सोमवार, 4 मई 2020

फतेहपुर में गांजे के साथ एक महिला गिरफ्तार

बांदा (उप्र). यूपी (UP) के फतेहपुर (Fatehpur) जिले में पुलिस ने एक महिला को गांजे के साथ गिरफ्तार किया है. वाहन चेकिंग के दौरान इस महिला को गिरफ्तार किया गया. जिले की औंग पुलिस ने वाहन जांच के दौरान बाइक सवार एक महिला को डेढ़ किलोग्राम गांजा के साथ गिरफ्तार (Arrested) किया है. इस संबंध में बिंदकी के पुलिस उपाधीक्षक (सीओ) योगेंद्र सिंह मलिक ने सोमवार को बताया कि लॉकडाउन के पालन के लिए की जा रही वाहन जांच के दौरान औंग थाने की पुलिस ने शादीपुर मोड़ के पास बाइक सवार एक महिला को डेढ़ किलोग्राम गांजा के साथ गिरफ्तार किया. जानकारी मिली कि ये महिला लिफ्ट लेकर बाइक से कानपुर जा रही थी. उन्होंने बताया कि गिरफ्तार महिला ने अपना नाम पता आशा शर्मा निवासी अहिरवां गांव कानपुर बताया है.


इस महिला ने पुलिस से चौडगरा (फतेहपुर) के एक किराना व्यवसायी से गांजा खरीदना स्वीकारा है. साथ ही बताया कि किराना व्यवसायी की दुकान में भी छापेमारी की गई लेकिन वह भाग गया है.


बाजार में एक लाख रुपए है कीमत


मलिक ने बताया कि महिला से बरामद गांजे की बाजार में कीमत एक लाख रुपए के करीब है. सीओ ने बताया कि बाइक को जब्त कर लिया गया है और महिला को एनडीपीएस एक्ट के तहत हवालात में भेज दिया गया है. पुलिस इस मामले में जांच कर रही है.


1 करोड़ के अफीम की हुई थी बरामदगी


इससे पहले भी नारकोटिक्स विभाग की टीम ने फतेहपुर जिले में छापेमारी कर अफीम बरामद की है. जिले के थरियांव थाना क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो पर पकड़ी गई अफीम को झारखंड से हरियाणा भेजा जा रहा था. इस कार्रवाई को नारकोटिक्स विभाग और पुलिस की संयुक्‍त टीम ने किया था. इस दौरान करीब 60 किलो अफीम बरामद हुई थी. 29 अप्रैल को हुई इस कार्रवाई के दौरान अफीम की तस्‍करी में लिप्‍त एक तस्‍कर की भी गिरप्तारी हुई थी. बरामद अफीम की बाजार में कीमत लगभग 1 करोड़ रुपए बताई जा रही थी.


मस्जिदों में लाउडस्पीकर से अजान पर रोक के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में 5 मई को सुनवाई

प्रयागराज. यूपी के ग़ाज़ीपुर (Ghazipur) में रमजान (Ramzan) माह के दौरान मस्जिदों (Masjid) में लाउडस्पीकर (Loudspeaker) से अज़ान पर रोक लगाये जाने के मामले में दाखिल जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सोमवार को वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अदालत में अपना जवाब दाखिल किया गया. प्रदेश सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने राज्य सरकार का पक्ष रखा. जिसके बाद कोर्ट ने याची गाजीपुर के बसपा सांसद अफजाल अंसारी के अधिवक्ता को प्रत्युत्तर दाखिल करने का समय देते हुए मंगलवार 5 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामले की सुनवाई का आदेश दिया है.आज इस केस में याचिकाकर्ताओं की ओर से पूर्व सांसद व सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ता सलमान खुर्शीद वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग से बहस करेंगे. राज्य सरकार ने याची की मांग को निराधार बताते हुए याचिका खारिज करने की मांग की है। सरकार की ओर से कहा गया है कि लॉकडाउन में सरकार बिना भेदभाव के कार्य कर रही है. नागरिकों की सुरक्षा के लिए एहतियाती कदम उठाये गये हैं. सांसद अंसारी ने लाउडस्पीकर से मस्जिदों में अजान पर रोक लगाने के डीएम गाजीपुर के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र भेजकर हस्तक्षेप की मांग की है.जिसमें कहा गया है कि डीएम गाजीपुर का आदेश धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का हनन है. सांसद ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी से देश की जनता परेशान है. सभी लोग लॉकडाउन  नियमों का पालन कर रहे हैं. लोग अपने अपने घरों में नमाज पढ़ रहे हैं, लेकिन डीएम ने अपने मौखिक निर्देश से जिले में मस्जिद से अजान पर रोक लगा दी है, जो कि गलत है. पत्र का संज्ञान लेकर हाईकोर्ट से उचित कार्रवाई करने व  न्याय की मांग की गयी है. राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जिला अधिकारी ने विगत मार्च माह से ही केन्द्र सरकार व प्रदेश सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के तहत किसी भी प्रकार के सामूहिक धार्मिक कार्यक्रम पर रोक लगायी हुई है.



ये है पूरा मामला


गौरतलब है कि गाजीपुर से बसपा सांसद अफजाल अंसारी ने रमजान के महीने में लाउडस्पीकर से मस्जिदों में अजान पर रोक लगाने के डीएम गाजीपुर के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में पत्र भेजकर हस्तक्षेप की मांग की थी. सांसद अफजाल अंसारी ने पत्र में आरोप लगाया है कि डीएम का यह आदेश मौलिक अधिकारों का हनन है. सांसद ने पत्र में कहा है कि कोरोना वायरस महामारी से देश की जनता परेशान है. गाजीपुर जिले का प्रत्येक नागरिक लॉकडाउन का पालन कर रहा है. लोग यहां अपने-अपने घरों में नमाज पढ़ रहे हैं. लेकिन डीएम गाजीपुर ने अपने मौखिक आदेश से जिले की मस्जिदों में लाउडस्पीकर से अजान पर रोक लगा दी है, जो कि गलत है.


5 मई को अगली सुनवाई


राज्य सरकार ने बसपा सांसद अफजाल अंसारी की अर्जी पर जवाब दाखिल करने के अदालत से मोहलत मांगी थी. जिसे कोर्ट ने मंजूर करते हुए सुनवाई के लिए 4 मई की तारीख तय की थी. अब मंगलवार 5 मई को हाईकोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामले की अगली सुनवाई होगी.


