बुधवार, 22 अप्रैल 2020

PM CARES फंड में दान देने की शर्त पर लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले किराना व्यवसायी को ज़मानत दी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंगलवार को इंदौर-निवासी व्यक्ति को जमानत दे दी। इस व्यक्ति को लॉकडाउन उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने ज़मानत देते हुए शर्त रखी कि वह एक सप्ताह के लिए "स्वैच्छिक सेवा करेगा। न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने निर्देश दिया कि किराना दुकान के मालिक दिलीप विश्वकर्मा को पैंतीस हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। साथ ही इतनी ही राशि के जमानत की शर्त के अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि जब भी ट्रायल कोर्ट उसे पेश होने को कहे, उसे पेश होना होगा। इसके अलावा अदालत ने उसे PM CARES फंड में 10,000 / रुपये जमा करने और एक सप्ताह के लिए स्वैच्छिक सेवा करने को कहा। पीठ ने आदेश दिया कि "आवेदक PM CARES में 10,000 / - (दस हजार रुपए) दान करेगा, जैसा कि उसके द्वारा स्वेच्छा से कहा गया है और प्रति दिन कम से कम तीन घंटे एक सप्ताह की अवधि तक स्वयंसेवक के रूप में सेवा भी करेगा, जैसा कि संबंधित एसडीएम द्वारा निर्देशित किया जाए,


                                       


जिसे वह बिना किसी देरी के इस स्थिति के बारे में सूचित करेगा।" आवेदक को लॉकडाउन अवधि के दौरान अपनी किराने की दुकान खोलने और सामाजिक दूरी के मानदंड का पालन किए बिना ग्राहकों को वहां इकट्ठा होने देने के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। अपने बचाव में आवेदक ने प्रस्तुत किया था कि उसका निवास और दुकान एक ही इमारत में स्थित है और यही कारण है कि ग्राहकों ने उसकी दुकान के सामने भीड़ लगाई। आवेदक ने यह भी कहा कि उसने लॉकडाउन के महत्व को महसूस किया और कुछ समय के लिए वह स्वयंसेवक के रूप में काम करने को तैयार है। हाल ही में, झारखंड उच्च न्यायालय ने एक मामले में ज़मानत देते हुए PM CARES फंड में दान करने और आरोग्य सेतु ऐप' डाउनलोड करने की शर्त लगाई थी।


लॉकडाउन के कारण आर्थिक तंंगी का सामना कर रहे अधिवक्ताओंं को वित्तीय सहायता देने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिये

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को एक निगरानी समिति का गठन किया, जिसमें हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (एचसीबीए) के विभिन्न पदाधिकारियों को रखा गया है। यह समिति वित्तीय लॉकडाउन के कारण वित्तीय संकट झेल रहे अधिवक्ताओं को वित्तीय सहायता के वितरण फंड की निगरानी की करेगी। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर की अगुवाई वाली एक खंडपीठ ने यह आदेश आर्थिक रूप से कमजोर अधिवक्ताओं को वित्तीय सहायता देने के मुद्दे पर एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए पारित किया। अदालत ने आदेश दिया है कि समिति एक पूर्ण योजना तैयार करने और सदस्यों को सहायता के अनुदान के उद्देश्य से एसोसिएशन के खातों को संचालित करने के लिए एक संवादात्मक निकाय के रूप में कार्य करेगी। खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा ने उत्तर प्रदेश एडवोकेट्स वेलफेयर फंड एक्ट, 1974 के तहत ट्रस्टी कमेटी को आदेश दिया कि जल्द से जल्द एक बैठक बुलाई जाए ताकि जरूरतमंद अधिवक्ताओं को सहायता प्रदान करने के लिए एक योजना तैयार की जा सके, जो COVID 19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से वित्तीय रूप से प्रभावित हुए हैं। पीठ ने यह निर्देश वरिष्ठ अधिवक्ता बीके श्रीवास्तव के यह कहने पर दिया कि राज्य की ओर से यूपी एडवोकेट्स वेलफेयर फंड एक्ट के तहत वकीलों को सहायता प्रदान करने के लिए जिम्मेदार ट्रस्टीज कमेटी का कामकाज सतोषजनक नहीं है। अदालत ने इस प्रकार आदेश दिया: "उत्तर प्रदेश एडवोकेट्स वेलफेयर फंड एक्ट, 1974 के तहत गठित ट्रस्टीज़ कमेटी जल्द से जल्द बैठक करेगी ताकि जरूरतमंद एडवोकेट्स को सहायता प्रदान की जा सके, जो COVID-19 लॉकडाउन के कारण पूरी तरह से प्रभावित हैं। स्कीम बनाने के बाद, ट्रस्टीज़ कमेटी उत्तर प्रदेश राज्य में मान्यता प्राप्त बार एसोसिएशनों के लिए फंड जारी करना सुनिश्चित करेगी और एसोसिएशन को विशिष्ट निर्देश देगी ताकि एसोसिएटेड सदस्यों को इस योजना के अनुसार फंड से सहायता दी की जा सके। इस याचिका की लिस्टिंग की अगली तारीख से पहले यह काम पूरा किया जाना आवश्यक है। अधिवक्ताओं की विधवाओं को सहायता के लिए और अन्य दावेदारों को भी ट्रस्टीस कमेटी ने आगे लंबित सभी आवेदनों पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए निर्देशित किया है। ट्रस्टी कमेटी द्वारा आज से एक महीने की अवधि में इस तरह के आवेदनों पर विचार और निर्णय लिया जाना आवश्यक है। अपने निर्णय के अनुसार, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली उत्तर प्रदेश के बार काउंसिल को धनराशि जल्द से जल्द, 27 अप्रैल, 2020 को या उससे पहले जारी करेगा। इस बीच में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश, अदालत से जुड़ी बार एसोसिएशनों के माध्यम से जरूरतमंद अधिवक्ताओं को सहायता वितरित करने के लिए एक योजना तैयार करे। स्टेट बार काउंसिल यह सुनिश्चित करेगी कि धनराशि को उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए निष्पक्ष और समान रूप से पूरी सावधानी के साथ वितरित किया जाए। बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश जरूरतमंद अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए उन्हें जारी राशि का पूरा हिसाब रखने या उनके उपयोग के लिए बार एसोसिएशन को आवश्यक निर्देश जारी करेगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के पास पर्याप्त धनराशि है, लेकिन कुछ अजीब परिस्थितियों के कारण, यह जरूरतमंद सदस्यों की मदद करने की स्थिति में नहीं है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, हम निम्नलिखित सदस्यों की एक निगरानी समिति का गठन करना उचित समझते हैं: - (i) श्री राकेश पांडे, वरिष्ठ अधिवक्ता और नामित अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन। (ii) श्री अमरेन्द्र नाथ सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता और नामित अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन। (iii) श्री जे.बी. सिंह, एडवोकेट और जनरल सेक्रेटरी, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन। (iv) श्री प्रभा शंकर मिश्र, इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अधिवक्ता और नामित महासचिव। (v) श्री वी.पी. श्रीवास्तव, वरिष्ठ अधिवक्ता, इलाहाबाद। (vi) श्री विकाश चंद्र त्रिपाठी, मुख्य स्थायी वकील, इलाहाबाद। समिति इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्यों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से एसोसिएशन के खातों को संचालित करने के लिए एक संवादात्मक निकाय के रूप में कार्य करेगी। निगरानी समिति इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के जरूरतमंद सदस्यों को सहायता के वितरण के लिए एक पूरी योजना तैयार करेगी। निगरानी समिति को 25 अप्रैल, 2020 को या उससे पहले इलाहाबाद में जरूरतमंद अधिवक्ताओं को सहायता के वितरण को सुनिश्चित करना आवश्यक है। ऐसा करते समय यह सहायता का उचित और एक समान अनुदान सुनिश्चित करेगी और इसका पूरा लेखा-जोखा भी रखेगी। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (प्रोटोकॉल) समिति के सदस्यों को सामाजिक दूरी को बनाए रखते हुए बार एसोसिएशन के कार्यालय को खोलने और उपयोग करने की अनुमति देंगे। कोर्ट ने आदेश दिया : "अवध बार एसोसिएशन, लखनऊ ने पहले से ही जरूरतमंद अधिवक्ताओं की मदद के लिए एक पूरी योजना तैयार की है। एसोसिएशन आज से एक सप्ताह की अवधि के भीतर यथासंभव जल्द से जल्द इस योजना को निष्पादित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेगी। इस न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया जाता है कि वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं क्लर्कों (एडवोकेट्स क्लर्कों का पंजीकरण) नियमावली, 1997 के अनुसार अधिवक्ता क्लर्कों को पंजीकृत करने की प्रक्रिया शुरू करें। हम उत्तर प्रदेश राज्य के सभी नामित वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अधिवक्ताओं से यह अनुरोध करना चाहते हैं कि उनके पास बार एसोसिएशनों की सहायता के लिए पर्याप्त संसाधन हों, इसके लिए वे एडवोकेट क्लर्कों की मदद ले सकते हैं। मामले के साथ भागीदारी करते हुए, हम उत्तर प्रदेश राज्य में विभिन्न अदालतों में काम करने वाले पंजीकृत अधिवक्ता क्लर्कों के कल्याण के लिए एक व्यवहार्यता की जांच करने के लिए राज्य सरकार से अनुरोध करते हैं। " जैसा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा किए गए उपायों के संबंध में अदालत को सूचित किया गया था कि उसने अधिवक्ताओं की अपनी ताकत के अनुपात में प्रत्येक राज्य बार काउंसिल को 1 करोड़ रुपये के अधिकतम अनुदान के अधीन वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया था। इसके अलावा परिषद ने आर्थिक रूप से कमज़ोर अधिवक्ताओं को प्रधानमंत्री से 20,000 / - रुपये प्रति माह एक न्यूनतम निर्वाह भत्ते के रूप में देने करने की अपील की थी। यह मामला अब 5 मई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।



मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

प्रधान की मिली भगत से ग्राम समाज की ज़मीन पर अवैध कब्जा

मानी कलाँ / जौनपुर


थाना खेतासराय क्षेत्र मानी कलाँ गाँव में तलाब के किनारे  लाक्डाउन का उंलघन करते हुए ग्राम प्रधान की सह ग्राम समाज की ज़मीन पर पैसों के नशो में चूर होकर फैज़ान अहमद एवं इरफान अहमद पुत्र  हाफ़िज़ ज़करिया अवैध तरीके से कब्जा कर रहे है। प्राप्त सूचना के अनुसार ए लोग मनबढ़ किस्म के व्यक्ति है शायद इसी डर के कारण अवैध तरीके से कर रहे ग्राम समाज कब्जा



की शिकायत कोई थाना खेतासराय मे नही कर रहा है बताते है कि ये दो माह पूर्व ग्राम समाज की जमीन पर अवैध कब्जा कर रहे थे, मौके पर पहुंच कर डायल 112 फोर्स ने निर्माण कार्य को रोकवा दिया था।लॉक डाउन का फायदा उठाते हुए मन माने तरीके से मकान का निर्माण कार्य करवा रहा है।जिसे ना कानून का डर है ना शासन प्रशासन का डर है।


अपने पाठकों सहित जनता की आवाज है हकीकत एक्सप्रेस हिंदी दैनिक

अपने पाठकों सहित जनता की आवाज है


हकीकत एक्सप्रेस हिंदी दैनिक अपने पाठकों सहित उन तमाम जनता की आवाज है जो लक्ष्य तक अपनी आवाज को नहीं पहुंचा पाते हैं ऐसे लोगों की सच्चाई से भरपूर आवाज  बुलंद करने में भ्रष्टाचार अत्याचार और शोषण के विरुद्ध पोल खोल अभियान आरंभ करने के लिए हम कटिबद्ध हैं भ्रष्टाचारी अत्याचारी और शोषण करने वाला कितना भी वैभवशाली ताकतवर एवं बाहुबली हो उसके गुनाहों की परत खोलने के लिए हम तैयार हैं बस आवश्यकता है आपके सहयोग की इस अभियान में सूचना देने वाले व्यक्ति का नाम गुप्त रखा जाएगा किसी भी समस्या के लिए निम्न नंबरों पर संपर्क करें


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भारत में फलता-फूलता मुकदमेबाजी उद्योग, मनीराम शर्मा, एडवोकेट 

    



  1. इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें व्यापारी वर्ग को किसी शासन व्यवस्था से कभी कोई शिकायत रही हो, क्योंकि वे पैसे की शक्ति को पहचानते हैं तथा पैसे के बल पर अपना रास्ता निकाल लेते हैं। चाहे शासन प्रणाली या शासन कैसा भी क्यों हो।

  2. हमारा सबसे पहला कार्य वकीलों को समाप्त करना है।”-विलियम शेक्स्पेअर।

  3. न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए मात्र कानून का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु वह व्यक्ति चरित्र, मनोवृति और बुद्धिमता के दृष्टिकोण से भी योग्य होना चाहिए, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति के भी कुटिल होने का जोखिम बना रहता है।

  4. विधि आयोग की 197 वीं रिपोर्ट के अनुसार भारत में दोषसिद्धि की दर मात्र 2 प्रतिशत है, जिससे सम्पूर्ण न्यायतंत्र की क्षमतायोग्यता का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। जबकि अमेरिका के संघीय न्यायालयों की दोष सिद्धि की जो दर 1972 में 75 प्रतिशत, 1992 में 85 प्रतिशत और 2011 में 93 थी।

  5. जहां सामने सशक्त पक्ष हो तो न्यायाधीश भी अपने आपको असहाय और लाचार पाते हैं-उनकी श्रेष्ठ न्यायिक शक्तियां अंतर्ध्यान हो जाती हैं। जहां दोषी व्यक्ति शक्ति संपन्न हो, वहां कानून के हाथ भी छोटे पड़ जाते हैं। देश के न्यायाधीशों की निष्पक्षता, तटस्थता और स्वतंत्रता खतरे में दिखाई देती है। देश का न्यायिक वातावरण दूषित है और इसकी गरिमा प्रश्नास्पद है। इस वातावरण में प्रतिभाशाली और ईमानदार लोगों के लिए कोई स्थान दिखाई नहीं देता है।

  6. उच्च न्यायालयों में भी सुनवाई के लिए वकील अनुकूल बेंच की प्रतीक्षा करते रहते हैं-स्थगन लेते रहते हैं, .... जिसका एक अर्थ यह निकलता है कि उच्च न्यायालय की बेंचें फिक्स मैनेज की जाती हैं कानून गौण हो जाता है। कोई भी मूल प्रार्थी, अपवादों को छोड़कर, किसी याचिका पर निर्णय में देरी करने के प्रयास नहीं करेगा, फिर भी देखा गया है कि मूल याची या याची के वकील भी अनुकूल बेंच के लिए प्रतीक्षा करते हैं।


मनीराम शर्मा, एडवोकेट


  


