शनिवार, 18 अप्रैल 2020

झारखंड हाईकोर्ट ने जमानत के लिए रखी शर्त-पीएम केयर्स में 35000 रुपए जमा करें और आरोग्य सेतु ऐप डाउन लोड करें

झारखंड हाईकोर्ट ने एक पूर्व सांसद और पांच अन्य को इस शर्त पर जमानत दी है कि वे पीएम केयर्स फंड में 35,000 रुपए जमा करेंगे। साथ ही पैसे जमा करने का प्रमाण भी कोर्ट में पेश करेंगे। ज‌स्टिस अनुभा रावत चौधरी ने अपने आदेश में याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि रिहा होने के तुरंत बाद वे 'आरोग्य सेतु ऐप' डाउनलोड करें और COVID 19 की रोक‌थाम के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से जारी निर्देशों का पालन करें। अतिरिक्त लोक अभियोजक राकेश कुमार सिन्हा ने बताया कि छह याचिकाकर्ताओं, भाजपा के पूर्व सांसद सोम मरांडी, विवेकानंद तिवारी, अमित अग्रवाल, हिसाबी राय, संचय बर्धन, और अनुग्रह नारायण पर 15 मार्च 2012 को पाकुड़ में 'रेल रोको' आंदोलन करने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था। रेलवे न्यायिक मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ताओं को रेलवे अधिनियम की धारा 174 (ए) के तहत एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी। याचिकाकर्ताओं ने सत्र अदालत के समक्ष अपील की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। बाद में उन्होंने सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में आपराधिक संशोधन याचिका दायर की थी। वे पिछले फरवरी से हिरासत में थे। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता, पीएम केयर्स फंड में योगदान देने समेत, कोर्ट की ओर से तय किसी भी शर्त का पालन करेंगे। कोर्ट ने आदेश में याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपने आधार कार्ड की एक स्व-सत्यापित प्रति जमा करें, साथ ही अपना मोबाइल नंबर दें, जिसे वे अदालत की अनुमति के बिना नहीं बदलेंगे। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर निम्‍न शर्तें लागू की हैं- (i) याचिकाकर्ता र‌िहा होने से पहले पीएम केयर्स फंड में 35,000 रुपए जमा करने का प्रमाण पेश करेंगे। (ii) याचिकाकर्ता रिहा होने के तुरंत बाद 'आरोग्य सेतु ऐप' डाउनलोड करेंगे। COVID-19 की रोकथाम के लिए जारी किए गए केंद्र सरकार व राज्य सरकार के निर्देशों का पालन करेंगे। (iii) याचिकाकर्ता अपने आधार कार्ड की स्वप्रमाणित प्रति जमा करेंगे और अपना मोबाइल नंबर भी देंगे, जिसे वे अदालत की अनुमति के बिना नहीं बदलेंगे।




IN THE HIGH COURT OF JHARKHAND AT RANCHI
Cr. Revision No. 1659 of 2018
With
I.A. No. 2199 of 2020
1. Som Marandi aged about 52 years S/o Late Dorga Marandi
2. Vivekanand Tiwari, aged about 48 years, S/o Late Jagdish Prasad
Tiwari
3. Amit Agrawal aged about 47 years, S/o Sri Shankar Prasad Agrawal
4. Hisabi Rai, aged about 42 years, S/o Late Shibu Rai
5. Sanchay Bardhan @ Sanchay Kr. Bardhan aged about 62 years, S/o
Late Shambhu Nath Bardhan
6. Anugrah Prasad Sah @ Anugrahit Pd. Sah aged about 56 years, S/o
Late Ganga Dayal Sah … … … Petitioners
Versus
The State of Jharkhand … … Opposite Party
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 CORAM: HON'BLE MRS. JUSTICE ANUBHA RAWAT CHOUDHARY
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For the Petitioners : Mr. Rajeeva Sharma, Senior Advocate
 Mrs. Rita Kumari, Advocate
For the Opposite Party : Mr. Rakesh Kumar Sinha, A.P.P.
8/16.04.2020
1. Heard Mr. Rajeeva Sharma, learned senior counsel appearing
on behalf of the petitioners.
2. Heard Mr. Rakesh Kumar Sinha, learned A.P.P. appearing on
behalf of the State.
3. I.A. No. 2199 of 2020 has been filed for suspension of
sentence/for grant of bail to the petitioners during the
pendency of this case.
4. This revision has been filed for setting aside the judgment
dated 16.08.2018 passed by learned Sessions Judge, Sahibganj
in Criminal Appeal No. 40 of 2017 whereby the learned Court
dismissed the appeal confirming the judgment dated
18.08.2017 passed by Sri Anand Mani Tripathi, Railway
Judicial Magistrate, Sahibganj in Railways Act Case No. 380 of
2012, T.R. No. 15 of 2017 convicting and sentencing the
petitioners to undergo S.I. for a period of 1 year each for the
offence under Section 174 (a) Railways Act.
5. Learned counsel for the opposite party at the outset submits 
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that the matter arises out of a complaint case filed by an officer
of Railways and accordingly Railway is a necessary party.
6. Upon this, learned counsel for the petitioners submits that he
may be permitted to add Eastern Railways through the
General Manager, having his office at Howrah, West Bengal as
opposite party No. 2 in this case. He also submits that there are
standing counsels in the High Court representing Railways
and serve two copies of the present petition upon the standing
counsel for railways and file a receipt of the same once lock
down under the COVID-19 pandemic is over. He also
undertakes to make necessary correction in the cause title of
the present case.
7. Learned counsel for the petitioners submits that the learned
courts below have not properly considered the case of the
petitioners under the provisions of Probation of Offenders Act
while passing the sentence. He submits that entire act of the
petitioners was peaceful and there has been no damage to any
railway property in the protest. Learned counsel also submits
that the learned court below has not taken into consideration
the provisions of Section 179(2) of the Railways Act, 1989.
Learned counsel submits that the petitioners have been
convicted only for a period of one year under Section 174(a) of
the Railways Act and they may be enlarged on bail during
pendency of the present case. He further submits that the
petitioners shall abide by any condition that may be put by this
court including any contribution in ‘Prime Minister’s Citizens
Assistance and Relief in Emergency Situations (PM CARES) Fund’
created for the purposes of dealing with COVID-19 Pandemic
and accordingly the learned counsel submits that the
petitioners are ready to deposit Rs. 35,000/- each in the Prime
Minister’s Citizens Assistance and Relief in Emergency Situations
(PM CARES) Fund. He submits that the petitioners may be
enlarged on personal bond considering the situation of lock 
3
down under COVID-19 pandemic.
8. Learned counsel for the petitioners submits that he is ready for
final hearing of this case upon resumption of regular
functioning of this court after Covid-19 pandemic.
9. Counsel appearing for the State opposes the prayer made by
learned counsel for the petitioners.
10.After hearing counsel for the parties and considering the facts
and circumstances of this case this court finds that the points
raised by the petitioners are required to be considered.
11.Admit.
12.Lower court record has already been received.
13.The counsel for the petitioner is permitted to add Eastern
Railways through the General Manager, having his office at
Howrah, West Bengal as opposite party No. 2 in the cause title
and file receipt of service of two copies of the main petition
upon standing counsel for railways prior to the next date i.e
8.7.2020.
14.Pending hearing of this case, the sentence of the petitioners is
hereby suspended and the petitioners are directed to be
enlarged on bail in connection with Railways Act Case No. 380
of 2012., T.R. No. 15 of 2017, upon furnishing personal bond up
to the satisfaction of learned Trial Court considering the lock
down under pandemic Covid-19, on the following conditions:
(i) The petitioners shall show proof of payment of Rs.
35,000/-(Thirty Five thousand) each in the ‘Prime
Minister’s Citizens Assistance and Relief in Emergency
Situations (PM CARES) Fund’ before the learned court
below prior to their release.
(ii) The petitioners shall download the ‘Aarogya Settu App’
immediately after being released from custody and shall
abide by the directions of the Central Government as
well as State Government issued in connection with
containment of Covid-19 pandemic. 
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(iii) The petitioners will submit self attested copy of their
Aadhar Card and also give their mobile number before
the learned court below which they will not change
during the pendency of this case without prior
permission of this court.
(iv) I.A. No. 2199 of 2020 is disposed of.
15. Considering the submissions made, post this case on
08.07.2020 under appropriate heading .
(Anubha Rawat Choudhary, J.)


