गुरुवार, 14 मई 2020

कुछ समय के लिए जजों और वकीलों को गाउन और रोब पहनना छोड़ना चाहिए, मुख्य न्यायाधीश

चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने बुधवार को एक सुनवाई के दौरान कहा कि जल्द ही सुप्रीम कोर्ट से निर्देश जारी किए जाएंगे कि वे ड्रेस कोड से गाउन और रोब को हटाएं। मुख्य न्यायाधीश ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि जजों, वकीलों को कुछ समय के लिए जैकेट और गाउन नहीं पहनना चाहिए क्योंकि यह "वायरस को पकड़ना आसान बनाता है। परिवर्तन के दौर से गुजर रही कानूनी दुनिया के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश का यह बयान कल जज के



आवास के बजाय सुप्रीम कोर्ट परिसर में कोर्ट के बैठने के बाद आया है। Also Read - COVID-19: 'सुरक्षा उपायों के निष्पादन संबंधी शिकायत सक्षम प्राधिकारी से करें' इलाहाबाद हाइकोर्ट ने बोर्ड परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन... मंगलवार को जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की एक बेंच सुप्रीम कोर्ट बिल्डिंग के कोर्ट नंबर 4 में इकट्ठा हुई और अपने संबंधित चैंबर (एस) से बेंच को संबोधित करने वाले वकीलों के साथ वीडियोकांफ्रेंसिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई की। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने कहा, हाँ। यह एक" पायलट प्रोजेक्ट है "। हम अगले सप्ताह से अदालतों में इकट्ठा होंगे, जबकि वकील अपने चैम्बरों से पीठ को संबोधित करना जारी रख सकते हैं।


RBI की सहमति के बिना भारत में पेमेंट बिज़नेस शुरू नहीं करेंगे,व्हाट्सएप

व्हाट्सएप इंक ने बुधवार को शीर्ष अदालत में एक अंडर टैकिंग दिया, जिसमें कहा गया कि वह भुगतान के मानदंडों का पालन किए बिना भारत में पेमेंट सेवा का परिचालन शुरू नहीं करेगा। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने आरबीआई की अनुमति पर व्हाट्सएप और फेसबुक से प्रतिक्रिया मांगी, जो यूपीआई नेटवर्क को सक्षम करके भुगतान की अनुमति देता है। अदालत गुड गवर्नेंस चैम्बर्स (जी 2 चेम्बर्स) नामक एक एनजीओ द्वारा सोशल मीडिया दिग्गज व्हाट्सएप को यूपीआई के माध्यम से भारतीय डिजिटल पेमेंट बाजार में अपने संचालन का विस्तार करने के लिए अनुमति नहीं देने के लिए प्रार्थना करते हुए एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी। Also Read - चुनाव में



अयोग्य करार गुजरात के मंत्री भूपेंद्रसिंह चुड़ास्मा ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल प्रतिवादी (यों) के लिए पेश हुए और अदालत को आश्वासन दिया कि व्हाट्सएप बिना आरबीआई की अनुमति के पेमेंट माध्यम से व्यापार का विस्तार / आरंभ नहीं करेगा। इस बिंदु पर बेंच ने कहा कि तत्काल जनहित याचिका की पेंडेंसी आरबीआई की अनुमति देने के रास्ते में नहीं आती है और 3 सप्ताह के बाद मामले को सूचीबद्ध किया जाता है। याचिकाकर्ता ने बताया था राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा G2 चेम्बर्स ने भारत के UPI सिस्टम के अनिवार्य दिशानिर्देशों और नियामक मानदंडों का पालन करने के लिए व्हाट्सएप के कथित उल्लंघन को उजागर करते हुए याचिका दायर की थी और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा बताया था। Also Read - COVID 19 महामारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वक़ीलों को ड्रेस कोड में छूट दी याचिकाकर्ता ने कहा कि व्हाट्सएप को नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की ओर से भारत में अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अनुमति दी गई थी जिसमें भारत की नागरिक नीति और नागरिकों की सार्वजनिक नीति और कल्याण की पूरी तरह से अवहेलना और उल्लंघन हुआ। याचिका में फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप और रिलायंस (फेसबुक-जियो डील) के बीच अरबों डॉलर के सौदे पर जोर दिया गया जो इन कंपनियों को विशाल भारतीय बाजार तक पहुंच प्रदान करेगा। याचिका के तर्क हैं, "व्हाट्सएप प्लेटफ़ॉर्म सुरक्षा उल्लंघनों से ग्रस्त है और उसने अपने उपयोगकर्ता के डेटा को अपने स्वयं के वित्तीय लाभ के लिए दांव पर लगाया है, जैसा कि पहले से ही रिट याचिका में विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा, वर्तमान महामारी के समय, फेसबुक के 267 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ताओं का डेटा (प्रतिवादी संख्या 10) डार्क वेब (ओवरले ऑनलाइन नेटवर्क) पर बेचे जाने की सूचना मिली थी, जो कि अपने आप में राष्ट्रीय डेटा सुरक्षा की गंभीर चिंता है। इसके अतिरिक्त, कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन के मद्देनजर डिजिटल भुगतान इंटरफेस पर भारतीयों की निर्भरता पर प्रकाश डाला गया है जहां ऑनलाइन माध्यम से यूटिलिटी बिलों और ऑनलाइन खरीद और पेमेंट आम हो गया है। "इससे टैक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ता है और इस प्रकार यह बड़ा डेटा जनरेट करता है। इस प्रकार, डेटा वर्तमान स्थिति में पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। इस स्थिति के तहत, रिस्पोंडेंट नंबर 10 और रिलायंस जियो के बीच उपरोक्त सौदे से इसके डिजिटल भुगतान और ई-कॉमर्स क्षेत्र में संचालन में तेजी आने की सूचना है। याचिका के अंश उपरोक्त के मद्देनजर, याचिकाकर्ता ने कहा है कि व्हाट्सएप के हाथों बैंकिग की जानकारी और भुगतान डेटा की इस अनियमित पहुंच का मतलब होगा लाखों भारतीय बैंक खातों और पासवर्ड से समझौता करना। इस मुद्दे की तात्कालिकता की ओर इशारा करते हुए, याचिकाकर्ता ने कहा है कि यह उचित है कि व्हाट्सएप को अनुमति नहीं दी जाए क्योंकि "नियामक और बैंक भी तत्काल मदद नहीं दे पाएंगे क्योंकि यह डेटा संसाधित और देश से बाहर संग्रहीत है। याचिकाकर्ता के लिए श्री कृष्णन वेणुगोपाल, वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ श्री दीपक प्रकाश, श्री यासिर रऊफ, सुश्री.सुना जैन और श्री गौरव शर्मा (एओआर) उपस्थित हुए।


