय मंच के लिए उपस्थित वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि असम के हिरासत केंद्रों में रखे गए बंदियों को रिहा किया जाना चाहिए। हालांकि, पीठ ने इस बात की व्यवहार्यता की जांच की और पूछा कि इन केंद्रों में बॉद लोग विदेशी हैं और उनके फरार होने की उच्च संभावना है। वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने हालांकि कहा कि ये बंदी वास्तव में विदेशी नहीं है और लोग जो पांच दशक से अधिक समय से भारत में रह रहे हैं, उनके पास पीढ़ियों, कृषि भूमि आदि हैं। 2 साल से अधिक समय से बंदी राजू बाला दास द्वारा दायर याचिका में हिरासत केंद्रों में भीड़भाड़ की स्थितियों के बीच COVID-19 संक्रमण के जोखिम का हवाला दिया गया है। असम में छह हिरासत केंद्र हैं, जिसमें 802 व्यक्ति हिरासत में हैं, जैसा कि पिछले महीने लोकसभा में केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था। 10 मई, 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी बंदियों को रिहा करने का निर्देश दिया था, जिन्होंने 3 साल से अधिक समय हिरासत में काटा है। उसे बांड के निष्पादन के अधीन किया था। COVID महामारी के मद्देनजर जेलों में भीड़भाड़ से बचने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च, 2020 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे कैदियों की श्रेणी निर्धारित करने के लिए उच्च स्तरीय समितियों का गठन करें, जिन्हें चार से छह सप्ताह के लिए पैरोल पर रिहा किया जा सके।
PM CARES फंड के गठन की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को COVID-19 राहत के लिए PM CARES फंड के गठन की वैधता पर सवाल उठाते हुए दायर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने याचिकाकर्ता के वकील एमएल शर्मा से कहा, " यह पूरी तरह से गलत याचिका है।" पीठ ने कहा "हम आप पर जुर्माना लगाएंगे।" याचिकाकर्ता शर्मा ने कहा, "PM CARES अस्तित्व में कैसे आ सकता है। ऐसा करने की शक्ति अनुच्छेद 266 और अनुच्छेद 267 के तहत संसद के पास ही है।" हालांकि बेंच ने याचिका की सुनवाई करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री के नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति (PM CARES) कोष का गठन अवैध है, क्योंकि यह वैधानिक अधिनियमन द्वारा नहीं बनाया गया। याचिकाकर्ता ने PM CARES के तहत प्राप्त सभी दान को भारत के समेकित कोष के अलावा न्यायालय की निगरानी वाली SIT जांच से स्थानांतरित करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले कई मौकों पर अनावश्यक मामलों पर याचिका दर्ज करने के लिए शर्मा को फटकार लगाई। पिछले साल कोर्ट ने उन्हें अनुच्छेद 370 के मामले में एक पीआईएल दाखिल करने के लिए फटकार लगाई थी।
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करने के लिए सरकार को निर्देश देने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को COVID-19 के खतरे से निपटने के लिए भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करने के लिए सरकार को किसी भी प्रकार का निर्देश देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति रवींद्र भट की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "यह ऐसा फैसला नहीं है कि अदालत सरकार को लेने के लिए कहे। हम अस्पतालों के राष्ट्रीयकरण का आदेश नहीं दे सकते। सरकार ने पहले