बुधवार, 15 अप्रैल 2020

भीमा कोरेगांव हिंसा : गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे ने NIA के समक्ष आत्मसमर्पण किया

प्रसिद्ध शिक्षाविद और दलित अधिकार के विद्वान आनंद तेलतुंबडे और नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने मंगलवार को भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में माओवादी लिंक के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। डॉक्टर बी आर अम्बेडकर के पोते तेलतुंबडे ने एनआईए के मुंबई कार्यालय में आत्मसमर्पण किया और नवलखा ने नई दिल्ली में आत्मसमर्पण किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें मामले में आत्मसमर्पण करने के लिए दी गई 7-दिवसीय मोहलत आज अंतिम दिन था। आत्मसमर्पण करने से पहले, शैक्षणिक-कार्यकर्ता तेलतुंबडे ने भारत के लोगों के लिए एक खुला पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। पत्र में कहा गया कि "मुझे 13 में से पांच पत्रों के आधार पर फंसाया गया है, जो पुलिस ने मामले में दो गिरफ्तार व्यक्तियों के कंप्यूटरों से बरामद किए हैं। मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ। " उन्होंने कहा, "और यह सचमुच किसी के साथ भी हो सकता है।" "जैसा कि मैं देख रहा हूं कि मेरा भारत बर्बाद हो रहा है, यह एक उम्मीद के साथ है कि मैं आपको इस तरह के गंभीर क्षण में लिख रहा हूं। खैर, मैं एनआईए की हिरासत में जा रहा हूं और यह नहीं जानता कि मैं आपसे कब बात कर पाऊंगा। हालांकि , मुझे पूरी उम्मीद है कि आपकी बारी आने पर आप बात करेंगे। आत्मसमर्पण करने से पहले भेजे गए एक खुले पत्र में नवलखा ने कहा "मेरी उम्मीद अपने और मेरे सह-अभियुक्त के लिए एक त्वरित और निष्पक्ष सुनवाई पर टिकी हुई है। यह मुझे अपना नाम साफ़ करने और स्वतंत्र चलने में सक्षम बनाएगी, साथ ही जेल में समय का उपयोग करके खुद को अधिग्रहित आदतों से छुटकारा दिला सकता हूं।" दो दिन पहले, इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्री सतीश देशपांडे और वकील मेजा दारूवाला ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे को लिखा था कि तेलतुंबडे और नवलखा की गिरफ्तारी को रोकने के लिए उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की थी। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में कहा, अभियोजन के पास अपना मामला बनाने के लिए पहले से ही पर्याप्त समय है।



भूमि की सर्वोच्च अदालत प्रक्रिया को सजा नहीं बनने दे सकती। आपके नेतृत्व में, सुप्रीम कोर्ट को निर्णायक रूप से यह प्रदर्शित करने के लिए कार्य करना चाहिए कि यह वास्तव में लोगों के अधिकारों और संविधान का रक्षक है।" 8 अप्रैल को जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने COVID-19 महामारी के आधार पर तेलतुंबडे और नवलखा द्वारा की गई प्रार्थना को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। इसी बेंच में शामिल न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने अंतिम मौके के रूप में गिरफ्तारी से संरक्षण का समय एक सप्ताह और बढ़ा दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को भीमा कोरेगांव मामले में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 15 फरवरी के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें इस आधार पर उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया था। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा और तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण को चार सप्ताह की अवधि के लिए बढ़ा दिया ताकि वे अपील में सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सकें। उनकी याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च तक ऐसी अंतरिम सुरक्षा बढ़ा दी थी। 16 मार्च को पीठ ने कहा कि जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री को देखते हुए याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। हालांकि याचिकाकर्ताओं के वकील ने अंतरिम संरक्षण के कम से कम एक सप्ताह के विस्तार की मांग की थी, लेकिन पीठ ने इनकार कर दिया। दरअसल 1 जनवरी, 2018 को पुणे जिले के कोरेगांव भीमा गांव में हिंसा के बाद गौतम नवलखा और आनंद समेत अन्य कार्यकर्ताओं को पुणे पुलिस ने उनके कथित माओवादी लिंक और कई अन्य आरोपों के लिए आरोपी बनाया है।


ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 3 (बी) (i) के तहत मेड‌िकल ऑक्सीजन आईपी और नाइट्रस ऑक्साइड आईपी भी 'दवाएं' हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 'मेडिकल ऑक्सीजन आईपी' और 'नाइट्रस ऑक्साइड आईपी' भी ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 3 (बी) (i) के अर्थ में 'दवा' हैं। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि इन गैसीय पदार्थों पर आंध्र प्रदेश मूल्य वर्धित कर अधिनियम 2005 की अनुसूची V की प्रविष्टि 88 के तहत 'दवाओं' के रूप में कर लगाया जाए। बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि ये पदार्थ अनुसूची IV के तहत दवाओं के रूप में कर योग्य हैं। राज्य के अनुसार, वे अनुसूची V के तहत 'अवर्गीकृत माल' के रूप में कर योग्य हैं, जिन पर अनुसूची IV की तुलना में ज्यादा कर लगता है। हाईकोर्ट का कहना था कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 3 (बी) (i) में, उल्लिखित अभिव्यक्ति 'ड्रग्स' के दायरे में ऐसे सभी पदार्थ शामिल हैं, जिसका उपयोग रोग या विकार के उपचार, रोकथाम और शमन के लिए किया जाता है। हाईकोर्ट ने कहा था कि, (i) मेडिकल ऑक्सीजन आईपी का उपयोग रोगियों के उपचार, रोगों और विकारों की तीव्रता को कम करने के लिए किया जाता है, और (ii) नाइट्रस ऑक्साइड आईपी का उपयोग सर्जिकल ऑपरेशन और मामूली प्रोसिजर्स में ऐनेस्थेटिक के रूप में किया जाता है।


         


हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए आंध्र प्रदेश सरकार ने दलील दी थी कि प्रत्येक 'पदार्थ' को केवल इसलिए एंट्री 88 के दायरे में नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि इसका उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। एंट्री 88 के दायरे में आने वाला पदार्थ 1940 अधिनियम की धारा 3 (1) (बी) में निर्धारित परिभाषा के अनुरूप होना चाहिए। न्यायालय ने नोट किया कि अनुसूची IV की प्रविष्टि 88 के दायरे में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 3 के तहत परिभाषित 'दवाएं और औषधियां' शामिल हैं। इसलिए कोर्ट के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या 'मेडिकल ऑक्सीजन' और 'नाइट्रस ऑक्साइड' अधिनियम के अनुसार दवा होंगी? धारा 3 (बी) (i) में किसी बीमारी या विकार के निदान, उपचार, शमन या रोकथाम के लिए या में उपयोग की जाने वाली दवाएं या पदार्थ शामिल हैं। 'मेडिसिन' शब्द को 1940 अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए, न्यायालय ने शब्द के सामान्य अर्थ का उपयोग किया। 'मेडिसिन' शब्द की सामान्य या लोकप्रिय समझ को, सामान्य और विशेष रूप से, किसी भी बीमारी या विकार के निदान, उपचार, शमन या रोकथाम में के लिए उपयोगी इसके उपचारात्मक गुणों से चिन्हित किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि नाइट्रस ऑक्साइड का उपयोग एनेस्थेटिक एजेंट के रूप में किया जाता है। 99.9% शुद्धता वाले मेडिकल ऑक्सीजन का मुख्य रूप से अस्पतालों में उपयोग किया जाता है। मेडिकल ऑक्सीजन का उपयोग रोगियों के उपचार और रोग या विकार की तीव्रता को कम करने के लिए भी किया जाता है। इसका उपयोग अचानक बीमार पड़ने और स्वास्थ्य की रिकवरी में सहायता के लिए भी किया जाता है। मेडिकल ऑक्सीजन का उपयोग आघात, रक्तस्राव, सदमे, ऐंठन और अन्य स्थितियों में भी किया जाता है। कोर्ट ने उपरोक्त निष्कर्षों के लिए कई मेडिकल पब्‍लिकेशन और फैसलों का उल्लेख किया। "इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेडिकल ऑक्सीजन आईपी और नाइट्रस ऑक्साइड आईपी ऐसी दवाइयां हैं, जिनका उपयोग मनुष्य की किसी भी बीमारी या विकार के उपचार, शमन या रोकथाम के लिए किया जाता है, जो 1940 अधिनियम की धारा 3 (बी) (i) के दायरे में आती हैं। हम मानते हैं कि मेडिकल ऑक्सीजन आईपी और नाइट्रस ऑक्साइड आईपी 1940 अधिनियम की धारा 3 (बी) (i) के दायरे में आती हैं और पर‌िणामस्वरूप 2005 अधिनियम की प्रविष्टि 88 में शामिल की जाती हैं।"


सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने सुनवाई के लिए प्रभावी उपायों का सुझाव दिया

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA ) ने COVID-19 महामारी से जूझने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान मामलों की सहज सुनवाई को बेहतर ढंग से सक्षम करने के सुझावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक प्रतिनिधित्व दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में जरूरी मामलों की सुनवाई जारी है। SCAORA देशव्यापी तालाबंदी के दौरान मामलों की सुचारू सुनवाई को और बेहतर ढंग से करने के लिए सुझाव दिए हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की प्रणाली के माध्यम से जरूरी याचिकाओं पर सुनवाई करना जारी रखा है, SCORA ने विशेष रूप से जनहित याचिका और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मामलों की सुनवाई के संबंध में प्रणाली को आगे प्रभावी ढंग से सुनिश्चित करने के लिए कुछ कदमों को आवश्यक माना है जिनमें उनके स्थायी वकीलों का उपस्थित होना आवश्यक है। कोर्ट को बेहतर तरीके से सहायता करने के लिए वकीलों को अनुमति देने के लिए, यह आग्रह किया गया है कि निम्नलिखित सुझावों को तुरंत लागू किया जाए : - जनहित याचिका पर सुनवाई से पहले ऑफिस रिपोर्ट आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड की जाए। यह स्टेट काउंसिल को उन दस्तावेजों के बारे में पुष्टि करने में सक्षम बनाता है जो रिकॉर्ड में लिए गए हैं और इस तरह किसी भी भ्रम या अराजकता से बचते हैं जो हाल ही में जारी हुए हैं। वर्तमान में, ऐसा समय भी आज जाता है जहां एक वकील यह सुनिश्चित नहीं करता है कि इन दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर लिया गया है या नहीं, क्योंकि उनके पास ई-फाइलिंग के बाद पता लगाने का कोई तरीका नहीं है। - एक PIL सुनने के लिए समय स्लॉट का आवंटन हो जहां विभिन्न काउंसिल दिखाई देने हैं। चूंकि केवल एक विशेष सुनवाई के लिए सीमित संख्या में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ( VC) लिंक जारी किए जा सकते हैं, कई स्टेट काउंसिल उसमें भाग लेने में असमर्थ हैं। इसे सुधारने के लिए, यह सुझाव दिया गया है कि सभी संबंधित स्टेट काउंसिल को मामलों के दौरान दो या तीन समय स्लॉट में सुना जा सकता है, और इन स्लॉट्स और संबंधित VC लिंक को कॉज लिस्ट में परिलक्षित किया जाना चाहिए। - नामित व्हाट्सएप समूहों पर वकीलों की उपस्थिति का अंकन हो। चूंकि व्हाट्सएप ग्रुप उन मामलों को समन्वयित करने के लिए बनाया जाता है, जिन्हें किसी विशेष दिन पर सुना जाना है, इसलिए यह सुझाव दिया गया है कि आदेश को रिकॉर्ड करने वाले अधिकारी को दिन की कार्यवाही को रिकॉर्ड करने के लिए उस समूह का हिस्सा बनाया जा सकता है।


वैकल्पिक रूप से, यह सुझाव दिया गया है कि वकील उस समूह के माध्यम से अपनी उपस्थिति को चिह्नित कर सकते हैं और संबंधित अधिकारी को उसी को अग्रेषित कर सकते हैं। - वकीलों के प्रस्तुत होने की पर्चियों की उपस्थिति का अंकन हो जैसा कि वर्तमान में वकीलों / स्थायी काउंसिल की उपस्थिति को चिह्नित करने की प्रणाली स्थापित नहीं की गई है, SCAORA का यह सुझाव है कि व्हाट्सएप ग्रुप जो किसी विशेष दिन की सुनवाई के लिए बनाए गए हैं, उस दिन के मामले से संबंधित अधिकारी उक्त दिन के आदेशों की रिकॉर्डिंग करेंगे, उन्हें भी उक्त ग्रुप में जोड़ा जा सकता है और वकीलों की उपस्थिति को उक्त व्हाट्सएप ग्रुप की वीडियोग्राफी के रूप में चिह्नित किया जा सकता है। विकल्प में, वकील / स्थायी काउंसिल ग्रुप के माध्यम से अपनी उपस्थिति को चिह्नित कर सकते हैं और उसी को संबंधित अधिकारी को अग्रेषित किया जा सकता है।


प्रधानमंत्री ने COVID-19 को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ाई

COVID19 महामारी को फैलने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को देशव्यापी लॉक डाउन को 3 मई तक आगे बढ़ाने का फैसला किया है। 20 अप्रैल तक सख्त नियम रहेंगे और स्थिति की समीक्षा के आधार पर, 20 अप्रैल के बाद कुछ राहत दी जा सकती है। "20 अप्रैल तक, सभी जिलों, इलाकों, राज्यों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी, कि वे कितनी सख्ती से मानदंडों को लागू कर रहे हैं। जिन राज्यों में हॉटपॉट की वृद्धि नहीं हुई है, उन्हें कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियों को फिर से शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। "अगले एक सप्ताह में कोरोनो वायरस के खिलाफ लड़ाई को और अधिक कठोर बनाया जाएगा। नए हॉटस्पॉट नए संकट पैदा करेंगे", उन्होंने कहा। इस पर विस्तृत दिशानिर्देश बुधवार को जारी किए जाएंगे। शनिवार को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित चार घंटे के लंबे सम्मेलन के बाद यह निर्णय हुआ। मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में पीएम ने अंबेडकर जयंती के मौके पर डॉ अंबेडकर को याद किया। उन्होंने कहा कि नागरिकों द्वारा COVID -19 के खिलाफ लड़ाई में जो सामूहिक प्रयास दिखाया गया है, वह "वी द पीपल" और बाबासाहेब को एक श्रद्धांजलि है। पीएम ने कहा कि भारत ने COVID-19 के नियंत्रण के लिए पहले ही कदम उठा लिए थे। जब ​​COVID -19 के मामले 500 के पार हो गए तो निवारक उपाय के रूप में 21 दिन केे लॉकडाउन की घोषणा की गई। COVID-19 के नियंत्रण के संबंध में कई विकसित देशों की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर है। पीएम ने लोगों से प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय की सलाह का पालन करने की अपील की। उन्होंने COVID-19 की जानकारी के लिए आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करने की भी अपील की। पीएम ने नियोक्ताओं से आग्रह किया कि वे अपने कर्मचारियों की देखभाल करें, न कि लॉकडाउन के दौरान उनकी सेवाएं समाप्त करें।


मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

जौनपुर के सीएचसी और पीएचसी पर मिलेगी टेलीफोनिक मेडिसीन की सुविधा

जौनपुर। कोरोना के संक्रमण को देखते हुए ग्रामीणों इलाकों को लोगों को इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिए हर सीएचसी और पीएचसी पर टेलीफोनिक मेडिसिन की व्यवस्था की गई है। घर बैठे मरीज फोन के जरिए अपनी परेशानी बता कर चिकित्सक से दवा की जानकारी ले सकेंगे।
सभी सीएचसी और पीएचसी प्रभारियों को निर्देश दिया गया है की किसी भी मरीज का फोन आने पर उसकी समस्या सुनकर इलाज करें। यदि किसी कारण कोई मरीज दवा का नाम नहीं पा रहा है तो वह नजदीक किसी मेडिकल स्टोर पर पहुंचकर चिकित्सक से बात कराकर दवा ले सकेंगे। कोरोना के संक्रमण के चलते आवागमन पर रोक लगा दिया गया है। ऐसे में लोगों को इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिए यह निर्णय लिया गया है। जिले में 73 पीएचसी और 22 सीएचसी हैं जिन पर टेलोफोनिक मेडिसीन के जरिए इलाज शुरू कर दिया गया है।
स्वास्थ्य केंद्र पर चस्पा है दो चिकित्सकों का नाम
जौनपुर। जिले के सभी सीएचसी और पीएचसी पर तैनात दो चिकित्सकों का नाम चस्पा कर दिया गया है जो स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात मिलेंगे। कोई भी मरीज उनके फोन नंबर पर फोन करने अपनी परेशानी बताएगा। चिकित्सक मरीज की परेशानी को सुनेंगे और फोन पर ही दवा का नाम बताएंगे। यदि किसी कारण से मरीज दवा का नाम नहीं लिख पाते हैं तो वह नजदीक के मेडिकल स्टोर पर जाकर बात करा देंगे। तो उन्हें आसानी से दवा मिल जाएगी।
कैसे मिलेगा डाक्टर का फोन नंबर
जौनपुर। मरीज अपने गांव के प्रधान, किसी समाज सेवी या किसी मेडिकल स्टोर और स्वास्थ्य कर्मी से सीएचसी और पीएचसी के डाक्टर का फोन नंबर प्राप्त कर सकते हैं। स्वास्थ्य केंद्र पर डाक्टर का फोन नंबर चस्पा करने के साथ ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को फोन नंबर मुहैया करा दिया गया है।
कोरोना के चलते लाक डाउन से हो रही परेशानी को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग की ओर से निर्देश मिला है कि ग्रामीण इलाको से मरीजों के आने वाले फोन पर उनकी परेशानी को समझकर दवा की जानकारी दी जाए। ताकि वह अपने घर रहकर इलाज का लाभ पा सकें। विभाग से निर्देश मिलने के बाद इलाज की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। - डा. विशाल पीएचसी प्रभारी करंजाकला जौनपुर
जिले के सभी सीएचसी और पीएचसी प्रभारियों को निर्देश दिया गया है कि वह क्षेत्र के मरीजों का फोन आने पर गंभीरता से उनकी समस्या सुने और बीमारी का इलाज करें। यदि मरीज की हालत गंभीर हो तो एंबुलेंस भेजकर उसे केंद्र पर ला कर इलाज करें। - डा. रामजी पांडेय, सीएमओ जौनपुर


 


लॉकडाउन: किसान भारी संकट में, गेंहू की फसल काटने को नहीं मिल रहे मजदूर

देश में कोविड-19 महामारी से मुकाबले के लिए लागू 21 दिनों के लॉकडाउन को 14 अप्रैल के बाद बढ़ाए जाने की आशंका ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं. मौजूदा बंद के कारण गन्ने की फसल नहीं काट पाने से परेशान किसान को अब गेहूं की लगभग तैयार खड़ी फसल की चिंता ने भी आ घेरा है. बंद के कारण मजदूर नहीं मिलने से जहां उसे गेहूं की कटाई का कोई जरिया नहीं सूझ रहा है, वहीं गेहूं निकालने वाली मशीनें (थ्रेसर) उपलब्ध होने की भी स्थिति दिखाई नहीं दे रही. दरअसल थ्रेसिंग मशीने ज्यादातर गेहूं कटाई के सीजन में पंजाब और राजस्थान जैसे इलाकों से पश्चिमी यूपी में आती हैं और किराये पर फसल निकालने का काम करती हैं, लेकिन इन राज्यों भी लॉकडाउन जारी है.गौरतलब है कि ओडिशा सरकार ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए बृहस्पितवार को लॉकडाउन (बंद) की अवधि 30 अप्रैल तक के लिए बढ़ा दी. साथ ही उसने केंद्र सरकार से भी बंद की अवधि बढ़ाने का अनुरोध किया है. केंद्र सरकार द्वारा देशव्यापी बंद 25 मार्च से लागू किया गया जो 14 अप्रैल को समाप्त होना हैं. जिला गन्ना विभाग के अनुसार, मिलों में पेराई शुरू होने के वक्त जिले में करीब 72 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की फसल थी. फिलहाल लगभग 30 फीसदी गन्ना (करीब 10 लाख टन) अभी खेतों में खड़ा है.बड़ौत निवासी किसान नेता ब्रजपाल सिंह का कहना है बंद के कारण कई किसानों की लगभग आधी गन्ने की फसल अभी भी खेत में खड़ी है, लेकिन एक तो बंद के कारण गन्ना छीलने के लिए मजदूर ही नहीं मिल रहे ऊपर से किसान किसी तरह से खुद दिन-रात कर यदि गन्ना छील भी ले तो उसे मिल पर डालने की कोई व्यवस्था नहीं है. उन्होंने कहा कि बंद के बाद से चीनी मिल गन्ने की पर्चियां जारी नहीं कर रही हैं. ब्रजपाल ने कहा कि बंद ने इस संकट को और बढ़ा दिया है, क्योंकि गुड़ बनाने वाले अधिकतर क्रेशर भी मजदूरों के संकट और गुड़ की बिक्री नहीं होने के कारण बंद हैं. ऐसी स्थिति में किसान अपना गन्ना यहां भी नहीं डाल सकता. हालांकि जो क्रेशर चल रहे हैं, वे गन्ने का दाम 180 से 200 रुपये प्रति क्विंटल भाव दे रहे हैं जबकि मिल द्वारा गन्ने का समर्थन मूल्य 319 रुपये प्रति क्विंटल दिया जा रहा है.



