शनिवार, 23 मई 2020

यह कहने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि दफनाने से कोरोना वायरस फैलता है", बॉम्बे हाईकोर्ट ने बांद्रा कब्रिस्तान में शव दफनाने के खिलाफ याचिका खारिज

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मुंबई के कुछ निवासियों द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया है, जिन्होंने ग्रेटर मुंबई नगर निगम द्वारा COVID -19 पीड़ितों को दफनाने के लिए बांद्रा में तीन कब्रिस्तानों का इस्तेमाल करने की अनुमति को चुनौती दी थी, क्योंकि इससे एक समुदाय में भय फैल गया था।



मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एसएस शिंदे की खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता के दावे का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक डेटा नहीं है कि वायरस शव दफनाने से फैलता है और यह माना जाता है कि निगम को इस तरह की अनुमति देने और कब्रिस्तानों को तदनुसार सीमांकित करने का अधिकार है।


न्यायालय ने कहा कि शवों का सभ्य रूप से निपटान करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक पहलू है, और कहा कि याचिकाकर्ता "असंवेदनशील" हैं।


कोर्ट ने कहा कि हमने याचिकाकर्ताओं को दूसरों की भावनाओं के प्रति असंवेदनशील पाया है।


कोर्ट ने कहा,


"एक सभ्य दफन का अधिकार, व्यक्ति की गरिमा के अनुरूप, संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन के अधिकार के एक पहलू के रूप में मान्यता प्राप्त है।


इस प्रकार, ऐसा कोई कारण नहीं है कि इस संकट अवधि के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर इस कारण कि वह COVID-19 संक्रमण का संदिग्ध / पुष्टि वाला था, उसे उन सुविधाओं का हकदार नहीं माना जाए, जिसका हकदार वह सामान्य परिस्थितियों में होता।"


कोर्ट ने बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए रिट याचिका पर सुनवाई की और मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था।


पीठ ने कहा कि हालांकि यह अनुकरणीय लागत लगाने के लिए एक उपयुक्त मामला है, लेकिन क्योंकि COVOD -19 के फैलने की आशंका के परिणामस्वरूप मौजूदा स्थितियों के कारण याचिकाकर्ता डर गए थे, इसलिए कोई जुर्माना नहीं लगा रहे।


कोर्ट ने एमसीजीएम को COVOD -19 पीड़ितों के शवों को दफनाने के लिए दिशानिर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।


इससे पहले 4 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई से इनकार करते हुए इसे बॉम्बे हाईकोर्ट के पास भेजा था।


जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने इस मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट के पास भेजा और कहा है कि हाईकोर्ट दो सप्ताह के भीतर मामले का निपटारा करे।


पीठ ने कहा कि चूंकि बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला अंतरिम था, इसलिए ये उचित होगा कि हाईकोर्ट ही इस मामले की सुनवाई करे।


गौरतलब है कि मुंबई निवासी प्रदीप गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बॉम्बे हाईकोर्ट के 27 अप्रैल के एक अंतरिम आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने बांद्रा पश्चिम स्थित तीन कब्रिस्तानों में कोरोना से मरने वाले लोगों को दफनाए जाने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।


गांधी ने यह आशंका जताई थी कि कोरोना से मरने वाले लोगों को दफनाने से आसपास के इलाकों में वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा है क्योंकि इनके आसपास घनी आबादी है और करीब तीन लाख लोग रहते हैं। इसलिए इन लोगों को कहीं और दफनाया जाए जहां आबादी कम हो।


शुक्रवार, 22 मई 2020

नाबालिग से रेप का आरोपी निकला कोरोना पॉजिटिव, पुलिस महकमे में मचा हड़कंप

अजमेर. शहर के दरगाह थाना पुलिस (Dargah Police Station) की ओर से रेप के मामले में गिरफ्तार किए गए 3 आरोपियों में से एक की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव (Corona report positive) पाई गई है. आरोपी की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद से ही पुलिस महकमे में हड़कंप मचा हुआ है. मेडिकल टीम ने पॉजिटिव आये आरोपी को जेएलएन अस्पताल के कैदी वार्ड में शिफ्ट कर दिया है. उसके दो अन्य साथियों की रिपोर्ट आना अभी बाकी है.
दरगाह थाने के पुलिस के जवान सहमे
पुलिस अधीक्षक कुंवर राष्ट्रदीप का कहना है कि पुलिस के जवानों ने पूरी गाइडलाइन और दिशा निर्देशों की पालना के साथ आरोपियों की गिरफ्तारी और अनुसंधान किया था. लेकिन बावजूद इसके अगर फिर भी मेडिकल टीम किसी तरह की अनुशंषा करती है तो जवानों का सेम्पल टेस्ट कराया जा सकता है. आरोपी युवक के पॉजिटिव आने के बाद दरगाह थाने के पुलिस के जवान सहमे हुए हैं.

इस थाना इलाके में 125 से ज्यादा पॉजिटिव केस सामने आ चुके हैं

दरअसल पिछले दिनों दरगाह थाना क्षेत्र में रहने वाली नाबालिग पीड़िता ने पुलिस के सामने पेश होकर अपनी आपबीती बताई थी और आरोपियों के खिलाफ नामजद शिकायत दी थी. पुलिस ने मामले में तत्परता के साथ कार्यवाही करते हुए मंगलवार रात को 2 आरोपियों को गिरफ्तार लिया. उसके बाद बुधवार को एक और आरोपी को पकड़ने में सफलता हासिल कर ली. दरगाह थाना इलाका अजमेर में कोरोना का कन्टेनमेंट जोन बना हुआ है. अकेले इसी थाना इलाके से 125 से ज्यादा पॉजिटिव केस सामने आए हैं.