यूपी बोर्ड की कापियों का 5 मई से मूल्यांकन

प्रयागराज. लॉकडाउन (Lockdown) में यूपी बोर्ड (UP Board) की कापियों का मूल्यांकन 5 मई से दोबारा शुरू करने के राज्य सरकार (State Government) के फैसले का विरोध शुरू हो गया है. शिक्षक संगठनों ने मूल्यांकन शुरू करने के फैसले का विरोध किया है. शिक्षक संगठनों का कहना है कि लॉकडाउन में मूल्यांकन कार्य कराये जाने से शिक्षकों के सामने कई व्यवहारिक दिक्कतें आएंगीं. कई शिक्षक अपने गृह जनपद में फंसे हुए हैं. ऐसे शिक्षकों को मूल्यांकन के लिए आने के लिए पास की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. इसके साथ ही लॉकडाउन में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा न शुरू होने से भी कई शिक्षकों के मूल्यांकन केन्द्रों तक पहुंचने में भी दिक्कतें आएंगी.


अटेवा पेंशन बचाओ मंच के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ हरि प्रकाश यादव ने लॉकडाउन में 17 मई तक कॉपियों का मूल्यांकन शुरू न किए जाने की मांग की. उन्होंने कहा 17 मई के बाद मूल्यांकन कार्य शुरू होने पर एक हफ्ते में हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की कापियों का मूल्यांकन खत्म हो सकता है. उन्होंने कहा है कि ऐसे में यूपी बोर्ड के पास 10वीं और 12वीं का रिजल्ट घोषित करने के लिए पूरे जून माह का समय शेष रहेगा.



लगभग 19 लाख कापियों का मूल्यांकन भी हो चुका है


गौरतलब है कि यूपी बोर्ड की परीक्षाएं इस साल 18 फरवरी से 6 मार्च के बीच आयोजित की गई थी. यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में इस बार 56 लाख 7 हजार 118 परीक्षार्थी पंजीकृत थे. लेकिन नकल की सख्ती के चलते 4 लाख 70 हजार 846 परीक्षार्थियों ने परीक्षा बीच में ही छोड़ दी थी. जिसके बाद हाई स्कूल और इंटर की लगभग साढ़े 3 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का कार्य 16 मार्च से शुरू हुआ था. तीन दिनों में प्रदेश भर में लगभग 19 लाख कापियों का मूल्यांकन भी किया गया था.


5 से 25 मई तक होना है मूल्यांकन


जिसके बाद 19 मार्च से लॉकडाउन के चलते मूल्यांकन कार्य पर रोक लगा दी गई थी. शासन ने पांच मई से 25 मई के बीच कापियों का मूल्यांकन लॉकडाउन का पालन कराते हुए पूरा करने का निर्देश जारी किया है. जिसका शिक्षक संगठन विरोध कर रहे हैं.


दुकानें बंद हुईं तो यहां पर पुलिस ही बेचने लगी जब्त की गई शराब

मथुरा. लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान पुलिस की दरियादिली के किस्से तो आपने खूब सुने होंगे, लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा (Mathura) से ऐसा सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. दरअसल, मथुरा में एक पुलिस चौकी के इंचार्ज और 3 सिपाहियों ने 5822 हज़ार पेटी शराब (Liquor) बाजार में बेच दी. यह शराब चेकिंग के दौरान पुलिस ने अलग-अलग मामलों में जब्त की थी. शराब की कीमत करोड़ों में बताई जा रही है. इस मामले में एसएसपी मथुरा ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें जेल भेज दिया. एक स्टिंग ऑपरेशन कर खुद एसएसपी ने इस मामले का खुलासा किया था. इसमे एक शराब माफिया (Liquor Mafia) भी शामिल बताया गया है. मामला करीब 15 दिन पुराना बताया जा है. क्राइम ब्रांच इस पूरे मामले की जांच कर रही है.




जब्त शराब बेचने की ऐसे खुली पोल

कुछ दिन पहले कोसीकलां में शराब से भरा एक ट्रक पकड़ा गया था.ट्रक पुलिस की कस्टडी में खड़ा कर दिया गया था. लेकिन जब्त ट्रक में से आधी शराब गायब हो गई. मामला खुलता देख इलाके की पुलिस लीपापोती में लग गई. इसकी भनक एसएसपी मथुरा को हो गई. उन्होंने एक महिला एसआई और एक दरोगा की टीम बनाकर स्टिंग ऑपरेशन कराया. गायब हुई शराब खरीदने के लिए यह टीम पहुंच गई. जहां से यह शराब बेची जा रही थी, वहां आरोपी सिपाही की कार भी खड़ी थी. उसी में से निकालकर टीम को शराब दी गई. तभी मौके पर पहुंचकर पुलिस ने सभी को दबोच लिया.
कागजों में नष्ट कर बेच देते थे शराबजांच में सामने आया कि आरोपी पुलिसकर्मियों ने सिर्फ इसी ट्रक की, बल्कि कोटवन चौकी पर जब्त शराब भी बेची है. जांच हुई तो सामने आया कि कोटवन पर जो भी शराब जब्त की जाती है, उसे कागजों में नष्ट होना दिखा दिया जाता है. इसके बाद बाजार में एक शराब माफिया के हाथों बेच दिया जाता था. जब पकड़ी गई शराब की गिनती कराई गई तो मालूम पड़ा कि 5 हजार पेटी शराब कम है.
मामला खुलते ही फरार हो गए पुलिस वाले
चर्चा यह भी है कि जब मथुरा एसएसपी मामले की तह तक पहुंच गए तो इसकी भनक लगते ही कोटवन चौकी का स्टाफ फरार हो गया. लेकिन दो सिपाहियों को जेल भेज दिया गया. एक दारोगा और हैड मोहर्रिर के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. शराब माफिया को भी जेल भेज दिया गया है. शराब बेचने का यह धंधा कांशीराम आवास योजना के एक मकान और एक बंद पड़ी फैक्ट्री से किया जा रहा था. वहीं इस पूरे मामले पर एसएसपी डॉ. गौरव ग्रोवर का कहना है, “क्राइम ब्रांच इस पूरे मामले की विवेचना कर रही है. मामले में अब तक 2 सिपाही व 2 शराब दलाल जेल भेजे गए हैं. 5822 पेटियां कोटवन चौकी से कम पाई गईं हैं.”