मंगलवार, 12 मई 2020

सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जौनपुर द्वारा मोहम्मद हसन इंटर कॉलेज सुखीपुर जौनपुर में स्थापित क्वॉरेंटाइन सेंटर का निरीक्षण किया गया

माननीय मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय इलाहाबाद/मुख्य संरक्षक उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना (कोविड-19) के संक्रमण को रोकने के लिए जिले में स्थापित क्वॉरेंटाइन सेंटर में उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं एवं समस्याओं की वस्तुस्थिति की प्रभावी देख-रेख की कार्यवाही सुनिश्चित कराए जाने के निर्देश के अनुपालन में



माननीय जनपद न्यायाधीश/अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जौनपुर के आदेशानुसार आज 12 मई को मोहम्मद हसन इंटर कॉलेज सुखीपुर जौनपुर में स्थापित क्वॉरेंटाइन सेंटर का निरीक्षण सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जौनपुर द्वारा किया गया। सेंटर में उपस्थित व्यक्तियों से विस्तारपूर्वक विभिन्न बिंदुओं पर जानकारी प्राप्त की गई, अधिकांश व्यक्ति ट्रेन द्वारा गुजरात से आए बताएं जिसमें अधिकांश लोगों की पूर्व में अन्य जगहों पर जांच की गई है सभी स्वस्थ हैं। पूछे जाने पर किसी के द्वारा विधिक सहायता की आवश्यकता होना नहीं बताया गया। प्रभारी अधिकारी क्वॉरेंटाइन सेंटर को निर्देशित किया गया कि आप चिकित्सा विभाग से संपर्क स्थापित कर व्यक्तियों की नियमित शारीरिक, मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य की जांच कराते रहें तथा व्यक्तियों के बीच उचित सामाजिक दूरी, साफ-सफाई की व्यवस्था, खानपान की व्यवस्था पर विशेष रूप से ध्यान रखा जाना सुनिश्चित करें। प्रभारी अधिकारी को बताया गया कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की विधिक सहायता की आवश्यकता होने पर तुरंत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को अवगत कराना सुनिश्चित करें ताकि उन्हें निरूशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराई जा सके।
                                                    


जिलाधिकारी ने समस्त उपजिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी एवं थानाध्यक्षों को दिए निर्देश

 जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह ने समस्त उपजिलाधिकारी एवं थानाध्यक्षों को निर्देश देते हुए  कहा है कि इस समय बड़ी संख्या में महाराष्ट्र, गुजरात व अन्य राज्यों से लोग आ रहे हैं, कुछ लोग चोरी-छिपे आ रहे हैं और कुछ ट्रेन से आ रहे हैं,



कुछ बसों से तथा कुछ पैदल भी आ रहे हैं । ऐसे लोगो को गांव में जाकर इन्हें अपने घरों में 21 दिन होम क्वॉरेंटाइन में अनिवार्य रूप से रहना सुनिश्चित कराये, जिससे कि यदि वे संक्रमित हो तो उनकी वजह से दूसरे संक्रमित न होने पाए। सभी थानाध्यक्ष गांव में अपना भ्रमण बढ़ा दें और इस निर्देश का अक्षरशः पालन कराएं। प्रत्येक थानाध्यक्ष और उनके अधीनस्थ उपनिरीक्षक 5-5 गांव का भ्रमण करे । भ्रमण के समय थानाध्यक्ष गांव में गठित निगरानी समिति एवं नगर क्षेत्र में गठित वार्ड समिति के साथ बैठक भी करें। गांव में व्यापक प्रचार-प्रसार भी करें तथा गांव के लोगों द्वारा उनको व्यक्तिगत तौर पर मोबाइल पर या व्हाट्सएप पर या अन्य किसी माध्यम से इस तरह की कोई सूचना दी जाती है, तो तत्काल होम क्वॉरेंटाइन का पालन न करने वाले के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें तथा आवश्यकतानुसार एपिडेमिक आपदा प्रबंधन अधिनियम एवं आईपीसी के अंतर्गत संक्रमण फैलाने के आरोप में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज की जाए। इसमें कोई लापरवाही न हो। प्रत्येक थानाध्यक्ष यह भी सुनिश्चित करें कि कोई प्रवासी श्रमिक यदि पैदल जा रहा है तो तत्काल उसे निकट के शेल्टर होम में पहुंचाया जाए। कोई श्रमिक पैदल न जाए उसकी व्यवस्था उपजिलाधिकारी द्वारा शासनादेश के अनुसार की जाएगी।  उप जिला मजिस्ट्रेट/क्षेत्राधिकारी भी अपने-अपने क्षेत्र में सतर्कता बरतेंगे एवं किसी गांव से कोई सूचना मिलने पर तत्काल थाने की टीम गांव में अवश्य भेजेंगे तथा होम क्वॉरेंटाइन का पालन करेंगे। मुख्य विकास अधिकारी द्वारा कंट्रोल रूम के माध्यम से प्रतिदिन प्रत्येक थाने से भ्रमण की रिपोर्ट ली जाएगी तथा कितने मामले में गांव से होम क्वॉरेंटाइन का पालन न करने की सूचना मिली तथा कितने में कार्रवाई की गई इसका भी विवरण इन कंट्रोल रूम को थाने से भेजा जाएगा।  जनपद में विभिन्न बॉर्डर से विभिन्न जिलों से बसों में लोग प्रवेश कर रहे हैं क्योंकि हर जिले में ट्रेन से लोग आ रहे हैं और वहां से बसों में बैठकर के जिले में भेजे जा रहे हैं। सभी उपजिलाधिकारी अपने बॉर्डर पर बनाए गए शेल्टर होम में सबसे पहले उन बसों को लाएंगे और उनकी पूरी लिस्ट इन निर्धारित प्रारूप पर करेंगे तथा एक-एक व्यक्ति की थर्मल स्कैनिंग कराएंगे तथा उनमें से कुछ के सैंपल भी लिए जाएंगे अगर उनमें लक्षण नहीं होते हैं तो उन्हें 21 दिन के होम क्वॉरेंटाइन करने के लिए घर भेज दिए जाएगा। इसमें किसी प्रकार की लापरवाही न हो, सभी उपजिलाधिकारी पूरी तरह से सतर्क हो जाएं और बॉर्डर पर 24 घंटे, 8 - 8 घंटे की ड्यूटी लगाकर रखें और वहीं पर पास के स्कूल को शेल्टर होम बना दें। बसों से आ रहे या पैदल आ रहे या अन्य साधन से आ रहे प्रवासी श्रमिक को उपरोक्त अनुसार कार्रवाई की जाए। शेल्टर होमवार पूरी सूचना रखी जाए और इसकी नियमित अपलोडिंग भी पोर्टल पर की जाए। इन सभी प्रवासी श्रमिकों को खाद्यान्न का पैकेट देकर घर भेजा जाए। यह भी सुनिश्चित किया जाए कि जितनी रास्ते आपकी तहसील क्षेत्र में दूसरे जिलों से प्रवेश करते हैं उन पर सब लेखपाल व कानूनों की ड्यूटी लगा कर हर हाल में लगा दी जाए, जिससे कि कोई व्यक्ति या बस जो आ रही है वह बिना शेल्टर होम में जाए और बिना स्वास्थ्य परीक्षण किए जाने न जाने पाए। मुख्य राजस्व अधिकारी इनका परीक्षण करेंगे जो कि नोडल अधिकारी इस कार्य के लिए हैं सुनिश्चित करेंगे कि 1-1 बस जो दूसरे जनपद से आ रही है उनका हिसाब पूरी तरह से रखा जाए।             


