बुधवार, 6 मई 2020

व्यंग तरंग शांतिपूर्ण ढंग से मनाया गया


हिंदी के प्रख्यात रचनाकार व्यंग्यकार साहित्यकार एवं व्यंगकार साहित्यकार  हिंदी की प्रायः सभी प्रचलित विधाओं की लगभग डेढ़ दर्जन से भी अधिक बहुचर्चित कृतियों के संयोजक और भारत विकास हिंदी की लोकप्रिय पत्रिका रंग तरंग के संपादक कृष्णकांत एकलव्य  के तृतीय पुण्यतिथि के अवसर पर मंगलवार को व्यंग तरंग कार्यालय रूहट्ट परशांतिपूर्ण ढंग से मनाया गया सर्वप्रथम समाजसेवी उद्योगपति अशोक सिंह ने उनके चित्र पर माल्यार्पण किया साथ ही भारतीय कायस्थ महासभा के   प्रदेश अध्यक्ष कर्मचारी नेता राकेश श्रीवास्तव,  बाल रोग विशेषज्ञ  डा लालजी प्रसाद ने पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि अर्पित किया | अशोक सिंह ने इस अवसर पर कहा कि एकलव्य जी अपने में सराहनीय उन्होंने हिंदी जगत में अपनी  एक अलग पहचान बनाया है उन्हें हृदय से नमन करता हूं राकेश श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा कि एकलव्य महान साहित्यकार थे उन्होंने हिंदी जगत में जो लेखनी दिया है वह अपने आप में अनूठा है इस अवसर पर सरोज  श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों का स्वागत किया बाबा धर्मपुत्र अशोक में सभी का आभार प्रकट किया कार्यक्रम में मुख्य रूप से श्याम रतन सिपिन  रघुवंशी विनय श्रीवास्तव रामचंद्र सुरेश सोनकर प्रदीप यादव ओम प्रकाश उपाध्याय कृष्णा श्रीवास्तव श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे


विधान परिषद चुनावों में उद्धव के नेतृत्व वाले महागठबंधन का 9 में से 5 सीटें जीतना तय

मुंबई. महाराष्ट्र (Maharashtra) में सत्ताधारी गठबंधन (Ruling coalition) का 21 मई को होने वाले विधानपरिषद चुनावों (Legislative Council) में 9 मे से 5 सीटें जीतना तय माना जा रहा है. साथ ही वह 6वीं सीट जीतने के लिए छोटे दलों के साथ बातचीत में भी लगी है, यह बातें पूरे मामले से वाकिफ एक सूत्र ने बताईं. वहीं विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने कहा है कि वह चौथी सीट जीतने को लेकर आश्वस्त है.

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (CM Uddhav Thackeray), जो कि शिवसेना-नेशनलिस्ट कांग्रेस (NCP)-कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, वे स्वयं सत्ताधारी गठबंधन के सदस्यों में से एक हैं. उद्धव अपने राजनीतिक करियर (Political Career) का पहला चुनाव लड़ रहे हैं.

पीएम मोदी से उद्धव ठाकरे ने की थी इस चुनाव को लेकर बात
अपने पिता दिवंगत बाला साहेब ठाकरे की तरह उद्धव भी अभी तक चुनावी राजनीति (Electoral Politics) से दूर ही रहे थे. पिछले साल 28 नवंबर को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद, वे संवैधानिक रूप से विधानसभा या विधानपरिषद में 6 महीने के अंदर या 27 मई तक चुने जाने के लिए बाध्य हो चुके हैं. उन्हें निर्विरोध चुना जाना तय माना जा रहा है.



राज्य की कैबिनेट ने महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) को दो बार यह सुझाव भेजा है कि उन्हें गवर्नर कोटा के तहत विधानपरिषद की दो खाली सीटों में से एक पर नामित किया जाए. ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 29 अप्रैल को फोन करके उन्हें गवर्नर के कैबिनेट की मांगे न मानने की स्थिति में पैदा होने वाली संवैधानिक त्रासदी की चेतावनी दी थी.


झाड़ियों में छिपकर महिलाओं को नहाते हुए देखता था,रंगीन मिजाज युवक की जमकर पिटाई

झाड़ियों में छुपकर महिलाओं को तालाब में नहाते देखना युवक को महंगा पड़ गया. महिलाओं ने उसकी जमकर की पिटाई कर दी. घटना मुफ्फसिल थानाक्षेत्र के महुलसाई की है. पिछले कई दिनों से युवक यह काम कर रहा था. लेकिन गांववालों (Villagers) को इस बात का पता चल गया और उसकी जमकर पिटाई (Beat) कर दी गई. गांववालों ने अब युवक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने की भी योजना बनाई है. हालांकि युवक के बयान पर पुलिस (Police) ने तीन ग्रामीणों के विरुद्ध केस दर्ज किया है.

झाड़ियों में छुपकर महिलाओं को नहाते देखता था

जानकारी के मुताबिक रंगीन मिजाज युवक पिछले कई दिनों से झाड़ियों में छुपकर महिलाओं और युवतियों को तालाब में स्नान करते देखा करता था. इस तालाब की एक छोर पर महिलाएं और युवतियां
स्नान करती हैं, जबकि दूसरी छोर पर पुरुष नहाते हैं. महिला वाले घाट की तरफ पुरुषों का जाना वर्जित है. चूंकि गांव की महिलाएं वहां नहाती हैं, इसलिए कोई भी इस नियम का उल्लंघन नहीं करता. लेकिन महुलसाई में किराये के मकान में रह रहे मनीष दास ने गांववालों की इस मर्यादा की सीमा को तोड़ने की कोशिश की. वह कुमारडुंगी का रहने वाला है.