ही कुछ अस्पतालों को अपने कब्जे में ले लिया है।" न्यायमूर्ति भूषण ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की इस प्रार्थना को 'गलत' बताया, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एडवोकेट अमित द्विवेदी द्वारा दायर इस याचिका को खारिज करने का आग्रह किया। द्विवेदी की वैकल्पिक प्रार्थना के संबंध में, हेल्थकेयर संस्थाओं को COVID-19 से संबंधित सभी परीक्षण, प्रक्रियाएं और उपचार मुफ्त में करने के निर्देश देने के लिए, बेंच ने उन्हें सूचित किया कि इस मुद्दे को एक अन्य याचिका के साथ टैग किया गया है। सरकार के प्रयासों से संतुष्ट, कोर्ट ने कहा कि "हर कोई अपना काम कर रहा है। सरकार COVID -19 से संक्रमित व्यक्तियों के इलाज के लिए सभी प्रकार के प्रभावी कदम उठा रही है।" याचिका में की गई थीं ये मांगे COVID-19 महामारी के नियंत्रित होने तक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और संबंधित सेवाओं के राष्ट्रीयकरण की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका में कहा गया था कि नोवेल कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में स्वास्थ्य सुविधाओं पर बहुत अधिक निर्भरता की आवश्यकता होगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र अकेले इस आवश्यकता को संभालने के लिए पर्याप्त रूप से उपकरणों से लैस नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता का तर्क है, निजी क्षेत्र को भी "सभी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, सभी 36 संस्थानों, सभी कंपनियों और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र से संबंधित सभी संस्थाओं" में शामिल होना चाहिए। सार्वजनिक स्वास्थ्य पर किया जाता है कम खर्च अपनी बात रखने के लिए, याचिकाकर्ता भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की खराब स्थिति पर प्रकाश डाला है और इसके लिए इस पर होने वाले कम खर्च को मुख्य रूप से जिम्मेदार बताया है। याचिकाकर्ता ने कहा, "2020 के बजट में भारत ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर अपने कुल अनुमानित बजट खर्च का केवल 1.6% आवंटित करने का फैसला किया ... वर्षों से सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च कम रहा है और इसके परिणामस्वरूप भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा COVID-19 जैसी महामारियों के समय ज़्यादातर देशों की तुलना में घटिया और अपर्याप्त है। दुर्भाग्य से हम इस मोर्चे में ज्यादा विकास नहीं देख पाए।" भारत में निजी स्वास्थ्य सुविधाएं विश्व स्तर की दूसरी ओर, याचिकाकर्ता ने कहा कि भारत में निजी स्वास्थ्य सुविधाएं विश्व स्तर की हैं जिनका प्रमाण हमारे चिकित्सा पर्यटन की निरंतर वृद्धि के माध्यम से मिलता है। उन्होंने कहा कि ये सुविधाएं छोटे शहरों तक भी पहुंच गई हैं और केवल महानगरों तक सीमित नहीं हैं। याचिका में कहा गया कि "यह तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक है कि भारत में सुसज्जित अस्पताल और स्वास्थ्य देखभाल संबंधी सुविधाएं नहीं हैं। हालाँकि, यह चिंता का विषय है कि "निजी स्वास्थ्य सुविधाएं पाना अधिकतर भारतीयों के लिए मुश्किल है क्योंकि इसकी संभावित कीमत बाधा होती है। " याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्र सरकार भारत की समग्र भलाई के लिए उत्तरदायी है और कोरोना