मेडिकल ग्राउंड पर डीपी यादव की ज़मानत अर्ज़ी पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी किया

उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक डीपी यादव के मेडिकल ग्राउंड पर जमानत मांगने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को नोटिस जारी किया है।



हत्या के मामले में देहरादून जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे यादव को पहले गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में स्पाइनल सर्जरी करवाने के लिए अंतरिम जमानत दी गई थी।


इस सर्जरी के बाद 6 दिसंबर, 2018 को यादव ने वापस जेल में आत्मसमर्पण कर दिया था। फरवरी 2019 में, चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत की एक और याचिका जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना के साथ भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने खारिज कर दी थी।


उस समय हालांकि न्यायालय याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं था, लेकिन जेल अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिये थे कि यादव के इलाज की जरूरत का ध्यान रखते हुए कानून के अनुसार आवश्यक कदम उठाए जाएं।


आज, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने यशोदा अस्पताल के दस्तावेजों पर ध्यान दिया, जो यादव का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता विक्रम चौधरी द्वारा प्रस्तुत किए गए थे।


चौधरी बेंच को बताया कि राज्य याचिका का निराधार विरोध कर रहा है। इस पर बेंच राज्य का पक्ष सुनना चाहा और सीबीआई को नोटिस जारी किया। इस मामले को अब अगले सप्ताह सुनवाई के लिए लिया जाएगा।


2015 में यादव को देहरादून की सीबीआई अदालत ने गाजियाबाद के दादरी क्षेत्र से विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या में भूमिका के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।


पुलिस ने अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर काम किया" : केरल हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी 7 साल से कम उम्र के बच्चों के ख़िलाफ़ आपराधिक सुनवाई स्थगित की

केरल हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक मामले में जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम के उल्लंघन पर कड़ा रुख अपनाते हुए सात साल से कम उम्र के तीन बच्चों के ख़िलाफ़ आपराधिक सुनवाई को स्थगित कर दिया। अदालत ने सभी संबंधित अधिकारियों से इस मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष पेश करने को कहा है। इस मामले को एक रिट याचिका द्वारा हाईकोर्ट के संज्ञान में लाया गया जिसमें आरोपी बच्चों के ख़िलाफ़ मामले को आईपीसी की धारा 82 के तहत "अपराध करने की स्थिति में नहीं होने" के आधार पर निरस्त करने की मांग की गई। इस मामले में सात साल से कम उम्र के तीन बच्चों के ख़िलाफ़ उसी उम्र की एक बच्ची के साथ बलात्कार का आरोप लगाया गया है। वीडियो कंफ्रेंसिंग के माध्यम मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बेचू कुरीयन थोमस यह जानकर विस्मित थे कि इन बच्चों को न केवल जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम, 2015 के तहत जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष नहीं पेश किया गया बल्कि संबंधित एसएचओ ने इन बच्चों को पहचान परेड के लिए भी बुलाया।



अदालत ने कहा,


" हालांकि, पीडिता की पीड़ा को अदालत समझती है, लेकिन फिर भी क़ानून से उलझे बच्चों के ख़िलाफ़ जेजे अधिनियम के तहत कार्रवाई होनी है न कि किसी ख़ूंख़ार अपराधी की तरह।"


अधिकारियों के इस अक्षम्य व्यवहार पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए न्यायमूर्ति थोमस ने कहा कि क़ानून से उलझने वाले बच्चों को आवश्यक रूप से जेजे अधिनियम के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।


अदालत ने कहा,


"…जब क़ानून से उलझने पर किसी बच्चे को आईपीसी या किसी अन्य क़ानून के तहत पकड़ा जाता है, तो जो अधिकारी उस बच्चे को पकड़ता है उसे जेजे अधिनियम की धारा 10 के तहत प्रावधानों का पालन करना होता है, लेकिन इस मामले में इस अदालत को यह देखकर गहरा दुःख हुआ है कि एसएचओ, जो कि इस मामले में चौथा प्रतिवादी है, उसने प्रतिवादी के साथ-साथ अन्य बच्चों को फ़ोटो के साथ अपने सामने हाज़िर होने और पहचान परेड में शामिल होने को कहा। इन बच्चों को अभी तक बोर्ड के समक्ष पेश नहीं किया गया है। अगर यह बात सही है, तो यह अक्षम्य है।"


अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया एसएचओ ने अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर काम किया विशेषकर उसने जेजे अधिनियम का उल्लंघन किया है।


अदालत ने कहा कि इस कथित अपराध को हुए छह माह बीत चुके हैं, लेकिन इन बच्चों को अभी तक जेजे बोर्ड के समक्ष पेश नहीं किया गया है। यह परेशान करने और अधिकारों के दुरुपयोग का मामला है।


अदालत ने कहा,


"इस मामले में सभी तरह की अगली कार्रवाई पर अंतरिम स्थगन लागू होगा और चौथे प्रतिवादी को निर्देश दिया जाता है कि वह इस मामले के रिकॉर्ड को जेजे बोर्ड के समक्ष बिना किसी और देरी के रखे…।"