जौनपुर में तूफानी कहर, युवती समेत तीन लोगों की मौत, कई घायल


जौनपुर. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के जौनपुर जिले में कोरोना संकट काल के दौरान तीन अलग-अलग परिवारों ने एक और मार झेली, जो थी तूफानी मार. दरअसल, मंगलवार को यहां आंधी-तूफान और आकाशीय बिजली के चलते एक युवती समेत 3 लोगों की मौके पर मौत (Death) हो गई है. यह दर्दनाक हादासा जिले के गौराबादशाहपुर, केराकत और लाईन बाजार थाना क्षेत्र में हुआ. इस भयंकर आंधी तूफान के चलते छप्परऔर कच्चा मकान गिर गये, जिससे की लाखों का नुकसान हो गया. जबकि तूफानी कहर में चार लोग घायल हो गये हैं. इनमें से एक की हालत गंभीर होने के कारण उसे हायर सेंटर बनारस रेफर कर दिया गया है.



जानकारी के मुताबिक तूफानी कहर की पहली घटना गौराबादशाहपुर थाना क्षेत्र के भदेवरा गांव की है, जहां पेशे से मजदूर 52 साल के सीताराम के घर तूफान-बिजली के कारण छत टूट गई. इस हादसे में सीताराम की मौके पर ही मौत हो गई. हादसे के वक्त सीताराम सोए हुए थे. उनके निधन से परिवार में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है.


17 साल की गुड़िया की मौत


ऐसे ही केराकत थाना क्षेत्र के गोलावार्ड में रोड किनारे मकान का बारजा गिरने से दो राहगीर दब गये, जिसमें से गणेश साहू (36 वर्ष) की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि हादसे में दूसरा 52 वर्षीय व्यक्ति अजय कुमार जो घर से दवा लेने जा रहे थे, गंभीर रूप से घायल हो गये. अजय की हालत गंभीर देख बनारस हायर सेंटर रेफर कर दिया गया है. वहीं, लाईन बाजार थाना के देवचंदपुर गांव में भी शक्ति माली की 17 वर्षीय युवती गुड़िया की आंधी तूफान के दौरान मकान के तीसरे मंजिले से छप्पर गिरने से मौत हो गई. छप्पर गिरने से गुड़िया उसमें दब गई थी.


तीन मासूम घायल


सुजानगंज थाना क्षेत्र के नगौली गांव में भी लालमणि विश्वकर्मा का तूफान में छप्पर उड़ गया, जिससे कि मधू, नीलम, पूनम तीन मासूम बच्चे दबकर घायल हो गये. उन्हें इलाज के लिए पास के सरकारी अस्पताल मे इलाज के लिए भेजा गया है. इसके इतर जौनपुर के मछलीशहर खेतासराय में स्कूल मकान, छप्पर गिरने से भारी नुकसान हुआ है, जिसमें कई लोगों के घायल होने की भी खबर है.


ट्रैक्टर-ट्रॉली खड़ा करने को लेकर दो गुटों में खूनी संघर्ष, बुजुर्ग की पीट-पीट कर हत्या

बागपत. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बागपत (Baghpat) जनपद में दो पक्षों के विवाद में एक बुजुर्ग की पीट-पीट कर हत्या (Murder) कर दी गई. वहीं इस झगड़े में एक महिला समेत कई लोग घायल हो गए. घटना की सूचना पाकर पहुंची पुलिस (Police) ने मृतक के शव को कब्जे में लेकर उसे पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया और घायलों को सीएचसी में इलाज के लिए भेजा गया. फिलहाल पुलिस पूरे मामले की छानबीन कर रही है.

ट्रैक्टर-ट्राली खड़ा करने को लेकर हुआ विवाद
रिपोर्ट के मुताबिक सिंघावली अहीर थाना क्षेत्र में मामूली विवाद ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया. विवाद के बाद हुए संघर्ष में एक बुजुर्ग की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. जबकि एक महिला सहित कई लोग भी इसमें घायल बताए जा रहे हैं. सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने मृतक के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवा दिया है. साथ ही घायलों का मेडिकल परीक्षण कराकर मामला दर्ज कर लिया है. बताया जा रहा है कि दोनों पक्षों में विवाद सड़क पर ट्रैक्टर-ट्राली खड़ा करने को लेकर हुआ. इसके बाद एक पक्ष के आधा दर्जन से ज्यादा लोगों ने दूसरे पक्ष के लोगों पर अचानक हमला बोल दिया. जिसमें जमकर लाठी-डंडे और धारदार हथियार चले.

इस संघर्ष में भोपाल सिंह नाम के एक बुजुर्ग की मौत हो गई. जबकि तीन लोग घायल बताए जा रहे हैं. फिलहाल घायलों का पिलाना सीएचसी में इलाज चल रहा है. घटना सिंघावली अहीर थाना क्षेत्र के छिंदोड़ा गांव में हुई. जहां गांव के ही अमरपाल और भोपाल सिंह के बीच सड़क पर ट्रॉली-ट्रैक्टर खड़ा करने को लेकर कहासुनी हो गई. जिसके बाद एक पक्ष के लोग लाठी-डंडे और धारदार हथियार लेकर आए और उन्होंने दूसरे पक्ष के लोगों पर हमला बोल दिया. हमले में भोपाल सिंह के पक्ष के चार लोगों को जमकर पीटा गया. जिसमें बुजुर्ग भोपाल सिंह की दर्दनाक मौत हो गई.घटना की सूचना के बाद पुलिस के आलाधिकारी मौके पर पहुंचे. इलाके में तनाव को देखते हुए पुलिस को अलर्ट कर दिया गया है. मामले की तफ्तीश जारी है.