जोश में निकाली थी बारात लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि 60 दिन बाद रोते बिलखते घर लौटे

कानपुर. एक-दो दिन नहीं बल्कि 60 दिन तक मेहमान-नवाजी कराने वाली अनोखी बारात का किस्सा कानपुर व आसपास के क्षेत्रों में खूब चर्चा का विषय बन गया है. यहां पर एक बारात लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से 60 दिन बाद अब वापस आ पाई. चौबेपुर के हकीम नगर गांव में उस वक्त मजमा लग गया जब 60 दिन बाद बारात वापस गांव लौटी अपनों के बीच पहुंचने के बाद ये बाराती और घर वाले मिलकर खूब बिलख-बिलख के रोये भी हालांकि ये आंसू ख़ुशी के थे.


जनता कर्फ्यू फिर लॉकडाउन


दरअसल यहां के रहने वाले महमूद खान के पुत्र इम्तियाज का रिश्ता बिहार के बेगूसराय बलिया प्रखंड फतेहपुर गांव में मोहम्मद हामिद की भांजी खुशबू के साथ तय हुआ था. बारात लेकर गांव से मोहम्मद खान बिहार पहुंचे, 21 मार्च को शादी हुई और 22 मार्च को बारातियों की मेहमान नवाजी के बाद विदाई की तैयारी थी लेकिन 22 मार्च को जनता कर्फ्यू (Public Curfew) के कारण बारात वहीं रुक गई और फिर देशव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) की घोषणा हो गई जिसके बाद से पूरा परिवार 9 बारातियों के साथ वहीं पर रुक गया.



कभी रोटी-चटनी तो कभी सब्जी-चावल पर गुजरे दिन


बारातियों के कुछ दिन तो अच्छे गुजरे मगर कुछ दिन बाद बराती भी घर के सदस्य जैसे ही हो गए. लड़की के परिवार की भी आर्थिक हालत कुछ अच्छी नहीं थी, जैसे-तैसे रोटी-चटनी तो कभी सब्जी-चावल तो कभी दाल-चावल खाकर बारात ने दिन गुजारे. जब पूरी बारात के दूसरे प्रदेश में फंसने की खबर गांव पहुंची तो क्षेत्र के ही हिमांशु उर्फ गुड्डू ने केंद्र सरकार से गुहार लगाई और सभी को गाड़ी भेज कर लाया जा सका. इस बारात की वापसी देखने के लिए पूरे गांव में मजमा लग गया, सभी हैरत में थे कि आखिर 60 दिन तक कोई बारात कैसे रुक सकती है. चौबेपुर स्वास्थ्य केंद्र की टीम ने सभी बारातियों के स्वास्थ्य की जांच कर सभी को होम क्वारेन्टाइन (Home Quarantine) कर दिया है.


लड़के के पिता का कहना है कि लड़की की मां ने गांव में आसपास उधार लेकर जैसे-तैसे उनको इतने दिनों तक खाना खिलाया जबकि उनके आर्थिक हालात भी अच्छे नहीं थे. हालांकि अब बाराती घर तो जरूर आ गए हैं मगर मोहल्ले वाले ऐसी बारात से तौबा कर रहे हैं. वहीं क्षेत्र के रहने वाले एक समाजसेवी का कहना है कि क्षेत्र के सभी लोगों ने सहयोग करके बस करके पैसे इकट्ठा करके इन बारातियों को यहां पर बुलाया है जिसके लिए सभी बधाई के पात्र हैं.


Lockdown की छूट में महिला गई पार्लर, इधर बच्चों को बंधक बना 40 लाख की लूट

लखनऊ. कोरोना वायरस की रोकथाम को लेकर लागू लॉकडाउन (Lockdown) के चौथे चरण में सरकार ने देशभर में लगी कई पाबंदियों में ढील दी है. इसके तहत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में भी सैलून और ब्‍यूटी पार्लर (Beauty Parlor) खोलने की अनुमति आज से दी गई. लॉकडाउन में मिली यह छूट, आम जनों को तो राहत पहुंचाने वाली है, लेकिन अपराधी इसे भी मौके की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. कुछ ऐसा ही वाकया आज लखनऊ में सामने आया. यहां के थाना मड़ियांव क्षेत्र में आज बदमाशों ने एक परिवार में बच्चों को बंधक बनाकर ₹40 लाख रुपए मूल्य के जेवरात और नकद लूट लिए. शातिर अपराधियों ने इस वारदात को तब अंजाम दिया, जब मकान मालिक दफ्तर गया था और उनकी पत्नी पार्लर गई हुई थीं.



पिता का करीबी बता घर का दरवाजा खुलवाया


मड़ियाव के अजीज नगर में रहने वाले आशीष सिंह स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारी हैं. उनकी पत्नी घर से कुछ दूर ब्यूटी पार्लर चलाती हैं. आज करीब 2 महीने बाद लॉकडाउन में मिली छूट के तहत पार्लर खुले. सुबह में आशीष दफ्तर चले गए, वहीं उनकी पत्नी पार्लर चली गईं. घर पर 8 साल की बेटी अंशिका और 4 साल का बेटा अथर्व ही मौजूद थे. दोपहर 12 बजे के आसपास कुछ बदमाश आशीष के घर पहुंचे और बच्चों को उनके पिता का करीबी बताकर दरवाजा खुलवा लिया.घर में घुसने के बाद बदमाशों ने बच्चों को बंधक बनाकर करीब 30 लाख के जेवर और 10 लाख रुपए नकद लूटकर फरार हो गए. शातिर बदमाश बच्चों का मोबाइल लेकर भी चले गए. वारदात के बाद बच्चों ने पड़ोसी के मोबाइल से माता-पिता को लूट की सूचना दी. इसके बाद आशीष ने पुलिस को फोन किया, लेकिन पुलिस जब तक पहुंचती, तब तक बदमाश नौ-दो ग्यारह हो गए थे.