शनिवार, 2 मई 2020

जिम्मेदार पत्रकारिता में गैर-जिम्मेदार रिपोर्टिंग की कोई जगह नहीं

COVID-19 महामारी के खतरे से निपटने के लिए राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने मीडिया को चेताया है कि वह अपने आपको ''गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग'' से दूर रखे। यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश थोटाथिल बी. राधाकृष्णन के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने की है। चूंकि राज्य सरकार ने इंगित किया था यह जनहित याचिका एक ''पब्लिसिटी ओरिएंटेड लिटिगेशन'' है, जिसका इस्तेमाल याचिकाकर्ता अपनी राजनीतिक पहचान बढ़ाने और सार्वजनिक कार्यक्षेत्र में अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए कर रहा है। जिम्मेदार पत्रकारिता पीठ ने कहा कि उनके सारे आदेश सार्वजनिक अधिकारक्षेत्र में उपलब्ध थे इसलिए मीडिया से उम्मीद की जाती है कि वह जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करे। पीठ ने आगाह किया कि हाईकोर्ट की वेबसाइट पर सभी आदेशों को अपलोड किया जा रहा है,



इसलिए मीडिया सहित किसी को भी अगर किसी तरह की जानकारी की आवश्यकता है तो वह न्यायालय के आदेशों की सामग्री के साथ उसे सत्यापित कर सकता है। ताकि ''किसी व्यक्ति का समर्थन में आदेशों को प्रसारित या प्रचारित करने से वह स्वयं को दूर रख सकें।'' इस पीठ में न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि- ''यह भी ध्यान रखें कि हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए सभी आदेश आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किए जा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि किसी भी आदेश का वास्तविक विवरण कलकत्ता हाईकोर्ट की वेबसाइट से लिए जा सकता है। हमें यकीन है कि जिम्मेदार पत्रकारिता में से गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग को बाहर करने की आवश्यकता है,चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या ऑडियो विजुअल मीडिया। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि इस न्यायालय के आदेशों की सामग्री या तथ्यों के बारे में अगर किसी को भी जानकारी लेने की आवश्यकता है तो वह हाईकोर्ट की वेबसाइट का उपयोग करेगा और किसी व्यक्ति का समर्थन करने के लिए आदेशों को प्रसारित या प्रचारित करने से खुद को दूर रखेंगा।'' विरोधात्मक परीक्षण या ट्रायल नहीं पिछले सप्ताह पहली बार राज्य सरकार ने यह मुद्दा उठाया था कि यह याचिका राजनीति से प्रेरित है। उस समय पीठ ने यह कहते हुए इस मुद्दे को टाल दिया था कि ''यह प्रश्न उठाया गया है और हो सकता है कि यह रिकॉर्ड पर आई सामग्रियों के आधार पर उत्पन्न हुआ हो। जो अब राज्य सरकार की तरफ से पेश की गई सामग्रियों पर गहराई से विचार करने के लिए हमारी अंतरात्मा या विवेक को भी उकसा रहा है।'' मंगलवार को अपना रुख दोहराते हुए पीठ ने कहा कि- ''हमें याद है कि हमने अपने पहले के आदेश में दर्ज किया था कि इस मामले को आगे बढ़ाया जाएगा, जो प्रकृति में प्रतिकूल नहीं है ... ... हमने यह भी रिकॉर्ड किया था कि इस मामले को अंत में सामूहिक अर्थों में जनहित के लिए और व्यक्तिगत अर्थों में एक नागरिक के लिए आगे बढ़ाया जाएगा और किसी भी तरह से इसको प्रचार के लिए एक मंच बनाने का इरादा नहीं है।'' पीपीई की उपलब्धता मामले के तथ्यों के आधार पर पीठ ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे पश्चिम बंगाल राज्य में आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार परीक्षण सुविधाओं और पीपीई की उपलब्धता के बारे में एक हलफनामा दायर करें। पीठ ने यह भी कहा कि COVID-19के कारण राज्य के दो डॉक्टरों की मृत्यु हो गई है, जिसके बाद यह निर्देश जारी किया गया है। पीठ ने निर्देश दिया कि- ''एडवोकेट जनरल यह पता करें कि क्या पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) इतनी मात्रा में उपलब्ध है कि यह उन सभी को प्रदान किए जा सकते हैं,जिनको फ्रंट लाइन बैरियर कहा जाता है। जिनमें डॉक्टर, पैरा मेडिक्स, ग्राउंड स्टाफ, सपोर्ट स्टाफ और मेडिकल संस्थानों के साथ काम करने वाले और अन्य क्षेत्रों से जुड़े वह लोग शामिल हैं,जहां पर नियम के अनुसार पीपीई के उपयोग किया जाना चाहिए। वहीं केंद्र सरकार को भी पश्चिम बंगाल राज्य में COVID-19 के प्रबंधन पर अपने दृष्टिकोण के संबंध में जवाब दायर करने की आवश्यकता है।'' नमूनों का परीक्षण राज्य में किए जा रहे नमूनों के परीक्षण की संख्या में कमी के मुद्दे पर पीठ ने कहा है कि ''इस बात में निश्चितता का अभाव है कि क्या रैपिड टेस्टिंग पद्धति के साथ-साथ अन्य तौर-तरीकों का उचित उपयोग किया जा रहा है?'' परंतु इसे ''शासन का मामला'' बताते हुए पीठ ने कहा है कि इस मुद्दे पर सरकार स्वयं विचार करें। पीठ ने कहा कि- ''जैव चिकित्सा अनुसंधान के मॉड्यूलेशन, फॉर्मुलेशन और प्रचार से इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च चिंतित है। जो भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित है। जाहिर है इसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए विभिन्न चुनौतियों से निपटने के तौर तरीकों को विनियमित करने के मंच के रूप में माना जाता है ... COVID-19 के कारण होने वाली मृत्यु दर का रिकार्ड रखने के लिए नमूनों का परीक्षण, टेस्ट किट और मौत के कारण का पता लगाने के लिए अपनाया जाने वाला तरीका, यह सभी महामारी के वैज्ञानिक प्रबंधन से संबंधित मामले हैं। इसलिए भारतीय संघ और राज्य को आईसीएमआर या अन्य एजेंसी द्वारा तय किए गए उन सक्षम दिशानिर्देशों पर अपना जवाब दायर करना चाहिए,जिन्हें स्वयं भारत संघ ने आवश्यक पाया है।'' मामले का विवरण- केस का शीर्षक- डॉ.फौद हलीम बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य (और अन्य जुड़ी हुई पत्र याचिकाएं) केस नंबर- डब्ल्यूपी नंबर 5328/2020 कोरम- मुख्य न्यायाधीश थोटाथिल बी. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी प्रतिनिधित्व-वरिष्ठ अधिवक्ता बिकास रंजन भट्टाचार्य और एडवोकेट राजा सत्यजीत बनर्जी (याचिकाकर्ताओं के लिए) व महाधिवक्ता किशोर दत्ता (राज्य के लिए)


धारा 295A आईपीसी: जानिए कब धार्मिक भावनाओं को आहत करना बन जाता है अपराध?