COVID-19 से लड़ाई में पुलिसकर्मी पहली पंक्ति में ' : सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करने से इनकार किया, सरकार के पास जाने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व सहायक पुलिस आयुक्त भानुप्रताप बर्गे की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें COVID-19 महामारी के बीच अग्रिम पंक्ति में सेवारत पुलिस अधिकारियों को 'जोखिम और कठिनाई' भत्ते के भुगतान व अन्य सुविधाओं के लिए प्रावधान करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। हालांकि जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि पुलिसकर्मी COVID-19 से लड़ाई में पहली पंक्ति में हैं इसलिए उनका ध्यान रखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि यहां कोई सुपर सरकार नहीं हो सकती। COVID-19 के चलते हर कोई कठिनाई में हैं। पीठ ने कहा कि ये नीतिगत मसला है और कोर्ट सरकार को आदेश जारी नहीं कर सकता। हालांकि याचिकाकर्ता को इस मामले में केंद्र सरकार को प्रतिनिधित्व देने की अनुमति दी गई। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने पीठ को बताया कि वो जोखिम और कठिनाई' भत्ते की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि पुलिसकर्मियों के लिए PPE की सुविधाओं, वेतन में कटौती को वापस लेने और 55 साल से ऊपर के पुलिसकर्मियों को ड्यूटी पर ना जाने देने की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में उनके वेतन में भी कटौती की जा रही है। लेकिन पीठ ने कहा कि इस समय हर कोई कठिनाई में है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दाखिल दलीलों में कहा था कि "जोखिम और कठिनाई भत्ता" की अवधारणा कोई अनूठी नहीं है और उन पुलिस अधिकारियों की सहायता के लिए इसका उपयोग किया जाना चाहिए जो लॉकडाउन को लागू करने के लिए खतरनाक परिस्थितियों में समय-समय पर काम कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की कि जिन परिपत्रों के तहत कई राज्य सरकारों ने पुलिस कर्मियों के वेतन में कटौती करने की घोषणा की है, उन्हें जल्द वापस लिया



जाए। दलीलों में कहा गया था कि अग्रिम पंक्ति में काम करने से पुलिस अधिकारियों और उनके परिवारों को COVID ​​19 से संक्रमित होने में अधिक संवेदनशील हो गए है। यह प्रस्तुत किया गया था कि वास्तव में,पुलिस कर्मियों की विभिन्न रिपोर्टें आई हैं, जो बताती हैं कि कई पुलिसकर्मी COVID ​​19 से संक्रमित हो गए हैं और कई अधिकारी मध्य प्रदेश में मारे गए हैं। याचिका में कहा गया कि "उनके काम की प्रकृति से, न केवल पुलिस कर्मी, बल्कि उनके संबंधित परिवारों को भी COVID 19 से संक्रमित होने का खतरा है। पुलिस कर्मी भी बहुत तनाव में आ रहे हैं और उनकी मानसिक भलाई के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा था कि सरकार संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत पुलिस कर्मियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बाध्य है। उन्होंने कहा था कि उत्तरदाताओं का भी कर्तव्य है कि वे पुलिसकर्मियों को न केवल प्रोत्साहन प्रदान करें, बल्कि यह भी सुनिश्चित करें कि लॉकडाउन के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के अतिरिक्त कर्तव्य के लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाए। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि जो पुलिस कर्मी 48 वर्ष से अधिक आयु के हैं और किसी भी प्रकार की बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें खतरनाक कार्य वातावरण में तैनात नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वे संक्रमण के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं। याचिका में कहा गया कि WHO के दिशानिर्देशों के अनुसार वृद्ध वयस्क और किसी भी आयु के लोग जिनके पास गंभीर अंतर्निहित चिकित्सा स्थितियां हैं, COVID -19 से गंभीर बीमारी के लिए उच्च जोखिम हो सकता है, इसलिए 48 वर्ष से अधिक आयु के ऐसे अधिकारी को किसी भी तनावपूर्ण कार्य वातावरण में तैनात नहीं किया जाना चाहिए, COVID-19 रोगियों के सीधे संपर्क में जो आता है। यह प्रस्तुत किया गया था कि विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, जो अधिकारी मारे गए हैं, वे 50 वर्ष से अधिक आयु के हैं। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने राज्यों से ऐसे पुलिस अधिकारियों की पहचान करने और उन्हें COVID-19 संबंधित कर्तव्यों से मुक्त करने के लिए तत्काल अंतरिम दिशा-निर्देश मांगे थे जिन्हें किसी भी प्रशासनिक कार्य में नहीं लगाया जाना चाहिए। इसके अलावा, पुलिस कर्मियों की गंभीर कमी और इस तथ्य को दूर करने के लिए कि पुलिस कर्मी COVID 19 को अनुबंधित कर रहे है। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि सरकार के लिए कानून और व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए तदर्थ आधार पर कुछ व्यक्तियों की भर्ती करना उचित है। याचिका में साथ ही सरकार से पुलिस कर्मियों के लिए मास्क, दस्ताने और सैनिटाइज़र जैसे सुरक्षात्मक गियर की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सरकार से अपील की गई थी।