पुलिस ने ढाई लाख लूट की जानकारी दी


लूट की वारदात के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने अपराधियों की तलाश में आसपास के इलाकों की खाक छानी, मगर कुछ हासिल नहीं हुआ. लखनऊ की डीसीपी नॉर्थ शालिनी ने न्यूज 18 के साथ बातचीत में 2.5 लाख रुपए के लूट होने की जानकारी दी. लेकिन स्वास्थ्य विभाग के कर्मी आशीष ने मीडिया के साथ बातचीत के दौरान बताया कि बदमाशों ने घर में रखे सारे पैसे और जेवर पर हाथ साफ कर दिया. पत्नी से बात करने के बाद आशीष ने कहा कि लूटे गए जेवरात की कीमत 30 लाख से ज्यादा हो सकती है.


शादी का झांसा देकर रेप करता रहा सिपाही, प्रेग्नेंट होने पर युवती ने करवाया केस दर्ज

कानपुर. कोरोना (COVID-19) की जंग में इन दिनों कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें पुलिसकर्मी कोरोना योद्धा (Corona Warrior) बनकर मानवता का परिचय दे रहे हैं. लेकिन कानपुर (Kanpur) में एक सिपाही की करतूत से पुलिस महकमा शर्मसार हुआ है. जानकारी के मुताबिक झांसी में तैनात आमित नाम का सिपाही कानपुर में अपने मकान में किराये से रहने वाली युवती को शादी का झांसा देकर यौन शोषण (Rape) करता आ रहा था. युवती जब गर्भवती हो गयी तो वो उस पर गर्भपात का दबाब बनाने लगा. युवती ने इससे इनकार किया तो वो उसे जान से मारने की धमकी देने लगा. गुरुवार को पीड़िता ने थाने पहुंचकर अपने साथ हुए यौन शोषण और रेप की शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद पुलिस ने आरोपी सिपाही को गिरफ्तार कर लिया और उसे जेल भेज दिया.

पीड़ित युवती द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के मुताबिक आरोपी ने उसे अपने घर में किराए पर कमरा दिया था. वहां वो उसे शादी का झांसा देकर लंबे समय से रेप करता आ रहा था. पीड़िता जब तीन माह की गर्भ से हो गई तो उसने सिपाही से शादी करने के लिए कहा. आरोपी सिपाही उसे टालता रहा, लेकिन युवती को जब पता चला कि आरोपी अमित की शादी इलाहाबाद में किसी युवती के साथ तय हो गई है तो पीड़िता ने कल्याणपुर थाने पहुंचकर अपने साथ रेप की शिकायत दर्ज कराई.

पीड़िता की शिकायत पर आरोपी सिपाही भेजा गया जेल
आरोपी अमित कमल कल्याणपुर कला का रहने वाला है और वर्तमान में झांसी पुलिस लाइन में तैनात है. पुलिस अधीक्षक (एसपी) पश्चिमी डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि पीड़िता ने अपने साथ शादी करने का झांसा देकर कई बार रेप और गर्भवती करने की तहरीर दी है. युवती की तहरीर पर उचित कार्रवाई कर आरोपी सिपाही के खिलाफ अभियोग पंजीकृत कर जेल भेज दिया गया है. साथ ही झांसी में पुलिस अधिकारियों को भी इस मामले की जानकारी दे दी गई है.


जिलाधिकारी के आदेश के क्रम में नियमानुसार पात्र व्यक्तियों के राशन कार्ड बनाये गये है;जिला पूर्ति अधिकारी

 जिला पूर्ति अधिकारी ने अवगत कराया कि कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत जिलाधिकारी के आदेश के क्रम में नियमानुसार पात्र व्यक्तियों के राशन कार्ड बनाये गये है साथ ही जनपद-जौनपुर के अन्य प्रवासी मजदूर इत्यादि, जो दूसरे जिले अथवा प्रान्त में गये हुए थे, उनके इस जनपद में वापस आने से नये राशनकार्ड बनाये गये है अथवा उनके परिवार के कार्डो में उनके नाम यूनिट के रूप में जोड़े गये है। ऐसी स्थिति में शासन से जो उचित दर विक्रेताओं को खाद्यान्न का आवंटन प्राप्त हुआ है, वह नये राशनकार्डो/बढ़ी हुई यूनिटों पर प्राप्त नहीं हुआ है। स्पष्ट करना है कि उचित दर विक्रेताओं को वर्तमान वितरण माह से 02 माह पूर्व के 01 तारीख को विभागीय वेबसाइट पर प्रदर्शित कार्डो/यूनिटों के सापेक्ष खाद्यान्न आवंटन प्राप्त होता है। इसी प्रकार माह-मई 2020 में निःशुल्क वितरण हेतु चने व चावल का आवंटन क्रमशः 27 मार्च, 2020 व 01 अप्रैल, 2020 के राशन कार्ड/यूनिट पर प्राप्त हुआ है, जबकि ई-पॉस मशीन में जो डेटा अपलोड होता है, वह वर्तमान में प्रचलित राशनकार्ड/यूनिटों की संख्या अपलोड होता है। ऐसी स्थिति में विक्रेता को नये कार्ड अथवा नये वृद्धि किये गये यूनिटों पर खाद्यान्न प्राप्त नहीं होता है। ऐसी स्थिति में विक्रेता द्वारा पुराने कार्डो पर खाद्यान्न अवशेष होने पर ही नये कार्डधारकों/वृद्धि यूनिटों को दिया जाना सम्भव हो पाता है।
उपरोक्त के क्रम में नये कार्डधारकों को अवगत कराना है कि शासन द्वारा वितरण की अंतिम तिथि/प्रॉक्सी तिथि 25 मई, 2020 को संशोधित करते हुए 24 मई, 2020 को प्रॉक्सी तिथि निर्धारित कर दिया गया है। अतः समस्त विक्रेताओं को निर्देशित किया जाता है कि 24 मई 2020 को निर्धारित प्रॉक्सी दिवस पर पुराने राशनकार्डो/यूनिटों पर वितरण करने के उपरान्त अवशेष खाद्यान्न का वितरण नये राशनकार्डधारकों/बढ़ी हुई यूनिटों को अवश्य करेंगे, किसी भी दशा में अवशेष खाद्यान्न होने पर नये कार्डधारकों को खाद्यान्न से वंचित न किया जाये।