अन्य बातों के अलावा अदालत ने अभियोजन महानिदेशक को कहा है कि वह इस मामले के बारे में निर्देश प्राप्त करें और अलपुझा ज़िले के पोक्सो मामलों के विशेष लोक अभियोजक की राय को इस अदालत के समक्ष 20 मई 2020 तक एक सील कवर में पेश करे। पुलिस ने इसी अधिकारी की सलाह पर यह कार्रवाई की है।


क्या मंदिर समिति किसी गैर-धार्मिक उद्देश्य के लिए दान कर सकती है?" केरल हाईकोर्ट ने गुरुवयूर देवास्वोम द्वारा मुख्यमंत्री राहत कोष में दान करने के खिलाफ याचिका को बड़ी पीठ के पास भेजा

केरल हाईकोर्ट ने संदेह जताया है कि क्या गुरुवयूर मंदिर की प्रबंध समिति गैर-धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान कर सकती है? इसी के साथ हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि वह इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखें ताकि इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जा सके।


न्यायमूर्ति शाजी पी चैली और न्यायमूर्ति एमआर अनीथा की खंडपीठ इस मामले में हिंदू भक्तों की तरफ से दायर उन कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी,जो COVID-19 स्थिति के मद्देनजर पांच मई 2020 को गुरुवयूर देवास्वोम की समिति द्वारा मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में 5 करोड़ रुपये दान देने के खिलाफ दायर की गई थी।



सभी याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया मुख्य तर्क यह था कि गुरुवयूर देवास्वोम अधिनियम 1978 की धारा 11, 12 और 27 के अनुसार समिति मंदिर के फंड का उपयोग गुरुवयूर श्रीकृष्ण मंदिर की धार्मिक गतिविधियों के अलावा किसी अन्य काम के लिए नहीं कर सकती।


हालाँकि इस विषय पर केरल हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में दो परस्पर विरोधी निर्णय दिए जा चुके हैं। इसी के मद्देनजर हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले में बड़ी पीठ के पास भेजने का आग्रह किया है।


सीके राजन बनाम राज्य एआईआर 1994 केरल 179 मामले में हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने माना था कि मुख्यमंत्री राहत कोष में दिया गया पांच लाख रुपये का दान ''प्रशंसनीय उद्देश्यों'' के लिए था। परंतु यह अनधिकृत था, क्योंकि अधिनियम की धारा 27 ऐसे भुगतान करने के लिए प्रबंध समिति को अधिकृत नहीं करती है।


गुरुवयूर देवास्वोम प्रबंध समिति बनाम राजन, 2003 (3) केएलटी 618(एससी) मामले में शीर्ष न्यायालय ने उक्त निर्णय को बरकरार रखा था।


एक अन्य परस्पर विरोधी निर्णय में (अनिल वी बनाम केरल राज्य व अन्य डब्ल्यूपी (सी) नंबर 19035/2019) एक डिवीजन बेंच ने पांच करोड़ रुपये के दान को सही ठहराया था। यह दान 2019 में आई बाढ़ के दौरान दिया गया था।


इस फैसले में यह माना गया था कि धारा 21 (2) में उल्लिखित उद्देश्यों के लिए पर्याप्त प्रावधान करने के बाद व खंड (ए) से (जी) के तहत उल्लिखित उद्देश्यों में से सभी या किसी एक पर होने वाले व्यय को फंड में से निकाल लिया जाए तो उसके देवस्वाम प्रबंधकीय कमेटी द्वारा मुख्यमंत्री राहत कोष में दिए गए दान को अमान्य करार देने के लिए धारा 27 के प्रावधानों को एक प्रतिबंध या रोक के रूप में नहीं माना जाएगा।


पिछले दिनों ही बृजेश कुमार एम बनाम केरल राज्य व अन्य,डब्ल्यूपी(सी) नंबर 20495/2019 नामक मामले की सुनवाई की रही खंडपीठ को उक्त दोनों निर्णयों के विरोधाभास के बारे में अवगत कराया गया था। जिसके बाद इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया था।


इसीलिए वर्तमान में दायर सभी जनहित याचिकाओं को भी बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया है।


पीठ ने कहा कि-


''हमारा मानना है कि सभी रिट याचिकाओं को संदर्भित मामले या पहले से ही बड़ी पीठ के पास भेजे जा चुके मामलों के साथ सुना जाना चाहिए। इसलिए, रजिस्ट्री को निर्देशित किया जाता है कि वह इन सभी रिट याचिकाओं को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखें ताकि वह इस संबंध में उचित आदेश पारित कर सकें। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि दिया गया दान इन सभी रिट याचिकाओं के परिणाम के अधीन होगा।''


इसी बीच मंदिर समिति ने दलील दी कि वह फिलहाल सीएम के राहत कोष में कोई और राशि दान नहीं करेगी।


केस का विवरण-


केस का शीर्षक- ए नागेश बनाम केरल राज्य व अन्य (और अन्य जुड़ी हुई याचिकाएं)


केस नंबर-डब्ल्यूपी (सी) नंबर 9765/2020


कोरम-न्यायमूर्ति शाजी पी चैली और न्यायमूर्ति एमआर अनीथा


प्रतिनिधित्व-एडवोकेट राजेश चाकीत, सजीथ कुमार वी, डॉ वी.एन. शंकरजी, आर कृष्णराज, वी श्यामोहन और विष्णु प्रसाद नायर (याचिकाकर्ताओं के लिए) व अधिवक्ता टीके विपिनदास (गुरुवयूर देवस्वाम बोर्ड के लिए) और एडवोकेट बिमल के नाथ (सीनियर गवर्नमेंट प्लीडर के लिए)


 


गर्भवती लड़की को कलेक्टर उचित आश्रय, सुरक्षा एवं नि:शुल्क उपचार प्रदान करें', मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पिता की अपनी बेटी का गर्भपात कराने की अपील खारिज