COVID-19 से लड़ाई में पुलिसकर्मी पहली पंक्ति में ' : सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करने से इनकार किया, सरकार के पास जाने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व सहायक पुलिस आयुक्त भानुप्रताप बर्गे की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें COVID-19 महामारी के बीच अग्रिम पंक्ति में सेवारत पुलिस अधिकारियों को 'जोखिम और कठिनाई' भत्ते के भुगतान व अन्य सुविधाओं के लिए प्रावधान करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। हालांकि जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि पुलिसकर्मी COVID-19 से लड़ाई में पहली पंक्ति में हैं इसलिए उनका ध्यान रखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि यहां कोई सुपर सरकार नहीं हो सकती। COVID-19 के चलते हर कोई कठिनाई में हैं। पीठ ने कहा कि ये नीतिगत मसला है और कोर्ट सरकार को आदेश जारी नहीं कर सकता। हालांकि याचिकाकर्ता को इस मामले में केंद्र सरकार को प्रतिनिधित्व देने की अनुमति दी गई। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने पीठ को बताया कि वो जोखिम और कठिनाई' भत्ते की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि पुलिसकर्मियों के लिए PPE की सुविधाओं, वेतन में कटौती को वापस लेने और 55 साल से ऊपर के पुलिसकर्मियों को ड्यूटी पर ना जाने देने की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में उनके वेतन में भी कटौती की जा रही है। लेकिन पीठ ने कहा कि इस समय हर कोई कठिनाई में है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दाखिल दलीलों में कहा था कि "जोखिम और कठिनाई भत्ता" की अवधारणा कोई अनूठी नहीं है और उन पुलिस अधिकारियों की सहायता के लिए इसका उपयोग किया जाना चाहिए जो लॉकडाउन को लागू करने के लिए खतरनाक परिस्थितियों में समय-समय पर काम कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की कि जिन परिपत्रों के तहत कई राज्य सरकारों ने पुलिस कर्मियों के वेतन में कटौती करने की घोषणा की है, उन्हें जल्द वापस लिया



जाए। दलीलों में कहा गया था कि अग्रिम पंक्ति में काम करने से पुलिस अधिकारियों और उनके परिवारों को COVID ​​19 से संक्रमित होने में अधिक संवेदनशील हो गए है। यह प्रस्तुत किया गया था कि वास्तव में,पुलिस कर्मियों की विभिन्न रिपोर्टें आई हैं, जो बताती हैं कि कई पुलिसकर्मी COVID ​​19 से संक्रमित हो गए हैं और कई अधिकारी मध्य प्रदेश में मारे गए हैं। याचिका में कहा गया कि "उनके काम की प्रकृति से, न केवल पुलिस कर्मी, बल्कि उनके संबंधित परिवारों को भी COVID 19 से संक्रमित होने का खतरा है। पुलिस कर्मी भी बहुत तनाव में आ रहे हैं और उनकी मानसिक भलाई के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा था कि सरकार संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत पुलिस कर्मियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बाध्य है। उन्होंने कहा था कि उत्तरदाताओं का भी कर्तव्य है कि वे पुलिसकर्मियों को न केवल प्रोत्साहन प्रदान करें, बल्कि यह भी सुनिश्चित करें कि लॉकडाउन के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के अतिरिक्त कर्तव्य के लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाए। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि जो पुलिस कर्मी 48 वर्ष से अधिक आयु के हैं और किसी भी प्रकार की बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें खतरनाक कार्य वातावरण में तैनात नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वे संक्रमण के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं। याचिका में कहा गया कि WHO के दिशानिर्देशों के अनुसार वृद्ध वयस्क और किसी भी आयु के लोग जिनके पास गंभीर अंतर्निहित चिकित्सा स्थितियां हैं, COVID -19 से गंभीर बीमारी के लिए उच्च जोखिम हो सकता है, इसलिए 48 वर्ष से अधिक आयु के ऐसे अधिकारी को किसी भी तनावपूर्ण कार्य वातावरण में तैनात नहीं किया जाना चाहिए, COVID-19 रोगियों के सीधे संपर्क में जो आता है। यह प्रस्तुत किया गया था कि विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, जो अधिकारी मारे गए हैं, वे 50 वर्ष से अधिक आयु के हैं। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने राज्यों से ऐसे पुलिस अधिकारियों की पहचान करने और उन्हें COVID-19 संबंधित कर्तव्यों से मुक्त करने के लिए तत्काल अंतरिम दिशा-निर्देश मांगे थे जिन्हें किसी भी प्रशासनिक कार्य में नहीं लगाया जाना चाहिए। इसके अलावा, पुलिस कर्मियों की गंभीर कमी और इस तथ्य को दूर करने के लिए कि पुलिस कर्मी COVID 19 को अनुबंधित कर रहे है। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि सरकार के लिए कानून और व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए तदर्थ आधार पर कुछ व्यक्तियों की भर्ती करना उचित है। याचिका में साथ ही सरकार से पुलिस कर्मियों के लिए मास्क, दस्ताने और सैनिटाइज़र जैसे सुरक्षात्मक गियर की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सरकार से अपील की गई थी।


