शुक्रवार, 22 मई 2020

भाजपा की सरकार में दबंगों द्वारा बार-बार जान से मारने की धमकी;नहीं लिखी गयी रिपोर्ट

आजमगढ़। भाजपा की सरकार में दबंगों द्वारा आयेदिन गरीबों, पिछड़ों, दलितों व अल्पसख्यकों को बुरी तरह मारा-पीटा जा रहा है। भाजपा नेताओं के दबाव में थानों पर रिपोर्ट नहीं दर्ज हो रही है। कल दिनांक 21.05.2020 को नूरपुर भॅवरपुर थाना-तरवाॅ में गाय को बल्लम मारने से मना करने पर गाॅव के ही दबंग लोगों ने अनुसूचित जाति चमारों के घर में घुसकर बुरी तरह मारा पीटा, उसमें बालेन्द्र व उसकी बहू, लड़के, पुत्री, भाभी व विजय कुमार को घर में घुसकर बुरी तरह मारा-पीटा। बहू नीतू देवी बेहोश हो जा रही है। थाने पर दरोगा जी रात तक बैठाये रहे। रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। वे लोग एस0पी0 से मिलकर सभी बातों को बताये। जाफरपुर कांसीराम कालोनी में रहने वाली सपना निषाद जो सपा नेत्री है। उसको बार-बार जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। उसने भी एस0पी0 से अपनी पूरी बात को बताया।



आपराधिक घटनाओं की बाढ़ आ गयी है। अभी सी0एच0सी0 हरैया में दबंगों ने थानाध्यक्ष रौनापार के सामने प्रभारी चिकित्साधिकारी से गाली गलौज और धक्कामुक्की किया और सरकारी कार्य में बाधा पहुॅचाये। रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी गिरफ्तारी नहीं हो रही है। जबकि छोटे-छोटे अपराधों में तुरन्त पकड़कर चालान कर दिया जा रहा है। समाजवादी पार्टी गरीबों पर होने वाले जुल्म को लेकर लाकडाउन समाप्त होने के बाद थानों को घेरने का काम करेगी।
उक्त जानकारी समाजवादी पार्टी आजमगढ़ निवर्तमान जिलाध्यक्ष हवलदार यादव ने दीं।


गुरुवार, 21 मई 2020

आवश्कता है


आवश्कता है


आवश्कता है


आवश्कता है


विधायक खाना बांटने के एजेंट नहीं हैं, मणिपुर हाईकोर्ट

एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने आवश्यक वस्तुओं का व्यापक वितरण सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। न्यायमूर्ति लनुसुंग्कुम ज़मीर और न्यायमूर्ति नोबिन सिंह की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत जो योग्य हैं ,जिसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनके पास कार्ड नहीं है,