अभी हाल ही में, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने राष्ट्रीय लॉकडाउन के बीच "रामायण" धारावाहिक देखने की खुद की एक तस्वीर को ट्वीट किया था। इस ट्वीट पर वकील प्रशांत भूषण द्वारा ट्विटर पर ही कथित रूप से एक आलोचनात्मक टिपण्णी की गयी थी, जिसके चलते उनके खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी। दरअसल वकील प्रशांत भूषण ने अपने ट्विटर पर (केन्द्रीय मंत्री की तस्वीर के सम्बन्ध में) लिखा था, "लॉकडाउन के कारण करोड़ों भूखे और सैकड़ों मील घर के लिए चल रहे हैं, हमारे हृदयहीन मंत्री लोगों को रामायण और महाभारत की अफीम का सेवन करने और खिलाने के लिए मना रहे हैं!" यह आरोप लगाते हुए कि यह ट्वीट धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला है, एक जयदेव रजनीकांत जोशी ने भक्तिनगर पुलिस स्टेशन, राजकोट, गुजरात में भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ए के तहत उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में उन पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया गया है। हालाँकि, शुक्रवार (01 मई 2020) को सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को गुजरात पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज FIR पर गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान कर दी थी। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह के बाद मामले को सूचीबद्ध किया है। मौजूदा लेख में हम यह जानेंगे कि आखिर भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 ए क्या है, इसकी मुख्य सामग्री क्या है और किन मामलों में इस धारा के तहत किसी के विरुद्ध अपराध बनता है। तो चलिए इस लेख की शुरुआत करते हैं। क्या कहती है भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295A? भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295A के अंतर्गत वह कृत्य अपराध माने जाते हैं जहाँ कोई आरोपी व्यक्ति, भारत के नागरिकों के किसी वर्ग (class of citizens) की धार्मिक भावनाओं (Religious Feelings) को आहत (outrage) करने के विमर्शित (deliberate) और विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है या ऐसा करने का प्रयत्न करता है। यह अपमान, उच्चारित शब्दों (Spoken words) या लिखित शब्दों (written words) द्वारा या संकेतों (signs) द्वारा या दृश्यरूपणों (visible representations) द्वारा या अन्यथा किया जा सकता है। शिव शंकर बनाम एम्परर AIR 1940 Oudh 348 के मामले में आरोपी व्यक्ति ने एक अन्य व्यक्ति का जनेऊ खींच कर तोड़ दिया था, इसे "उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा" द्वारा धार्मिक भवना का अपमान नहीं माना गया था। यहाँ इस धारा के लागू होने के लिए यह आवश्यक है कि किसी वर्ग के धर्म का या उसकी धार्मिक भावनाओं का अपमान, उस वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए जानबूझकर/विमर्शित (Deliberate) एवं विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) से किया जाए, या ऐसा करने का प्रयत्न किया जाए। दूसरे शब्दों में, अनिच्छुक और अनपेक्षित अभिव्यक्ति से हुए अपमान के मामलों में यह धारा को लागू नहीं किया जा सकता है। यह जरुरी है कि धर्म या धार्मिक भावनाओं का अपमान, धार्मिक भावनओं को आहत करने के विमर्शित (deliberate) और विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) से ही किया जाए – जयमाला एवं अन्य बनाम राज्य (2013) Cr LJ 622 (SC)। आइये आगे बढ़ने से पहले हम धारा 295A को पढ़ लेते हैं। धारा 295A यह कहती है कि, विमर्शित (Deliberate) और विदेषपूर्ण (Malicious) कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों– जो कोई भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनओं (Religious Feelings)को आहत करने के विमर्शित (Deliberate) और विद्वेषपूर्ण आशय (Malicious Intention) से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान, उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा। धारा 295A के अंतर्गत अपराध बनाने के लिए आवश्यक सामग्री जैसा कि हमने जाना, इस धारा का मुख्य हिस्सा/सामग्री, भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं या धर्म को अपमानित करना या करने का प्रयास करना है। लेकिन हम संक्षेप में यह जान लेते हैं कि इस धारा के अंतर्गत अपराध बनाने के लिए आवश्यक सामग्री क्या है:- 1- आरोपी को भारत के किसी वर्ग के व्यक्तियों के धर्म या धार्मिक भावनाओं का अपमान करना चाहिए या ऐसा करने का प्रयत्न करना चाहिए। 