अपनी पसंद का नाम रखना अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा ,केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत किसी व्यक्ति के नाम को वैसे ही बोलना, जैसी उसका इच्छा है, उस व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। हाईकोर्ट ने कहा, "नाम रखना और उसे वैसे बोलना, जैसी उस व्यक्ति की इच्छा है, जिसका नाम लिया जा रहा है, निश्चित रूप से अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।" जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की बेंच ने एक लड़की की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। लड़की ने हाईकोर्ट से मांग की थी कि वह सीबीएसई को नाम में बदलाव के लिए दिए उसके आवेदन को अनुमति देने का निर्देश दें। मामले की पृष्ठभूमि मामले में केरल सरकार ने याचिकाकर्ता की नाम बदलने की इच्छा को स्वीकार कर लिया था। इस संबंध में 2017 में राजपत्र अधिसूचना भी जारी की गई, जिसके बाद जन्म प्रमाण पत्र सरकार द्वारा जारी अन्य दस्तावेज में याचिकाकर्ता का में नाम बदल दिया गया। हालांकि, जब तक यह प्रक्रियाएं हो पातीं, याचिकाकर्ता ने 2018 में माध्यमिक परीक्षा पास कर ली और सीबीएसई ने उसे स्कूल के रिकॉर्ड उपलब्ध पुराने नाम से प्रमाण पत्र जारी कर दिया। इसके बाद, उसने नाम में बदलाव के लिए स्कूल के प्रिंसिपल के माध्यम से आवेदन दाखिल किया, जिसे सीबीएसई ने परीक्षा उप-कानूनों के नियम 69.1 (i) का हवाला देते हुए खारिज कर दिया। नियम 69.1 (i) यह निर्धारित किया गया है कि, "उम्मीदवारों के नाम या उपनामों में परिवर्तन के आवेदनों पर विचार किया जाएगा, बशर्ते कि उम्मीदवार के नाम में पारिवर्तन को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया हो और सरकारी राजपत्र में इस सबंध में अधिसूचना जारी की जा चुकी हो।" सीबीएसई ने यह कहते हुए कि नाम में बदलाव का आवेदन परीक्षा के नतीजों के



प्रकाशन के बाद दिया गया है, इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। जांच के नतीजे अदालत ने पाया कि राज्य या उसके साधन किसी व्यक्ति द्वारा पसंद किए गए किसी भी नाम के उपयोग में या किसी व्यक्ति को अपनी पंसद का नाम बदलने में, "हाइपर-टेक्‍निकलिटी" के आधार पर रोड़ा नहीं बन सकते। "धोखाधड़ी और आपराधिक गतिविधियों या अन्य वैध कारणों की रोकथाम और विनियमन के सीमित कारणों को छोड़कर, सरकारी रिकॉर्डों में बिना किसी हिचकिचाहट के नाम बदलने की अनुमति दी जानी चाहिए।" नियम 69.1(i) के मसले पर कोर्ट ने कहा, उक्त नियम दो स्थितियों पर विचार करता है। पहला, जहां परीक्षा के नतीजों के प्रकाशन से पहले नाम में बदलाव होता है और दूसरा वह, जहां न्यायालय निर्देश देता है। कोर्ट ने कहा, "वाक्यांश-"उम्‍मीदवार के नतीजों के प्रकाशन से पहले कोर्ट ऑफ लॉ में और सरकारी राजपत्र में अधिसूचित किया जाता है" में शब्द 'और' यद‌ि एक संयोजक रूप में इस्तेमाल किया गया है तो इसका कोई मतलब नहीं है। यदि शब्द 'और' का उपयोग संयोजक के रूप में किया जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि कोर्ट द्वारा नाम बदलना स्वीकार कर लिए जाने के बाद भी उसे वैधता प्रदान करने के लिए सरकारी राजपत्र में अधिसूचित किया जाना चाहिए। हालांकि यह बकवास है।" कोर्ट ने माना कि नतीजों के प्रकाशन से पूर्व दो में एक शर्त का अनुपालन होना चाहिए। कोर्ट ने कहा, "फिलहाल किसी भी कानून में ऐसा नहीं कहा गया है कि कोर्ट एक नाम को स्वीकार कर ले तो उसे वैधता प्रदान करने के लिए सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किया जाना चाहिए। कोर्ट द्वारा नाम में बदलाव को स्वीकार किया जाना ही दुनिया में घोषणा करने के लिए एक आदेश है कि व्यक्ति का नाम बदल दिया गया है। सरकारी राजपत्र में प्रकाशन द्वारा नाम बदलने की अधिसूचना दुनिया को यह बताने का एक और तरीका है कि नाम में बदलाव हो चुका है। दोनों अलग-अलग तरीके हैं और एक दूसरे के पूरक नहीं हैं।" कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पेन्टियाह बनाम मुदल्ला वीरमल्लप्पा (AIR 1961 SC 1107) के फैसले पर भरोसा किया और कहा, "आम तौर पर शब्द 'और' को शाब्दिक अर्थ में संयोजक के रूप में स्वीकार किया जाता है। हालांकि, अगर 'और' संयोजक के रूप में उपयोग बेतुका या दुरूह परिणाम दे है, तो अदालत के पास 'और' शब्द की व्याख्या का अधिकार है, ताकि नियम बनानें वालों के इरादे पर अमल किया जा सके।" मौजूदा मामले में, वर्ष 2018 में CBSE द्वारा परीक्षा परिणाम के प्रकाशन से पहले ही वर्ष 2017 में याचिकाकर्ता के नाम में बदलाव की सूचना गजट नोटिफिकेशन प्रकाशित हो चुकी थी। अदालत ने कहा कि, इस प्रकार नियम 69.1 के तहत निर्धारित की गई शर्त का (i) गजट अधिसूचना प्रकाशित होने के साथ ही अनुपालन हो चुका था, इसलिए बोर्ड याचिकाकर्ता के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए बाध्य था। कोर्ट ने कहा कि कि याचिकाकर्ता को एक "हाइपर-टेक्न‌िकेलिटी" के आधार पर याचिकाकर्ता को मौलिक अधिकार का उपयोग करने वंचित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने उप कानूनों के नियम 69.1 (ii) पर भी ध्यान दिया, जिसके अनुसार उम्मीदवार के नाम में सुधार के आवेदन को नतीजों की घोषणा की तारीख के 5 साल के भीतर ही स्वीकार किया जाएग, बशर्ते कि आवेदन संस्था प्रमुख द्वारा अग्रेषित किया जाए। मौजूदा मामले में कोर्ट ने कहा, "Ext. P6 में यह देखा जा सकता है कि संस्था के प्रमुख ने नतीजों के प्रकाशन की तारीख से 16 महीने के भीतर याचिकाकर्ता का नाम बदलने का आवेदन अग्रेषित कर दिया था।" ऐसी स्थिति में उत्तरदाता सीबीएसई के रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता के नाम को बदलने के लिए बाध्य था।