भारतीय न्यायातंत्र उर्फ मुकदमेबाजी उद्योग ने बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध करवा रखा है। देश में अर्द्ध–न्यायिक निकायों को छोड़कर 20,000 से ज्यादा न्यायाधीश, 2,50,000 से ज्यादा सहायक स्टाफ, 25,00,000 से ज्यादा वकील, 10,00,000 से ज्यादा मुंशी टाइपिस्ट, 23,00,000 से ज्यादा पुलिसकर्मी इस व्यवसाय में नियोजित हैं और वैध–अवैध ढंग से जनता से धन ऐंठ रहे हैं। अर्द्ध-न्यायिक निकायों में भी समान संख्या और नियोजित है। फिर भी परिणाम और इन लोगों की नीयत लाचार जनता से छुपी हुई नहीं हैं। भारत में मुक़दमेबाजी उद्योग एक कुचक्र की तरह संचालित है, जिसमें सत्ता में शामिल सभी पक्षकार अपनी-अपनी भूमिका निसंकोच और निर्भीक होकर बखूबी निभा रहे हैं। प्राय: झगड़ों और विवादों का प्रायोजन अपने स्वर्थों के लिए या तो राजनेता स्वयं करते हैं या वे इनका पोषण करते हैं। अधिकाँश वकील किसी न किसी राजनैतिक दल से चिपके रहते हैं और उनके माध्यम से वे अपना व्यवसाय प्राप्त करते हैं, क्योंकि विवाद के पश्चात पक्षकार सुलह–समाधान के लिए अक्सर राजनेताओं के पास जाते हैं और कालांतर में राजनेताओं से घनिष्ठ संपर्क वाले वकील ही न्यायाधीश बन पाते हैं। इस बात का खुलासा सिंघवी सीडी प्रकरण ने भी कर दिया है। इस प्रकरण ने यह भी दिखा दिया कि न्यायाधीश बनने के लिए आशार्थी को किन कठिन परीक्षणों से गुजरना पड़ता है। भारत में किसी चयन प्रक्रिया में न्यायाधीशों या विपक्ष को भी शामिल करने का कोई लाभ नहीं है, क्योंकि जिस प्रक्रिया में जितने ज्यादा लोग शामिल होंगे; उसमें भ्रष्टाचार उतना ही अधिक होगा। प्रक्रिया में शामिल सभी लोग तुष्ट होने पर ही कार्यवाही आगे बढ़ पाएगी। यदि निर्णय प्रक्रिया में भागीदारों की संख्या बढाने या विपक्ष को शामिल करने से स्वच्छता आती तो हमें विधायिकाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्था की आवश्यकता क्यों पड़ती। इसलिए प्रक्रिया में जितना प्रसाद मिलेगा, उसका बँटवारा प्रत्येक भागीदार की मोलभाव शक्ति के अनुसार होगा और अंतत: यह बंदरबांट का रूप ले लेगी। कहने को चाहे संवैधानिक न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीश करते होंगे, किन्तु वास्तव में यह भी राजनीति की इच्छाशक्ति की सहमति से ही होता है। जहां राजनीति किसी नियुक्ति पर असहमत हो तो, देश में वकील और न्यायाधीश कोई संत पुरुष तो हैं नहीं, वे प्रस्तावित व्यक्ति के विरुद्ध किसी शिकायत की जांच खोलकर उसकी नियुक्ति बाधित कर देते हैं। अन्यथा दागी के विरुद्ध किसी प्रतिकूल रिपोर्ट को भी नजर अंदाज कर दबा दिया जाता है। विलियम शेक्स्पेअर ने भी (हेनरी 4 भाग 2 नाट्य 4 दृश्य 2) में कहा है , हमारा सबसे पहला कार्य वकीलों को समाप्त करना है।


 


वैसे भी भारत की राजनीति किसी दलदल से कम नहीं है और लगभग सभी नामी और वरिष्ठ वकील किसी न किसी राजनैतिक दल से जुड़े हुए हैं, जिसमें दोनों का आपसी हित है और दोनों एक दूसरे का संरक्षण करते हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया तो वैसे ही गोपनीय है और उसमें पारदर्शिता का नितांत अभाव है। न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए मात्र कानून का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु वह व्यक्ति चरित्र, मनोवृति और बुद्धिमता के दृष्टिकोण से भी योग्य होना चाहिए, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति के भी कुटिल होने का जोखिम बना रहता है। अमेरिका में न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के समय उसकी पात्रता–बुद्धिमता, योग्यता, निष्ठा, ईमानदारी आदि की कड़ी जांच होती है और प्रत्येक पद के लिए दो गुने प्रत्याशियों की सूची राज्यपाल को नियुक्ति हेतु सौंपी जाती है, जबकि भारत में ऐसा कदाचित नहीं होता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों पर यौन शोषण के आरोप लगे और यह पाया गया कि उन्होंने शाराब का सेवन किया तथा पीड़ित महिला को भी इसके लिए प्रस्ताव रखा। इससे यह प्रामाणित होता है कि वे लोग अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करने वाले रहे हैं, जिनमें सात्विक और सद्बुद्धि की कल्पना नहीं की जा सकती। निश्चित रूप से ऐसे चरित्रवान लोगो को इन गरिमामयी पदों पर नियुक्त करने में देश से भारी भूलें हुई हैं, चाहे उन्हें दण्डित किया जाता है या नहीं। न्यायाधीश होने के लिए मात्र विद्वान होना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु वह मन से सद्बुद्धि और सात्विक होना चाहिए। अन्यथा सद्चरित्र के अभाव में ऐसा पांडित्य तो रावण के समान चरित्र को ही प्रतिबिंबित कर सकता है और इसके अतिरिक्त कुछ नहीं।


 


विधि आयोग की 197 वीं रिपोर्ट के अनुसार भारत में दोषसिद्धि की दर मात्र 2 प्रतिशत है, जिससे सम्पूर्ण न्यायतंत्र की क्षमता–योग्यता का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। जबकि अमेरिका के संघीय न्यायालयों की दोष सिद्धि की जो दर 1972 में 75 प्रतिशत थी, वह बढ़कर 1992 में 85 प्रतिशत हो गयी है। वहीं वर्ष 2011 में अमरीकी न्याय विभाग ने दोष सिद्धि की दर 93 प्रतिशत बतायी है। भारत में आपराधिक मामलों में पुलिस अनुसंधान में विलंब करती है, फिर भी दोष सिद्धियाँ मात्र 2 प्रतिशत तक ही सीमित रह जाती हैं। इसका एक संभावित कारण है कि पुलिस वास्तव में मामले की तह तक नहीं जाती, अपितु कुछ कहानियां गढ़ती है और झूठी कहानी गढ़ने में उसे समय लगना स्वाभाविक है। दोष सिद्धि की दर अमेरिकी राज्य न्यायालयों में भी पर्याप्त ऊँची है। रिपोर्ट के अनुसार यह टेक्सास में 84 प्रतिशत, कैलिफ़ोर्निया में 82 प्रतिशत, न्यूयॉर्क में 72 प्रतिशत उतरी कैलिफ़ोर्निया में 67 प्रतिशत और फ्लोरिडा में 59 प्रतिशत है। इंग्लॅण्ड के क्राउन कोर्ट्स में भी दोष सिद्धि की दर 80 प्रतिशत है। हांगकांग के सत्र न्यायालयों में 92 प्रतिशत, वेल्स के सत्र न्यायालयों में 80 प्रतिशत, कनाडा के समान न्यायालयों में 69 प्रतिशत और ऑस्ट्रेलिया के न्यायालयों में 79 प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में क्या भारत में मात्र 2 प्रतिशत दोष सिद्धि जनता पर एक भार नहीं हैं? क्या इतना परिणाम यदि देश में बैंकिंग या अन्य उद्योग दें तो सरकार इसे बर्दास्त कर सकेगी? फिर न्यायतंत्र के ऐसे निराशाजनक परिणामों को सत्तासीन और विपक्ष दोनों क्योंकर बर्दास्त कर रहे हैं? इससे न्यायतंत्र के भी राजनैतिक उपयोग की बू आती है। देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा वसूली हेतु दायर किये गए मामलों में भी, जहां पूरी तरह से सुरक्षित दस्तावेज बनाकर ऋण दिए जाते हैं, वसूली मात्र 2 प्रतिशत वार्षिक तक सीमित है, जबकि इनमें लागत 15 प्रतिशत आ रही है। देश की जनता को न्यायतंत्र की इतनी विफलता में क्रमश: न्यायपालिका, विधायिका, पुलिस व वकीलों के अलग-अलग योगदान को जानने का अधिकार है। 


 