उन्हें लॉकडाउन के दौरान पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के माध्यम से खाद्यान्नों की आपूर्ति राज्य सरकार आवश्यक रूप से करे। अदालत ने इस मामले में विधायकों के हस्तक्षेप की भी आलोचना की जो लोगों में वितरण के लिए पीडीएस से खाद्यान्नों की ख़रीद करते हैं और कहा कि अधिनियम में इसकी इजाज़त नहीं है। बेंच ने कहा, "यह सर्वविदित है कि विधायक लोगों के प्रतिनिधि होते हैं, उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है और यह भी कि वे लोगों को महत्वपूर्ण सेवाएं देते हैं, लेकिन पर खाद्य अधिनियम 2013 में यह कहीं नहीं है कि विधायकों को पीडीएस वितरण में शामिल किए जाने की ज़रूरत है।" अदालत ने कहा, "अगर राज्य सरकार या किसी अधिकारी जिसको यह अधिकार दिया गया है, के अलावा कोई व्यक्ति लक्षित पीडीएस वितरण व्यवस्था में शामिल होता है और चावल का वितरण करता है या इसके वितरण में शरीक होता है तो उसकी यह गतिविधि ग़ैरक़ानूनी है और उसे क़ानून के तहत उपयुक्त सज़ा मिल सकती है।" अदालत के निर्देश 1) उचित मूल्य के दुकानदारों का चुनाव : अदालत ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति उचित मूल्य की दुकान का लाइसेंस किसी को दिए जाने से पीड़ित है तो वह इसके लिए उचित जगह पर इसकी शिकायात कर सकता है और सरकार को दुकानदारों के चुनाव की प्रक्रिया की समीक्षा अवश्य ही करनी चाहिए ताकि पीडीएस से कम मात्रा के वितरण की शिकायत को दूर की जा सके। 2) पीडीएस एजेंट के रूप में विधायक विधायकों द्वारा पीडीएस से अनाज की ख़रीद करने और उनका वितरण करने पर घोर आपत्ति करते हुए अदालत ने कहा, "खाद्य अधिनियम 2013 में ऐसा प्रावधान नहीं है कि वे पीडीसी के माध्यम से विभिन्न वस्तुओं के वितरण में शामिल हों।" 3) पीडीएस में चावल के वितरण की निगरानी अदालत ने कहा, "राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसने जो व्यवस्था बनायी है वह प्रभावी हो और लोगों को शिकायत का मौक़ा नहीं मिले।" 4) योग्य परिवारों की जिलावार सूची अदालत ने कहा कि हर योग्य परिवारों की जिलावार सूची संबंधित सरकारी अधिकारी अपने आधिकारिक वेबसाइट पर इस फ़ैसले के सुनाए जाने के एक सप्ताह के भीतर अपलोड करे। 5) सरकारी अधिकारी सूचना को प्रसारित करें पीडीएस (नियंत्रण) आदेश 2015 के तहत अधिकृत एजेंसियों या ठेकेदारों जिसके माध्यम से अनाज उठाए जाएंगे, उनका नाम, पता एवं अन्य विवरण सरकारी वेबसाइट पर अपलोड किया जाए। 6) सरकार द्वारा खाद्य अधिनियम 2013 की धारा 35 के तहत अधिकार-प्राप्त अधिकृत अधिकारी ही अनाज उठाएं और उसका वितरण करें और ऐसा नहीं करने पर वे इसके लिए ज़िम्मेदार होंगे। 7) उचित मूल्य की दुकान के मालिक को सभी तरह के उचित रिकॉर्ड रखने और रसीद के फ़ॉर्म रखने ज़रूरी होंगे। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनके ख़िलाफ़ जांच होगी और तत्काल कार्रवाई की जाएगी जिसमें दोषी पाए जाने पर लाइसेन्स रद्द करने की बात भी शामिल है। 8) ऐसे लोग जो आपूर्ति नहीं मिलने या कम मिलने की शिकायत करते हैं उनकी शिकायत दूर करने की व्यवस्था हो। अदालत ने निर्देश दिया कि पीड़ित व्यक्ति किसी भी लीगल एड क्लीनिक या फ़्रंट ऑफ़िस/सचिव, ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण, सदस्य सचिव, मणिपुर विधिक सेवा से मदद प्राप्त कर सकते हैं और शिकायत कर सकते हैं। 9) कोरोना महामारी के समाप्त होने को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए राज्य सरकार ऐसे लोगों की पहचानकर सकती है जो घर में अनाज जमा रखते हैं और उन्हें वह राहत सामग्री नहीं लेने का आग्रह कर सकती है और इनका वितरण जरूरतमंदों में किया जा सकता है।


फुल कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ केरल हाईकोर्ट ने दिए जांच के आदेश"जब तक जरूरी न हो तब तक गिरफ्तार न किया जाए,

भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का किसी भी कीमत पर एक अभियुक्त को गिरफ्तार करके उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए,सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहां गिरफ्तारी अपरिहार्य या जरूरी है।'' अदालत ने यह भी आदेश दिया था कि जो व्यक्ति ऐसे अपराधों में शामिल हैं जिनमें अधिकतम सजा 7 साल से कम है, उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए। उपरोक्त निर्देश 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर जारी किए गए थे। ताकि जेलों में Covid 19 संक्रमण न फैले और इस महामारी के समय जेलों में कैदियों की संख्या कम रहे। हालांकि वर्तमान मामले में न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन की पीठ ने कहा कि इस मामले में आरोपी पर आईपीसी की धारा 354ए के तहत