वायरस के वैश्विक प्रकोप द्वारा प्रस्तुत इस संकट के दौरान भारतीयों की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। संघ के साथ-साथ, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भी अपनी आबादी के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार हैं और यह इन सरकारों का सामूहिक दायित्व है कि वे महामारी के दुष्प्रभावों को कम करें। इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 को लागू करते हुए, यह तर्क दिया गया है कि उपचार पाने का अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में से है। याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 38 को भी संदर्भित करता है, जिससे राज्य को स्थिति, सुविधाओं और अवसरों से संबंधित असमानताओं को समाप्त करने की आवश्यकता होती है। इस बात पर जोर दिया है कि "कोई अन्य बात किसी व्यक्ति की स्थिति और उसकी गरिमा को इतना कमजोर नहीं करती, जितनी कि यह कि यदि उसे स्वयं की / अपने परिवार में से किसी सदस्य की जांच या इलाज करवाने की आवश्यकता पड़े और वह वित्तीय रूप से असमर्थ हो।" वर्तमान में भारत द्वारा उठाए गए उपायों के संदर्भ में, देशव्यापी लॉकडाउन और सामाजिक दूरी की तरह याचिकाकर्ता का दावा है कि हम अन्य देशों के अनुभव से सीख रहे हैं जो महामारी के सबसे बुरे चरण से निपटते रहे हैं। इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए, यह प्रस्तुत किया जाता है कि कई देशों ने अपनी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का राष्ट्रीयकरण करने का विकल्प चुना है। इस प्रकार, भारतीय संदर्भ में, यह आग्रह किया जाता है कि "यदि एक बार स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और संबंधित संस्थानों का राष्ट्रीयकरण हो जाता है, तो COVID-19 के खिलाफ संघर्ष प्रभावी हो जाएगा। हेल्थकेयर क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के विकल्प के रूप में, याचिकाकर्ता ने COVID-19 बीमारी के संबंध में परीक्षण, बाद में होने वाले सभी टेस्ट, प्रक्रिया और इलाज का संचालन करने के लिए सभी स्वास्थ्य देखभाल संबंधित संस्थाओं को निर्देश देने की प्रार्थना की है, जो भारत के सभी नागरिकों के लिए COVID 19 महामारी के नियंत्रित होने तक नि: शुल्क हों। "
स्माल अमाऊंट ट्रांजेक्शन ओर पैंनशनरों की वजह से बैंकों के बाहर बढ़ रही लोगों की भीड़
गिद्दड़बाहा (शक्ति जिंदल) पंजाब अंदर जारी क3र्यू दौरान लोगों को राहत देने के मकसद से खोले गए बैंकों के बाहर ग्रामीण इलाकों से भारी तादार में लोग शहर के बैंकों में आने लगे है। जिसमें ज्यादातर पैंनशन सबंधी जानकारी हासिल करने वाले ओर छोटी राशि जमा करवाने वाले लोग ज्यादा है। जिसके चलते बैंकों के बाहर सोशल डिस्टैंसिंग का नियम लागु नही हो पा रहा है। बैंक अधिकारियों व पुलिस प्रशासन की ओर से लोगो को बार बार समझाने के बावजुद लोग समझने को तैयार नही है। दुसरी ओर गिद्दड़बाहा के गली मुहल्लों में खुली बैंक की कुछ ब्रांचो के कारण वहा रहते लोगो को भी कोरोना वायरस का भय सताता दिखाई दे रहा है। गली के वसनीकों की माने तो बैंक आने वाले ज्यादातर ग्रामीण खांसी व नजला जमीन पर ही फैंकते रहते है। उनकी ओर से नगर कोंसिल गिद्दड़बाहा से भी बैंक खुलने के दिनों में सैनीटाईज करवाने सबंधी कहा गया, मगर कोंसिल की ओर से इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया।