जहां तक नियुक्ति या निर्णयन की किसी प्रक्रिया में पक्ष-विपक्ष को शामिल करने का प्रश्न है, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि जो पक्ष आज सता में है-कल विपक्ष में हो सकता है और ठीक इसके विपरीत भी। अत: इन दोनों समूहों में वास्तव में आपस में कोई संघर्ष-टकराव नहीं होता है, जो भी संघर्ष होता है-वह मात्र सस्ती लोकप्रियता व वोट बटोरने और जनता को मूर्ख बनाने के लिए होता है। यद्यपि प्रजातंत्र कोई मूकदर्शी खेल नहीं है, अपितु यह तो जनता की सक्रिय भागीदारी से संचालित शासन व्यवस्था का नाम है। जनतंत्र में न तो जनता जनप्रतिनिधियों के बंधक है और न ही जनतंत्र किसी अन्य द्वारा निर्देशित कोई व्यवस्था का नाम है। न्यायाधिपति सौमित्र सेन पर महाभियोग का असामयिक पटाक्षेप और राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भल्ला द्वारा अपर सत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले को देश की जनता देख ही चुकी है, जहां मात्र अनुचित नियुक्तियों को निरस्त ही किया गया और किसी दोषी के गिरेबान तक कानून का हाथ नहीं पहुँच सका। जिससे यह प्रमाणित है कि जहां दोषी व्यक्ति शक्तिसंपन्न हो, वहां कानून के हाथ भी छोटे पड़ जाते हैं। देश के न्यायाधीशों की निष्पक्षता, तटस्थता और स्वतंत्रता खतरे में दिखाई देती है। देश का न्यायिक वातावरण दूषित है और इसकी गरिमा प्रश्नास्पद है। इस वातावरण में प्रतिभाशाली और ईमानदार लोगों के लिए कोई स्थान दिखाई नहीं देता है। न्यायाधीशों के पदों पर नियुक्ति हेतु आशार्थियों की सूची को पहले सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि अवांछनीय और अपराधी लोग इस पवित्र व्यवसाय में अतिक्रमण नहीं कर सकें। वर्तमान में तो इस व्यवसाय के संचालन में न्याय-तंत्र का अनुचित महिमामंडन करने वाले वकील, उनके सहायक, न्यायाधीश और पुलिस ही टिक पा रहे हैं।


 


हाल ही में उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीश की पदस्थापना के लिए यह नीति बनायी गयी कि मुख्य न्यायाधीश किसी बाहरी राज्य का हो,  किन्तु यह नीति न तो उचित है और न ही व्यावहारिक है। न्यायाधीश पूर्व वकील होते हैं और वे राजनीति के गहरे रंग में रंगे होते हैं। इस वास्तविकता की ओर आँखें नहीं मूंदी जा सकती। अत: देशी राज्य के वकीलों का ध्रुवीकरण हो जाता है और बाहरी राज्य का अकेला मुख्य न्यायाधीश अलग थलग पड़ जाता है तथा वह चाहकर भी कोई सुधार का कार्य हाथ में नहीं ले पाता, क्योंकि संवैधानिक न्यायालयों में प्रशासनिक निर्णय समूह द्वारा लिए जाते हैं। वैसे भी यह नीति देश की न्यायपालिका में स्वच्छता व गतिशीलता रखने और स्थानान्तरण की सुविचारित नीति के विरूद्ध है। जहां एक ओर सत्र न्यायाधीशों के लिए समस्त भारतीय स्तर की सेवा की पैरवी की जाती है, वहीं उच्च न्यायालयों के स्तर के न्यायाधीशों के लिए इस तरह की नीति के विषय में कोई विचार तक नहीं किया जा रहा है, जिससे न्यायिक उपक्रमों में स्वच्छता लाने की मूल इच्छा शक्ति पर ही संदेह होना स्वाभाविक है। उच्च न्यायालयों द्वारा आवश्यकता होने पर पुलिस केस डायरी मंगवाई जाती है, किन्तु उसे बिना न्यायालय के आदेश के ही लौटा दिया जाता है। जिससे यह सन्देश जाता है कि न्यायालय और पुलिस हाथ से हाथ मिलाकर कार्य कर रहे हैं न कि वे स्वतंत्र हैं। क्या न्यायालय एक आम नागरिक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज को भी बिना न्यायिक आदेश के लौटा देते हैं? केरल उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने एक बार राज्य के महाधिवक्ता द्वारा प्रकरणों में तैयार होकर न आने पर न्यायालय से ही वाक आउट कर दिया, बजाय इसके कि कार्यवाही को आगे बढ़ाते अथवा महाधिवक्ता पर समुचित कार्यवाही करते अर्थात जहां सामने सशक्त पक्ष हो तो न्यायाधीश भी अपने आपको असहाय और लाचार पाते हैं-उनकी श्रेष्ठ न्यायिक शक्तियां अंतर्ध्यान हो जाती हैं। भारत का आम नागरिक तो न्यायालयों में चलने वाले पैंतरों, दांव-पेंचों आदि से परिचित नहीं हैं, किन्तु देश के वकीलों को ज्ञान है कि देश में कानून या संविधान का अस्तित्व संदिग्ध है। अत: वे अपनी परिवेदनाओं और मांगों के लिए दबाव बनाने हेतु धरनों, प्रदर्शनों, हड़तालों, विरोधों आदि का सहारा लेते हैं। आखिर पापी पेट का सवाल है। कदाचित उन्हें सम्यक न्यायिक उपचार उपलब्ध होते तो वे ऐसा रास्ता नहीं अपनाते। सामान्यतया न्यायार्थी जब वकील के पास जाता है तो उसके द्वारा मांगी जानी वाली आधी राहतों के विषय में तो उसे बताया जाता है कि ये कानून में उपलब्ध नहीं हैं और शेष में से अधिकाँश देने की परम्परा नहीं है अथवा साहब देते नहीं हैं।


 


पारदर्शिता और भ्रष्टाचार में कोई मेलजोल नहीं होता है, इस कारण न्यायालयों एवं पुलिस का स्टाफ अपने कार्यों में कभी पारदर्शिता नहीं लाना चाहता है। देश के 20,000 न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण की ईकोर्ट प्रक्रिया 1990 में प्रारंभ हुई थी और यह आज तक 20 उच्च न्यायालयों के स्तर तक भी पूर्ण नहीं हो सकी है। दूसरी ओर देखें तो देश की लगभग 1,00,000 सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक शाखाओं के कम्प्यूटरीकरण का कार्य 10 वर्ष में पूर्ण हो गया। इससे न्यायतंत्र से जुड़े लोगों की कम्प्यूटरीकरण में अरुचि का सहज अनुमान लगाया जा सकता है जो माननीय कहे जाने वाले न्यायाधीशों के सानिध्य में ही संचालित हैं। देश के न्यायालयों में सुनवाई पूर्ण होने की के बाद भी निर्णय घोषित नहीं किये जाते तथा ऐसे भी मामले प्रकाश में आये हैं, जहां पक्षकारों से न्यायाधीशों ने मोलभाव किया और निर्णय जारी करने में 6 माह तक का असामान्य विलम्ब किया। वैसे भी निर्णय सुनवाई पूर्ण होने के 5-6 दिन बाद ही घोषित करना एक सामान्य बात है। कई बार पीड़ित पक्षकार को अपील के अधिकार से वंचित करने के लिए निर्णय पीछे की तिथि में जारी करके भी न्यायाधीश पक्षकार को उपकृत करते हैं। जबकि अमेरिका में निर्णय सुनवाई पूर्ण होने के बाद निश्चित दिन ही जारी किया जाता है और उसे अविलम्ब इन्टरनेट पर उपलब्ध करवा दिया जाता है। अपने अहम की संतुष्टि और शक्ति के बेजा प्रदर्शन के लिए संवैधानिक न्यायालय कई बार भारी खर्चे भी लगाते हैं, जबकि इसके लिए उन्होंने ऐसे कोई नियम नहीं बना रखे हैं, क्योंकि नियम बनाने की उन्हें कोई स्वतंत्र शक्तियां प्राप्त भी नहीं हैं। एक मामले में बम्बई उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने 40 लाख रुपये खर्चा लगाया जो उच्चतम न्यायालय ने घटाकर मात्र 25 हजार रुपये कर दिया। इस दृष्टांत से स्पष्ट है कि न्यायाधीश लोग निष्पक्ष की बजाय पूर्वाग्रहों पर आधारित होते हैं व देश की अस्वच्छ राजनीति की ही भांति उनका आपसी गठबंधन व गुप्त समझौता होता है और समय पर एक दूसरे के काम आते हैं। अत: निर्णय चाहे एक सदस्यीय पीठ दे या बहु सदस्यीय पीठ दे, उसकी गुणवता में कोई ज्यादा अंतर नहीं आता है। न्यायालयों द्वारा कई बार नागरिकों पर भयावह खर्चे लगाए जाते हैं, जबकि खर्चे शब्द का शाब्दिक अर्थ लागत की पूर्ति करना होता है और उसमें दंड शामिल नहीं है व लागत की गणना भी किया जाना आवश्यक है। जिस प्रकार न्यायालय पक्षकारों से अपेक्षा करते हैं। यदि किसी व्यक्ति पर किसी कानून के अंतर्गत दंड लगाया जाना हो तो संविधान के अनुसार उसे उचित सुनवाई का अवसर देकर ही ऐसा किया जा सकता है, किन्तु वकील ऐसे अवसरों पर मौन रहकर अपने पक्षकार का अहित करते हैं। 


 


वकालत का पेशा भी कितना विश्वसनीय है, इसकी बानगी हम इस बात से देख सकते हैं कि परिवार न्यायालयों, श्रम आयुक्तों, (कुछ राज्यों में) सूचना आयुक्तों आदि के यहाँ वकील के माध्यम से प्रतिनिधित्व अनुमत नहीं है अर्थात इन मंचों में वकीलों को न्याय पथ में बाधक माना गया है। फिर वकील अन्य मंचों पर साधक किस प्रकार हो सकते हैं? उच्च न्यायालयों में भी सुनवाई के लिए वकील अनुकूल बेंच की प्रतीक्षा करते रहते हैं-स्थगन लेते रहते हैं, यह तथ्य भी कई बार सामने आया है। जिसका एक अर्थ यह निकलता है कि उच्च न्यायालय की बेंचें फिक्स व मैनेज की जाती हैं व कानून गौण हो जाता है। कोई भी मूल प्रार्थी, अपवादों को छोड़कर, किसी याचिका पर निर्णय में देरी करने के प्रयास नहीं करेगा, फिर भी देखा गया है कि मूल याची या याची के वकील भी अनुकूल बेंच के लिए प्रतीक्षा करते हैं, जिससे उपरोक्त अवधारणा की फिर पुष्टि होती है।


 


देश में आतंकवादी गतिविधियाँ भी प्रशासन, पुलिस और राजनीति के सहयोग और समर्थन के बिना संचालित नहीं होती हैं। आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में भी परिवहन, व्यापार आदि चलते रहते हैं, जो कि पुलिस और आतंकवादियों व संगठित अपराधियों दोनों को प्रोटेक्शन मनी देने पर ही संभव है। वैसे भी इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें व्यापारी वर्ग को किसी शासन व्यवस्था से कभी कोई शिकायत रही हो, क्योंकि वे पैसे की शक्ति को पहचानते हैं तथा पैसे के बल पर अपना रास्ता निकाल लेते हैं। चाहे शासन प्रणाली या शासन कैसा भी क्यों न हो। पुलिस के भ्रष्टाचार का अक्सर यह कहकर बचाव किया जाता है कि उन्हें उचित प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है। अत: कार्य सही नहीं किया गया, किन्तु रिश्वत लेने का भी तो उन्हें कोई प्रशिक्षण नहीं होता फिर वे इसके लिए किस प्रकार रास्ता निकाल लेते हैं। ठीक इसी प्रकार एक व्यक्ति को गृहस्थी के संचालन का भी प्रारम्भ में कोई अनुभव नहीं होता, किन्तु अवसर मिलने पर वह आवश्यकतानुसार सब कुछ सीख लेता है। देश में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ गिरफ्तारियां होती हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत अनावश्यक होती हैं। ये गिरफ्तारियां भी बिना किसी अस्वच्छ उद्देश्य के नहीं होती हैं, क्योंकि राजसत्ता में भागीदार पुलिस, अर्द्ध-न्यायिक अधिकारी व प्रशासनिक अधिकारी आदि को इस बात का विश्वास है कि वे चाहे जो मर्जी करें, उनका कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है और देश में वास्तव में ऐसा कोई मंच नहीं है जो प्रत्येक शक्ति-संपन्न व सत्तासीन दोषी को दण्डित कर सके। जहां कहीं भी अपवाद स्वरूप किसी पुलिसवाले के विरुद्ध कोई कार्यवाही होती है, वह तो मात्र नाक बचाने और जनता को भ्रमित करने के लिए होती है। यदि पुलिस द्वारा किसी मामले में गिरफ्तारी न्यायोचित हो तो वे, घटना समय के अतिरिक्त अन्य परिस्थितियों में, गिरफ्तारी हेतु मजिस्ट्रेट से वारंट प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु न तो ऐसा किया जाता है और न ही देश का न्याय तंत्र ऐसी कोई आवश्यकता समझता है और न ही कोई वकील अपने मुवक्किल के लिए कभी मांग करता देखा गया है। यदि न्यायपालिका पुलिस द्वारा अनुसंधान में के मनमानेपन को नियंत्रित नहीं कर सकती, जिससे मात्र 2 प्रतिशत दोष सिद्धियाँ हासिल हो रही हों, तो फिर उसे दूसरे नागरिकों पर नियंत्रण स्थापित करने का नैतिक अधिकार किस प्रकार प्राप्त हो जाता है?


 


पुलिस की अंधाधुन पिटाई से किसान की मौत

जबलपुर । पुलिस की बर्बर पिटाई का शिकार हुए किसान बंशीलाल कुशवाहा (52) निवासी तिलहरी की सोमवार को सिटी हॉस्पिटल नागरथ चौक में मौत हो गई। किसान बंसीलाल कुशवाहा के साथ पुलिसिया प्रताड़ना की वारदात 16 अप्रैल की शाम को सामने आयी थी। जानकारी के मुताबिक जब 50 वर्षीय किसान बंशी कुशवाह अपने खेतों को पानी देकर घर लौट रहे थे, तब पुलिस ने उन पर हमला किया।

दोपहर 2.30 बजे मृतक के स्वजन कुछ लोगों सहित गोराबाजार थाने पहुंचे और किसान से मारपीट करने वाले पुलिसकर्मियों के विरुद्ध नामजद हत्या का मामला दर्ज कर कार्रवाई करने और मुआवजा देने की मांग करने लगे। एसपी ने मामले में गोराबाजार थाने के एक एसएसआई सहित 6 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया, वहीं सीएसपी कैंट अखिल वर्मा को घटना की जांच सौंपी गई है।मृतक के भाई विष्णु कुशवाहा ने बताया कि वो तिलहरी में शासकीय स्कूल के पास रहते हैं। उनका खेत भी घर के पीछे से लगा हुआ है। गुरुवार रात करीब 8.30 बजे बड़े भाई बंशीलाल शाम से लापता गाय को खोजने घर से निकले थे। वो खेत के आस-पास घूमते हुए गाय को खोजते रहे और करीब एक घंटे बाद लौटकर घर आ रहे थे। उन्हें खेत से निकलते ही एक जीप व सफेद रंग के दुपहिया वाहन से आए 7-8 पुलिसकर्मियों ने रोक लिया।बड़े भाई ने खेत से आने का कारण गाय खोजना बताया। फिर पुलिस ने भैया से पूछा कि जुआ कहां चल रहा है? जिसकी जानकारी नहीं होने से वह जवाब नहीं दे पाए। तब पुलिसकर्मियों ने उन्हें डंडों से पीटना शुरू कर दिया। उनकी चींखें सुनकर पास के घरों से लोग बाहर निकल आए, लेकिन पुलिसकर्मियों का किसी ने विरोध नहीं किया। इससे पुलिसकर्मी खुलेआम भैया को पीटते रहे और तब तक मारा जब तक वे बेहोश नहीं हो गए


इतना पीटा कि खून की उल्टियां होने लगीं

विष्णु के मुताबिक घायल बंशीलाल को मौके से उठाकर घर ले गए और रात में वहीं रखा। दूसरे दिन सुबह से उन्हें हाथ-पैर, पुठ्ठों और कमर के नीचे आई चोटों से बहुत दर्द होने के साथ ही खून निकलना शुरू हो गया। लॉकडाउन होने से वो घर से निकला और दवाइयां ले आया। बड़े भाई को दर्द निवारक दवाओं से कुछ आराम लगा, लेकिन शनिवार को सुबह से दर्द से परेशान रहे।

दोपहर तीन बजे बंशीलाल जमीन पर गिरे और खून की उल्टियां करने लगे। तब वो पड़ोसी के मालवाहक ऑटो में उन्हें लेकर सीधे सिटी अस्पताल पहुंचे। लेकिन रविवार-सोमवार की रात करीब 3.30 बजे उनकी मौत हो गई। मृतक के परिवार में पत्नी पूनम (45) और बेटे गनेश (16) व साहिल (14) हैं।


इनको किया निलंबित

एसपी के निर्देश पर गोराबाजार थाना में पदस्थ एएसआई आलोक सिंह, प्रधान आरक्षक मुकेश कटारिया और आरक्षक राकेश सिंह, गुड्डू सिंह, आशुतोष, ब्रजेश सिंह को निलंबित कर दिया गया है।


पुलिस कर्मियों और अधिकारियों पर मर्डर का मामला दर्ज करने की मांग, ज्ञापन सौंपे : तुलसीराम कुशवाहा 

ये बंशी लाल कुशवाहा उम्र 51 वर्ष ग्राम तिलहरी जबलपुर के निवासी थे ग्राम तिलहरी में ही इनकी घर पीछे जमीन है कृषि कार्य करते थे एक गाय भी पाली हुई थी तीन दिन से गाय घर में नहीं आई थी तो गाय को ढूंढने गए थे पुलिस ने इनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि गाय देखने आए है पुलिस के रूप जल्लाद थे उन्होंने एक न सुनी बहुत बर्बर तरीके से मारा और छोड़कर भाग गए कुछ लोग उन्हें उठाकर लाए 100 डायल किया पर पुलिस ने कोई सहयोग नहीं किया वहीं पास के ही डॉक्टर से इलाज कराया 17/04/2020 को तबीयत ज्यादा खराब होने से सिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया रविवार दिनांक 19/042020 को रात्रि 3:00 सिटी हॉस्पिटल में ही उनकी मौत हो गई। मोदीजी और शिवराज कहते है को कृषि कार्य की छूट है और पुलिस यहां अन्न दाताओ पर मौत का तांडव मचा रही है । अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा जबलपुर पुलिस द्वारा किए गए इस जघन्य अपराध घोर भर्त्सना करती है और इस कृत्य में शामिल सभी पुलिस कर्मियों और अधिकारियों पर मर्डर का मामला दर्ज करने की मांग करती है और सभी कुशवाहा बंधुओं एवम कुशवाहा समाज के संगठनों को निर्देश देती है अपने अपने क्षेत्र के थानों में इस बाबत ज्ञापन दे। कार्यवा ही न होने पर आगे आंदोलन की रूपरेखा तय की जाए गी एवम जानकारी भी दी जायेगी ।




अवैध शराब विक्रेताओं के विरुद्ध थाना जफराबाद में अभियोग पंजीकृत

  जिला आबकारी अधिकारी ने बताया कि आबकारी आयुक्त उत्तर प्रदेश द्वारा अवैध शराब के निर्माण परिवहन एवं बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए संचालित विशेष परिवर्तन अभियान एवं उप आबकारी आयुक्त वाराणसी प्रभार वाराणसी द्वारा दिए गए निर्देश के क्रम में जिलाधिकारी द्वारा गठित टीमों को दिए गए आदेश के अनुपालन में आबकारी व पुलिस विभाग की संयुक्त टीम के द्वारा जिला आबकारी अधिकारी के नेतृत्व में जनपद में अवैध शराब के अड्डों/कारोबारियों के खिलाफ प्रवर्तन की कार्रवाई जारी रही, जिसके क्रम में गतदिवस मुखबिर खास की सूचना पर आबकारी निरीक्षक श्याम कुमार गुप्ता मय हमराह स्थानीय थाना जफराबाद के थानाध्यक्ष के साथ टीम बनाकर थाना जफराबाद अंतर्गत जौनपुर-वाराणसी राजमार्ग पर वाहन चेकिंग किया गया, तत्पश्चात ग्राम खोजनपुर में मुखबिर द्वारा बताए हुए स्थान पर छापा मारा गया, जिसमें 2 व्यक्ति अवैध शराब बेचते हुए दिखाई दिए। धरातालिय असमानता ऊंचाई पर स्थित रेलवे लाइन की सन्निकटता झआड़ियों/शरपत की बहुलता एवं ग्राहकों के द्वारा टीम को देखते हुए अवैध शराब विक्रेताओं को सचेत किया जाने के कारण उक्त दोनों व्यक्तियों फरार हो गए। मौके पर बरामद दो बोरिया में 50-50 नकली/ फर्जी/पौवा को निम्नानुसार कार्रवाई करते हुए समक्ष गवाहान फरार दोनों अभियुक्तों के विरुद्ध अवैध नकली/फर्जी/पौवो के निर्माण/बिक्री करने में कारित कृत्य के अंतर्गत धारा 60/62 आबकारी अधिनियम एवं 188/269/270/419/420/467/468/471/ आईपीसी के अंतर्गत अपराध होने से स्थानीय थाना जफराबाद में अभियोग पंजीकृत कराया गया।


रमजान का माह को देखते हुए मुस्लिम समुदाय बाहुल्य क्षेत्रों में 42 ठेलो की की गई व्यवस्था

  अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व ने बताया कि रमजान का माह प्रारंभ हो रहा है कोरोना संक्रमण के कारण जनपद लॉकडॉउन लागू है इसलिए लॉकडाउन का पालन करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाना है। इससे रमजान माह में लॉक डाउन को    दृष्टिगत रखते हुए मुस्लिम समुदाय बाहुल्य क्षेत्रों में 42 ठेलो की व्यवस्था की गई है जो घर-घर जाकर रमजान में प्रयुक्त होने वाली खाद्य सामग्री का विक्रय करेंगे। इसके अतिरिक्त पूरे जौनपुर शहर में फल और सब्जी के डोर स्टेप डिलीवरी हेतु वार्डवार लगभग 500 ठेलो की व्यवस्था की गई है जो ताजी सब्जियों व फलों को घर-घर जाकर विक्रय करेंगे। लॉक डॉउन की स्थिति तक डोर स्टेप डिलीवरी सुविधा का लाभ उठाएं एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। अनावश्यक घर से बाहर न निकले।


जिला शांति समिति की बैठक कलेक्ट्रेट सभागार में संपन्न

  रमजान के पवित्र महीने को देखते हुए जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में जिला शांति समिति की बैठक कलेक्ट्रेट सभागार में संपन्न हुई। बैठक में जिलाधिकारी ने सभी धर्म गुरुओं से अपील करते हुए कहा कोरोना वायरस के संक्रमण के दृष्टिगत रमजान के समय सभी लोग नमाज तथा तरावी घर पर ही पढ़ें। उन्होंने कहा कि सामूहिक रूप से नमाज न अदा करें। शासन के  निर्देशों का पालन करें। सभी लोग लॉकडाउन तथा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, घर से बाहर न निकलें। रमजान के समय किसी को भी कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी। लोगों के घर तक खजूर तथा अन्य सामग्रियां ठेलों के माध्यम से पहुंचाये जाएंगे। कल कोतवाली से 50 ठेले रवाना किए जाएंगे जो मोहल्लों में खाद्य सामग्रियां लेकर जाएंगे। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन का जितना पालन करेंगे हम उतने ही सुरक्षित रहेंगे। जिलाधिकारी ने सभी से आरोग्य सेतु डाउनलोड करने तथा अन्य लोगों को भी ऐप डाउनलोड करने के लिए प्रेरित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि लोग बैंकों तथा एटीएम पर भी भीड़ न लगाएं। मोबाइल नंबर 9430800816 पर फोन करके 10000 रूप तक घर पर ही प्राप्त कर सकते हैं। बैठक में सभी के द्वारा अपनी जान की परवाह किए बगैर कोरोना संक्रमण के बचाव में लगे हुए कोरोना योद्धाओं को नमन किया गया। पुलिस अधीक्षक ने सभी से अपील की कि अपने और अपने परिवार तथा समाज की सुरक्षा के लिए लॉकडाउन तथा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, कोरोना संक्रमण से बचने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है। पुलिस अधीक्षक ने कहा कि सभी के जीवन की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सामान खरीदने के लिए बाजारों में न जाए, मुहल्ले की दुकानों से ही सामान खरीदें।




     बैठक में मुख्य विकास अधिकारी अनुपम शुक्ला, अपर जिलाधिकारी द्वय रामप्रकाश, डॉक्टर सुनील वर्मा, एसपी सिटी, सिटी मजिस्ट्रेट सहदेव मिश्रा, सीओ सिटी सुशील सिंह, डॉ. शकील, मोहम्मद तौफीक, मोहम्मद सैय्यद हसन, मो. वशीम सहित समिति के अन्य सदस्य उपस्थित रहे।


कार्यालयाध्यक्ष कर्मचारियों हेतु दिवसवार ड्यूटी लगाये- जिलाधिकारी

 जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह ने निर्देश दिया है कि सरकारी क्षेत्र के कार्यालय जो लॉकडाउन के दौरान  बंद रखे गए थे वे अधिकतम 1/3 की संख्या में कर्मचारियों उपस्थिति के साथ खुलेंगे। उक्त कार्यालय आने वाले कर्मचारियों हेतु कार्यालयाध्यक्ष दिवसवार आदेश जारी करे तथा उनके पास हेतु स्वयं तथा नगर मजिस्ट्रेट/क्षेत्रीय उपजिलाधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर से जारी कराए जाएंगे, राष्ट्रीय राजमार्ग से संबंधित निर्माण कार्य, मेडिकल कॉलेज में हो रहे निर्माण कार्य का संचालन, ओवरब्रिज सिटी यार्ड का निर्माण कार्य, गोआश्रय केंद्र का निर्माण का कार्य, निजी चिकित्सालय में आकस्मिक सेवा का संचालन किया जाएगा। सतहरिया औद्योगिक विकास इंडस्ट्रियल एरिया के अंतर्गत आनंद इंडस्ट्रीज, मैसर्स मौर्य वायर नेटिंग, ए आर इंटरप्राइजेज, मैसर्स प्रभा इंडस्ट्रीज, मैसर्स सीआर  लोहकला, मैसर्स ठाकुर प्रसाद इंजीनियरिंग वर्क्स, मा दुर्गा वायर नेटिंग इंडस्ट्रीज, मैसर्स एके वायर नेटिंग, मैसर्स अमित वायर इंडस्ट्रीज, मेसर्स कमला वायर इंडस्ट्रीज, मेसर्स पटेल इंडस्ट्रीज, मैसर्स पीएम वायर नेटिंग, मैसर्स केडी वायर नेटिंग, मैसर्स पूजा वायर इंडस्ट्रीज, मेसर अविरल मैसर्स क्ति वायर नेटिंग, मैसर्स विजय इंडस्ट्रीज, मैसर्स प्रभावती उद्योग, शुभम स्टील, सुशीला बायोफर्टिलाइजर, मैसर्स गणेश लक्ष्मी सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड, मैसर्स गंगेश सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड, मैसर्स अम्बा सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड, मैसर्स विंटेक फूड एंड प्रोटीन, मैसर्स साथर इंडस्ट्रीज, श्री कमला शंकर विंद सुशीला देवी, एच आई एल लिमिटेड को निम्न शर्तों के साथ अनुमति दी जाएगी। जनपद के कंटेनमेंट जोन में किसी भी कार्य की अनुमति नहीं होगी। नोबेल कोरोना वायरस की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु सोशल डिस्टेंसिंग तथा केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार न्यूनतम श्रमिकों के साथ आवश्यकतानुसार गतिविधियां संचालित की जाएं। संचालित किए जाने हेतु कार्यालय अध्यक्ष/प्रबंधक/स्वामी कोविड-19 के मैनेजमेंट के लिए किए जाने वाले सुरक्षा उपायों को अंडरटेकिंग के माध्यम से अनिवार्य रूप से तत्काल कार्यालय पर उपलब्ध कराएंगे। मशीन और कार्मिकों/श्रमिकों की तैनाती, नियोजित कार्मिकों/श्रमिकों हेतु सुरक्षा उपकरण की व्यवस्था, प्रयुक्त मशीनों और वाहनों के सैनिटाइजेशन आदि की व्यवस्था की जाए उक्त से कार्यालय को भी अवगत कराया जाना सुनिश्चित किया जाए। कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम बचाव के दृष्टिगत सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें कार्मिक/श्रमिक की सुरक्षा के दृष्टिगत मास्क/गमछा/सैनिटाइजर एवं हैंड वास का प्रयोग करना होगा। पेयजल साफ-सफाई पेयजल साफ-सफाई/स्वच्छता एवं शौचालय की भी समुचित ढंग से व्यवस्था सुनिश्चित कराई जाए, जिससे श्रमिकों कार्मिकों को किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े। श्रमिक कार्मिक हेतु हाथ धोने के लिए साबुन एवं पानी की समुचित व्यवस्था की जाए। कार्मिक/श्रमिकों द्वारा होममेड फेस मास्क/गमछा का प्रयोग करते हुए नाक एवं मुंह को ढक कर रखा जाए/कार्यस्थल पर ऐसे श्रमिकों का नियोजन न किया जाए जिनमे सामान्य रूप से भी बुखार, खांसी, जुकाम आदि के लक्षण हो। किसी श्रमिक/कार्यरत कर्मचारी कोरोना के  सामान्य लक्षण प्रकट होते हैं तत्काल सूचना कंट्रोल रूम दूरभाष संख्या 05452-260501 पर सूचना अनिवार्य रूप से दिया जाए। कार्य क्षेत्र में कार्य समस्त कार्मिकों को आरोग्य सेतु है अपने मोबाइल में डाउनलोड किया जाए। जनपद की समस्त ग्राम पंचायतों में मनरेगा के अंतर्गत सभी कार्य न्यूनतम 02 मीटर की सोशल डिस्टेंसिंग तथा फेस मास्क  को अन्य सोशल डिस्टेंसिंग के जारी निर्देशों की शर्त के अनुसार अनुमन्य किए जाएं। उन्होंने बताया कि प्राइवेट चिकित्सालय के चिकित्सकों/पैरामेडिकल स्टाफ को कोविड-19 संबंधित प्रोटोकाल तथा इनफेक्शन प्रीवेंशन प्रोटोकॉल का समुचित प्रशिक्षण दे दिया गया हो। प्राइवेट चिकित्सालय में मरीजों की स्क्रीनिंग करने के लिए एक पृथक स्थल सुरक्षित स्क्रीनिंग व्यवस्था स्थापित एव क्रियासील हो। प्राइवेट चिकित्सालय में सुरक्षात्मक उपकरण जैसे मास्क, आवश्यक पीपीआई उपलब्ध हो। भारत सरकार द्वारा निर्गत दिशा निर्देशों के अनुसार कार्यालय परिसर के बाहर अंदर के समस्त क्षेत्र का 1 प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइट सॉल्यूशन द्वारा वी संक्रमित सुनिश्चित किया जाए। प्राइवेट चिकित्सालय बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण की गाइडलाइंस को शत-प्रतिशत अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। उक्त आदेश का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। उपरोक्त शर्तों के उल्लंघन की पाए जाने पर संबंधित के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की 188 के तहत कार्यवाही की जाएगी।
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कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT)2020 परीक्षा 21 जून तक के लिए स्थगित

देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनज़र कंसोर्टियम ऑफ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज ने कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) परीक्षा 21 जून तक के लिए स्थगित कर दी। साथ ही आवेदन की अंतिम तिथि 18 मई तक बढ़ा दी गई है।

                                   


लॉकडाउन में मुफ्त राशन पाने के लिए आधार की अनिवार्यता खत्म करने की मांग-, कोर्ट ने रद्द करते हुए कहा-आधार ही नहीं 13 दस्तावेज़ स्वीकार्य

गुजरात हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि राज्य सरकार के 2018 एक प्रस्ताव के तहत नॉन-एनएफएसए एपीएल -1 परिवारों को पहचान के 13 दस्तावेजों के आधार पर मुफ्त राशन और किराना पाने का अधिकार दिया गया है, सोमवार को एक जनहित याचिका को रद्द कर दिया। याचिका में प्रार्थना की गई थी कि 11 अप्रैल को खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले के विभाग की ओर से जारी अधिसूचना, जिसके तहत नि: शुल्क वितरण का लाभ उठाने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य किया गया‌ था, को रद्द किया जाए। डिवीजन बेंच ने पाया कि उक्त अधिसूचना नॉन-एनएफएसए (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम) एपीएल -1 (गरीबी रेखा से ऊपर) श्रेणी के व्यक्तियों को मुफ्त राशन और किराने के वितरण के लिए एक नीतिगत निर्णय पर विचार करती है, ताकि "वर्तमान संकट की अवधि में, जब देश और राज्य को लॉकडाउन का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी प्रभावित हुई है, समाज के जरूरतमंद वर्ग को किराने और अनाज जैसी आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करने में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, उस वर्ग को आवश्यक वस्तुओं-अनाज और किराना आदि की सुविधा मिल सके।" उक्त अधिसूचना में कहा गया था कि निःशुल्क किराना वितरण का लाभ पाने के लिए संबंधित लाभार्थी को आधार कार्ड पेश करना होगा, लाभ प्राप्त करने के लिए अन्य किसी पहचान पत्र को मान्य नहीं माना जाएगा।



याचिकाकर्ता ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष आग्रह किया था कि उक्‍त उद्देश्य का लाभ प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाना और पहचान के अन्य दस्तावेजों को खारिज़ करना, उक्त उद्देश्य को ही विफल करेगा, और इससे लोगों को बहुत कठिनाई होगी और यह अन्याय होगा। उन्होंने कहा कि चूंकि अन्य कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं, इसलिए जरूरतमंदों को मुफ्त किराना पाने के लिए आधार कार्ड पेश करना अनिवार्य होगा। याचिकाकर्ता का कहना ‌था कि "आधार कार्ड को अन‌िवार्य करना और किसी अन्य पहचान पत्र को न मानना मौलिक अधिकारों के उल्लंघन जैसा है।


याचिकाकर्ता ने अधिसूचना में आधार कार्ड अनिवार्य किए जाने की शर्त को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उसने आधार कार्ड की शर्त को रद्द करने और अन्य पहचान पत्रों की इजाजत देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि जब COVID-19 के प्रकोप के दौर में जरूरतमंदों को मुफ्त किराना देने की परोपकारी योजना बनाई गई है तो ऐसे में आधार कार्ड पर जोर देना मनमाना और समानता के सिद्धांत के खिलाफ होगा। सरकारी वकील ने अपनी दलील में कहा कि 11 अप्रैल की अधिसूचना के तहत, किराने का आवश्यक सामान ऑनलाइन और ऑफ़लाइन, दो तरीकों से वितर‌ित किया जाना है। ऑनलाइन मोड के तहत, लाभार्थियों का सत्यापन बायोमेट्रिक्स यानी अंगूठे के निशान का उपयोग करके किया जाना है, जबकि ऑफ़लाइन तरीके के तहत एक रजिस्टर में राशन के वितरण की जानकारी दर्ज की जाएगी। ऑफ़लाइन तरीके का उपयोग उन मामलों में किया जाएगा, जहां लाभार्थी के पास बायोमेट्रिक विवरण उपलब्‍ध नहीं होगा है या ढांचागत बाधाओं के कारण ऑनलाइन मोड में वितरण संभव नहीं होगा। बेंच ने कहा कि "राज्य सरकार 01 मार्च, 2018 को एक प्रस्ताव पारित कर चुकी है, जो नॉन-एनएफएसए एपीएल -1 परिवारों पर लागू होता है और जिसके तहत यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वितरण के लिए 13 दस्तावेजों का उपयोग किया जाएगा। राज्य अधिकारियों ने न्यायालय के समक्ष कहा कि आधार कार्ड की अनुपलब्धता की स्थिति में निम्नलिखित 13 दस्तावेजों को वैध पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है- (i) निर्वाचन कार्ड, (ii) पैन कार्ड, (iii) ) ड्राइविंग लाइसेंस, (iv) फोटो के साथ बैंक पासबुक (v) पासपोर्ट, (vi) नरेगा कार्ड, (vii) किसान पासबुक (फोटो और नाम के साथ), (viii) मामलातदार की ओर से जारी पहचान पत्र (ix) राजपत्रित अधिकारी द्वारा जारी किए गए पहचान पत्र (x) डाक विभाग द्वारा दिया गया पहचान पत्र (फोटो और नाम के साथ), (xi) एलपीजी बुक / नंबर, (xii) शैक्षिक संस्थान द्वारा जारी प्रमाण पत्र / जन्म प्रमाण पत्र और (xiii) राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य कार्ड।


न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि याचिका की मेरिट की जांच किए जाने की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने "प्रतिवादी-राज्य की प्रतिक्रिया की सराहना करते हुए और यह देखते हुए कि प्रतिवादी-राज्य प्राधिकारी उनका पालन करेंगे और उन्हें लागू करेंगे" याचिका को रद्द कर दिया।


सोमवार, 20 अप्रैल 2020

गरीब व छूटे हुए पात्र व्यक्तियों के राशन कार्ड बनाना

माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देशानुसार गरीब एवं छूटे हुए पात्र व्यक्तियों के राशन कार्ड बनाए जाने के संबंध में सभी लेखपालों को निर्देशित किया गया था कि ग्राम में ऐसे व्यक्तियों को चिन्हित करें जो राशन कार्ड के लिए पात्र हो लेकिन राशन कार्ड बना न हो। अब तक 13129 ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनके फार्म लेखपालों द्वारा पूरे जिले के उपलब्ध कराए गए हैं, जिनमें जांच उपरांत अब तक 6151 लोगों के कार्ड बना करके जारी कर दिए गए शेष की जांच और जारी करने का कार्य प्रगति पर है। उप जिलाधिकारियों एवं तहसीलदार को आदेशित किया गया है इस पर सतत निगरानी रखें किसी अपात्र का राशन कार्ड न बनने पाए लेकिन कोई पात्र छुटने न पाए। यह भी निर्देशित किया गया कोई भूखा न रहे अगर ऐसा कोई है तत्काल उसकी राशन/खाने की व्यवस्था की जाए। कम्युनिटी किचन के नंबर प्रत्येक गांव में व्यापक रूप से प्रचारित किए जाएं। शहरी क्षेत्र में नगर पालिकाओं/नगर पंचायत द्वारा कम्युनिटी किचन के नंबर का प्रचार प्रसार किया जाये।