महानिबंधक, माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के मार्गदर्शन में जनपद न्यायालयों में 22 मई से संपादित किया जाएगा न्यायिक कार्य 

जनपद न्यायाधीश मदन पाल सिंह ने बताया है कि महानिबंधक, माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा जनपद न्यायालयों में 22 मई से न्यायिक कार्य प्रारंभ किए जाने के संबंध में मार्गदर्शक बिंदु निर्धारित किए गए हैं ।उन्होंने बताया कि जनपद जौनपुर का न्यायालय परिसर परिरोधन क्षेत्र (containment zone) में नहीं है। उक्त के आधार पर माननीय न्यायालय से प्राप्त निर्देशानुसार ऑरेंज जोन में स्थित जनपद न्यायालयों में 22 मई 2020 से अग्रिम आदेश तक न्यायिक कार्य संपादन किए जाने हेतु निम्नलिखित मार्गदर्शक दिए गए हैं। तदनुसार 22 मई से न्यायिक कार्य  संपादित किया जाएगा । उन्होंने बताया कि न्यायालय परिसर को न्यायिक कार्य हेतु खोले जाने से पूर्व न्यायालय परिसर स्थित समस्त भवनों को सैनिटाइज किया जाएगा। प्रशासन के परामर्श से कोविड 19 के संकट का स्तर एवं जनपद में जोन की स्थिति की दैनिक समीक्षा की जाएगी और यथास्थिति दैनिक आधार पर वेवलिंक पर इसे अपलोड किया जाएगा। माननीय उच्चतम न्यायालय/माननीय उच्च न्यायालय,इलाहाबाद द्वारा न्यायिक अधिकारिता एवं भारत सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा कोविड-19 के संबंध में पारित किए गए निर्देशों/मार्गदर्शन का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा। न्यायालयों में न्यायिक कार्य संपादन हेतु पैतृक न्यायालयों एवं विशेष अधिकारिता वाले न्यायालयों द्वारा एवं विशेष परिस्थिति में अन्य न्यायालय द्वारा कार्य किया जाएगा । इसमें जनपद न्यायाधीश व प्रथम अपर न्यायाधीश,प्रधान न्यायाधीश, कुटुंब न्यायालय, विशेष अधिकारिता का प्रयोग करने वाले सभी न्यायालय, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी,प्रथम एवं न्यायिक दंडाधिकारी,द्वितीय, सिविल जज सीनियर डिविजन, सिविल जज जूनियर डिविजन शहर ,सिविल जज जू.डि.शाहगंज एवं सिविल जज जू.डि.जौनपुर द्वारा वादों की सुनवायी की जाएगी। प्रभावी अवधि के दौरान न्यायिक अधिकारियों द्वारा नए/लंबित प्रकरणों के एडमिशन पर सुनवाई, लंबित/नए जमानत प्रार्थना पत्रों पर सुनवाई, लंबित एवं नये जमानत प्रार्थना पत्रों पर सुनवाई, वाहनों को अवमुक्त किए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र एवं लघु अपराध के वादों की सुनवायी, लंबित/नए आवश्यक निषेधाज्ञा प्रार्थना पत्रों की सुनवाई, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 176 के अंतर्गत प्राप्त होने वाले पुलिस आख्या का निस्तारण, विवेचक द्वारा प्रस्तुत गैर जमानती अधिपत्र दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82/83 के आवेदन एवं धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कथन किए जाने वाले प्रार्थना पत्रों का निस्तारण, विचाराधीन बंदियों की रिमांड/अन्य न्यायिक कार्यवाही का संपादन केवल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किया जाएगा । माननीय जनपद न्यायाधीश ने बताया कि न्यायालय में कार्रवाई के दौरान पुरुष अधिवक्तागणों द्वारा सफेद शर्ट, हल्के रंग के पैंट के साथ बैंड का प्रयोग किया जाएगा तथा महिला अधिवक्तागण द्वारा उपयुक्त  हल्के रंगों का परिधान बैंड के साथ प्रयोग किया जाएगा। न्यायिक अधिकारियों को कोट  तथा गाउन पहनने से मुक्त किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक कार्य दिवस में नियत कार्य पूर्ण होने पर सभी न्यायिक अधिकारी एवं कर्मचारी न्यायालय परिसर से चले जाएंगे। प्रभावी अवधि के दौरान आवश्यकता के अनुरूप सीमित संख्या में शपथ आयुक्तगण, स्टांप विक्रेताओं एवं टाइपिस्ट को परिसर में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी ।उन्होंने बताया कि न्यायालय परिसर में प्रवेश करने वाले सभी व्यक्तियों की थर्मल स्कैनिंग जांच प्रत्येक कार्य दिवस में की जाएगी। वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत केवल ऐसे न्यायालय कक्ष खोले जाएंगे जहां पर सुनवाई हेतु अधिवक्तागण को उपस्थित होना है ,ऐसे न्यायालय कक्षों में समुचित दूरी पर चार कुर्सियां रखी जाएगी। न्यायालय कक्ष में प्रवेश करने वाले सभी व्यक्ति द्वारा मास्क का प्रयोग किया जाएगा।