2- यह अपमान, इत्यादि, ऐसे वर्ग के व्यक्तियों की धार्मिक भावनओं को आहत करने के विमर्शित (deliberate) और विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) से किया गया होना चाहिए 3- यह अपमान, उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा किया गया होना चाहिए। विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) होना है आवश्यक जैसा कि हमने जाना, इस धारा के लागू होने के लिए आरोपी व्यक्ति का भारत के किसी वर्ग के व्यक्तियों की धार्मिक भावना को आहत करने का विमर्शित (deliberate) एवं विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) होना बेहद आवश्यक होता है। अब वह ऐसा करने के लिए उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा का सहारा लेता है जिसके फलस्वरूप, या तो ऐसे वर्ग के व्यक्तियों के धर्म या धार्मिक भावनाओं का अपमान हो जाता है या आरोपी व्यक्ति की ओर से ऐसा करने का प्रयत्न होता है, जिसे धारा 295A के अंतर्गत दण्डित किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने रामजी लाल मोदी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य AIR 1957 SC 620 के मामले में यह साफ़ किया था कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295A, भारत के नागरिकों के एक वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने या अपमान करने का प्रयास करने के हर कृत्य को दण्डित नहीं करती है। इस निर्णय में आगे यह कहा गया था कि यह धारा केवल उन मामलों/कृत्यों को दण्डित करती है, जहाँ धर्म या धार्मिक भावनाओं का अपमान, ऐसे वर्ग के व्यक्तियों की धार्मिक भावनओं को आहत करने के विमर्शित (deliberate) और विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) से किया गया हो। दूसरे शब्दों में, आरोपी का यह ठोस इरादा होना चाहिए कि उसके कृत्य से, एक वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत हों और फिर जब उसके द्वारा धर्म या धार्मिक भावना आहत की जाती हैं या ऐसा करने का प्रयत्न किया जाता है तो यह धारा लागू होती है। अनजाने में या लापरवाही के चलते धर्म का अपमान किया जाना, बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के ठोस एवं विद्वेषपूर्ण आशय से, इस धारा के अंतर्गत दण्डित नहीं किया जा सकता है। अब यहाँ एक सवाल यह उठता है कि आखिर किसी के विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) का पता कैसे लगाया जाए? इसके लिए, बाबा खलील अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य AIR 1960 ALL 715 (718) का वाद देखा जा सकता है। इस मामले में यह आयोजित किया गया था कि धारा 295A के उद्देश्य के लिए विद्वेष (MALICE) स्थापित करने के लिए क्या आवश्यक है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसी (बाबा खलील अहमद) मामले में यह तय किया था कि अभियोजन के लिए यह साबित करना आवश्यक नहीं है कि, आरोपी की किसी ख़ास वर्ग के व्यक्तियों (जिनकी भावनाएं आहत हुई हैं) से कोई दुश्मनी थी। बल्कि, यदि किया गया कृत्य, स्वेच्छिक था और बिना किसी कानूनी समर्थन/औचित्य के किया गया, तो विद्वेष (MALICE) का अनुमान लगाया जा सकता है। विद्वेष (MALICE) का अनुमान, हालातों, पृष्ठभूमि एवं सम्बंधित तथ्यों की रौशनी में परिस्थितियों का आंकलन करते हुए लगाया जा सकता है – (1962) Cr LJ 146 (Mad)। इसके अलावा, व्यक्ति के आशय को उसकी भाषा और परिस्थितियों के अनुसार आँका जाना चाहिए, हालाँकि उस सम्बन्ध में अलग से साक्ष्य पर भी गौर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी पुस्तक के लेखक द्वारा कथित रूप से धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से किसी वर्ग के धर्म या उसकी धार्मिक भावना का अपमान किया गया है तो अदालत का कार्य यह होना चाहिए कि वह लेखक के इरादे को मुख्य रूप से पुस्तक की भाषा से ही आंके, हालाँकि उसके अर्थ को समझने के लिए बाहरी साक्ष्य पर गौर किया जा सकता है। यदि भाषा की प्रकृति ऐसी है, जो दुश्मनी या घृणा की भावनाओं को उत्पन्न करने या बढ़ावा देने का कार्य करती है, तो लेखक के सापेक्ष अदालत द्वारा यह माना जा सकता है कि उसे यह पता था कि उसके कार्य के क्या परिणाम होंगे। धारा 295A की संवैधानिकता पर लग चुका है प्रश्नचिन्ह भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 ए की संवैधानिक पर प्रश्नचिन्ह रामजी लाल मोदी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य AIR 1957 SC 620 के मामले में लगा था और उच्चतम न्यायालय द्वारा यह आयोजित किया गया था कि यह धारा संविधान के विरुद्ध नहीं है। दरअसल, इस मामले में याचिकाकर्ता एक मासिक पत्रिका 'गौरक्षक' का संपादक-प्रकाशक था, जिसे भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 ए के तहत अपनी पत्रिका में छपे एक लेख के चलते सेशन अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था (दोषसिद्धि को अपील पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बरक़रार रखा था)। इसके बाद याचिकाकर्ता उच्चतम न्यायालय पहुंचा, उसकी यह दलील थी कि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के अंतर्गत गारंटी किये गए मूल अधिकार 'वाक्-स्वातंत्र्य' के खिलाफ है। अदालत ने इस दलील को ख़ारिज करते हुए कहा था कि:- "यह धारा, केवल धर्म के अपमान के गंभीर रूप को दण्डित करती है, जब वह अपमान किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से किया जाता है। अपमान के इस उग्र रूप की गणना की प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से लोक व्यवस्था को बाधित करना होती है और यह धारा, इस तरह की गतिविधियों को दंडित करती है। इसलिए इस धारा को संविधान के अनुच्छेद 19 (2) का संरक्षण अच्छी तरह से प्राप्त है, जोकि अनुच्छेद 19 (1) (a) द्वारा गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अभ्यास पर उचित प्रतिबंध लगाने वाले कानून को संरक्षण देता है।"