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने मंगलवार (12-मई-2020) को इंदौर के कलेक्टर को यह आदेश देते हुए गर्भवती महिला के पिता की रिट अपील को ख़ारिज कर दिया कि लड़की को उचित आश्रय प्रदान किया जायेगा और उसे संपूर्ण उपचार, राज्य द्वारा नि:शुल्क प्रदान किया जाएगा, क्योंकि वह गर्भावस्था के अग्रिम चरण में है और एक या दो सप्ताह के भीतर वह एक बच्चे को जन्म देने वाली है। न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा और न्यायमूर्ति शैलेन्द्र शुक्ला की खंडपीठ ने यह आदेश जारी करते हुए लड़की के पिता द्वारा, एकल पीठ द्वारा सुनाये गए आदेश के खिलाफ दायर रिट अपील को खारिज कर दिया। Also Read - सुप्रीम कोर्ट का सीमा विस्तार का आदेश सेक्‍शन 167(2) सीआरपीसी के तहत डिफॉल्ट जमानत के अधिकार को प्रभावित नहीं करताः उत्तराखंड हाईकोर्ट दरअसल, गर्भावस्था की समाप्ति का संचालन करने के लिए, याचिकाकर्ता-पिता द्वारा एक रिट याचिका, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के समक्ष दायर की गयी थी, जिस याचिका को 20-मार्च-2020 को ख़ारिज कर दिया गया था। मामले के तथ्य याचिकाकर्ता-पिता (मामले में अपीलकर्ता भी) की नाबालिग पुत्री (अब बालिग़) का कथित तौर पर एक शुभम सोलंकी द्वारा अपहरण कर लिया गया था। इस आरोप के आधार पर, एफ.आई.आर. वीडी क्राइम नंबर 243/ 2018 और गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई। Also Read - दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख ज़फरुल इस्लाम को कठोर कार्रवाई से अंतरिम संरक्षण दिया इसके बाद, याचिकाकर्ता ने अपनी नाबालिग बेटी की कस्टडी के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसके आधार पर नाबालिग पुत्री की कस्टडी याचिकाकर्ता को 28/02/2020 को प्राप्त हो गई थी। याचिकाकर्ता के वकील ने फिर अदालत को यह बताया कि नाबालिग लड़की को आरोपी के पास से बरामद करने के बाद उसका MLC कराया गया, जिसमें यह पाया गया कि नाबालिग लड़की, लगभग 7 सप्ताह की गर्भवती है। इसलिए, गर्भावस्था की समाप्ति का संचालन करने के लिए, याचिकाकर्ता द्वारा एक रिट याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गयी। अदालत की एकल पीठ द्वारा इस याचिका में यह आदेश दिए गए कि नाबालिग लड़की की, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ और अन्य विशेषज्ञों सहित, डॉक्टरों के एक पैनल द्वारा चिकित्सकीय जांच की जाएगी। मेडिकल बोर्ड को यह निर्देश दिया गया कि वह अदालत के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे। इसके पश्च्यात, उन्हें (लड़की के पिता-याचिकाकर्ता एवं स्वयं लड़की को) अपने बयानों की रिकॉर्डिंग के लिए न्यायालय के प्रधान रजिस्ट्रार के सामने उपस्थित होने का निर्देश अदालत की एकल पीठ द्वारा दिया गया। न्यायालय के समक्ष बयानों की रिकॉर्डिंग को एक सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किया गया। लिफाफा खुले न्यायालय में खोला गया। याचिकाकर्ता और उसकी नाबालिग बेटी के बयानों को पढ़ा गया। बयानों को पढने एवं याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों को सुनने के बाद, एकल पीठ ने 20-मार्च-2020 को रिट याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि, "संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप करने का कोई मामला नहीं बनता है। याचिका, योग्यता के बिना है और इसे खारिज किया जाता है।" याचिकाकर्ता-पिता ने की अपील वर्तमान रिट अपील लड़की के पिता द्वारा, एकल न्यायाधीश द्वारा पारित 20-मार्च-2020 के आदेश [W.P. No. 6057/2020 (Ashish Jain v/s The State of Madhya Pradesh)] के खिलाफ दायर की गयी। हालाँकि, अपीलकर्ता-पिता द्वारा दायर यह रिट अपील, जब न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध हुई तो लड़की 18 वर्ष से ज्यादा उम्र की हो चुकी थी अर्थात वह बालिग़ हो चुकी थी। इसी क्रम में, बीते 8 मई 2020 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (इंदौर बेंच) की खंड पीठ ने रिट अपील में पक्षकारों की दलील सुनने के बाद यह देखा कि, "इस न्यायालय के संज्ञान में लाया गया है कि लड़की 05/05/2020 को बालिग़ हो गयी है। जैसा कि वह बालिग़ हो गयी है, उसके बयान को 'गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971' (The Medical Termination Of Pregnancy Act 1971) की धारा 3 के मद्देनजर, नए सिरे से दर्ज किया जाना आवश्यक हो गया है। अपीलकर्ता के लिए नियुक्त वकील, लड़की के बयान को दर्ज करने के लिए 11/05/2020 को इस अदालत के प्रधान रजिस्ट्रार के सामने लड़की को लाने का वचन देते हैं। प्रार्थना की अनुमति दी जाती है।" गौरतलब है कि, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3, पंजीकृत मेडिकल चिकित्सकों द्वारा गर्भधारण को समाप्त किये जाने से संबधित है। यह धारा यह बताती है कि आखिर कब (किन परिस्थितियों में) गर्भवती चिकित्सकों द्वारा गर्भधारण को समाप्त किया जा सकता है। इस धारा के अंतर्गत, एक गर्भवती महिला, जिसकी आयु अठारह वर्ष से कम है, या, यदि वो अठारह वर्ष की आयु प्राप्त कर चुकी है, परन्तु वह मानसिक रूप से बीमार है, तो उसकी गर्भावस्था को उसके अभिभावक की लिखित सहमती के बिना ख़त्म नहीं किया जा सकेगा [धारा 3 (4) (a)]। हालाँकि, जहाँ महिला 18 वर्ष की आयु से अधिक की है और मानसिक रूप से बीमार नहीं है, वहां उसकी सहमती के बिना किसी भी गर्भावस्था को समाप्त नहीं किया जा सकता है [धारा 3 (4) (b)]। दूसरे शब्दों में, जहाँ महिला 18 वर्ष से आयु से अधिक की है, वहां उसकी मर्जी के अनुरूप ही उसकी गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है, अन्यथा नहीं। लड़की का बयान कोर्ट ने अपने आदेश में यह देखा है कि, लड़की ने अपने बयान में यह साफ़ कहा कि वह अपनी मर्जी से लड़के के साथ गयी। वह शुभम के साथ पहले पंजाब गई, दोनों अमृतसर में रहे और फिर बाद में वे उज्जैन वापस आ गए। उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी समय, उसके साथ बलात्कार नहीं किया गया और उसके पिता के इशारे पर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की गई थी और इसके चलते शुभम जेल में है। लड़की ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि वह अपनी गर्भावस्था को समाप्त नहीं करना चाहती है क्योंकि वह शुभम से शादी करना चाहती है और क्योंकि वह प्रिंसिपल रजिस्ट्रार के सामने बयान देना चाहती थी, इसलिए उसे गर्भावस्था के इस अग्रिम चरण में पिता (जोकि मौजूदा अपीलकर्ता हैं) द्वारा घर से बाहर निकाल दिया गया। उसने यह भी कहा है कि उसकी उम्र लगभग 22 वर्ष है और वह शुभम से शादी करना चाहती है। बयान पर गौर करने के बाद अदालत ने यह कहा कि, "कानून [गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971] के पूर्वोक्त वैधानिक प्रावधान [धारा धारा 3 (4) (a) एवं (b)] के अनुसार, चूंकि लड़की बालिग़ है, वह गर्भावस्था को समाप्त नहीं करना चाहती है और उसने यह बात प्रधान रजिस्ट्रार के समक्ष स्पष्ट रूप से कही है, इसलिए, (उसकी) गर्भावस्था को समाप्त करने का प्रश्न नहीं उठता है। यह न्यायालय, एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के साथ हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाता है।" गौरतलब है कि, सुचिता श्रीवास्तव एवं अन्य बनाम चंडीगढ़ एडमिनिस्ट्रेशन (2009) 9 SCC 1 के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने गर्भावस्था जारी रखने के संदर्भ में महिलाओं के अधिकारों की पुष्टि की है।