'मुंबई पुलिस और कांग्रेस इको-सिस्टम कर रहा है मिलकर काम'' बांद्रा प्रवासी घटना का सांप्रदायिकरण करने के आरोप में दर्ज नई FIR को अर्नब गोस्वामी ने रद्द करने की मांग

एक बार फिर रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी ने शीर्ष अदालत का रुख किया है। उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज एक नई एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। अर्नब पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने प्राइम टाइम शो में बांद्रा प्रवासी घटना का सांप्रदायिकरण किया है। महत्वपूर्ण बात ये है कि एक दिन पहले ही महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था कि पत्रकार पुलिस को ''धमका'' रहा है और जांच में बांधा ड़ाल रहा है, इसलिए उसको ऐसा करने से रोका जाए। जिस एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई है, उसे रजा एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी के सचिव इरफान अबुबकर शेख ने दर्ज करवाया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि गोस्वामी ने 14 अप्रैल को मुंबई के बांद्रा में इकट्ठे हुए प्रवासी कामगारों को ''एक्टर्स'' शब्द से नामित किया था, जिन्हें वहां राष्ट्र-विरोधी तत्वों ने एकत्रित किया था। शेख ने मुम्बई के पयधोनी पुलिस स्टेशन में यह प्राथमिकी दर्ज करवाई है, जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना), धारा 153ए (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), धारा 295ए (नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं का अपमान) के साथ-साथ धारा 500, 505 (2), 511 और 120 बी के तहत दर्ज की गई थी। इस FIR को खारिज करने के लिए दी गई दलील डबल जियोपार्डी के सिद्धांत पर टिकी हुई है। जिसके अनुसार एक समान कार्य या एक्ट पर पुलिस कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकती है , जैसा कि पहले ही वर्तमान रिट याचिका में स्थापित किया गया है। गोस्वामी ने अपनी याचिका में कहा है कि- ''उन परेशानियों को स्पष्ट तौर पर महूसस किया जा सकता है जिनका सामना मुम्बई पुलिस इस मामले में याचिकाकर्ता को फ्रेम करने की कोशिश में कर रही है। पुलिस याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए अभी कुछ और आधार भी बना रही है। मुंबई पुलिस ने प्रतिवादी नंबर तीन की तरफ से दायर एक शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की है। जो पूरी तरह झूठी, प्रतिशोधी, तुच्छ, दुर्भावनापूर्ण और दुर्भावना से उपजी हुई है।'' इसके अलावा, गोस्वामी ने प्राथमिकी में लगाए उन आरोपों को भी खारिज किया है जो उनके चैनल द्वारा की गई जांच के संदर्भ में लगाए गए थे। ''रिपब्लिक टीवी ने एक सभा के संबंध में महाराष्ट्र राज्य में पैदा हुए एक नकली प्रवासी संकट का खुलासा किया था'' ,जिसने ''कांग्रेस पार्टी इको सिस्टम'' को उजागर कर दिया है। गोस्वामी ने कहा कि- '' रिपब्लिक टीवी यह सुनिश्चित करने के लिए सच्चाई या सही तथ्यों की रिपोर्ट कर रहा था कि लोगों के बीच कोई अनुचित घबराहट नहीं थी। परंतु कांग्रेस पार्टी इको सिस्टम लोगों को भड़का रहा था और नकली प्रवासी संकट के बारे में झूठे समाचार फैला रहा था।'' गोस्वामी ने कहा कि यह स्पष्ट है कि उसके खिलाफ ''कुछ राजनीतिक और निहित स्वार्थों के इशारे पर कई शिकायतें दर्ज की जाएंगी'' ताकि अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 21 के तहत गारंटीकृत उसके संवैधानिक अधिकारों को दबाया जा सकें। इस संबंध में दलील देते हुए बताया गया कि इसी कारण उनके खिलाफ देश भर में कई प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि- ''.... भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों और उनके समर्थक द्वारा विभिन्न राज्यों में एक साथ कई शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। वहीं याचिकाकर्ता को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग करते हुए एक आॅन लाइन आंदोलन भी चलाया गया है, जिसमें घृणित हैशटैग #ArrestAntiIndiaArnab का प्रयोग किया गया है।'' इसलिए गोस्वामी ने दलील दी है कि नागपुर में उनके खिलाफ दर्ज किए गए केस के बाद अगर कोई जांच शुरू की गई है तो उसे रद्द कर दिया जाए और और महाराष्ट्र राज्य के ''सेवकों और एजेंटों'' के इशारे पर किसी भी नई प्राथमिकी के पंजीकरण को निषिद्ध कर दिया जाए। 24 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और जम्मू-कश्मीर राज्यों में उनके खिलाफ दायर एफआईआर के आधार पर गिरफ्तारी से तीन सप्ताह की सुरक्षा प्रदान की थी। यह एफआईआर सांप्रदायिक बयान देने और सोनिया गांधी की मानहानि करने के आरोप में दर्ज करवाई गई थी। प्रतिवादी ने उनके परिवार के साथ-साथ रिपब्लिक टीवी के सहयोगियों के लिए भी सुरक्षा मांगी है। यह याचिका अधिवक्ता प्रज्ञा बघेल ने दायर की है।