मामला बनाया गया था जो कि जमानतीय है। वही पाॅक्सो एक्ट 2012 की ऐसी धाराओं के तहत मामला बनाया गया है,जिनमें अधिकतम सात साल तक की सजा का प्रावधान है। फिर भी उसे हिरासत में ले लिया गया। इन परिस्थितियों के मद्देनजर पीठ ने कहा कि- ''इस न्यायालय की पूर्ण पीठ और शीर्ष न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए इस मामले के जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया था।" अदालत ने कहा कि आईओ यह बात कहकर अपना बचाव नहीं कर सकता कि उसे फुल बेंच द्वारा दिए गए निर्देशों के बारे में जानकारी ही नहीं थी, क्योंकि कोर्ट के संबंधित अधिकारियों द्वारा इन निर्देशों का व्यापक रूप से प्रचार किया गया था। मामले के आईओ के खिलाफ जांच का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा कि- " यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि पूर्ण पीठ का निर्णय सभी मीडिया में प्रकाशित हुआ था। ऐसे में जांच अधिकारी यह नहीं कह सकता है कि वह इस न्यायालय की पूर्ण पीठ के निर्णय के बारे में नहीं जानता था।'' अदालत ने आदेश दिया है कि- ''ऐसी परिस्थितियों में मेरे अनुसार, इस मामले के जांच अधिकारी के खिलाफ जांच करना आवश्यक है। मैं गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के खिलाफ कोई और टिप्पणी नहीं कर रहा हूं क्योंकि जमानत अर्जी पर सुनवाई के समय जांच अधिकारी का पक्ष नहीं सुना गया है। लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी को इस मामले में जांच करनी चाहिए और इस न्यायालय के समक्ष जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए। अन्यथा, इस न्यायालय की पूर्ण पीठ के निर्णय का कोई सम्मान नहीं होगा। " अदालत ने इस मामले में पलक्कड़ के जिला पुलिस प्रमुख को निर्देश दिया है कि वह उस पुलिस अधिकारी के आचरण के बारे में जांच करे, जिसने इस मामले में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया था। जबकि किसी नागरिक की गिरफ्तारी के संबंध में पूर्ण पीठ द्वारा जारी एक सामान्य निर्देश लागू था। इतना ही नहीं इस मामले में गिरफ्तारी उस समय की गई थी जब सीआरपीसी की धारा 438 के तहत एक अग्रिम जमानत अर्जी हाईकोर्ट के समक्ष लंबित थी। अदालत ने डीपीसी को 30 दिनों के भीतर या तो खुद या एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के माध्यम से जांच पूरी करने और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा अदालत ने याचिकाकर्ता-अभियुक्त की जमानत याचिका को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि आईपीसी की धारा 354ए के तहत यह मामला जमानतीय है। वहीं आरोपी पर पाॅक्सो एक्ट की धारा 7,8,9 व 10 के तहत लगाए गए शेष अपराधों की प्रासंगिकता अभी आगे की जांच का विषय है। इस प्रकार अदालत ने यह निर्देश दिया था कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर दिया जाए। न्यायालय ने कहा था कि इसके लिए उसे एक व्यक्तिगत बांड देना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जब भी आवश्यक हो वह संबंधित न्यायालय के समक्ष उपस्थित होगा। इसके अलावा, वह क्षेत्राधिकार पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर के सामने पेश होगा और अपना फोन नंबर और उस स्थान का पता उनको बताएगा,जहां पर वह जमानत मिलने के बाद रहने वाला है। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि वर्तमान में अदालत काम नहीं कर रही हैं तो याचिकाकर्ता को न्यायिक अदालत के कामकाज के शुरू होने के एक सप्ताह के भीतर 50 हजार रुपये की राशि का बांड व दो जमानती कोर्ट की संतुष्टि के लिए प्रस्तुत करने होंगे। मामले का विवरण- केस का शीर्षक- प्रसाद बनाम केरल राज्य व अन्य। केस नंबर-बीए नंबर 2827/2020 कोरम- जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन प्रतिनिधित्व-एडवोकेट जैकब सेबेस्टियन, केवी विंस्टन और अनु जैकब (याचिकाकर्ता के लिए), सरकारी वकील अजिथ मुरली और संतोष पीटर (सीनियर) (प्रतिवादी के लिए)



'प्रवासी मजदूरों सहित अन्य लोगों को उत्तराखंड लौटने का हक है, बॉर्डर पर हो रैपिड एंटीबाडी टेस्ट', उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य-सरकार को दिए निर्देश