बड़ौत निवासी किसान राममेहर सिंह का कहना है कि कोरोना वायरस संक्रमण के डर से मजदूर खेत में ही नहीं जा रहे. इससे गन्ने की फसल के साथ-साथ अब गेहूं की कटाई को लेकर भी बेहद परेशान हैं. राममेहर ने कहा कि सरकार एक तरफ तो सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर पांच से ज्यादा लोगों को एकत्र नहीं होने दे रही है, जिससे खेत में मजदूर नहीं मिल रहे वहीं, बैंकों के बाहर मजदूरों की लंबी लाइनें लग रही हैं जो अपनी हजार-हजार रुपये की राशि का पता लगाने के लिए जमा हो रहे हैं. यह राशि सरकार द्वारा खातों में जमा कराई जा रही है. जब ये लोग बैंक जा सकते हैं, तो खेतों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए काम क्यों नहीं कर सकते.उधर, जिलाधिकारी शकुंतला गौतम ने दावा किया कि बागपत में किसानों के खेतों में जाने और काम करने पर कोई रोक नहीं नहीं है. कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर जनपद की स्थिति आसपास के जनपदों (मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुध नगर) से बेहतर है और इसी लिए यहां मजदूरों का संकट उस तरह का नहीं है. सामाजिक मेलजोल से दूरी को बरकरार रखते हुए मजदूर यहां खेतों में काम कर रहे हैं. बदरखा (छपरौली) निवासी किसान शिवकिशोर शर्मा ने कहा कि उनकी लगभग एक तिहाई गन्ने की फसल (आठ बीघा गन्ना) खेत में खड़ी है जबकि अब तक गन्ना, छिलाई होकर मिल पर डल जाना चाहिए था और अगली फसल की बुआई हो जानी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि गन्ना मिल से देर-सबेर पर्चिया जारी होने की उम्मीद है और इसी उम्मीद में वह परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रोज थोड़ा-थोड़ा गन्ना छील रहे हैं.इसके साथ ही शिवकिशोर ने कहा कि गन्ने की कटाई में तो एक बार देर चल भी जाएगी, लेकिन अभी असल समस्या गेहूं की कटाई को लेकर आ खड़ी हो गई है. फसल लगभग पककर तैयार है, पर इसे काटकर कैसे घर तक पहुंचाया जाएगा सूझ नहीं रहा. खेकड़ा निवासी किसान संजीव ने कहा कि गेहूं की कटाई के लिए मजदूरों से भी बड़ी समस्या जो किसानों के सामने मुंह बाए खड़ी है वह है थ्रेसर मशीनों की. संजीव ने कहा कि हर गांव में एक दो किसान को छोड़ दें तो लगभग सभी हर सीजन में किराये पर गेहूं निकालने वाली मशीनों पर निर्भर हैं.संजीव कहते हैं कि हर साल राजस्थान के अलवर और तिजारा से बड़ी संख्या में थ्रेसर मशीन संचालक यहां अपनी मशीनों के साथ गेहूं की थ्रेसिंग के लिए आते हैं. ये लोग किराये पर गेहूं निकालते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण इस बार इनका आना संभव नहीं है, ऐसे में क्या विकल्प होगा? संजीव ने कहा कि मोटे अनुमान के तहत सिर्फ खेकड़ा ब्लाक में 100 से 150 मशीनें आती हैं और पूरे जिलें में इनकी संख्या 500-1000 के आस पास होती है. संजीव ने सरकार से मजदूरों को सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक मेलजोल से दूरी) बनाते हुए खेतों में काम करने की इजाजत देने की मांग की.खेकड़ा निवासी एक अन्य किसान बिंदर ने कहा कि लॉकडाउन के बाद यूरिया और डाई की कीमतों में वृद्धि हुई है. बाजार में पहले जो यूरिया का कट्टा 270 रुपये का था उसमें अब 100 रुपये तक का उछाल आ गया है. डीएपी की कीमतों में भी इजाफा हुआ है. बिंदर ने कहा कि पशुचारे जैसे खल, चौकर आदि के दाम में भी स्थानीय स्तर पर 300 से 400 रुपये प्रति बोरी का उछाल आया है. खल की जो बोरी पहले 1200 की थी वह अब 1600 रुपये की हो गय़ी है जबकि जो खल की बोरी 1500 रुपये की थी वह अब 2000 रुपये में मिल रही है.जिला गन्ना अधिकारी ए.के. भारती ने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर जिले में मिलों पर गन्ना डालने के लिए कागज की पर्चिया बंद कर एसएमएस के जरिये किसान को सूचित किया जा रहा है. इसके लिए किसानों के मोबाइल नंबर अद्यतन किए जा चुके हैं. भारती ने दावा किया कि जिले के गन्ना किसानों के लिए मजदूरों का संकट नहीं है, क्योंकि उनके पास स्थायी मजदूर होते हैं.उधर, उत्तर प्रदेश के कृषि समृद्धि आयोग के सदस्य धर्मेंद्र मलिक का कहना है इस बार गन्ना कटाई नहीं होने से किसानों की समस्या दोगुनी हो गई है. खेत में गन्ना खड़ा है और गेहूं की फसल भी तैयार है. दोनों की कटाई के लिए ही मजदूर जरूरी है और अगर गेहूं की फसल फकने के बाद समय पर खेत से नहीं काटी गई तो फसल चौपट हो जाएगी, क्योंकि बालियां खेत में ही फूट जाएंगी. मलिक ने कहा सरकार को मनरेगा के तहत किसानों को मजदूर उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि मजदूरों को रोजगार भी उपलब्ध हो जाए और किसानों को मजदूर भी मिल जाए.उन्होंने कहा कि उद्योगों की भांति किसानों को भी राहत पैकज दिया जाना चाहिए, लेकिन इसे लेकर कोई बात नहीं हो रही है. यही नहीं, किसानों की गन्ना मिलों पर बकाया रकम के भुगतान को लेकर भी कोई सुगबुगाहट नहीं दिखती, जबकि लगभग 1200 करोड़ रू की भारी भरकम रकम मिलों पर बकाया है. यदि यह भुगतान तत्काल हो जाए तो किसानों को थोड़ी राहत मिलेगी.भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत का कहना है इस बार उत्तर प्रदेश में गन्ने का रकबा ज्यादा है इसलिए मिलों के चलने के बावजूद गन्ने की लगभग 25 फीसदी फसल खेतों में खड़ी है. टिकैत ने कहा कि इसी के चलते किसान तीन तरफ से चुनौती से घिर गया है. इनमें पहली है गन्ने की कटाई, दूसरी खाली खेत में गन्ने की बुआई और तीसरी गेहूं की तैयार फसल की कटाई. टिकैत ने कहा कि संकट तो वास्तव में बड़ा है, लेकिन इस स्थिति में किसान को धैर्य बनाकर रखना होगा. उन्होंने कहा कि अगर किसान पारंपरिक व्यवस्था ‘डंगवारा’ पर अमल करे तो मजदूर संकट से काफी हद तक निपट सकता है. डंगवारा में आपस में किसान मिलकर एकदूसरे की फसल की कटाई और बुआई में मदद करते हैं. टिकैत ने कहा अगर स्थितियां नहीं संभाली गई और खेती-किसानी से जुड़ी समस्याओं को समय रहते नहीं सुलझाया गया तो बीमारी से ज्यादा भुखमरी से मौतें होंगी.


होम क्वारेंटाइन में वृद्ध की मौत, फर्श और घर की दीवारों पर रेंग रहे थे कीड़े, योगी सरकार के खोखले दावों की कहानी





बाराबंकी जिले में होम क्वारंटाइन किए गए 82 साल के एक वृद्ध की मौत हो गई। शनिवार को उसका मृत शरीर घर में मिला, जिसमें कीड़े पड़ गए थे। जानकारी के मुताबिक, वृद्ध कुछ सप्ताह पहले गुजरात से बाराबंकी आया था। प्रशासन ने एहतियातन उसे 22 मार्च को होम क्वारंटाइन किया था।


बाराबंकी : उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में प्रशासन की घोर लापरवाही सामने आयी है. यहां बढ़नापुर गांव में होम क्वारंटाइन 82 साल के बुजुर्ग की मौत हो गयी. मौत के बाद जब दुर्गंध उठी तो पड़ोसियों को अनहोनी की आशंका हुई. पुलिस व स्वास्थ्य विभाग की टीम मौके पर पहुंची तो शव की दुर्दशा देख सभी की रूह कांप उठी. बुजुर्ग के शव में कीड़े पड़ गये थे. फर्श, घर की दीवारों पर कीड़े रेंग रहे थे. कोरोना जांच के लिए सैंपल लेकर शव को दफन कराया गया है. गांव को सील कर दिया गया है.






22 मार्च को क्वारेंटाइन किया गया था बुजुर्ग






थाना मोहम्मदपुर खाला इलाके के गांव बढ़नापुर निवासी एक 82 वर्षीय बुजुर्ग गुजरात से अपने गांव आया था. प्रशासन ने 22 मार्च को उसे होम क्वारेंटाइन किया. उसके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गयी. 4 अप्रैल को घर के बाहर आशा कार्यकत्री ने नोटिस चिपका दिया. नोटिस में लिखा था, कोई भी इस घर के भीतर प्रवेश न करे. यह कोरोना के संदिग्ध का घर है. बुजुर्ग का परिवार गुजरात में था. अकेले होने के कारण खुद ही खाना बनाते थे.

          







                                                                   फोटो साभार टीओसी न्युज

             







शनिवार को घर से लोगों को महसूस हुई दुर्गंध






शनिवार को उसके घर से लोगों को दुर्गंध महसूस हुई. इसकी सूचना प्रशासन को दी गयी. ग्रामीणों के मुताबिक, दुर्गंध इतनी तेज थी, घर के बाहर भी लोगों का खड़ा होना मुश्किल हो रहा था. पुलिस व स्वास्थ्य विभाग के लोग पहुंचे तो देखा गया कि, बुजुर्ग का अकड़ा मृत शरीर पड़ा था. शव पर कीड़े रेंगते दिखायी दिये. इसके कारण अंदेशा जताया गया कि बुजुर्ग की मौत कई दिनों पहले हो चुकी थी. प्रशासन ने बिना पोस्टमार्टम कराये शव को दफन करा दिया है.

 






काम में उलझा था, नहीं दे पाया ध्यान : प्रधान









गांव की आशा बहू ने कहा- 22 मार्च को क्वारेंटाइन किये जाने के वक्त वह बुजुर्ग के घर आयी थी. उसके बाद 4 अप्रैल को नोटिस चिपकाने आयी थी. इस दौरान उन्हें किसी अनहोनी की भनक भी नहीं लगी. महिला ग्राम प्रधान के पति महेंद्र वर्मा ने कहा, मृतक अपने पौत्र के साथ गुजरात से गांव आया था, क्योंकि इसके प्रपौत्र का मुंडन था. पौत्र बाराबंकी शहर में रहता है. एक अप्रैल को बुजुर्ग राशन भी लेकर गये थे.







 







4 अप्रैल को बेलहरा के डॉक्टर बृजेश के यहां से अपनी दवा भी लेकर आये थे, क्योंकि वह अस्थमा का मरीज था. अब इनकी मृत्यु कब हुई? यह बता पाना संभव नहीं है. अपनी लापरवाही मानते हुए महेन्द्र वर्मा कहते है कि वह पिछले कई दिनों से दूसरे कामों में उलझे हुए थे इसी कारण मृतक की ओर ध्यान नहीं दे पाये.