 


मंगलवार, 5 मई 2020

जनहित याच‌िका में आरोप, नागपुर में नहीं हो रहा सरकार के निर्देशों का पालन, अधिकारी मनमाने तरीके से लोगों को क्वारंटीन कर रहे

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने रविवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई की, जिसमें COVID 19 के संबंध में केंद्र सरकार/ ICMR द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करने करने का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया था कि यह अति-आवश्यक मामला है, जिसकी तात्कल सुनवाई की जाए। याचिका में यह भी आरोप लगाया था कि अधिकारी नागपुर के विशेष इलाकों से लोगों को बेतरतीब तरीके से उठा रहे हैं और उन्हें क्वारंटीन सेंटर में डाल रहे थे। भले ही वे संक्रमित हों या न हों। जस्टिस अनिल एस किलोर ने मामले में जवाब दाखिल करने के लिए महाराष्ट्र सरकार, भारत सरकार और नागपुर महानगरपालिका को मंगलवार तक का समय दिया है। याचिकाकर्ता के वकील डॉ तुषार मांडलेकर ने कहा कि अधिकारी नागपुर शहर के 'सतरंजीपुरा' और 'मोमिनपुरा' इलाकों से लोगों को बेतरतीब तरीके से उठा रहे हैं और उन्हें



क्वारंटीन कर रहे हें, जबकि न वे न 'हाई-रिस्क कॉन्टेक्ट्स' की श्रेणी में शामिल हैं, और न 'लो रिस्क कॉन्टेक्ट्स' की। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति उक्त श्रेणियों में से किसी में भी शामिल नहीं है तो उन्हें क्वारंटीन करना संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है। केंद्र सरकार और ICMR की ओर से समय-समय पर जारी किए गए दिशानिर्देशों का उल्लेख करते हुए मांडलेकर ने कहा कि प्रतिवादी प्राधिकरण उपरोक्त दो क्षेत्रों से लोगों को उठा रहा है और उन्हें एमएलए हॉस्टल और विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (वीएनआईटी) में क्वारंटीन किया जा रहा है, जबकि ये सेंटर भीड़-भाड़ वाले इलाकों में स्थित है। उन्होंने कहा, दिशा-निर्देशों के अनुसार, समुदाय आधारित सुविधाओं में क्वारंटीन की सुविधा, भीड़भाड़ वाले और आबादी वाले क्षेत्रों से दूर, शहरी क्षेत्र के बाहरी इलाके में रखी जाएगी। जस्टिस किलोर ने याचिकाकर्ता की जानकारी के स्रोत के संबंध में पूछताछ की, जिस पर मांडलेकर ने कहा कि याचिका‌ समाचारों पर आधारित है और उनका मुवक्किल उन समाचारों का सत्यापन नहीं कर सकता क्योंकि उसे उक्त क्षेत्रों में प्रवेश की अनुमति नहीं है। नागपुर महानगर पालिका (NMC) की ओर से पेश अधिवक्ता सुधीर पुराणिक ने कहा कि उन्हें याचिका की प्रति आज ही दी गई है, इसलिए वह केवल मौखिक निर्देश ले सकते हैं। उनके निर्देशों के अनुसार, उन मरीजों को क्वारंटीन किया जा रहा है, जो 'हाई-रिस्क कॉन्टेक्ट्स' की श्रेणी में हैं। निगम COVID-19 के संबंध में जारी दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन कर रहा है। मामले में सरकारी अधिवक्ता एसवाई देवपुजारी, राज्य सरकार की ओर से एडिसनल सॉलिसिटर जनरल यूएम औरंगाबादकर भारत सरकार की ओर से पेश हुए। एनएमसी ‌की ओर से डॉ प्रवीण गंटावर भी सुनवाई में शाामिल हुए। उन्होंने बताया कि लोगों को क्वारंटीन करने से पहले इस दिशा-निर्देशों के अनुसार हर सावधानी बरती गई है। डॉ गंटावर ने कहा, "जिन्हें क्वारंटीन किया गया है, वे 'हाई-रिस्क कॉन्टेक्ट्स' की श्रेणी में शामिल हैं। COVID-19 की श्रृंखला को तोड़ने और नागपुर शहर के नागरिकों के हित में, ऐसे कदम उठाए गए हैं।" मांडलेकर ने कहा कि प्राध‌िकरण नागपुर शहर के लोगों के हित में काम कर रहे हैं और जो भी कदम उठा रहे हैं वह नागपुर शहर के हित में हैं और COVID-19 की श्रृंखला को तोड़ने के इरादे से उठाया गया है। उन्होंने कहा कि वह भीड़भाड़ वाले इलाकों में लोगों को क्वारंटीन किए जाने से चिंतित हैं, इससे इन इलाकों आसपास रहने वाले लोगों को भी संक्रमण होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। प्रतिवादियों की ओर से पेश वकीलों ने अदालत से दो दिन का समय मांगा ताकि याचिका में लगाए गए आरोपों के संबंध में स्थिति स्पष्ट कर सकें। अदालत ने जवाब दाखिल करने के लिए 5 मई तक का समय दिया है।