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार (20-मई-2020) को प्रवासियों की दुर्दशा और अन्य जरूरतमंद लोगों द्वारा लॉकडाउन में सहे जा रहे कष्ट को लेकर दाखिल जनहित याचिकाओं के सम्बन्ध में यह आदेश दिया कि राज्य सरकार, उत्तराखंड राज्य की सीमाओं पर कार्यात्मक करन्तीन (Quarantine) केंद्रों को स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैथानी एवं न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने यह आदेश जारी करते हुए यह भी कहा कि इन क्वारन्टीन केंद्रों में मौजूद व्यक्तियों में से, जिनमे आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार कोरोना के आवश्यक लक्षण दिखाई पड़ते हैं, उनका रैपिड टेस्ट किया जाएगा। अदालत ने अपने आदेश में यह भी देखा कि, "हालांकि रैपिड एंटीबॉडी परीक्षण को नैदानिक उद्देश्यों (diagnostic purposes) के लिए आईसीएमआर द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है, लेकिन चूंकि इस परीक्षण का परिणाम बहुत कम समय में उपलब्ध हो जाता है, इसलिए ऐसे परीक्षणों का उपयोग, केवल सर्विलांस उद्देश्यों (surveillance purposes) के लिए किया जा सकता है।" कोर्ट का यह आदेश, प्रवासियों की दुर्दशा और अन्य जरूरतमंद लोगों द्वारा लॉकडाउन में सहे जा रहे कष्ट को लेकर, हरिद्वार के सच्चदानंद डबराल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आया। गौरतलब है कि, राज्य की सीमा के खुलने के बाद से उत्तराखंड में दो लाख से अधिक लोगों के आने की संभावना है। उत्तराखंड में नब्बे हजार से ज्यादा लोग पहले ही पहुंच चुके हैं। शेष लोग, लगातार प्रदेश में आ रहे हैं और लगभग 6000 - 7000 व्यक्ति प्रत्येक दिन विभिन्न सीमा बिंदुओं से उत्तराखंड में प्रवेश कर रहे हैं। अदालत के पूर्व के आदेश बीते बुधवार (13-मई-2020) को, हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से दो मुद्दों पर जवाब मांगा था, - क्या, राज्य में लौटने वाले प्रत्येक व्यक्ति की चिकित्सकीय रूप से जांच की जा रही थी, क्योंकि 'थर्मल स्क्रीनिंग पर्याप्त नहीं है' और क्या राज्य में लौटने वाले लोगों का एंटीजन टेस्ट, या कोई अन्य रैपिड टेस्ट हो सकता है। अदालत ने इससे पहले मंगलवार (12-मई-2020) को राज्य सरकार से यह भी पूछा था कि क्या राज्य में 'खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013' और 'अन्तर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक(रोज़गार और सेवा शर्त विनियमन) अधिनियम, 1979' का सही तरीके से पालन किया जा रहा है अथवा नहीं। 15-मई-2020 को सुनवाई के दौरान अदालत ने यह देखा था कि, "वर्तमान में दो लाख से अधिक व्यक्ति, पहले से ही उत्तराखंड राज्य के साथ पंजीकृत हैं। ये ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त की है और उन्हें उत्तराखंड लौटने की आवश्यकता है। लगभग यह सभी ऐसे व्यक्ति हैं, जो उत्तराखंड के स्थायी निवासी हैं, लेकिन देश के विभिन्न राज्यों में काम कर रहे हैं। COVID-19 महामारी के इन अजीब और कठिन समय के तहत, वे अपने गृह राज्य में वापस आना चाहते हैं। उन्हें उत्तराखंड राज्य में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है, लेकिन न्यायालय की चिंता यह है कि उनमें से कई वायरस (COVID-19) से संक्रमित हो सकते हैं और इसलिए सीमाओं पर उचित जांच आवश्यक है।" इसी दिन, अदालत ने अपने आदेश में ऐसे लोगों की रैपिड टेस्टिंग की व्यवहार्यता के बारे में राज्य सरकार से पूछताछ की थी, इसका कारण यह था कि राज्य सरकार द्वारा ऐसे लोगों की केवल थर्मल टेस्टिंग की जा रही थी, जिसे अदालत ने उपयुक्त नहीं पाया था। मामले की पिछली सुनवाई [सोमवार, 18-मई-2020] के दौरान, राज्य सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट को यह सूचित किया था कि राज्य सरकार