https://hindi.livelaw.in/know-the-law/ipc-section-295-know-the-law-156107


शुक्रवार, 1 मई 2020

धारा 392/411 भादवि0 अभियुक्त शनि यादव अपराधियों के विरुद्ध सघन अभियान के क्रम में गौसपुर तिराहा के पास से गिरफ्तार

थाना सरपतहां जनपद जौनपुर


श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय जौनपुर के द्वारा चलाये जा रहे अपराध एवं अपराधियों के विरुद्ध सघन अभियान के क्रम में श्रीमान अपर पुलिस अधीक्षक नगर महोदय के कुशल निर्देशन व श्रीमान क्षेत्राधिकारी महोदय शाहगंज के कुशल पर्वेक्षण में प्रभारी निरीक्षक सरपतहां मय हमराह के थाना क्षेत्र में लाकडाउन व सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन कराते हुये तलाश वाँछित अभियुक्त में मामूर थे कि जरिये मुखबिर खास सूचना मिली कि थाना स्थानीय पर पंजीकृत मु0अ0सं0 183/18 धारा 392/411 भादवि0 से सम्बन्धित वाँछित व इनामिया अभियुक्त शनि यादव पुत्र कमलेश यादव निवासी गौसपुर थाना शाहगंज जौनपुर लाकडाउन से पहले अपने गाँव में आकर पुलिस से लुक-छिपकर रह रहा है इस समय गौसपुर तिराहे पर किसी सवारी के इन्तजार में खड़ा है। यदि शीघ्रता की जाय तो पकड़ा जा सकता है। इस सूचना पर विश्वास करके थाना क्षेत्र में पहले से मौजूद उ0नि0 श्री विवेक कुमार तिवारी व उ0नि0 रामनरायण गिरी व कर्मचारीगण का0 अजय कुमार व  का0 भानू प्रताप सिंह को साथ लेकर मय मुखबिर के गौसपुर तिराहा के पास पहुँचा तो मुखबिर खास कुछ दूर से इशारा करके मौके से चला गया कि हम पुलिस वाले गौसपुर तिराहे पर खड़े व्यक्ति को एकबारगी दबिश देकर पकड़ लिये। पकड़े गये व्यक्ति से  नाम पता पूछा गया तो अपना नाम शनि यादव  पुत्र कमलेश यादव उर्फ कैलाश यादव  निवासी गौसपुर थाना शाहगंज जनपद जौनपुर बताया । अभियुक्त उपरोक्त को गिरफ्तार कर  विधिक कार्यवाही की जा रही है ।


 



गिरफ्तार अभियुक्त का नाम व पता-


1.शनि यादव  पुत्र कमलेश यादव उर्फ कैलाश यादव  निवासी गौसपुर थाना शाहगंज जनपद जौनपुर ।


आपराधिक इतिहास-


1.मु0अ0सं0 183/18 धारा 392/411 भा0द0वि0 थाना सरपतहाँ जौनपुर।


गिरफ्तारी करने वाली टीम-


1.श्री विजय कुमार चौरसिया, प्रभारी निरीक्षक थाना सरपतहाँ जनपद जौनपुर।


2.उ0नि0 श्री विवेक कुमार तिवारी (प्रभारी चौकी सरायमोहिउद्दीनपुर) थाना सरपतहां,जौनपुर।



  1. उ0नि0 श्री रामनरायण गिरी थाना सरपतहाँ,जौनपुर।


4.का0 अजय कुमारका0 भानू प्रताप सिंहका0 अमित कुमारका0 मनीष कुमार  थाना सरपतहाँजौनपुर।  


सूरज उर्फ टोनी पुत्र सभाजीत निवासी मुखलिसपुर नेवादा धनियामऊ बाजार थाना बक्शा जौनपुर से गिरफ्तार

थाना बक्शा जनपद जौनपुर


श्रीमान पुलिस अधीक्षक जौनपुर महोदय द्वारा चलाये जा रहे वांछित वारन्टी अभियुक्तों की गिरफ्तारी के अभियान के अनुपालन में अपर पुलिस अधीक्षक ग्रामीण व सीओ सदर महोदय के निर्देशन में थाना बक्शा पुलिस टीम  द्वारा  मु0अ0स0 148/19  धारा 379/411 भादवि  थाना बक्शा जौनपुर से संबन्धित अभियुक्त सूरज उर्फ टोनी पुत्र सभाजीत निवासी मुखलिसपुर नेवादा थाना बदलापुर जौनपुर को आज दिनांक 30/04/2020  मुखबिरी सूचना पर धनियामऊ बाजार थाना बक्शा जौनपुर से गिरफ्तार कर न्यायालय भेजा रहा है ।



 


गिरफ्तार अभियुक्त का विवरण-



  1. सूरज उर्फ टोनी पुत्र सभाजीत निवासी मुखलिसपुर नेवादा थाना बदलापुर जौनपुर ।


आपराधिक इतिहास


मु0अ0स0 -148/19  धारा 379/411 भादवि  थाना बक्शा जौनपुर।


मु0अ0स0 -108/19  धारा 392  भादवि  थाना महाराजगंज जौनपुर।


मु0अ0स0 -72/19  धारा  356/379/411  भादवि  थाना बदलापुर जौनपुर।


गिरफ्तारी करने वाली टीम-


1- उ0नि0 राकेश कुमार राय थाना बक्शा जौनपुर।


2- हे0का0 बृजेश मिश्रा,  का0 अनिल चौहान थाना बक्शा जौनपुर।  


बोलता कैमरा पूछता सवाल

थाना सुरेरी जौनपुर


पुलिस अधीक्षक महोदय जनपद जौनपुर बताये कि थाना सुरेरी मे 1किलो और 200 ग्राम नाजायज गाँजा पकड़ा गया ऐसे मे महोदय बताने का कष्ट करे कि जिले मे गाँजा की जायज कितनी दुकाने है,और कहा कहा? 


पुलिस अधीक्षक महोदय द्वारा चलाये जा रहे अपराध एवं अपराधियो के विरुद्ध अभियान के तहत अपर पुलिस अधीक्षक महोदय ग्रामीण व क्षेत्राधिकारी मड़ियाहूं के पर्यवेक्षण में वरिष्ठ उ0नि0 रामानन्द मय हमराह के द्वारा अभियुक्त सुजीत उर्फ विल्लू चौहान पुत्र सामा चौहान उम्र 35 वर्ष  ग्राम पट्टी जियाराय (सुल्तानपुर) थाना सुरेरी जनपद जौनपुर को 01 किलोग्राम 200 ग्राम नाजायज गाँजा के साथ गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी बरामदगी के आधार पर अभियुक्त के विरुध्द थाना सुरेरी पर अभियोग पंजीकृत कर विधिक कार्यवाही की जा रही है।



पंजीकृत अभियोग-


मु0अ0सं0 23/2020 धारा 8/20 NDPS एक्ट थाना सुरेरी जौनपुर।


गिरफ्तार अभियुक्त-


1.सुजीत उर्फ विल्लू चौहान पुत्र सामा चौहान उम्र 35 वर्ष  ग्राम पट्टी जियाराय (सुल्तानपुर) थाना सुरेरी जनपद जौनपुर


बरामदगी का विवरण-


1-01 किलोग्राम 200 ग्राम नाजायज गाँजा।  


गिरफ्तारी बरामदगी करने वाली टीम-


1.उ0नि0 रामानन्द, थाना सुरेरी जौनपुर।


2.हे0कां0 विनोद सिंह, हे0कां0 सन्तोष गिरी थाना सुरेरी जौनपुर।


 