 








सीएमओ का जवाब






मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर रमेश चंद्रा ने कहा, आशा बहू जाती रही होगी और बाहर से हालचाल जानकर वापस हो जाती होगी. कीड़े पड़ने के लक्षणों के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. उसको कोरोना के कहीं लक्षण नहीं थे, फिर भी हमने उसका सैंपल लेकर भेज दिया है. जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कह पाना संभव होगा.जब सीएमओ से यह पूछा गया कि अगर उसे इस दौरान मेडिकल टीम देखती तो उसकी ऐसी भयावह मृत्यु न होती तो इस पर उन्होंने बात काटते हुए कहा कि होम क्वारेंटाइन का अर्थ यह नहीं होता कि हम उसे रोज देखें. बल्कि संस्थागत क्वारेंटाइन में मरीज हर समय डॉक्टरों की देखरेख में रहता है. होम क्वारेंटाइन में हमें सिर्फ इतना देखना होता है कि वह 14 दिनों तक किसी से मिले न और वह घर बाहर निकले न बस.






महिला ने 3 बेटियों और 2 बेटों को गंगा में डुबोकर मार डाला। पुलिस अभी गोताखोरों की मदद से बच्चों के शव की खोजबीन कर रही है।

भदोही. उत्तर प्रदेश के भदोही में एक औरत ने अपने पांच बच्चों को नदी में डुबाकर मौत के घाट उतार डाला। रविवार की सुबह आरोपी महिला अपने पांच बच्चों को गंगा में फेंकने के बाद खुद भी कूद गई।

 

लेकिन बच्चों के डूबने के बाद वह तैरकर बाहर निकल आई। आरोपी महिला ने ऐसा कदम क्यों उठाया, इसका पता नहीं चल सका है। हालांकि पुलिस यह मानकर चल रही है कि महिला ने अपने पति के साथ झगड़ा होने के बाद यह कदम उठाया।

 


बहुत ही दुःखद भदोही जिले में गंगा घाट पर रविवार सुबह एक महिला ने परिवार समेत आत्महत्या की नीयत से पांच बच्चों को लेकर गंगा में छलांग लगा दी। महिला खुद तैरकर बाहर आ गई, लेकिन पांचों बच्चे डूब गए। इनमें तीन बच्चियां और दो बेटे हैं। ग्रामीणों के पूछने पर महिला ने कहा कि मैंने बच्चों को डुबो दिया।

 


गोपीगंज थानाक्षेत्र के जहांगीराबाद गांव निवासी मृदुल यादव उर्फ मुन्ना की पत्नी मंजू यादव (36) देर रात अपने पांच बच्चों शिव शंकर (6) केशव प्रसाद (3), आरती (11), सरस्वती (7) और मातेश्वरी (5) को लेकर जहांगीराबाद घाट पहुंची। उसने सभी बच्चों के साथ गंगा में छलांग लगा दी। आगे की जांच पुलिस कर रही है ।


पुलिस को आशंका- पति से झगड़े के बाद उठाया कदम

 

वहीं पति का कहना है घर में खाने-पीने की कोई कमी नहीं है, मंजू की दिमागी हालत भी ठीक है। फिर आरोपी महिला ने अपने पांच बच्चों को गंगा में क्यों डुबोकर मार डाला? इस सवाल का जवाब खोजने में पुलिस जुटी हुई है। पुलिस का कहना है पति से झगड़ा होने के बाद मंजू ने यह कदम उठाया है।



बलात्कार या दबाव : थाना प्रभारी भी असमंजस में, पुलिस को अब युवती के बयानों पर शंका


ब्यूरो चीफ नागदा, जिला उज्जैन



  • 164 के बयानों के बाद की जाएगी विवेचना..

  • दुष्कर्म के मामले मे युवती ने पूर्व मे नही की दुष्कर्म की पुष्टि.

  • बाद मे कहा की हां हुआ हे दुष्कर्म


नागदा, औद्योगिक शहर नागदा मे कोरोना लॉक डाउन की स्तिथि मे भी अपराध थम नही रहे नागदा के समीप कलसी गाँव मे युवती के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया है जिसमे गांव के युवक द्वारा युवती के साथ दुष्कर्म किया गया। जिसके बाद युवती ने परिजनों के साथ नागदा मण्डी थाने पहुंच कर शिकायत दर्ज करवाई है।

नागदा पुलिस ने भा.द.वी. 376 का मामला किया हे दर्ज

युवती के बदल बदल के दुष्कर्म पर बयान देने से नागदा पुलिस को अब 164 के बयान का इंतेज़ार है। दो बार नागदा थाने पहुंची युवती ने पहले दिन तो कहा नही हुवा दुष्कर्म फिर दोबारा दूसरे दिन कहा हुआ हाँ हुआ है दुष्कर्म.......

वैसे तो दुष्कर्म के मामले थाने पर आते है लेकिन नागदा थाना प्रभारी श्याम चन्द्र शर्मा द्वारा बताया गया की पूर्व मे आई युवती ने दुष्कर्म होने की पुष्टि नही की थी लेकिन किसी दबाव मे अब युवती ने हो सकता है शिकायत दर्ज करवाई हो अब युवती के 164 बयान का इंतेज़ार है जो न्यायलय मे होना है जिसके बाद आगे की विवेचना की जावेगी.

क्या है पुरी घटना -


शहर से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित गांव कलसी निवासी 16 वर्षीय बालिका ने गांव के पुष्कर प्रजापत के खिलाफ बलात्कार करने का मामला दर्ज करवाया है कि 1 दिन पूर्व थाने पहुंचकर पुलिस को बताया था कि उसके साथ किसी प्रकार की घटना नहीं हुई।
पीड़िता युवती ने नागदा मण्डी पुलिस को बताया कि 10 अप्रैल को वह अपने घर के पास खेत पर भैंस चरा रही थी उसी दौरान आरोपी पुष्कर प्रजापत की रिश्तेदार जो उसकी की पीड़िता युवती की सहेली भी है आई और अपने घर चलने को कहने लगी जब युवती ने मना किया तो सहेली जबरदस्ती उसे अपने घर ले आई और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। घर के अंदर पुष्कर प्रजापत पहले से मौजूद था।

जिसने जान से मारने की धमकी देते हुवे युवती के साथ जबरदस्ती करने लगा । बाद में जब युवती ने शोर मचाया तो पुष्कर उसे घर के पीछे ही बने कुएं में फेंक कर भाग गया । इस दौरान युवती चिल्लाती रही, जिससे सुनकर उसके परिजन मौके पर पहुंचे और उसे कुवे से बाहर निकाला । बाद में युवती ने अपने साथ हुई घटना की जानकारी परिजनो को दी। जिसके बाद परिजनो ने थाने आ कर आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई ।











नाबालिक के कहने पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ पास्को एक्ट की धारा 3 व 4 के अलावा 376, 506, 34 के तहत प्रकरण दर्ज कर मामले को जाच मे लिया है।













 


ऐसा अपराध जिसमें क़ैद की सज़ा हो सकती है और जिसमें तीन साल के लिये सज़ा बढ़ाई जा सकती है, संज्ञेय है या असंज्ञेय, बड़ी पीठ करेगी फैसला

राजस्थान हाईकोर्ट की बड़ी पीठ इस मुद्दे पर ग़ौर करने वाली है कि ऐसा अपराध जिसमें तीन साल तक की क़ैद की सज़ा हो सकती है, उसकी प्रकृति (संज्ञेय या असंज्ञेय) क्या है? एकल पीठ ने इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का फ़ैसला किया। इस पीठ को यह निर्णय करना है कि भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 91(6)(a) (बिना किसी क़ानूनी अधिकार के भूमि पर क़ब्ज़ा करना) और कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 और 68A के तहत होने वाला अपराध दोनों ही संज्ञेय हैं या असंज्ञेय? न्यायाधीश ने कहा कि पिंटू देवी बनाम राजस्थान राज्य मामले में एक अन्य एकल पीठ ने जो फ़ैसला सुनाया वह क़ानून की दृष्टि से सही नहीं है और हमारी राय इससे अलग है। पीठ ने कहा, "इस प्रावधान के अध्ययन से मालूम होता है कि भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 91(6)(a) के तहत तीन माह तक की सज़ा का प्रावधान है। इस तरह, इस धारा के तहत आने वाले अपराध के लिए तीन साल की क़ैद की सज़ा दी जा सकती है…सुप्रीम कोर्ट ने राजीव चौधरी के मामले में सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत कारावास की विभिन्न अवधि की व्याख्या की…इस धारा के तहत तीसरी श्रेणी के अपराध जिसे असंज्ञेय बताया जाता है वे हैं जिसमें तीन साल से कम अवधि की क़ैद की सज़ा मिलती है या सिर्फ़ जुर्माना लगाए जाते हैं …इसलिए (…) 'तीन साल की वास्तविक क़ैद की सज़ा' ऐसे अपराध के लिए देना जो कि इस क्लाज़ के तहत संज्ञेय नहीं है, इसकी अनुमति का विकल्प उपलब्ध नहीं है।…" अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 91(6)(a) के तहत अपराध निश्चित रूप से असंज्ञेय अपराध होगा क्योंकि 91(6)(a) के तहत अधिनियम के अनुसार अपराधी को तीन साल तक की क़ैद की सज़ा दी जा सकती है। इस तरह इस प्रावधान के तहत सज़ा तीन सालों तक जारी रहेगी और इस अपराध के लिए तीन साल की क़ैद की सजा की अनुमति है। अदालत ने कहा, "इस प्रावधान का क़ानूनी उद्देश्य इसे संज्ञेय बनाना है। यह इसकी धारा 91 के प्रावधानों से स्पष्ट है, अदालत ने कहा क्योंकि इस धारा 91का दूसरा प्रावधान कहता है कि इस क्लाज़ के तहत हुए अपराध की जांच डीएसपी से निचली रैंक का अधिकारी नहीं करेगा। चूंकी जांच सिर्फ़ संज्ञेय अपराधों की होती है और असंज्ञेय अपराधों के लिए इस तारा की कार्रवाई की अनुमति नहीं है, क्योंकि असंज्ञेय अपराध की स्थिति में कोई एफआईआर दर्ज कराए जाने की अनुमति नहीं है। जान बूझकर पुलिस को जांच का अधिकार दिया गया है और क्लाज़ (a) के लिए यह प्रावधान नहीं किया गया है, जबकि क्लाज़ (b) जिसमें क़ैद की सजा का प्रावधान है और जिसे एक माह तक बढ़ाया जा सकता है, इस तरह का अधिकार नहीं है।"