द्वारा, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से राज्य की सीमाओं पर उत्तराखंड लौटने वाले प्रवासियों के रैपिड टेस्टिंग और एंटीजन परीक्षण के बारे में सलाह ली जा रही है। इसे देखते हुए अदालत ने राज्य सरकार को 20 मई तक अदालत को इस बारे में सूचित करने का निर्देश दिया था। अदालत को यह बताया गया था कि, यदि ICMR ऐसा सुझाव देता है कि राज्य की सीमा पर, प्रदेश में आ रहे प्रवासियों की रैपिड टेस्टिंग की जा सकती है, तो यह परीक्षण शुरू किया जाएगा। अदालत का आज का (20-मई-2020) आदेश राज्य के एडवोकेट जनरल श्री एस. एन. बाबुलकर, भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल श्री राकेश थपलियाल और पक्षकारों के लिए पेश अधिवक्ताओं के बीच इन जनहित याचिकाओं को लेकर विस्तार से चर्चा हुई और अदालत ने इस चर्चा को लेकर अपनी प्रसन्नता जताई। इस चर्चा में सचिव, स्वास्थ्य विभाग, उत्तराखंड सरकार एवं महानिदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य भी वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए। हालाँकि, अदालत ने अपने आदेश में इस बात का जिक्र किया कि वर्तमान समय में जो प्रयास, राज्य प्राधिकरणों द्वारा किए जा रहे हैं, विशेष रूप से उत्तराखंड की सीमाओं पर उन व्यक्तियों की वापसी की जांच करने के लिए, जो तेजी से बढ़ती संख्या में राज्य में आ रहे हैं, वे प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। राज्य के दूर-दराज इलाकों में मिले संक्रमित मामलों का संज्ञान लेते हुए अदालत ने कहा कि यह डर है कि राज्य में लौटने वाले लोग, इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। अदालत ने ख़ास तौर पर इस बात को रेखांकित किया कि राज्य में किसी को भी आने का हक है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि, "हम लोगों के आने के खिलाफ नहीं हैं। उन्हें आने का पूरा अधिकार है। हमारी एकमात्र चिंता यह है कि कठिन समय के दौरान सीमा पर एक उचित स्क्रीनिंग होनी चाहिए।" अदालत के आदेश में इस बात का जिक्र किया गया है कि मौजूदा समय में राज्य की सीमाओं पर ऐसे लोगों की केवल थर्मल स्क्रीनिंग और उनका साधारण मेडिकल परिक्षण हो रहा है, जोकि काफी नहीं है। उल्लेखनीय है कि अदालत ने मामले की पिछली सुनवाई में भी रैपिड टेस्टिंग परिक्षण की व्यवहारिकता पर जोर दिया था। इसी क्रम में, ICMR ने अदालत के समक्ष ऐसे कुछ निर्माताओं की सिफारिश भी की, जो रैपिड टेस्टिंग किट का निर्माण करते हैं। सचिव स्वास्थ्य विभाग, भारत सरकार ने अदालत के समक्ष यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि इस परीक्षण को राज्य की सीमा के बिंदुओं पर एक प्रयोग के आधार पर उपयोग में लिया जा सकता है और इसकी सफलता या विफलता के आधार पर इसे आगे चलते रहने देने या बंद करने का निर्णय किया जा सकता है। अदालत ने इस सुझाव की सराहना की। इसी के मद्देनजर अदालत द्वारा वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सभी लोगों से चर्चा करने के बाद राज्य सरकार के लिए कुछ निर्देश जारी किये गए। अदालत द्वारा राज्य सरकार के लिए जारी किये गए निर्देश * राज्य की प्रत्येक सीमा बिंदु पर, राज्य सरकार कार्यात्मक करन्तीन केंद्रों (Quarantine Centers) को स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। इन करन्तीन केंद्रों में, ऐसे सभी लोग को, जो देश के अन्य रेड जोन क्षेत्रों से आ रहे हैं, उन्हें एक सप्ताह की अवधि के लिए रखा जाएगा। * इन करन्तीन केन्द्रों में मौजूद व्यक्तियों में से, जिनमे आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार कोरोना के आवश्यक लक्षण दिखाई पड़ते हैं, उनका आरटी-पीसीआर के लिए परीक्षण किया जाएगा * हालांकि रैपिड एंटीबॉडी परीक्षण को नैदानिक उद्देश्यों (diagnostic purposes) के लिए