कोरोना जैसी महामारी से लड़ने की नसीहत दे रहा है रविंद्र सिंह ’ज्योति का जन जागरण गीत - डीएम

 कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान जनमानस को जागरूक करने के उद्देश्य से भोजपुरी गायक रवीन्द्र सिंह ज्योति के लॉकडाउन जनजागरण गीत का लोकार्पण जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह ने किया। इस मौके पर उपस्थित मुख्य विकास अधिकारी अनुपम शुक्ला , अपर जिलाधिकारी (वित्त राजस्व)  रामप्रकाश और मुख्य राजस्व अधिकारी डॉ सुनील कुमार वर्मा समेत कई अधिकारियों ने जन जागरण गीत की रिकार्डिंग को सुना और सराहना किया। इस अवसर  पर जिलाधिकारी ने कहा कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में रविंद्र सिंह ज्योति के जन जागरण गीत में जहां सोशल डिस्टेंसिंग बनाते हुए चौराहे बाजी न करने की सलाह दी गई है ,वही दुकान पर सामान खरीदते समय बरती जा रही सावधानी के बारे में चित्रण किया गया है। इस गीत के अंत में लोगों को निराश ना हो कर सकारात्मक ऊर्जा के साथ कोरोना से  लड़ाई लड़ने की नसीहत दी गई है। इस गीत की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है



लोकार्पण के मौके पर जनजागरण गीत के गायक रवीन्द्र सिंह ‘ज्योति और संगीतकार जिग्नेश मौर्य ‘भ्रमर भी उपस्थित रहे। गीतकार  जेडी बहादुर  और मृत्युंजय सिंह सिप्पी  द्वारा लिखे गए इस गीत के बारे में गायक ज्योति ने बताया कि इस जन जागरण गीत में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से बचाव के सभी नियम और कानून को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है साथ में लोगों को थोड़ा सा मनोरंजन का भी विशेष ध्यान रखा गया हैं ।  उन्होंने यह भी बताया कि यह जन जागरण  गीत जिला प्रशासन जौनपुर की प्रेरणा से बनाया गया है। यह लॉकडाउन जन जागरण गीत यूट्यूब पर माई ट्रैक्स चैनल पर लोग बहुत पसंद कर रहे हैं बहुत जल्द ही इसका वीडियो भी लोगों को देखने को मिलेगा।                                


तीन महीने EMI से मोहलत : सुप्रीम कोर्ट ने RBI को देखने को कहा कि लोगों को बैंक ये लाभ दे रहे हैं या नहीं

एक अहम कदम में सुप्रीम कोर्ट ने RBI से यह जांचने के लिए कहा है कि उसकी तीन महीने की EMI की मोहलत की नीति बैंकों द्वारा लागू की गई है या नहीं। जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने इस मामले में कहा, " ऐसा प्रतीत होता है कि जिन बैंकों को RBI द्वारा लाभ दिया गया है, वो लाभ लोन लेने वालों तक नहीं बढ़ाया जा रहा है। उचित दिशा-निर्देशों का उपयोग किया जाना चाहिए।" सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि तीन महीने की मोहलत पर RBI के 27 मार्च के



नोटिफिकेशन पर दखल देने से इनकार कर दिया और RBI से पूछा कि क्या उसकी पॉलिसी बैंकों द्वारा सही मायने में लागू की गई है? वहीं केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि यह योजना उधारकर्ताओं के लिए लागू है और RBI इस पर विचार कर सकता है। पीठ ने कहा, "यह एक पीआईएल मुद्दा नहीं है, हम हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। हालांकि, उठाए गए विभिन्न मुद्दों के कारण हम अनुरोध करते हैं कि RBI यह जांच कर सकता है कि क्या इसकी नीति बैंकों द्वारा सही तरीके लागू की जा रही है।" इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में RBI की 27 मार्च की अधिसूचना को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दाखिल हुई थीं। पीठ ने इन पर सुनवाई करते हुए वकीलों से पूछा कि क्या उन्होंने लोन लिया है। जब वकील ने कहा कि नहीं ये जनहित याचिका है तो पीठ ने सुनवाई से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि वकील खुद ही उन लोगों के लिए याचिका दाखिल कर रहे हैं जो खुद ये याचिका दाखिल कर सकते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट के सामने कोई इस योजना से प्रभावित व्यक्ति आएगा तो इस मामले की जांच करेंगे। जस्टिस रमना ने कहा, " ये योजना लाभदायक है, अच्छी है, बुरी है, यह हम कैसे तय करे सकते हैं। यदि आप लोन लेने वाले नहीं हैं तो आप कुछ भी नहीं जानते हैं।"