HIGH COURT OF JUDICATURE FOR RAJASTHAN AT
JODHPUR
S.B. Criminal Misc(Pet.) No. 5128/2019
1. Nathu Ram S/o Purna Ram, Aged About 38 Years, R/o
Village Jayal, Teh. Jayal, Dist. Nagaur.
2. Purna Ram S/o Narsi Ram, Aged About 64 Years, R/o
Village Jayal, Teh. Jayal, Dist. Nagaur.
3. Ram Gopal S/o Purna Ram, Aged About 32 Years, R/o
Village Jayal, Teh. Jayal, Dist. Nagaur.
----Petitioners
Versus
1. State Of Rajasthan, Through PP
2. Tehsildar (Revenue), Jayal, Dist. Nagaur.
----Respondents
For Petitioner(s) : Mr.Ravindra Acharya.
For Respondent(s) : Mr.Farzand Ali, AAG-cum-GA
Ms.Rajlaxmi, P.P.
HON'BLE MR. JUSTICE SANDEEP MEHTA
O R D E R
Reserved on : 05/03/2020
Pronounced on : 07/04/2020
BY THE COURT:
The instant misc. petition has been preferred by the
petitioners seeking quashing of the F.I.R. No.12/2016 lodged at
the Police Station Jayal, District Nagaur for the offence under
Section 91(6) of the Rajasthan Land Revenue Act.
2
Shri Ravindra Acharya learned counsel representing the
petitioners vehemently and fervently urged that the Police had
no jurisdiction or power to register the impugned F.I.R. because
the offence alleged is a non-cognizable one. In support of his
contention, Shri Acharya relied upon a Single Bench Judgment
of this Court in the case of Pintu Dey Vs. State of Rajasthan
& Anr. reported in 2015(3) Cr.L.R. (Raj.) 1291 and urged
that it has been conclusively laid down in the said decision that
the offences under Sections 63 and 68A of the Copyright Act
are non-cognizable offences. He thus urged that the offence
under Section 91(6) of the Land Revenue Act carries the same
punishment as the above offence under the Copyright Act and
thus, considered in light of Part-II of Schedule-I of Cr.P.C., the
same would be a non-cognizable offence and hence, registration
of an F.I.R. for such offence, amounts to a gross abuse of the
process of law and hence, the impugned F.I.R. should be
quashed.
Learned Additional Advocate General Shri Farzand Ali
opposed the submissions advanced by the petitioners’ counsel
and urged that the law laid down by this Court in the case of
Pintu Dey (supra) is incorrect, inasmuch as, the ratio of the
Hon’ble Supreme Court decision in the case of Rajeev
3
Choudhary Vs. State (N.C.T.) of Delhi reported in AIR 2001
SC 2369 was wrongly applied by this Court while holding that
the offences under Sections 63 and 68A of the Copyright Act
are non-cognizable in nature. He contended that the
controversy should be referred to a Larger Bench so as to
resolve anomaly existing in the interpretation of the important
legal issue.
I have given my thoughtful consideration to the
arguments advanced at the Bar and have gone through the
impugned F.I.R. and have carefully perused the judgment
rendered by this Court in the case of Pintu Dey (supra) wherein,
it was held that the offences under Sections 63 and 68A of the
Copyright Act are non-cognizable and hence, registration of an
F.I.R. is impermissible for such offences.
A perusal of the said judgment reveals that the learned
Single Bench of this Court applied the rationale of the Hon’ble
Supreme Court decision in the case of Rajeev Choudhary
(supra) and Hon’ble Andhra Pradesh High Court decision in the
case of Amarnath Vyas Vs. State of Andhra Pradesh
reported in 2007 Cr.L.J. 2025, and held that sentence “may
extend upto three years” as provided for the offences under
Sections 63 and 68A of the Copyright Act, would not be covered
4
by the phrase “imprisonment for three years and upwards” as
provided in Schedule II of Cr.P.C. and accordingly, the offences
under Sections 63 and 68A of the Copyright Act were treated to
be non-cognizable ones.
For considering the prayer of learned A.A.G. to refer the
controversy to a Larger Bench, the relevant statutory provisions
need to be adverted to.
Sections 63 and 68A of the Copyright Act read as below:
“63. Offence of infringement of copyright or other
rights conferred by this Act.- Any person who
knowingly infringes or abets the infringement of-
(a) the copyright in a work, or
(b) any other right conferred by this Act except the
right conferred by section 53A,
shall be punishable with imprisonment for a term
which shall not be less than six months but which may
extend to three years and with fine which shall not be
less than fifty thousand rupees but which may extend to
two lakh rupees:
Provided that where the infringement has not been
made for gain in the course of trade or business the
court may, for adequate and special reasons to be
mentioned in the judgment, impose a sentence of
imprisonment for a term of less than six months or a
fine of less than fifty thousand rupees.
Explanation.- Construction of a building or other
structure which infringes or which, if completed, would
5
infringe the copyright in some other work shall not be an
offence under this section.”
“68A. Penalty for contravention of section 52A.-
Any person who publishes a sound recording or a video
film in contravention of the provisions of section 52A
shall be punishable with imprisonment which may
extend to three years and shall also be liable to fine.”
Relevant extracts of Section 91(6) of the Land Revenue
Act read as under:
“91(6) Notwithstanding anything contained in
sub-section (2) -
(a) whoever occupies any land without lawful
authority or, having occupied such land before corning
into force of the Rajasthan Land Revenue (Amendment)
Act, 1992, fails to remove such occupation within fifteen
days from the date of service of a notice in writing
calling upon him to do so by the Tehsildar “shall, on
conviction, be punished with simple imprisonment which
shall not be less than one month but which may extend
to three years and with fine which may extend to
twenty thousand rupees”; and
[Emphasis supplied]
Provided that, in the case of an offence under
clause (a), the court may for any adequate or special
reason to be mentioned in the judgment impose a
sentence of imprisonment for a term of less than one
month :
Provided also that no investigation of an offence
under clause (a) of this sub section shall be made by an
6
officer below the rank of a Deputy Superintendent of
Police :
Provided further that no court shall take
cognizance of an offence under clause (b) except with
the previous sanction of the Collector.”
A plain reading of provision indicates that the offence
under Section 91(6)(2)(a) of the Land Revenue Act stipulates
punishment which may extend “upto three years”. Thus,
awarding actual imprisonment of “three years” is permissible for
this offence.
The Hon'ble Supreme Court interpreted various terms of
imprisonment referred to in Section 167(2) Cr.P.C. in the case of
Rajeev Choudhary (supra).
Section 167(2) of Cr.P.C. reads as below:
“167(2). The Magistrate to whom an accused person is
forwarded under this section may, whether he has or has
not jurisdiction to try the case, from time to time,
authorize the detention of the accused in such custody
as such Magistrate thinks fit, for a term not exceeding
fifteen days in the whole; and if he has no jurisdiction to
try the case or commit it for trial, and considers further
detention unnecessary, he may order the accused to be
forwarded to a Magistrate having such jurisdiction:
Provided that-
7
(a) the Magistrate may authorize the detention of the
accused person, otherwise than in the custody of the
police, beyond the period of fifteen days; if he is
satisfied that adequate grounds exist for doing so, but
no Magistrate shall authorize the detention of the
accused person in custody under this paragraph for a
total period exceeding,-
(i). ninety days, where the investigation relates to an
offence punishable with death, imprisonment for life or
imprisonment “for a term of not less than ten years”;
(ii). sixty days, where the investigation relates to “any
other offence”, and, on the expiry of the said period of
ninety days, or sixty days, as the case may be, the
accused person shall be released on bail if he is
prepared to and does furnish bail, and every person
released on bail under this sub- section shall be deemed
to be so released under the provisions of Chapter XXXIII
for the purposes of that Chapter.”
[Emphasis supplied]
Clause (i) to which custody period of 90 days is applicable
caters to such offences for which imprisonment of “ten years”
and above is provided. Clause (ii) to which the custody period
of 60 days applies, caters to such offences for which
imprisonment which may extend to 10 years is provided. Thus,
the offences for which imprisonment of “ten years and more” is
provided, would not be covered by the Clause (II) of Section
167(2) Cr.P.C. and for such offences, the outer limit of filing
8
charge-sheet would be 90 days. The classification of offences
for the purposes of making them cognizable/non-cognizable is
provided in Second Part of the Schedule-I of the Cr.P.C. which
reads as below:
II. Classification of offences against other laws
Offence Cognizable
or noncognizable
Bailable or
non-bailable
By what
Court
triable
1 2 3 4
If punishable with
death, imprisonment
for life, or
imprisonment for more
than 7 years
Cognizable Non-bailable Court of
Session
If punishable with
imprisonment for 3
years, and upwards but
not more than 7 years.
Cognizable Non-bailable Magistrate
of the First
class
If punishable with
imprisonment for less
than 3 years or with
fine only.
NonCognizable
bailable Any
Magistrate
The third category of offences which are made noncognizable in this Section of the Schedule are those which are
punishable “with imprisonment for less than three years or with
fine only”.
Therefore, on a plain reading of this clause, awarding
“actual imprisonment of three years” for an offence which is
made non-cognizable by this clause, is not a permissible option.
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Section 91(6) of the Land Revenue Act referred to supra
provides that the offender can be punished with imprisonment
which may extend to three years. Thus, the provision does
lay that punishment would be continued within three years.
Awarding an actual sentence of three years is permissible for
the offence. A further indication of the legislative intent that the
offence was engrafted so as to make it a cognizable one is
given in Section 91 itself. The second proviso to Section 91
mentions that investigation of an offence under clause (a) of
sub-section (6) shall not be made by an officer below the rank
of a Dy.S.P. Manifestly, investigation can only be made into
cognizable offences as no such course of action is permissible
for a non-cognizable offence in relation whereto, only an inquiry
is permissible as no F.I.R. can be registered for non-cognizanble
offence. The power to investigate has consciously been provided
to the Police, restricting the same to clause (a) whereas clause
(b) which provides for imprisonment for a term which may
extend to one month, no such power is given. Thus, the offence
under Section 91(6)(b) of the Act would definitely be a noncognizable one.
In this background, I am of the view that the contention of
the learned AAG that the matter requires to be placed before a
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Larger Bench for resolving the important question as to whether
the offence under Section 91(6)(a) of the Land Revenue Act and
those Sections 63 and 68A of the Copyright Act should be
treated as ‘cognizable or non-cognizable’. I am of the primafacie opinion that the view taken by the learned Single Bench in
the case of Pintu Dey (supra) does not appear to be laying
down the correct proposition of law and I am inclined to differ
with the same. Therefore, the following question of law is
framed and shall be placed before Hon’ble the Chief Justice for
resolution thereof by the Larger Bench:
“What would be the nature of an offence (whether
cognizable or non-cognizable) for which imprisonment “may
extend to three years” is provided and no stipulation is made in
the statute regarding it being cognizable/non-cognizable ?”
(SANDEEP MEHTA),J
/tarun goyal/