सुचिता श्रीवास्तव मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि यह राज्य का दायित्व है कि वह महिला के प्रजनन अधिकारों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा और गोपनीयता के उसके अनुच्छेद 21 के अंतर्गत अधिकारों के एक घटक के रूप में सुनिश्चित करे। हाईकोर्ट का लड़की की सुरक्षा, उपचार एवं आश्रय के सम्बन्ध में आदेश अदालत ने इस बात पर विशेष रूप से गौर किया कि चूँकि लड़की/गर्भवती महिला को उसके पिता ने घर से निकाल दिया है और उसके पास रहने के लिए जगह नहीं है और उसे बच्चे के प्रसव के मामले में मदद की आवश्यकता है। अदालत ने आदेश जारी करते हुए कहा कि, "इंदौर के कलेक्टर, लड़की को उचित आश्रय प्रदान करेंगे और उसे संपूर्ण उपचार, राज्य द्वारा नि:शुल्क प्रदान किया जाएगा क्योंकि वह गर्भावस्था के अग्रिम चरण में है और एक या दो सप्ताह के भीतर एक बच्चे को जन्म देने वाली है। इस आदेश की एक प्रति संबंधित एसएचओ को भेजी जाएगी और वह लड़की का पता लगाने और उसकी कलेक्टर के साथ बैठक करने की व्यवस्था करेंगे।" अदालत ने आगे यह भी कहा कि, "इस न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के साथ लड़की, इंदौर के कलेक्टर से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र होगी, और कलेक्टर उसे आश्रय गृह या किसी सुरक्षित घर में या एक छात्रावास में आश्रय प्रदान करेंगे और उस लड़की की देखभाल भी करेंगे, जब तक वह बच्चे को जन्म न दे दे और जब तक वह बच्चे को जन्म देने के बाद ठीक नहीं हो जाती।" अदालत ने अपने आदेश में इंदौर के कलेक्टर को लड़की की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी आदेश दिए। इन्ही आदेशों के साथ वर्तमान रिट अपील को खारिज किया गया। मामले का विवरण: केस टाइटल: आशीष जैन बनाम मध्यप्रदेश राज्य स नं: Writ Appeal No.543/2020 कोरम: न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा एवं शैलेन्द्र शुक्ला अधिवक्ता: अधिवक्ता अरिहंत कुमार नाहर (अपीलकर्ता के लिए) – अधिवक्ता अमोल श्रीवास्तव (मध्यप्रदेश राज्य के लिए)।



प्रवासियों को मुंबई से सुरक्षित वापस लाने के लिए वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, यात्रा खर्च के तौर पर 25 लाख रुपये देने की पेशकश की

औरंगाबाद त्रासदी की पृष्ठभूमि में, जिसमें अपने मूल स्थानों पर वापस जाने वाले 16 प्रवासी श्रमिकों की मालगाड़ी से कुचलकर मौत हो गई थी, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है जिसमें मुंबई में प्रवासी श्रमिकों के सुरक्षित परिवहन के लिए निर्देश देने की मांग की गई है, विशेषकर उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में अपने घरों तक पहुंचने के प्रयासों के कारण प्रवासी मजदूरों को होने वाली पीड़ा समाप्त करने के लिए। Also Read - गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार के मंत्री भूपेंद्रसिंह चुडासमा का निर्वाचन शून्य घोषित किया याचिकाकर्ता ने अपने अच्छे इरादे को जाहिर करने के लिए, सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री में 25 लाख रुपये की राशि जमा करने के लिए सहमति व्यक्त की है। ये राशि बस्ती और संत कबीर नगर जिलों के प्रवासियों की यात्रा की लागत के तौर पर जमा की जाएगी बिना किसी की जाति, पंथ और धर्म के आधार पर । वकील सगीर अहमद खान की ओर से एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एजाज मकबूल द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता खुद संत कबीर नगर से प्रवासी है और उन प्रवासियों की दुर्दशा से भली-भांति वाकिफ हैं जिन्हें COVID-19 महामारी के मद्देनज़र लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के बीच में मरने के लिए छोड़ दिया गया है। Also Read - मेडिकल ग्राउंड पर डीपी यादव की ज़मानत अर्ज़ी पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी किया यह माना गया है कि याचिकाकर्ता ने पहले उत्तरदाताओं से संपर्क करके अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने की मांग की। हालांकि, "जीवन और मृत्यु की दुर्दशा" को संबोधित करने के लिए उत्तरदाताओं की विफलता के कारण, याचिकाकर्ता उन प्रवासियों के जीवन को बचाने के लिए शीर्ष अदालत से संपर्क करने के लिए विवश हुए हैं जो उत्तरदाताओं की निष्क्रियता के कारण पीड़ित हैं। याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण प्रवासियों के जीवनयापन के स्रोत का ह्रास हो रहा है और इसलिए, उन्हें मुंबई छोड़ने और अपने गृहनगर में अमानवीय परिस्थितियों में यात्रा करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, कुछ लोग थकावट और भुखमरी के कारण मर रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि "जबकि कुछ प्रवासी मजदूर पैदल यात्रा कर रहे हैं, अन्य लोग ट्रक यात्रा का सहारा ले रहे हैं, जहां एक ट्रक में कम से कम 100-120 व्यक्ति यात्रा कर रहे हैं। यह बताया जाता है, कुछ प्रवासी श्रमिक थकावट और भूख से मर रहे हैं, जबकि अन्य इस थकाऊ यात्रा के दौरान घुट रहे हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है, कि यह इन श्रमिकों के जीवन के अधिकार का एक स्पष्ट उल्लंघन है जिन्होंने अचानक देशव्यापी लॉकडाउन के बीच खुद को असहाय पाया है।" याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को 7 मई से अपने जिले के प्रवासियों की टेलिफोन कॉल आने शुरू हुए ,जो उनकी मदद मांग रहे हैं। स्थानीय पुलिस स्टेशन से पूछताछ पर, याचिकाकर्ता को सूचित किया गया कि यूपी सरकार और रेल मंत्रालय ट्रेनों के माध्यम से प्रवासी श्रमिकों के परिवहन के बारे में योजना बना रहे हैं। याचिकाकर्ता को ये भी पता चला में कि ट्रक और मिनी ट्रक 5000 रुपये प्रति यात्री के भुगतान पर परिवहन कर रहे हैं जो प्रवासियों के लिए बहुत अधिक राशि है ।