COVID-19 के पीड़ितों का इलाज हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन व एजीथ्रोमाइसीन से न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने ICMR से विचार करने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि ICMR उस जनहित याचिका पर विचार करे जिसमें गंभीर रूप से बीमार COVID 19 रोगियों के लिए उपचार दिशानिर्देशों में तत्काल बदलाव करने का अनुरोध किया गया था। डॉ कुणाल साहा द्वारा याचिका दायर की गई थी और इसमें कहा गया था कि 31 मार्च, 2020 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के बाद COVID 19 से पीड़ित गंभीर रोगियों का ICU में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन (HCQ) और एजीथ्रोमाइसीन (AZM) के साथ असुरक्षित और "ऑफ-लेबल" तरीके से इलाज किया जा रहा है जिससे निर्दोष लोगों का जीवन दांव पर है। जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने याचिकाकर्ता डॉ कुणाल साहा को कहा कि अदालत ये निर्देश जारी नहीं कर सकती कि किस प्रक्रिया से पीड़ितों का उपचार किया जाना चाहिए। अदालत इस तरह के आदेश जारी नहीं कर सकती। अदालत इस मामले में विशेषज्ञ नहीं है। पीठ ने ICMR को याचिकाकर्ता के सुझावों पर गौर करने के लिए कहा है। "जैसा कि पहले चर्चा की गई है, एक एंटी-मलेरियल (HCQ) और ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक (AZM) के" ऑफ-लेबल "उपयोग के लिए सबसे गंभीर COVID-19 रोगियों के लिए अनुशंसित किया गया था और वो प्रतिवादी नंबर 1 ने मुख्य रूप से उपाख्यानात्मक सबूतों पर आधारित नहीं बल्कि COVID -19 के खिलाफ एक विशिष्ट चिकित्सा के रूप में समान दिशानिर्देशों के तहत स्पष्ट रूप से लागू किया। " यह कहते हुए कि केवल उपचार को ही प्रधानता नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि डॉक्टरों के रूप में, उक्त उपचार के दुष्प्रभाव को ध्यान में रखा जाना चाहिए, सरकार ने इस ऑफ-लेबल उपचार के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिसमें "गुप्त एहतियाती नोटों" का अभाव है। इन दवाओं से प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं के कारण जीवन के अनावश्यक नुकसान को रोकने की आवश्यकता है।" इसके प्रकाश में, याचिकाकर्ता ने बताया था कि 8 अप्रैल को, प्रमुख अमेरिकी कार्डियोलॉजी सोसायटी ने आगाह किया था कि COVID19 में HCQ & AZM के उपयोग से इसके निहित दुष्प्रभाव के कारण गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं जहां छह विशिष्ट एहतियाती चिकित्सीय उपायों की भी सिफारिश की गई थी। इसलिए, याचिकाकर्ता का कहना था कि भले ही उन्होंने मंत्रालय को इन आरक्षणों के बारे में लिखा था और अभ्यावेदन दिया था, AHA ACC / HRS द्वारा सलाह दिए गए छह विशिष्ट चिकित्सीय उपचारों के तत्काल कार्यान्वयन द्वारा उपचार के दिशानिर्देशों में निवारक और एहतियाती उपाय करने का आग्रह किया था। लेकिन मंत्रालय ने कोई ध्यान नहीं दिया। याचिका में कहा गया था कि "9 अप्रैल, 2020 को तत्काल प्रतिनिधित्व के माध्यम से गंभीर रूप से बीमार COVID-19 रोगियों के जीवन की रक्षा करने के लिए याचिकाकर्ता ने उत्तरदाता संख्या 1 को भी लिखा कि उन्हें MCQ और AZM उपचार से जुड़े गंभीर खतरों के बारे में सूचित किया और 6-बिंदु एहतियाती और निवारक उपायों को लागू करने के लिए आवश्यक परिवर्तन करने के लिए उनसे अनुरोध किया, जैसा कि AHA/ ACC / HRS द्वारा अनुशंसित है। दुर्भाग्य से, प्रतिवादी संख्या 1 ने याचिकाकर्ता द्वारा बार-बार की गई दलीलों का जवाब नहीं दिया या AHA / ACC / HRS द्वारा दी गई 6 निवारक सिफारिशों का पालन करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।" "सूचित सहमति" को अपनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, याचिकाकर्ता ने कहा कि HCQ & AZM के साथ जिन रोगियों का इलाज किया जा रहा है, उन्हें "दवाओं के निहित दुष्प्रभाव के कारण संभावित जीवनरक्षक हृदय संबंधी जटिलताओं के जोखिम" के संभावित नुकसान के बारे में बताया जाना चाहिए। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने कहा था कि वास्तविक सबूत के आधार पर COVID19 के उपचार के गंभीर दुष्प्रभाव और जोखिम हैं, जिनके बारे में मरीजों को जागरूक होने का अधिकार है। डॉ कुणाल साहा पीपल फॉर बेटर ट्रीटमेंट के संस्थापक अध्यक्ष हैं जो एक मानवतावादी समाज है जो बेहतर स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड, राबिन मजूमदार ने तैयार की थी।



COVID-19 के मरीजों का इलाज करने वाले निजी अस्पतालों में लागत तय करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

निजी और कॉरपोरेट अस्पतालों में कोरोना वायरस रोगियों के इलाज के लिए राष्ट्रव्यापी लागत संबंधी नियमों की मांग करने वाली उस याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया और कहा कि न्यायालय निजी अस्पतालों के मामलों में बिना उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या अस्पतालों में शुल्क की गणना के लिए ऊपरी सीमा लगाए



जाने के लिए लागत नियमन की प्रार्थना की गई है ? याचिकाकर्ता और वकील सचिन जैन ने तर्क दिया कि सभी संस्थाओं के लिए एक नियम होना चाहिए क्योंकि सरकार ने उन्हें रोगियों से लागत वसूलने के लिए उन्हें अधिकार दे दिए हैं। उन्होंने कहा, कि "निजी अस्पतालों में जो COVID समर्पित अस्पताल हैं , उनके पास इस बात की कोई योग्यता नहीं है कि वे अस्पताल कितना शुल्क ले सकते हैं। मरीजों से 10 से 12 लाख रुपये वसूले जा रहे हैं। सरकार ने उन्हें बिना शुल्क के शक्तियां दी हैं।" मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा, "हम आपसे सहमत हैं लेकिन हम उनकी बात सुने बिना निजी अस्पतालों के संबंध में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। सरकार कैसे निर्णय ले सकती है?" जैन ने आगे तर्क दिया कि अप्रकाशित और भारी शुल्क में सर्जिकल उपचार को शामिल नहीं किया गया है बल्कि केवल मरीजों को अस्पताल के बिस्तर उपलब्ध कराए गए हैं। याचिका में कहा गया कि COVID19 रोगियों के इलाज के लिए निजी और कॉर्पोरेट संस्थाओं को देश भर में लागत नियमों का मुद्दा "तत्काल विचार" का विषय है क्योंकि कई निजी अस्पताल राष्ट्रीय संकट की घड़ी में घातक वायरस से पीड़ित रोगियों का व्यावसायिक रूप से शोषण कर रहे हैं। याचिका में कोरोना के रोगियों को बढ़े हुए बिलों और प्रतिपूर्ति के लिए बीमा कंपनियों को इनकार करने की विभिन्न रिपोर्टों की ओर इशारा किया गया है। यह प्रस्तुत किया जाता है कि अगर अस्पतालों द्वारा इस तरह के बढ़ाए गए बिल बीमा उद्योग के लिए चिंता का विषय बन सकता है, तो एक आम आदमी की क्या दुर्दशा होगी, जिसके पास ना तो साधन हैं और प्रतिपूर्ति करने के लिए न ही बीमा कवर है, यदि उसके एक निजी अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। याचिका में कहा गया, " यह गंभीर चिंता का विषय है कि भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग अभी भी किसी भी बीमा कवर का अधिकारी नहीं है और किसी भी सरकारी स्वास्थ्य योजना के तहत भी नहीं कवर नहीं हैं।"