बाशिंदों ने की नगर कोंसिल से बैंक खुलने के दिनों में सैनीटाईज करवाने की अपील
कोरोना वायरस के खतरे के मद्देनजर बेशक गिद्दड़बाहा अंदर भी कफ्र्यू लगाया गया है, मगर इस दौरान कुछ दिनों के अंतराल के दौरान सभी सरकारी व प्राईवेट बैंक खोलने व लोगो को बैंक सबंधी कामकाज के लिए बाहर निकलने की मंजूरी होने की वजह से भारी तादाद में पैंनशनर व आम लोगों ने बैंकों की तरफ रूख कर लिया गया है। जिस कारण बैंकों के बाहर लोगो का तांता लगा रहता है। खास बात यह है कि बैंक पहुंचने वाले ज्यादतर लोग बजुर्ग पैंनशनर,महिलाएं भी शामिल है। सोमवार को भी जब गिद्दड़बाहा अंदर बैंक खुले तो बैंकों के बाहर लोगो की लंबी लंबी कतारे लग गई। बैंक अधिकारियों की ओर से बार बार लोगो को समझाया गया कि उनकी पैंनशन उनके खातों में आ रही है व उस पैंनशन को उनके घरों तक पहुंचाया जा रहा है।
मगर लोग इसको समझ नही पा रहे थे। वही दुसरी ओर भारतीय स्टेट बैंक की एस.एम.ई. ब्रांच वाली गली के रहने वाले रजनीश गर्ग नीटा और मुकेश गोयल ने बताया कि उनकी गली में सुबह ७ बजे से ही लोगों की भारी भीड़ जमा होने लग जाती है। उन्होंने बताया कि आज उनकी गली में करीब ३०० लोगों का इक्कठ था जो विभिन्न कामों के लिए बैंक के आस पास जमा हुए थे। उन्होंने बताया कि इनमें से ज्यादातर लोग बुजुर्ग थे और कोई खांसी कर रहा था तो कोई नजला जमीन पर ही फैंक रहा था। उन्होंने कहा कि प्रशासन हो चाहिये उक्त ब्रांच के पिछली और स्थित बैंक के दूसरे गेट को भी आम जनता के लिए खोला जाये 1योंकि यह गेट बाजार में व खुली सडक पर खुलता है। गिद्दड़बाहा के सर्कूलर रोड़ पर स्थित भारतीय स्टेट बैंक की मु2य ब्रांच के मैनेजर सुखपाल सिंह ने बताया कि लोग बिना किसी जरूरी काम के लिए बैंकों के चक्कर लगा रहे हैं जबकि सरकार द्वारा दी जाने वाली पैनशन की राशि को सरकार की हिदायतों के अनुसार उपभोक्ताओं को घर घर पहुंचाया जा रहा है जबकि लोग फिर भी बैंकों के समक्ष लंबी लंबी कतारें बना कर इस विकट स्थिति में भी सोशल डिस्टैंसिंग के नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि बैंक पहुंचने वालों में ज्यादातर सं2या केवल खाते में पैसा पता करने वालों की है जबकि कोई अपने खाते से आधार कार्ड को लिंक करवाने के लिए पहुंच रहा है। उन्होंने बताया कि बैंक द्वारा एक समय में दो महिलाओं और तीन पुरूषों को ही अन्दर आने की ईजाजत दी जा रही है। उन्होंने लोगों से अपील की वह आम कारणों से बैंक में न पहुंचे और यदि बेहद जरूरी हो तो ही बैंक में आए और सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करें।
दूसरी ओर शहर में चल रहे सरकारी व प्राईवेट बैंकों के ए.टी.एम के बाहर भी सोमवार को लंबी लंबी लोगों की कतारे देखने को मिली। लोग अपने अपने खातों से जरूरत के अनुसार पैसा निकालते दिखाई दे रहे थे।
व्हाट्सएप ग्रुप एडमिन पर पुलिस कार्रवाई को लेकर हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया करे कोई और भरे कोई : ऐसा नहीं हो सकता,
चंडीगढ़, संजय कुमार मिश्रा
एक कहावत है, करे कोई और भरे कोई, पर अब ऐसा नहीं होगा...व्हाट्सएप ग्रुप के अन्य मेम्बर्स की गलतियों की सजा ग्रुप एडमिन को नहीं दी जा सकती, ऐसा कहना है पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का।
हाईकोर्ट ने यह प्रक्रिया कोविद 19 की महामारी के दौर में सोशल मीडिया पर किसी भी गलत एवं भ्रामक खबर पर व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के एक मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी। कोर्ट ने कहा संबंधित ड्यूटी मजिस्ट्रेट को अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते वक्त अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ पुलिस की रिपोर्ट पर किसी के भी खिलाफ वारंट जारी नहीं किया जाए। वारंट किसी कानूनी बाधा को दूर करने के लिए ही किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि, पुलिस को अपने रिपोर्ट में उन सभी कारकों का उल्लेख करना चाहिए जिसके बिना पर वो आरोपी के खिलाफ वारंट जारी किए जाने को लेकर पूर्ण रूप से संतुष्ट है।
भारतीय दंडावली (आईपीसी) की धारा 505 पर कोर्ट ने कहा कि पब्लिक में भ्रांति फैलाने वालों पर कार्रवाई की जाएगी, लेकिन व्हाट्सएप ग्रुप जिसे एडमिन ने बनाया और अन्य मेंबर को इस प्लेटफॉर्म पर जोड़ा, वो उस अन्य मेंबर के पोस्ट के लिए जिम्मेवार कैसे हो सकता है ? खासकर तब जबकि सभी मेंबर्स के पोस्ट एडमिन की इजाजत के मोहताज नहीं होते, हां अगर ग्रुप का स्टेटस - सिर्फ एडमिन है तो ऐसे सूरत में किसी भी मेंबर्स का पोस्ट एडमिन की अनुमति के बगैर पोस्ट नहीं होता और ऐसी कोई पोस्ट अगर गलत और भ्रामक है, तो एडमिन को जिम्मेवार माना जा सकता है। लेकिन अन्य मेंबर के गलत पोस्ट पर एडमिन पर कार्रवाई से एडमिन की व्यक्तिगत आजादी जो कि उसका एक संवैधानिक अधिकार है, कुंठित होती है ।कोर्ट ने कहा, कथनी, करनी एवं भाव सभी को हमेशा सामने रखकर फैसला लेना चाहिए कि क्या वास्तव में ग्रुप एडमिन किसी आपराधिक मामला दर्ज करने योग्य है ? क्योंकि न्याय व्यवस्था में उचित अनुचित को देखने के सिद्धांत की परंपरा है जिसे खारिज नहीं किया जा सकता।
आशीष भल्ला बनाम सुरेश चौधरी एवं अन्य में दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए हुए हाईकोर्ट ने कहा कि इसमें कोर्ट ने व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन की जिम्मेवारियां तय कर दी गई है, उससे परे जाकर ग्रुप एडमिन के खिलाफ पुलिस की ओर से वारंट का आवेदन देना सही नहीं होगा। जब एडमिन किसी मेंबर को ग्रुप के प्लेटफॉर्म से जोड़ता है तो वह उस मेंबर से उम्मीद करता है की वो कोई भी गलत खबर या भ्रांति फैलाने वाला पोस्ट नहीं डालेगा, मतलब एडमिन का भाव बिल्कुल साफ होता है जो कि आईपीसी की धारा 505 में कवर नहीं होता। आईपीसी 505 में साफ कहा गया है कि "व्यक्ति जो किसी गलत भाववश के वशीभूत होकर कोई गलत या भ्रांतिपूर्ण पोस्ट जानबूझकर करता है तो"आशीष भल्ला बनाम सुरेश चौधरी एवं अन्य में दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए हुए हाईकोर्ट ने कहा कि इसमें कोर्ट ने व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन की जिम्मेवारियां तय कर दी गई है, उससे परे जाकर ग्रुप एडमिन के खिलाफ पुलिस की ओर से वारंट का आवेदन देना सही नहीं होगा। जब एडमिन किसी मेंबर को ग्रुप के प्लेटफॉर्म से जोड़ता है तो वह उस मेंबर से उम्मीद करता है की वो कोई भी गलत खबर या भ्रांति फैलाने वाला पोस्ट नहीं डालेगा, मतलब एडमिन का भाव बिल्कुल साफ होता है जो कि आईपीसी की धारा 505 में कवर नहीं होता। आईपीसी 505 में साफ कहा गया है कि "व्यक्ति जो किसी गलत भाववश के वशीभूत होकर कोई गलत या भ्रांतिपूर्ण पोस्ट जानबूझकर करता है तो"