याचिकाकर्ता ने प्रवासियों के परिवहन के लिए ट्रेनों या बसों को बुक करने का भी प्रयास किया, लेकिन यह प्रयास यूपी सरकार के नोडल अधिकारी की गैर-जिम्मेदारी के कारण निरर्थक गया। उन्होंने बसों द्वारा प्रवासियों के परिवहन के लिए परमिट जारी करने के लिए स्थानीय सरकार से भी संपर्क किया, लेकिन बताया गया कि परमिट जारी करने के लिए प्रवासियों को फॉर्म भरने की आवश्यकता होगी और इस तरह प्रवासियों के लिए औपचारिकता को बनाए रखना असंभव है। याचिका में यह भी कहा गया है कि महाराष्ट्र से प्रवासियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा नियुक्त नोडल अधिकारी से संपर्क करने के कई प्रयास किए गए लेकिन टेलीफोन लाइनें लगातार व्यस्त हैं और याचिकाकर्ता के ईमेल का जवाब नहीं दिया गया था। इसलिए, याचिकाकर्ता के पास भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रवासी श्रमिकों के जीवन के अधिकार और सम्मान के साथ जीने के अधिकार के कठोर उल्लंघन के परिणामस्वरूप शीर्ष अदालत से संपर्क करने अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। उपरोक्त के प्रकाश में, याचिकाकर्ता द्वारा निम्नलिखित प्रार्थनाएं की गई हैं: • किसी भी तकनीकी कारणों से मुक्त और उच्चतम न्यायालय की निगरानी में प्रवासी श्रमिकों को उनके गृहनगर में तत्काल और सुरक्षित निकासी सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदाताओं को निर्देश दें। • प्रवासियों को उनके गंतव्य के लिए सुरक्षित और सुरक्षित साधन और यात्रा के साधन प्रदान करने के लिए उत्तरदाताओं को निर्देशित करें। • उत्तरदाताओं को दिशा-निर्देश दिए जाएं कि वो प्रवासियों को वापस लाने के लिए सुविधाओं से संबंधित सभी प्रासंगिक सूचनाओं को समाज के सबसे निचले स्तर तक फैलाने का प्रयास करें। • उत्तरदाताओं को निर्देश दें कि वे संत कबीर नगर जिले से संबंधित प्रवासियों के परिवहन के लिए एक उपयुक्त ट्रेन या मुंबई से संत कबीर नगर के लिए परिवहन के किसी अन्य माध्यम की उपयुक्त व्यवस्था करें। • उत्तरदाताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित करें कि प्रवासियों की निकासी के लिए पर्याप्त संख्या में ट्रेनें और / या बसें समर्पित हैं और उन्हें सुरक्षित और सुरक्षित तरीके से अपने गृहनगर वापस भेज दिया जाए।



सोमवार, 11 मई 2020

डोभी के बेसिक शिक्षा विभाग के खण्ड शिक्षा अधिकारी नागरिकों की मदद हेतु राहत सामग्री जिलाधिकारी को उपलब्ध कराई

विकास क्षेत्र डोभी के बेसिक शिक्षा विभाग के अंतर्गत कार्यरत खण्ड शिक्षा अधिकारी, प्रधानाध्यापक, प्र0 प्रधानाध्यापक, सहायक अध्यापक, शिक्षामित्र द्वारा स्वेच्छा से ऐसी विकट/विषम परिस्थिति में देश के गरीब/असहाय परिवारों नागरिकों की मदद हेतु राहत सामग्री जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह को उपलब्ध कराई गयी। जिसमें गेहूं 25 कुंतल, चावल 30.5 कुंतल, आलू 05 कुंतल, दाल 03 कुंतल, प्याज 10 कुंतल, नमक 01 कुंतल, तेल 50 है।



इस अवसर पर संजय कुमार यादव, संजय कुमार सिंह मंत्री प्राथमिक शिक्षक संघ डोभी, बेसिक शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी डोभी उपस्थित रहे।


चकबंदी विभाग द्वारा सामुदायिक रसोई में उपयोग किए जाने संबंधित आवश्यक खाद्यान्न सामग्री जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह को उपलब्ध कराई

 चकबंदी विभाग द्वारा सामुदायिक रसोई में उपयोग किए जाने संबंधित आवश्यक खाद्यान्न सामग्री जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह को उपलब्ध कराई गयी। जिसमें आटा 03 कुंतल, चावल एक कुंतल, अरहर दाल 50 किलोग्राम, तेल 02 टीन, नमक 10  पैकेट,  हल्दी 10 पैकेट, मसाला 15 पैकेट, आलू 01 बोरी, प्याज 60 किलो ग्राम है।



राज्यमंत्री गिरीश चन्द्र यादव ने मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से दर्जनों बीमारों को दिलाई आर्थिक मदद