असम के हिरासत केंद्रों में 2 साल से अधिक समय से बंद कैदियों की रिहाई के लिए आदेश जारी करेगा सुप्रीम कोर्ट

COVID-19 महामारी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि असम के हिरासत केंद्रों में 2 वर्ष से अधिक समय से रखे गए कैदियों को एक निश्चित जमानत के साथ व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एम एम शांतनागौदर की पीठ ने एक लाख रुपये की कठोर जमानत को भी कम कर दिया। COVID-19 महामारी के मद्देनज़र देश भर में बाल संरक्षण घरों की स्थितियों से संबंधित एक मामले में ये कदम उठाया।



मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने उल्लेख किया, "हम इस संबंध में आदेश पारित करेंगे। हम आज आदेश पारित करेंगे।" वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पीठ को अवगत कराया कि कैदियों की व्यवस्थित रिहाई के निर्देशों के आलोक में विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। एमिक्स क्यूरी और वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि पीठ को कैदियों की स्थायी रिहाई की घटना को ध्यान में रखना चाहिए। वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने भी कहा कि बेंच, कैदियों की रिहाई के अलावा राज्यों को हिरासत केंद्रों के बंदियों को रिहा करने का भी निर्देश दे। इसके आलोक में, न्यायालय ने जेलों की क्षमता और इस संकट में कैदियों को रिहा करने के लिए आवश्यक विभिन्न अन्य तौर-तरीकों की जांच की। राष्ट्रीय मंच के लिए उपस्थित वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि असम के हिरासत केंद्रों में रखे गए बंदियों को रिहा किया जाना चाहिए। हालांकि, पीठ ने इस बात की व्यवहार्यता की जांच की और पूछा कि इन केंद्रों में बॉद लोग विदेशी हैं और उनके फरार होने की उच्च संभावना है। वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने हालांकि कहा कि ये बंदी वास्तव में विदेशी नहीं है और लोग जो पांच दशक से अधिक समय से भारत में रह रहे हैं, उनके पास पीढ़ियों, कृषि भूमि आदि हैं। 2 साल से अधिक समय से बंदी राजू बाला दास द्वारा दायर याचिका में हिरासत केंद्रों में भीड़भाड़ की स्थितियों के बीच COVID-19 संक्रमण के जोखिम का हवाला दिया गया है। असम में छह हिरासत केंद्र हैं, जिसमें 802 व्यक्ति हिरासत में हैं, जैसा कि पिछले महीने लोकसभा में केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था। 10 मई, 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी बंदियों को रिहा करने का निर्देश दिया था, जिन्होंने 3 साल से अधिक समय हिरासत में काटा है। उसे बांड के निष्पादन के अधीन किया था। COVID महामारी के मद्देनजर जेलों में भीड़भाड़ से बचने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च, 2020 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे कैदियों की श्रेणी निर्धारित करने के लिए उच्च स्तरीय समितियों का गठन करें, जिन्हें चार से छह सप्ताह के लिए पैरोल पर रिहा किया जा सके।


PM CARES फंड के गठन की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को COVID-19 राहत के लिए PM CARES फंड के गठन की वैधता पर सवाल उठाते हुए दायर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने याचिकाकर्ता के वकील एमएल शर्मा से कहा, " यह पूरी तरह से गलत याचिका है।" पीठ ने कहा "हम आप पर जुर्माना लगाएंगे।" याचिकाकर्ता शर्मा ने कहा, "PM CARES अस्तित्व में कैसे आ सकता है। ऐसा करने की शक्ति अनुच्छेद 266 और अनुच्छेद 267 के तहत संसद के पास ही है।" हालांकि बेंच ने याचिका की सुनवाई करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री के नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति (PM CARES) कोष का गठन अवैध है, क्योंकि यह वैधानिक अधिनियमन द्वारा नहीं बनाया गया। याचिकाकर्ता ने PM CARES के तहत प्राप्त सभी दान को भारत के समेकित कोष के अलावा न्यायालय की निगरानी वाली SIT जांच से स्थानांतरित करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले कई मौकों पर अनावश्यक मामलों पर याचिका दर्ज करने के लिए शर्मा को फटकार लगाई। पिछले साल कोर्ट ने उन्हें अनुच्छेद 370 के मामले में एक पीआईएल दाखिल करने के लिए फटकार लगाई थी।