वर्चुअल कोर्ट से न्याय पाने में असमर्थ हैं मुविक्कल'': बार काउंसिल ऑफ इंडिया करेगी अदालतों में नियमित सुनवाई फिर से शुरू करने पर परामर्श

मुविक्कलों को वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से न्याय नहीं मिल पा रहा है, यह कहते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने बुधवार को निर्णय किया है कि वह सभी अदालतों में नियमित सुनवाई फिर से शुरू करने के मामले में परामर्श करने लिए देशभर के वकीलों और वादकारियों से बातचीत करेगी। बीसीआई की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि ''वह (बीसीआई) न्यायालयों में नियमित सुनवाई को फिर से शुरू करने के बारे में सबकी राय जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वरिष्ठ और अन्य अधिवक्ताओं से परामर्श करेगी। एक तरफ COVID 19 के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वादियों और अधिवक्ताओं की समस्याएं बढ़ रही हैं।''   20 मई को हुई अपनी बैठक में बीसीआई की जनरल काउंसिल ने इस संबंध में एक प्रस्ताव पास किया है। इस मामले में स्टेट बार काउंसिल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ,सभी हाईकोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट बार एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य अधिवक्ताओं की राय मांगी जाएगी। बीसीआई का कहना है कि कुछ हाईकोर्ट में तत्काल मामलों को लेकर 'पिक एंड चूज' की नीति अपनाने संबंधी शिकायतें उनके पास आ रही हैं। वहीं असंतोषजनक वाई-फाई कनेक्शन और अन्य तकनीकी समस्याओं के कारण वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए की जा रही सुनवाई में भी लगाकर समस्याएं आ रही है। इस संबंध में भी उनको कई शिकायत मिली हैं।  बीसीआई ने कहा कि ''हम इस प्रक्रिया में प्रभावी सुनवाई की उम्मीद नहीं कर सकते है। वास्तव में देश के विभिन्न न्यायालयों में क्या चल रहा है, जनता और अधिवक्ता उसके बारे में अनभिज्ञ हैं।'' बीसीआई ने कई बार एसोसिएशन और वरिष्ठ अधिवक्ताओं की राय भी साझा की है, जिनके जरिए उनको पता चला है कि ''कुछ लोग लॉकडाउन (लगभग बंद पड़ी अदालतों का ) का अनुचित लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। हाई-प्रोफाइल संबंध रखने वाले कुछ वकील और लाॅ-फर्म कानूनी पेशे को धीरे-धीरे हाईजैक करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि पूरी प्रणाली आम अधिवक्ताओं के हाथ से बाहर जा रही है। परिषद ने कहा कि वह पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ अदालतों में नियमित सुनवाई या शारीरिक कामकाज को फिर से शुरू करने के मामले में सुझाव एकत्रित करने के लिए स्टेट बार काउंसिल और बार एसोसिएशन के माध्यम से एक जनमत सर्वेक्षण आयोजित करने जा रही है। परिषद ने भारत के मुख्य न्यायाधीश और सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से आग्रह किया है कि वह वास्तविक कठिनाइयों पर ध्यान दें। बीसीआई ने कहा कि "यह विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया जा रहा है कि बार से परामर्श किए बिना और बार को विश्वास में लिए बिना, यदि कोई निर्णय लिया जाता है तो वह सफल नहीं हो पाएगा।'' बीसीआई ने कहा कि उन्होंने यह भी प्रस्ताव पास किया है कि वह प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्रियों से अनुरोध करेंगे कि वे ''जरूरतमंद वकीलों की सहायता करें और उनके पेशेवर नुकसान को दूर करने में उनकी मदद करें।'' ''इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट बार काउंसिल और देश के बार एसोसिएशन अपनी क्षमता के अनुसार इस तरह के जरूरतमंद अधिवक्ताओं की मदद करते रहे हैं। हालांकि, इन संगठनों के संसाधन सीमित हैं।'' उन्होंने कहा कि ''इसलिए जब तक सरकार उनके बचाव में नहीं आती है, तब तक उनकी समस्याओें का समाधान नहीं होने वाला है। देश के सभी बार एसोसिएशनों को एक प्रस्ताव पारित करके स्थानीय सांसद, विधायकों और जिला कलेक्टरों के माध्यम से प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्रियों को भेजना चाहिए।'' बीसीआई ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश और सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से संपर्क करके उनसे यह आग्रह किया जाएगा कि वह वकीलों की उन समस्याओं पर विचार करें,जिनका सामना वकील अदालतों में मामलों की सुनवाई के दौरान वास्तव में कर रहे हैं। उन्होंने यह भी निर्णय किया है कि वह सीजेआई एसए बोबड़े और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ से भी अनुरोध करेंगे कि वे संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दें कि ''वर्चुअल सुनवाई के समय उन सभी अधिवक्ताओं को लिंक प्रदान करें ,जो मामले से संबंधित हैं या जो वरिष्ठ अधिवक्ता की सहायता कर रहे हैं या सुनवाई में भाग ले रहे हैं।''