  राज्यमंत्री गिरीश चन्द्र यादव ने वाराणसी सहित जिले के लगभग दो दर्जन गम्भीर रुप से बीमार लोगों को मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से आर्थिक मदद दिलाने का नेक काम किया है। 
          राज्यमंत्री के बेहतर प्रयास के परिणाम स्वरुप आर्थिक तंगी के कारण जिन्दगी और मौत से जूझ रहे आज तमाम लोगों की  जिन्दगी में  खुशियां आई हैं, जो इलाज का भारी भरकम खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे, लेकिन मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से मिली आर्थिक मदद इनके लिए जिन्दगी का सबब बन गयी। इस बाबत पूछे जाने पर मंत्री गिरीश चन्द्र यादव ने बताया कि हमारी सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के मूल मंत्र पर अमल करते हुए हर क्षेत्र में बगैर भेदभाव के काम कर रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में जाति, धर्म, सम्प्रदाय के दायरे से बाहर मानवीय दृष्टिकोण के आधार पर जरुरतमंदों की आर्थिक सहायता मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से की गयी है। बीमारी की गम्भीरता को देखते हुए उनकी जरुरत के आधार पर बीमार व्यक्तियों  को राशि माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा आवंटित की गयी है। सरकार की मंशा है कि प्रदेश का प्रत्येक नागरिक स्वस्थ और खुशहाल हो क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति ही देश व समाज के निर्माण में अपनी मजबूत भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है, स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार बेहतर काम कर रही है।
        मा. मंत्री के प्रयासों से माह मार्च, अप्रैल, मई 2020 में लाभान्वित होने वोलों में प्रमुख रुप से अर्चना श्रीवास्तव पत्नी राजेन्द्र श्रीवास्तव कंहईपुर मुरादगंज जौनपुर को 01 लाख 62 हजार ,आशीष गुप्ता पुत्र श्यामचन्द्र गुप्ता उमरपुर, हरिबंधनपुर को 01 लाख 30 हजार, कु.रोशन मिश्रा पुत्री अजय कुमार मिश्रा निवासी धौरईल 75 हजार ,धीरज कुमार सिंह पुत्र भूपेंन्द्र सिंह ग्राम खलीलपुर को 01 लाख, एजाज अहमद पुत्र इस्लाम निवासी सरायकाजी कादन को 01 लाख 40 हजार, सुरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव पुत्र लक्ष्मी नारायण लाल उमरपुर हरिबंधनपुर को 02 लाख 10 हजार, प्रेमादेवी पत्नी भुलई राम निवासी हिन्दी बघैला को 01 लाख 20 हजार, मन्नोदेवी पत्नी पज्जी यादव निवासी कादीपुर शिवपुर वाराणसी को 02 लाख, सीमा श्रीवास्तव पत्नी पीयूष पंकज श्रीवास्तव निवासी रिजवी खां को 02 लाख 50 हजार, लाल बहादुर यादव पुत्र जोखन यादव निवासी ब्राम्हणपुर झमका केराकत को 37 हजार, उमेश कुमार मौर्या पुत्र जगदीश चन्द्र मौर्या निवासी सरायकाजी उर्फ मियांपुर को 75 हजार, कोमल पुत्री प्रेमशीला निवासी रुकुनपुर मडियाहूं को 40 हजार , संदीप कुमार पुत्र शम्भू प्रसाद निवासी छित्तूपुर लंका वाराणसी को 05 लाख, शिक्षा यादव पुत्री ओमप्रकाश यादव निवासी बेलापार नौपेड़वा को 50 हजार, कुंज बिहारी यादव पुत्र पृथ्वीपाल यादव निवासी मोकलपुर बैजारामपुर को 02 लाख 62 हजार, लाल बहादुर पुत्र मगन निवासी जंगीपुर खुर्द को 75 हजार, हीरावती पत्नी राधेश्याम यादव एकौनी केराकत जौनपुर को 01 लाख 20 हजार, रेहा सिंह पत्नी प्रताप सिंह राने निवासी पट्टीकीरतराय, गोपालपुर को 03 लाख रुपये की धनराशि  आवंटित हुई है।


बिना मोबाइल नम्बर के अब प्रॉक्सी की सुविधा नही

 जिला पूर्ति अधिकारी अजय प्रताप सिंह द्वारा ने सर्वसाधारण को अवगत कराया है कि कार्डधारक के मोबाइल नम्बर के बिना अब प्राक्सी से राशन नही मिलेगा। प्रॉक्सी को खोलने के लिए राशनकार्ड धारक या किसी अन्य सदस्य का मोबाइल नम्बर को दर्ज करने के बाद ही प्रॉक्सी की अनुमति दी जायेगी। यह भी अवगत कराना है कि यदि राशन कार्डधारक का मोबाइल नम्बर वैलिड नही हुआ तो प्रॉक्सी ट्रान्जेक्शन आगे नही बढ़ेगा। शासन ने प्रॉक्सी के जरिये हो रही धाधली को रोकने के लिए यह नया कदम उठाया है। अभी तक अधिकांश शिकायते आती थी कि कोटेदार फर्जी मोबाइल नम्बर डालकर प्रॉक्सी के माध्यम से खाद्यान्न की धाधली करते है, मगर अब ऐसा नही हो सकेगा। जिला पूर्ति अधिकारी ने बताया गया कि 11 मई को प्रॉक्सी मशीन से राशन वितरण करने हेतु शासन द्वारा निर्देशित किया गया है। इस सम्बन्ध में जनपद के समस्त राशन कार्डधारको से अनुरोध है कि वे कोटेदार के यहां राशन लेते जाने समय अपना बैलिड मोबाइन नम्बर (जो राशन कार्ड अथवा आधार कार्ड में अंकित कराया गया हो) को अपने साथ अवश्य लेकर जाये ताकि ई-पॉस मशीन में मोबाइल नम्बर अंकित कर कोटेदार द्वारा खाद्यान्न दिया जा सके। प्रॉक्सी के समय ऐसा न होने पर प्रॉक्सी ट्रान्जेक्शन आगे नही बढ़ सकेगा, तथा राशनकार्डधारक खाद्यान्न पाने से वंचित रह जायेगा साथ ही ई-पॉस मशीन में कोई भी गलत नम्बर दर्ज करके कोटेदार राशन वितरित नही कर पायेगे। इसके लिए कोडिंग व्यवस्था भी की गयी है। वैलिड मोबाइल नम्बर दर्ज करने पर सम्बन्धित राशनकार्ड धारक के मोबाइल पर एक ओटीपी आयेगा। गलत मोबाइल नम्बर दर्ज होने पर ओटीपी नही मिल पायेगा। इसके बाद गलत मोबाइल नम्बर वाले कार्ड पर प्रॉक्सी ट्रान्जेक्शन फिर कभी नही होगा। जिला पूर्ति अधिकारी द्वारा यह भी बताया गया कि यदि कोई कोटेदार इसके बाद भी कालाबाजारी या नियमो का उल्लंघन करता है तो उसके विरूद्ध नियमानुसार कठोर कार्यवाही की जायेगी। 
                                                       ------