आईसीएमआर द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है, लेकिन चूंकि इस परीक्षण का परिणाम बहुत कम समय में उपलब्ध हो जाता है, इसलिए ऐसे परीक्षणों का उपयोग, केवल सर्विलांस उद्देश्यों (surveillance purposes) के लिए किया जा सकता है। कम से कम थर्मल स्क्रीनिंग द्वारा निगरानी की तुलना में यह एक बेहतर निगरानी होगी। गौरतलब है कि अदालत के समक्ष ICMR का प्रतिनिधित्व कर रहे भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल, श्री राकेश थपलियाल, यह बयान दिया कि ICMR को कोई आपत्ति नहीं है यदि केवल सर्विलांस के उद्देश्यों के लिए रैपिड टेस्टिंग की जाती है, लेकिन यह निर्णय राज्य प्राधिकरण द्वारा लिया जाना है। * रैपिड टेस्ट किट को तुरंत खरीदा जाए और राज्य की सीमा बिंदुओं पर प्रयोग के आधार पर लोगों का परीक्षण इस पद्धति से किया जाए । एलिसा किट का जिक्र अदालत को आईसीएमआर ने यह बताया कि एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (Integrated Disease Surveillance Programme) के तहत "एलिसा किट" नामक एक परीक्षण किट को मंजूरी दी गयी है, जिसे राज्य सरकार को उपलब्ध कराया जा सकता है। अदालत ने आदेश दिया कि, "उत्तराखंड के जिला पौड़ी गढ़वाल में पहले भी इस तरह के परीक्षण किए जा चुके हैं। इसे अन्य जिलों में भी सर्विलांस के उद्देश्य से किया जाए।" भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल, श्री राकेश थपलियाल ने हाईकोर्ट को यह आश्वस्त किया कि जैसे ही राज्य सरकार, इन किटों की मांग करती है, वैसे ही उनकी आवश्यकता के आधार पर बिना किसी और देरी के उन्हें किट की आपूर्ति की जाएगी। अदालत ने मामले को 2-जून-2020 के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि एडवोकेट जनरल अदालत के समक्ष अदालत द्वारा प्रदान किये गए बिन्दुओं के आधार पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें। मामले का विवरण: केस टाइटल: सच्च्दानंद डबराल बनाम भारत संघ एवं अन्य केस नं: Writ Petition (PIL) No। 58 of 2020 कोरम: न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैथानी एवं सुधांशु धूलिया उपस्थिति: श्री शिव भट्ट (याचिकाकर्ता के लिए); श्री एस। एन। बाबुलकर, एडवोकेट जनरल, श्री एच। एम। रतुरी, डिप्टी एडवोकेट जनरल, श्री विनोद नौटियाल, डिप्टी एडवोकेट जनरल और श्री परेश त्रिपाठी, मुख्य स्टैंडिंग काउंसल। राकेश थपलियाल, भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल आदेश डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें TAGSMIGRANT WORKERS #UTTARAKHAND #UTTARAKHAND HIGH COURT 


पटना हाईकोर्ट ने ब‌िहार सरकार से कहा, COVID 19 राहत कार्यों में गैर-सरकारी संगठनों की मदद नहीं लेने की नीति पर पुनर्व‌िचार करें

पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार से आग्रह किया है कि सरकार COVID-19 संकट के निस्तारण में सिविल सोसायटी के सदस्यों की मदद नहीं लेने की नीति पर पुनर्विचार करे। चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने कहा कि "लोकतांत्रिक समाज में, सिविल सोसायटी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, ‌विशेष कर आपदा के समय में"। पीठ एओआर पारुल प्रसाद की ओर से दायर याच‌िका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्हें अनुसंधान सहयोगी अक्षत अग्रवाल (अंतिम वर्ष, जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल) ने सहायता की थी। याचिका में जिला मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्होंने नागरिक समाज संगठनों और एनजीओ को जरूरतमंद लोगों की मदद और राहत देने की अनुमति नहीं दी थी। 19 मई को अदालत ने एक अन्‍य वकील राजीव रंजन की याचिका (क्वारंटीन सेंटर की स्थिति के बारे में) के साथ उक्त याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस मुद्दे पर उच्चतम स्तर पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। बेंच ने कहा, "हमारा विचार है कि शायद यह सार्वजनिक हित में होगा, राज्य के हित में भी होगा, कि सरकार स‌िव‌िल सोसायटी के सदस्यों से व्यक्तिगत या सांगठनिक आधार पर सहयोग न लेने की अपनी पुरानी नीति पर दोबारा गौर करे, व‌िशेष कर रेलवे स्टेशन पर या क्वारंटीन सेंटरों में भीड़ को मैनेज करने जैसे मामलों में। हम इनमें कोई नुकसान नहीं देखते हैं, खासकर जब सिविल सोसायटी ऐसे काम, किसी क्रेडिट का दावा किए बिना, स्वैच्छिक आधार पर करना चाहती है। हम पहले ही यह राय व्यक्त कर चुके हैं कि लोकतांत्रिक समाज में, आपदा के समय में सिविल सोसायटी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हम यह देख सकते हैं कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 35 के तहत, सरकार के लिए प्राधिकरण का गठन करना अनिवार्य है, चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर हो, राज्य स्तर या जिला स्तर पर हो और इनमें गैर सरकारी संगठनों की भूमिका को संसद ने भी स्वीकार किया है।" अदालत ने स्वराज अभियान (I) बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट की मिसाल का हवाला देते हुए कहा; "स्वराज अभियान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य (2016) 7 SCC 498 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बिहार राज्य में सूखे के मुद्दे के निस्तारण के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनमें से एक इस प्रकार था- 97.8. मानवीय पहलू जैसे कि प्रभावित क्षेत्रों से पलायन, आत्महत्या, अत्यधिक तनाव, महिलाओं की दुर्दशा और बच्चे आदि ऐसे कारक हैं जिन्हें राज्य सरकारों द्वारा सूखे से संबंधित मामलों में...ध्यान रखा जाना चाहिए। पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, हालांकि इन्हीं कारकों पर ध्यान पर्याप्त नहीं है।" कोर्ट ने कहा कि सूखे के कारण होने वाली आपदा के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए उपरोक्त निर्देश COVID 19 की मौजूदापरिस्थितियों में भी समान रूप से लागू होंगे। पीठ ने कहा कि भारत की 1/10 वीं आबादी बिहार में रहती है और देश के विभिन्न हिस्सों से लगभग आठ लाख लोग वापस आ रहे हैं, बाकी चीजों को छोड़ दें तो मानव प्रबंधन की खुद एक समस्या, जिस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है। कोर्ट ने आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव, बिहार सरकार को निर्देश दिया कि अगली तारीख से पहले सभी मुद्दों पर हलफनामा दाखिल करें। मामले की अगली सुनवाई 22 मई को होगी। पिछले महीने, मद्रास हाईकोर्ट ने राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों और आम लोंगों को कई शर्तों के साथ COVID-19 राहत कार्य में भाग लेने की अनुमति दी थी।

https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/civil-society-cant-be-ignored-in-a-democratic-society-patna-hc-urges-state-to-reconsider-policy-of-not-engaging-ngos-for-covid-19-relief-157073


शनिवार, 16 मई 2020

सभी बाहर से आये प्रवासी मजदूर को बसों से उनके गंतव्य स्थान तक पहुचाये जायेंगे - जिलाधिकारी

  जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह एवं अशोक कुमार द्वारा मुख्य राजस्व अधिकारी डॉक्टर सुनील वर्मा, अपर पुलिस अधीक्षक ग्रामीण संजय राय एवं अन्य अधिकारियों के साथ मुंगराबादशाहपुर के पांडेपुर में जौनपुर-इलाहाबाद बॉर्डर का निरीक्षण किया गया। यहां आने वाले प्रवासी मजदूर जो मुंबई से ट्रकों से आ रहे थे उन्हें बस के माध्यम से उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाए जाने की व्यवस्था की गई थी। जिलाधिकारी ने प्रवासी मजदूरों से कहा कि उन्हें किसी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।



शासन के निर्देशानुसार सभी को बसों द्वारा उनके गंतव्य स्थल तक सुरक्षित पहुंचाया जाएगा। जिसके लिए बॉर्डर पर 10 बस लगाने के निर्देश जिलाधिकारी ने सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी को दिए। जिलाधिकारी ने कहा कि कोई भी मजदूर पैदल न चले न ही असुरक्षित तरीके से ट्रकों से जाएं। प्रत्येक थाने स्तर पर एक बस तथा बॉर्डर पर चार-चार बसें प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने की व्यवस्था जिला प्रशासन द्वारा की गई है। जिलाधिकारी ने कहा कि आवश्यकता होने पर और भी बसें लगाई जाएंगी। 


लॉकडाउन का पालन न कराने पर एफआईआर दर्ज

 जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह ने बताया कि कोविड-19 के दृष्टिगत जनपद जौनपुर में लॉकडाउन का पालन कराने हेतु जनपद के प्रत्येक थानाध्यक्ष को 5-5 गांव के निरीक्षण हेतु निर्देशित किया गया था जिसके क्रम में शनिवार को 27 थानों में से 85 ग्रामों का निरीक्षण किया गया तथा कोतवाली जौनपुर में 02 लोगों के विरुद्ध मुकदमा अपराध संख्या 188/20 धारा 188, 269 आईपीसी व 3 महामारी अधिनियम 1997 के तहत लॉकडाउन का उल्लंघन करने के कारण समरजीत यादव पुत्र लालसा  यादव,  मोहम्मद आसिफ पुत्र मोहम्मद इस्लाम तथा थाना मछलीशहर में मुकदमा  अपराध संख्या 71/20 धारा 1170, 269 आईपीसी के तहत 05 लोगों अरुण कुमार उपाध्याय पुत्र सीताराम उपाध्याय, धीरेंद्र पुत्र राजाराम, रोहित कुमार पुत्र स्वर्गीय शिवशंकर, चंद्रमा सिंह पुत्र हरी प्रसाद, अंकित कुमार पुत्र श्याम नारायण सिंह के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया है। प्रतिदिन थाना प्रभारी स्वयं 05 गांव व उनके अधीन प्रत्येक उपनिरीक्षक पांच गांवों का भ्रमण करेंगे वह देखेंगे की निगरानी समिति सही ढंग से कार्य कर रही है कि नहीं तथा बाहर राज्यों से आए लोग होम क्वॉरेंटाइन कर 21 दिन का पालन हर हाल में करें, जो नहीं करेंगे उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज की जाएगी।
                                                 


इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी सेंटर जौनपुर द्वारा प्रशिक्षित बालिकाओं व महिलाओं को निःशुल्क सिलाई मशीन का किया गया वितरण

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी सेंटर जौनपुर द्वारा जिला संयोजक सत्येंद्र प्रताप सिंह की मौजूदगी में समस्त प्रशिक्षित बालिकाओं व महिलाओं को निःशुल्क सिलाई मशीन का वितरण किया गया। बालिकाओं व महिलाओं ने कहा कि यह सिलाई मशीन से मास्क बनाने का अभी उपयोग किया जायेगा। इस अवसर पर महेंद्र प्रताप सिंह, गणेश चौहान, प्रमोद, लाल जी सिंह, अजय सिंह आदि लोग उपस्थित रहे।



गोलू सिंह उर्फ शिवम सिंह नि0 ग्राम दरियाव गंज थाना बक्शा जौनपुर को गिरफ्तार कर दो अदद जिन्दा कारतूस 315 बोर का किया गया बरामद

श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय द्वारा अपराध नियत्रण हेतु वांछित अपराधियो के विरुद्ध चलाये जा रहे चेकिग अभियान के तहत श्रीमान पुलिस अधीक्षक ग्रामीण महोदय के प्रवेक्षण  एवं श्रीमान क्षेत्राधिकारी सदर महोदय के मार्गदर्शन में प्र0 नि0 विजयशंकर सिह मय हमराह द्वारा मु0अ0स0 101/20 धारा 307/323/504 भादवि से सम्बन्धित अभियुक्त गोलू सिंह उर्फ शिवम सिंह पुत्र राजेश कुमार सिह नि0 ग्राम दरियाव गंज थाना बक्शा जौनपुर को गिरफ्तार कर उसके कब्जे से दो अदद जिन्दा कारतूस 315 बोर का बरामद किया गया जिसके आधार पर मु0अ0सं0 103/20 धारा 3/25 आर्मस एक्ट पंजीकृत कर  आवश्यक विधिक कार्यवाही की जा रही है।  



गिरफ्तार अभियुक्तः-



  1. गोलू सिंह उर्फ शिवम सिंह पुत्र राजेश कुमार सिह नि0ग्राम दरियाव गंज थाना बक्शा जौनपुर                 


आपराधिक इतिहास-



  1. मु0अ0स0 101/2020धारा 323/504/307 भादवि थाना बक्शा जौनपुर।

  2. मु0अ0सं0 103/20 धारा 3/25 आर्मस एक्ट थाना बक्शा जौनपुर ।


 गिरफ्तारी करने वाली टीमः-


1.श्री विजयशंकर सिह, प्रभारी निरीक्षक थाना बक्सा जौनपुर।



  1. उ0नि0श्री हरिश्चन्द राव थाना बक्शा जौनपुर 


 3.हे0का0 संजय ओझा, का0 चंचल यादव थाना बक्शा जौनपुर