एन राम और अन्य के खिलाफ दायर मानहा‌नि के मामले रद्द किए मद्रास हाईकोर्ट

प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसले में मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को संपादक-पत्रकार एन राम,एडिटर-इन-चीफ, दि हिंदू, सिद्धार्थ वरदराजन, नक्कीरन गोपाल आदि के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायतों को खारिज कर दिया। इन सभी के खिलाफ 2012 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता के खिलाफ कुछ रिपोर्टों के मामले में "राज्य के खिलाफ आपराधिक मानहानि" का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की गई थी। श‌िकायत में कहा गया था कि रिपोर्ट राज्य सरकार के एक पदाधिकारी की मानहानि के बराबर है। लोक अभियोजक ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 199 (2) के तहत सत्र न्यायालय के समक्ष शिकायतें दायर की थीं। धारा 199 (2) सीआरपीसी भारतीय दंड संहिता की धारा 499/500 के तहत राज्य / संवैधानिक पदाधिकारियों के खिलाफ मानहानि के अपराधों के लिए एक विशेष प्रक्रिया का निर्धारण करती है। मौजूदा मामले में लोक अभियोजक ने राज्य की ओर से सत्र न्यायालय श‌ि‌कायत दायर की थी। सामान्य रूप से मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष सामान्य मानहानि के मुकदमे दायर किए जाते हैं। हाईकोर्ट में दायर रिट याचिकाओं में उन सरकारी आदेशों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई ‌थी, जिनके तहत सरकारी अभियोजक को रिपोर्टों के संबंध में धारा 199 (2) सीआरपीसी के तहत शिकायत दर्ज करने की मंजूरी दी गई। जस्टिस अब्दुल कुद्धोज की पीठ ने कहा कि राज्य के लिए, न‌िजी पक्षों की तुलना में, नागरिकों के खिलाफ आपराधिक मानहानि शुरू करने की उच्च मानदंड हैं। कोर्ट ने 152-पृष्ठ के फैसले में कहा, "आपराधिक मानहानि कानून आवश्यक मामलों में एक प्रशंसनीय कानून है, लोक सेवक/संवैधानिक पदाधिकारी अपने



प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ राज्य के जरिए इसका इस्तेमाल अपनी खुन्नस के ‌लिए नहीं कर सकते। लोक सेवकों/ संवैधानिक पदाधिकारियों को आलोचना का सामना करने में सक्षम होना चा‌हिए। ....राज्य आपराधिक मानहानि के मामलों का उपयोग लोकतंत्र को कुचलने नहीं कर सकता है।" कोर्ट ने कहा कि राज्य को आलोचना के मामलों में उच्च सहिष्णुता का प्रदर्शन करना चाहिए, और मुकदमे शुरु करने के लिए "आवेगात्मक" नहीं हो सकता है। "राज्य को मानहानि के मामलों में एक आम नागरिक की तरह आवेगी नहीं होना चाहिए और लोकतंत्र को कुचलने के लिए धारा 199 (2) सीआरपीसी को लागू नहीं करना चाहिए। केवल उन्हीं मामलों में जहां पर्याप्त सामग्री हो और जब धारा 199 (2) सीआरपीसी के तहत अभियोजन अपरिहार्य है, उक्त प्रक्रिया को लागू किया जा सकता है।" राज्य की तुलना "अभिभावक" से करते हुए कोर्ट ने कहा, "जहां तक ​​मानहानि कानून का संबंध है, राज्य सभी नागरिकों के लिए अभिभावक की तरह है। अभिभावकों के लिए अपने बच्चों की ओर से अपमान का सामना करना सामान्य है। अपमान के बावजूद, माता-पिता अपने बच्चों को आसानी से नहीं छोड़ते। दुर्लभ मामलों में ही ऐसा होता है जब बच्चों का चरित्र और व्यवहार गैरकानूनी हो जाता है, और माता-पिता ने उन्हें छोड़ देते हैं। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में जस्टिस दीपक गुप्ता, पूर्व जज, सुप्रीम कोर्ट, और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जज, सुप्रीम कोर्ट के हालिया भाषणों का हवाला भी दिया था, जिसमें उन्होंने लोकतंत्र में असंतोष के महत्व पर रोशनी डाली थी और विरोध की आवजों को कुचलने के लिए आपराधिक कानूनों का इस्तेमाल की बढ़ती प्रवृत्ति की आलोचना की थी। कोर्ट ने डॉ सुब्रमण्यम स्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपराधिक मानहानि के उपयोग के लिए तय सिद्धांतों का उल्लेख किया। याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता की धारा 499/500 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी थी, हालांकि हाईकोर्ट ने उस पहलू पर विचार नहीं किया, क्योंकि 2016 में सुब्रमण्यम स्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट इसकी वैधता पर विचार कर चुका था। दो हफ्ते पहले, मद्रास हाईकोर्ट ने इकोनॉमिक टाइम्स के एक संपादक और रिपोर्टर के खिलाफ आपराधिक मानहानि की कार्यवाही को रद्द कर दिया था और कहा ‌था कि मात्र रिपोर्टिंग में गलतियां मानहानि का आधार नहीं हो सकती हैं। धारा 199 (2) के तहत सत्र न्यायालय द्वारा जांच का स्तर आंकड़ों की जांच करने के बाद कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2012 से 2020 तक विभिन्न सत्र न्यायालयों में 226 मामले लंबित है। सत्ता में कोई भी राजनीतिक दल रहा हो, धारा 199 (2) सीआरपीसी के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। अदालत ने कहा कि धारा 199 (2) सीआरपीसी के तहत शिकायतों के यांत्रिक दाखिले के कारण, कभी-कभी सत्र न्यायालयों में मुकदमो की भरमार हो जाती है। इस पृष्ठभूमि में, कोर्ट ने सत्र न्यायाधीशों को याद दिलाया कि उन्हें राज्य द्वारा दायर आपराधिक मानहानि की शिकायतों के संबंध में उच्च स्तर की जांच करनी चा‌हिए। लोक अभियोजक पोस्ट ऑफिस की तरह काम नहीं कर सकते न्यायालय ने कहा कि लोक अभियोजक को राज्य के निर्देशों पर शिकायत दर्ज करने के लिए "डाकघर" की तरह काम नहीं करना चाहिए, और शिकायत दर्ज करने से पहले स्वतंत्र रूप से आरोपों की जांच करनी चाहिए। मानहान‌ि के तत्व गायब हैं न्यायालय ने उल्लेख किया कि धारा 199 (2) सीआरपीसी के तहत सरकारी वकील के जर‌िए मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक मुख्य तत्व अर्थात् "राज्य की मानहानी" ही गायब होता है। सभी मामलों में, सरकारी वकील को मुकदमे की स्वीकृति प्रदान करते समय, संबंधित अनुमोदन आदेश इस मसले पर पूरी तरह चुप रहता है कि क्या राज्य को लोकसेवक / संवैधानिक पदाधिकारी उसके सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन के दौरान के कथित मानहानि के आधार पर बदनाम किया गया है। मीडिया को आत्म-नियमन करना चा‌हिए कोर्ट ने मीडिया को आत्म-नियमन का महत्व समझाते हुए कहा- "हमारे राष्ट्र ने हमेशा मीडिया की भूमिका का सम्मान किया है। उनकी स्वतंत्रता और सच्ची रिपोर्टिंग को सर्वोच्च सम्मान दिया गया है। लेकिन बीते कई वर्षों से मीडिया सहित लोकतंत्र के हर क्षेत्र में क्षरण हो रहा है। अगर इसे जल्द से जल्द खत्‍म नहीं की गई ‌तो यह आग की तरह फैल जाएगाी, जिससे हमारे लोकतंत्र को भारी नुकसान होगा। " केस का विवरण टाइटल: थिरु एन राम, एडिटर-इन-चीफ, "द हिंदू" बनाम यू‌नियन ऑफ इंडिया और जुड़े मामले कोरम: जस्टिस अब्दुल कुद्धोज प्रतिनिध‌ित्व: वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस रमन, आई। सुब्रमण्यन, अधिवक्ता पीटी पेरुमल, प्रशांत राजगोपाल, एस. एलम्भारती, एम स्नेहा, पी कुमारेसन, बीके गिरिश नीलकांतन ( याचिकाकर्ताओं के लिए)। मदन गोपाल राव, केंद्र सरकार की ओर से, एसआर राजगोपालन, अतिरिक्त महाधिवक्ता, सा‌थ में अध‌िवक्ता के रविकुमार।

https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/state-should-not-be-impulsive-like-an-ordinary-citizen-in-defamation-matters-and-invoke-sec-1992-crpc-to-throttle-democracy-madras-hc-quashes-cases-against-n-ram-ors-157126


मुस्लिम होने की गलतफहमी के कारण चलाई थी लाठी ; मध्यप्रदेश में वकील की पिटाई करने के बाद पुलिस ने बनाया दबाव कहा, मामला वापस ले लो

मध्यप्रदेश के बैतूल में पुलिस की ज़्यादतियों का शिकार स्थानीय अधिवक्ता दीपक बुंदेले पर पुलिस मामला वापस लेने का दबाव बना रही है। अधिवक्ता दीपक बुंदेले की पुलिस ने 23 मार्च को निर्ममता से सरे आम पिटाई की थी, जिसके बाद उन्होंने विभिन्न फोरम पर इसकी शिकायत की थी। अब पुलिस मामला वापस लेने के लिए दबाव बना रही है। पुलिस ने मौखिक रूप से माफी मांगी जिसमें उसने बुंदेले से कहा कि उसकी दाढ़ी देखरेख उसे मुस्लिम समुदाय का समझकर पीटा गया।


यह थी घटना अधिवक्ता दीपक बुंदेले 23 मार्च 2020 को नगर के लल्ली चौक पर पुलिसकर्मियों ने बेरहमी से पीटा था, जिससे उनके कान का पर्दा फट गया था। बुंदेले 15 साल से डायबिटीज के मरीज हैं और दवाई लेने के लिए अस्पताल जा रहे थे, तभी शहर में सीआरपीसी की धारा 144 लागू होने के कारण पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिए रोका। बुंदेले ने लाइव लॉ से कहा कि उन्होंने पुलिसकर्मियों को बताया कि वे डायबिटीज के मरीज हैं और दवाई लेने के लिए अस्पताल जा रहे हैं, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उनसे बदतमीजी की और लाठियों से उन्हें पीटा। घटना के समय लॉकडाउन शुरू नहीं हुआ था लेकिन धारा 144 लागू थी। बुंदेले ने कहा कि उन्होंने पिटते हुए पुलिसकर्मियों से कहा कि मारो मत, चाहो तो धारा 144 के उल्लंघन की कार्रवाई कर दो। घटना के बाद अधिवक्ता बुंदेले जैसे तैसे अपने भाई और परिचितों की मदद से अस्पताल पहुँचे। इस दौरान वहीं से उन्होंने जिला बार काउंसिल के अध्यक्ष संजय मिश्रा को अपने साथ हुई घटना के बारे में जानकारी दी, जो तुरंत उनसे मिलने पहुंचे। इस संबंध में बुंदेले ने पुलिस और प्रशासन के आला अफसरों से शिकायत करने साथ साथ विभिन्न बार काउंसिल को भी मामले से अवगत करवाया। इसके बाद पुलिस ने पहले तो बुंदेले से माफी मांगने की बात कही और बाद में मामला वापस लेने के लिए दबाव बनाया। बुंदेले ने अपने साथ हुई इस ज़्यादती की शिकायत ज़िले के एसपी , आईजी, डीआईजी और बार काउंसिल में की। पीड़ित ने मुख्यमंत्री को भी इस संदर्भ में पत्र लिखा। 17 मई को संबधित थाने से कुछ पुलिसकर्मी बुंदेले के घर आए और उनसे मामला वापस लेने को कहने लगे। इस दौरान बुंदेले ने मोबाइल का वॉइस रिकॉर्डर ऑन कर दिया, जिसमें पुलिसकर्मियों और बुंदेले की बात रिकॉर्ड हुई। एक पुलिसकर्मी ने बुंदेले से कहा कि" मुस्लिम समझकर उस पुलिस वाले ने तुम्हें पीट दिया, अब मामला खत्म करो।" इस पर बुंदेले ने कहा कि वो बार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को पत्र लिखकर यह मामला बता चुके हैं, अब मामला वापस लेना सही नहीं होगा। बुंदेले ने 18 मई को अपने वकील एहतेशाम हाशमी के माध्यम से डीजीपी, भोपाल को पत्र लिखकर पुलिस के मामला वापस लेने के लिए दबाव बनाने की शिकायत की।



समाजसेवी दिलीप तिवारी द्वारा रोडवेज कर्मचारियों में वितरण हेतु जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह एवं पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार को दिये 1200 मास्क


       समाजसेवी दिलीप तिवारी द्वारा कलेक्ट्रेट कक्ष में रोडवेज कर्मचारियों में वितरण हेतु 1200 मास्क जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह एवं पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार को दिये गए। दिलीप तिवारी द्वारा अब तक जनपद में दो लाख एक मास्क बनाकर निःशुल्क गरीबों में वितरण हेतु उपलब्ध कराए जा चुके हैं। जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक द्वारा उनके इस कार्य के लिए सराहना की गई।



राज्य सरकार की सहकारी बैंकों के ऋण धारको के लिए एक मुश्त ऋण समाधान योजना की अन्तिम तिथि जो 31 मार्च .2020 थी उसे अग्रिम आदेशों तक आगे बढाया गया

 उ0प्र0 सहकारी ग्राम विकास बैंक लि0 जौनपुर के क्षेत्रीय प्रबन्धक डा0 अवधेशचन्द शर्मा ने बताया है कि राज्य सरकार की सहकारी बैंकों के ऋण धारको के लिए एक मुश्त ऋण समाधान योजना की अन्तिम तिथि जो 31 मार्च .2020 थी उसे अग्रिम आदेशों तक आगे बढाया गया है ताकि इस योजना का लाभ अधिक से अधिक कृषकों को मिल सके।
उ0प्र0 सहकारी ग्राम विकास बैंक लि0 के क्षेत्रीय प्रबंधक एवं वरिष्ठ प्रबंधक विजय कुमार वर्मा शाखा जौनपुर की उपस्थित में शुक्रवार को एक मुश्त समाधान योजना की जानकारी दी गयी है। वरिष्ठ प्रबंधक ने बताया कि जिले की पाॅचों शाखाए क्रमशः जौनपुर केराकत, मछलीशहर, मडियाह,ॅू एवं शाहगंज में कुल पात्र सदस्य 2362 है जिनपर 3206.86 लाख बकाया है अभी तक 162 सदस्यों से 125.44 लाख रू0 जमा कराया जा चुका है तथा उन्हे 149.61 लाख की छूट प्रदान की गयी है । वरिष्ठ प्रबन्धक ने बताया कि शाखा जौनपुर के 20 सदस्यों ने 11.61 लाख जमा कराया गया है इन्हे 23.23 लाख की छूट प्रदान की गयी ह,ै बताया गया कि सहकारी ग्राम विकास बैंको के ऐसे ऋणी सदस्यों को इस योजना में सम्मिलित किया गया है जो किन्ही कारणों से ऋण की अदायगी नही कर सके है । इस योजना का लाभ अधिक से अधिक प्राप्तकरें (समय सीमा के अन्तर्गत) समीक्षा के दौरान शाखा पर सभी कर्मचारी उपस्थित रहें।


जिला भाजपा महिला मोर्चा कार्यकर्ताओं द्वारा जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक को कलेक्ट्रेट कक्ष में किया गया सम्मानित

 जिला भाजपा महिला मोर्चा केराकत एवं जौनपुर की कार्यकर्ताओं द्वारा  कोविड-19 के तहत किए गए सराहनीय कार्य के कारण जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह एवं पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार को कलेक्ट्रेट कक्ष में सम्मानित किया गया ।इस अवसर पर भाजपा महिला मोर्चा की सोनिया गिरी, राखी सिंह, उपमा गुप्ता, शालू सिंह, प्रियंका सिंह उपस्थित रहीं।