विदेश में फंसे भारतीय नागरिकों की वापसी पर केंद्र सरकार ने लिया फैसला, चरणबद्ध तऱीके से 7 मई से होगी वापसी

भारत सरकार ने सोमवार को कहा कि वह चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन के दौरान विदेश में फंसे भारतीय नागरिकों की वापसी की सुविधा देगी, जिसके लिए विमान और नौसेना के जहाजों द्वारा यात्रा की व्यवस्था की जाएगी। यात्रा 7 मई से चरणबद्ध तरीके से शुरू होगी। गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस संबंध में मानक संचालन प्रोटोकॉल (एसओपी) तैयार किया गया है। भारतीय दूतावास और उच्च आयोग फंसे हुए भारतीय नागरिकों की सूची तैयार कर रहे हैं। यह सुविधा भुगतान-आधार पर उपलब्ध कराई जाएगी। हवाई यात्रा के लिए गैर-अनुसूचित वाणिज्यिक उड़ानों की व्यवस्था की जाएगी। फ्लाइट लेने से पहले यात्रियों की मेडिकल स्क्रीनिंग की जाएगी। स्क्रीनिंग में पास यात्रियों को यात्रा करने की अनुमति होगी। यात्रा के दौरान, इन सभी यात्रियों को प्रोटोकॉल का पालन करना होगा, जैसे स्वास्थ्य मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए स्वास्थ्य प्रोटोकॉल। गंतव्य तक पहुंचने पर सभी को आरोग्य सेतु ऐप पर पंजीकरण करना होगा। सभी की मेडिकल रूप से स्क्रीनिंग की जाएगी। जांच के बाद, उन्हें संबंधित राज्य सरकार द्वारा भुगतान के आधार पर अस्पताल में या संस्थागत क्वारन्टीन में 14 दिनों के लिए रखा जाएगा। COVID परीक्षण 14 दिनों के बाद किया जाएगा और स्वास्थ्य प्रोटोकॉल के अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी। विदेश मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय जल्द ही अपनी वेबसाइटों के माध्यम से इसके बारे में विस्तृत जानकारी साझा करेंगे। राज्य सरकारों को व्यवस्था बनाने के लिए सलाह दी जा रही है, जिसमें टेस्ट, क्वारन्टीन और अपने राज्यों में वापसी करने वाले भारतीयों की आवाजाही शामिल है। कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं, जो विदेशों से भारतीयों को वापस लाने के लिए निर्देश की मांग रही हैं।


सोमवार, 4 मई 2020

3 मई अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता स्‍वतंत्रता दिवस पर विशेष

'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस' प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए पत्रकारों को श्रद्धांजलि देने का दिन है



अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्‍वतंत्रता दिवस प्रत्येक वर्ष ३ मई को मनाया जाता है. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है. भारत में अक्सर प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा होती रहती है.3 मई को मनाए जाने वाले विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारत में भी प्रेस की स्वतंत्रता पर बातचीत होना लाजिमी ह.  प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है.


दवाई दुकानों की गई जांच-पड़ताल, SDO ने कहा- डॉक्टर के पर्चे पर ही दवा दें

रांची: वैश्विक महामारी घोषित कोविड-19 के प्रसार के रोकथाम के लिए पूरे रांची जिले में लॉकडाउन जारी है. इस दौरान पूरे रांची जिला अन्तर्गत केवल आवश्यक सामग्रियों की दुकानों का संचालन करने की अनुमति है. आज, रविवार को अनुमण्डल पदाधिकारी रांची के निदेशानुसार प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट एवं पुलिस अधिकारियों की संयुक्त टीम के द्वारा पूरे रांची के विभिन्न हिस्सों में दवाई दुकानों का निरीक्षण किया गया.लॉकडाउन के दौरान ऐसी सूचनाएं प्राप्त हो रही थी कि शराब की दुकानें बंद होने के कारण कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा दवाई दुकानों से कॉरेक्स ले कर उसका सेवन नशीले पदार्थ के तौर पर किया जा रहा है. इस पर संज्ञान लेते हुए अनुमण्डल पदाधिकारी रांची लोकेश मिश्रा ने मजिस्ट्रेट की प्रतिनियुक्ति कर पुलिस बल के साथ शहर भर की दवाई दुकानों के निरीक्षण का निर्देश दिया जिस पर टीम ने आज शहर के विभिन्न हिस्सों में दवाई दुकानों का निरीक्षण किया. इस दौरान संचालक-मालिक से दुकान में मौजूद दवाइयों का स्टॉक रजिस्टर मांगा गया. साथ ही इसके आधार पर दुकान में उपलब्ध संबंधित दवाइयों की मिलान कर जांच की गई. इसके अतिरिक्त स्टोर के रशीद पंजी इत्यादि सहित सिर्फ प्रेस्क्रिप्शन के आधार पर दवाइयों को उपलब्ध करवाया जा रहा है या नहीं, इस संबंध में जरूरी कागजातों की भी जांच की गई.जांच के दौरान अधिकारियों ने सभी दवा विक्रेताओं को इस सम्बंध में सख्त हिदायत भी दी कि बिना डॉक्टर के लिखित प्रेस्क्रिप्शन किसी को भी दवाई उपलब्ध न करवाई जाए. ऐसा करते हुए पकड़े जाने पर न केवल उनकी दुकान सील की जा सकती है अपितु सुसंगत धाराओं के तहत कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी.