गुरुवार, 4 जून 2020

बांदा में दुबई से लौटे युवक ने फांसी लगाकर की आत्महत्या





प्रतीकात्मक तस्वीर







उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के शहर कोतवाली क्षेत्र के स्वराज कॉलोनी में दुबई से लौटे एक युवक ने फांसी लगाकर कथित रूप से आत्महत्या कर ली. पुलिस ने इसकी जानकारी दी. शहर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक (एसएचओ) ने बुधवार को बताया, 'शहर कोतवाली के स्वराज कॉलोनी गली नम्बर-5 में मंगलवार दोपहर मनोज गुप्ता (26) मकान के बरामदे में पंखे की हुक में फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली है. घटना के समय परिवार के अन्य सदस्य मकान की ऊपरी मंजिल में थे.'




कोविड-19 की जांच के बाद महिला ने अस्पताल के टॉयलेट में फांसी लगाकर की खुदकुशी


त्रिपुरा के जीबी पंत अस्पताल में कोविड-19 की जांच के एक दिन बाद एक महिला ने कथित तौर पर अस्पताल के शौचालय की छत से फांसी लगाकर खुदकुशी कर लीअगरतला त्रिपुरा के जीबी पंत अस्पताल में कोविड-19 की जांच के एक दिन बाद एक महिला ने कथित तौर पर अस्पताल के शौचालय की छत से फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली. एक अधिकारी ने यह जानकारी दी. पुलिस को शक है कि 50 वर्षीय महिला के मन में संक्रमण का डर बैठ गया था और दहशत के मारे आत्महत्या कर ली होगी. स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव एसके राकेश ने कहा कि महिला को सोमवार को अस्पताल के फ्लू वार्ड में भर्ती कराया गया था.राकेश ने कहा, 'महिला का शव सुबह करीब पांच बजे अस्पताल के शौचालय की छत से लटका पाया गया, जबकि उसकी कोविड-19 रिपोर्ट सुबह 11 बजे आई. रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि हो गई.' महिला की मां सोमवार की रात उसे अस्पताल ले गई थी और उसने मंगलवार सुबह अपनी बेटी को बिस्तर से गायब पाया.एक पुलिस अधिकारी ने कहा, 'अस्पताल में बहुत खोजने के बाद, उसकी मां ने शव को शौचालय की छत से लटका पाया.'उन्होंने कहा कि महिला पहले से किडनी रोग और सांस की बीमारी से ग्रसित थी. उन्होंने कहा कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया और अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया गया है


सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल जज का कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे याचिकाकर्ता को बॉम्‍बे हाईकोर्ट जाने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मालेगांव ब्लास्ट मामले की त्वरित सुनवाई की के लिए ट्रायल जज के कार्यकाल को बढ़ाने की मांग कर रहे पर‌िजनों को बॉम्बे हाईकोर्ट जाने के लिए कहा है। मालेगांव ब्लास्ट की सुनवाई कर रहे मुम्बई की विशेष एनआईए कोर्ट के पीठासीन अधिकारी श्री पाडालकर, 29 फरवरी, 2020 को सेवानिवृत्ति चुके हैं। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने धमाके के पीड़ित के पिता को त्वरित सुनवाई के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट समक्ष अपील करने को कहा। पीठ ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ ज‌स्टिस इस सबंध में उचित निर्णय ले सकते हैं। Also Read - COVID 19 के बारे में चीन और WHO से पूरी जानकारी लेने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग : सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर पीठ, मालेगांव के 60 वर्षीय निवासी निसार अहमद सैय्यद बिलाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव के भिक्कू चौक पर हुए विस्फोट में उनके बेटे सैय्यद अजहर निसार अहमद की मौत हो गई ‌थी। याचिकाकर्ता की दलील थी कि मामले की सुनवाई में हो रही देरी संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है। याचिका में कहा गया था, "मुकदमे में हुई देरी के कारण याचिकाकर्ता और अन्य पीड़ितों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, याचिकाकर्ता त्वरित ट्रायल का हकदार है और विशेषकर तब, जबकि याचिकाकर्ता का बेटा धमाके में मारा गया हो।" Also Read - सुप्रीम कोर्ट ने असम को इनर लाइन एरिया से बाहर रखने वाले राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगाने से इनकार किया, केंद्र से जवाब मांगा याचिका में कहा गया था कि दुर्घटना 29 सितंबर 2008 की है, लेकिन मुकदमे के ट्रायल में 12 साल लग गए हैं और अब जज को बदलने पर और देर होगी, क्योंकि नए जज को सारे सबूतों को समझने में समय लगेगा। याचिकाकर्ता की दलील थी, "वह पिछले एक साल और 4 महीनों में 140 गवाहों के परीक्षण में सक्षम रहे थे। नया जज मामले के रिकॉर्डों को, जो कि हजारों पन्नों में है, और समय लेगा। पीठासीन अधिकारी रिकॉर्डों से वाकिफ थे, और उनका कार्यकाल बढ़ाना न्याय के हित में होगा।" याचिकाकर्ता ने इससे पहले एक फरवरी, 2020 को बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ ज‌स्टिस से पीठासीन अधिकारी के कार्यकाल के विस्तार के लिए अनुरोध किया था। हालांकि, उस संबंध में कोई निर्देश पारित नहीं किया गया। मालेगांव विस्फोट मामले के मुकदमे की प्रभावी प्रगति न होने के कारण 26 फरवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की खिंचाई भी की थी। इसके बाद, 27 फरवरी को, भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जो मालेगांव विस्फोट मामले के प्रमुख अभियुक्तों में से एक हैं, मुंबई की विशेष अदालत में पेश हुईं थीं। ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात लोग इस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। मालेगांव बम विस्फोटों छह लोग मारे गए थे और 100 से अधिक घायल हो गए ‌थे।


जब अपहरण के बाद हत्या होती है तो कोर्ट अपहरणकर्ता को हत्यारा मान सकता है: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने तमिलनाडु के नेता एम के बालन को 2001 में हुए अपहरण और हत्या का दोषी करार दिया है। दो-सदस्यीय खंडपीठ के खंडित फैसले के कारण इस मामले को तीन-सदस्यीय पीठ को सौंपा गया था। न्यायमूर्ति (अब सेवानिवृत्त) वी. गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने 2016 में इस मामले में खंडित निर्णय दिया था। न्यायमूर्ति गौड़ा ने आरोपी को बरी कर दिया था, जबकि न्यायमूर्ति मिश्रा ने अभियुक्त को दोषी ठहराया था। (सोमासुन्दरम उर्फ सोमू बनाम पुलिस आयुक्त के माध्यम से राज्य सरकार, (2016) 16 एससीसी 355) उसके बाद इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के. एक. जोसेफ और न्यायमूर्ति वी. रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने की। बेंच ने इस मामले के साक्ष्य का आकलन करते हुए व्यवस्था दी कि अपहरण के बाद हुई हत्या के मामले में अपहरणकर्ता को हत्यारा माना जा सकता है। खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ द्वारा लिखे गये फैसले में कहा गया है, "यथोचित मामले में अपहरण के बाद हत्या की घटना कोर्ट को यह मानने में सक्षम बनाती है कि अपहरणकर्ता ही हत्यारा है। सिद्धांत यह है कि अपहरण के बाद अपहरणकर्ता ही यह बता पाने की स्थिति में होगा कि पीड़ित का अंतत: क्या हुआ और यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है तो यह स्वाभाविक है और तार्किक भी कि कोर्ट के लिए आवश्यक रूप से यह निष्कर्ष निकालना सहज हो सकता है कि उसने (अपहरणकर्ता ने) बदनसीब पीड़ित को खत्म कर दिया है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 भी अभियोजन के पक्ष में ही होगी।" बेंच ने आगे लिखा, "जहां अपहरण के बाद अपहृत व्यक्ति को गैर-कानूनी तरीके से कैद करके रखा जाता हो और बाद में उसकी मौत हो जाती है, तो यह अपरिहार्य रूप से निष्कर्ष निकलता है कि पीड़ित की मौत उनके हाथों ही हुई है, जिन्होंने उसका अपहरण करके कैद में रखा था।" न्यायालय ने 'पश्चिम बंगाल सरकार बनाम मीर मोहम्मद उमर (2000) 8 एससीसी 382' एवं 'सुचा सिंह बनाम पंजाब सरकार (एआईआर 2001 एससी 1436)' मामले में दिये गये पूर्व के निर्णयों का भी हवाला दिया। सुचा सिंह मामले में न्यायमूर्ति के टी थॉमस ने कहा था : "जब एक से अधिक व्यक्तियों ने पीड़ित को अगवा किया हो, जिसकी बाद में हत्या हो जाती है, तो तथ्यात्मक स्थिति को ध्यान में रखकर यह मानना कोर्ट के लिए न्यायोचित है कि सभी अपहरणकर्ता हत्या के लिए जिम्मेदार हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 34 का इसमें सहयोग लिया जा सकता है, जब तक कि कोई विशेष अपहरणकर्ता अपने स्पष्टीकरण के साथ कोर्ट को यह संतुष्ट नहीं करता कि उसने बाद में पीड़ित के साथ क्या किया, अर्थात् क्या उसने अपने सहयोगियों को रास्ते में छोड़ दिया था या क्या उसने दूसरों इस जघन्य कृत्य को करने से रोका था आदि, आदि।" इन मामलों में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अनुमान का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया गया था कि ऐसे मामलों में किसी अन्य प्रकार की परिस्थिति साबित करने का जिम्मा अभियुक्त का होता है। मामलों के तथ्यों को लेकर कोर्ट ने व्यवस्था दी कि अभियुक्तों द्वारा हत्या को अंजाम दिये जाने का अनुमान सही लगाया गया था।



मंगलवार, 2 जून 2020

सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7 के बारे मे संक्षिप्त विवरण

सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7 के बारे मे संक्षिप्त विवरण ( जानकारी )


धारा 7(1) :- जीवन की रक्षा एवं स्वतंत्रता से संबंधित


सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(1) के तहत माँग सकते हैं, जो लोक जन सूचना अधिकारी या केंद्रीय जन सूचना अधिकारी 48 घंटे में प्रदान की जाएगी । जीवन की रक्षा से संबंधित कुछ सूचनाएँ इस प्रकार है :-


1. पुलिस उत्पीड़न एवं हिंसा के विरुद्ध अधिकार 
2. कैदी का इंटरव्यू देने का अधिकार 
3. निशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार 
4. निजता का अधिकार 
5. शीघ्र विचारण का अधिकार
6. निष्पक्ष विचारण का अधिकार  
7. कामकाजी महिलाओं के लैंगिक शोषण के विरुद्ध अधिकार


धारा 7(2) :-  जीवन की रक्षा एवं स्वतंत्रता से संबंधित सूचना केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी सूचना देने में असफल रहते हैं तो उस आवेदन को नामंजूर कर दिया समझा जाएगा ।


धारा 7(3) (क) :- दस्तावेज के लिए अधिभारित शुल्क के बारे में  30 दिन के अंदर अगर लोक जन सूचना अधिकारी   आवेदक को इसकी जानकारी नहीं देते हैं तो 30 दिन के बाद इसे अपवर्जित किया जाएगा


धारा 7(4) :- इस अधिनियम के अधीन अभिलेख या उसके किसी भाग तक पहुँच अपेक्षित है और ऐसा व्यक्ति, जिसको पहुँच उपलब्ध कराई जाने है । संवेदनात्मक रूप से निशक्त है, वहाँ यथास्थिति, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी सूचना तक पहुँच को समर्थ बनाने के लिए सहायता उपलब्ध कराएगा जिसमें निरीक्षण के लिए सहायता सम्मिलित है, जो समुचित हो ।


धारा 7(5) :- इसके अधीन फीस युक्तियुक्त होगी और ऐसे व्यक्ति से, जो गरीबी रेखा के नीचे है, जैसा समुचित सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा, कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी ।
 
धारा 7(6) :- लोक जन सूचना अधिकारी सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6(1) के तहत 30 दिनों में सूचना उपलब्ध नहीं कराते हैं 30 दिन के बाद बिना भारित शुल्क के पूरी सूचना और दस्तावेज लोक जन सूचना अधिकारी मुफ्त में उपलब्ध कराएंगे


धारा 7(7) :- केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 11 के अधीन पर व्यक्ति (Third Party) द्वारा किए गए अभ्यावेदन को ध्यान में रखेगा ।


धारा 7(8) :- केंद्रीय जन सूचना अधिकारी या राज्य जन सूचना अधिकारी द्वारा को दिए गए आरटीआई आवेदन को अस्वीकृत करता है तो 
(i) अस्वीकृति का कारण बताएगा ।
(ii) वह अवधि जिसके भीतर अस्वीकृति के विरुद्ध कोई अपील की जा सके 
(iii)अपीलीय प्राधिकारी का नाम, पदनाम और पूर्ण पता देगा। 


धारा 7(9) :- केंद्रीय जन सूचना अधिकारी या लोक जन सूचना अधिकारी किसी सूचना को उसी प्रारूप में उपलब्ध कराएगा जिसमें उसे माँगा गया है । जब तक कि लोक प्राधिकारी के स्रोतों को अननुपाती रुप से विचलित ना करता हो ।
प्रश्नगत अभिलेख की सुरक्षा या संरक्षण के प्रतिकूल ना हो ।


लाक डाउन में खुल रही फर्जी पत्रकारों की पोल!

लखनऊ। लाक डाउन में खुल रही फर्जी पत्रकारों की पोल! कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए सरकार द्वारा लाक डाउन घोषित किया गया है! इस दौरान मिली छूट में अनिवार्य सेवा के अन्तर्गत पत्रकारों को भी शामिल किया गया है! इसी का लाभ उठाते हुए व्हाट्स एप ग्रुप बनाकर उसके ही परिचय पत्र ग्रुप एडमिन ने बड़ी मात्रा में यूपी के सभी जिलों में जारी करके फर्जी पत्रकारों की एक फौज खड़ी कर दी है, जो प्रशासनिक अफसरों तथा पुलिस के बीच अपना रौब झाड़ते हुए असली पत्रकारों के समक्ष मुसीबत बने हुए थे! कुछ माह पूर्व रायबरेली के ऊंचाहार में जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक ने नौ पर्जी पत्रकार दबोचकर उनके खिलाफ सूचना अधिकारी से रिपोर्ट दर्ज करवाई थी! इसके बाद मेरठ, नोएडा, बुलंदशहर आदि दर्जन भर जिलों में इसी प्रकार के व्हाट्स एपिए पत्रकार पकड़े गए! अब बिल्कुल ताजे मामले में मुजफ्फरनगर में पकड़े गए हैं फर्जी पत्रकार! एसएसपी अभिषेक यादव ने बताया कि मुजफ्फरनगर पुलिस के समक्ष फर्जी पत्रकारों की जानकारी संज्ञान में आई थी। जिस पर जिले के सभी पत्रकारों की जांच कराए जाने पर दो दर्जन फर्जी पत्रकार पकड़ में आए हैं। जिनके पास से बरामद परिचय पत्र में उल्लिखित कोई मीडिया संस्थान ही देश में नहीं कार्यरत है सबसे रोचक बात तो यह है कि सभी जिलों में पकड़े गए इन फर्जी पत्रकारों के पास जो परिचय पत्र बरामद हुए हैं, उनमें Delhi Crime, TV NEWS INDIA Fatehpur, INDIA न्यूज TV FTP"2", PMP इंडिया न्यूज चैनल, PMP India news, Zeenationaltv24, Zee India Express आदि ऐसे मीडिया कार्ड मिले हैं, जिनके पास सूचना मंत्रालय का कोई मान्यता प्रमाण पत्र ही नहीं है और पकड़े गए फर्जी पत्रकार अपने आकाओं से प्रशासन की कोई बात भी नहीं करा पाए! पुलिस महानिदेशक कार्यालय के सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश शासन ने यूपी के सभी जिलों में पत्रकारों की व्यापक छानबीन के निर्देश दिए हैं। जिसमें कानपुर, उन्नाव, फतेहपुर, कौशाम्बी, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, इटावा, कन्नौज, उरई, हमीरपुर,जौनपुर,बनारस,आजमगढ आदि दो दर्जन से अधिक जिलों में प्रशासन ने असली पत्रकारों की लिस्ट तैयार करने में तेजी दिखाई है।


अभिनेता एवं सांसद सनी देओल द्वारा अभिनित विज्ञापन भ्रामक, कंपनी ने विज्ञापन बंद करने का किया कमिटमेंट

TV चेनल्स पर दिखाये जाने वाले राजेश मसाले के विज्ञापन पर आपत्ति जताते हुए भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI), मुम्बई को शिकायत में लिखा कि विज्ञापन में राजेश मसाले को भारत के सबसे टेस्टी मसाले बताया गया है किन्तु इस दावे के समर्थन में कोई डाटा नहीं दिखाया जा रहा है, ऐसी स्थिति में ये विज्ञापन भ्रामक प्रतीत होता है जिस पर रोक लगाई जानी चाहिए। शिकायत पर ASCI ने विज्ञापनदाता को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। जवाब में मसाला कंपनी ने अपनी गलती स्वीकारते हुए इस विज्ञापन को वापस लेने का भरोसा दिलाया। साथियों, राष्ट्रीय स्तर की कंपनियां उपभोक्ताओं को ठगने के लिए इस तरह के भ्रामक विज्ञापन तैयार कराती हैं। 



हमें इस तरह के विज्ञापनों से सावधान रहना चाहिए। 


90% भारतीयों के दिमाग मै भूसा भरा है न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू

आप लोग रेल से कभी यात्रा किए है तो रेल गाड़ी  मे व स्टेशन पर छोटे व स्थानीय कप मे चाय दी जाती है। रेल के कप मे भी चाय दी तो जहाँ  तक चिह्न है,वहां तक नही देते।जनता व रेल दोनो  को चूना लगता है।
(2) राजभाषा  के नाम पर फर्जी  प्रगति प्रतिवेदन अपवादों  को छोड़कर  भारत सरकार के हर कार्यलय से भेजा जा रहा है।इस प्रकार  बिना कार्य किए वेतन लिया जा रहा है तथाआंकडो  के 
 फर्जीबाड़ा हेतु कागज आदि का व्यय अलग से है। बताएं IRTC का टिकट  on line केवल अंग्रेजी  मे क्यों❓डाक घर से रजिस्ट्री  स्पीड पोस्ट  की रसीद  अंग्रेजी  मे क्यों❓कार्यालयों  के विभिन्न  कार्य अंग्रेजी  मे क्यों❓ (3)आप लोग राज भाषा अधिनियम 1963 तथा राज भाषा नियम 1976 , राभाषा का वार्षक कार्यक्रम किसी कार्यालय मे जाकर पढ़ ले तो उल्लंघन  देख कर भौंचक रह जाएंगे ।
(4) नोएडा = न्यू ओखला इण्डस्ट्रियल  डेवलपमेंट  अथारिटी। अब बताये कि यह स्थान बोधक कैसे है❓यह गौतमबुद्ध नगर  का पर्याय  कैसे है❓
(5)न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू  का कथन-- 90% भारतीयों के दिमाग मै भूसा भरा है ,को आप किस आधार पर गलत कह सकते हैं ❓


विद्याधर पाण्डेय 
(1) संरक्षक, सामाजिक संस्थाये समन्वय समिति , गाजियाबाद 
(2)संरक्षक,  भारतीय विधि,न्याय  एवम् समाज,गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर 


साथी हाथ बढ़ाना , एक अकेला थक जाएगा सब मिलकर बोझ उठाना


वाह रे उच्चकोटि की शिक्षित जनता , जिलाधिकारी महोदय के साथ फोटो खिचवाकर चर्चा मे आने की ललक ने सारे डिस्टेंसिंग भुला दिये। क्या इन दान दाताओ ने 1 मीटर की दूरी बनायी है ?


ग्राम सभा चन्दवक के प्रधान पति, ताक पर रखते है सरकारी तंत्र के आदेश।

जौनपुर , जहाॅ एक तरफ पूरा देश करोना की महामारी जूझ रहा है वही कुछ लोग देश दुनिया की तकलीफो से बे खबर अपनी ही तिजोरिया भरने मे लगे है। प्राप्त सूचना के अनुसार विकास खण्ड डोभी के ग्राम सभा चंदवक मे कहने के लिए तो ग्राम प्रधान गीता यादव है परंतु सारा कार्यभार प्रधानपति चन्द्रिका यादव जी करते है। बताते है कि ग्राम सभा चन्दवक मे एक छोटा सा गाव भी मिला है जिसका नाम हरिदासीपुर है यहा देखा जाये तो नाम बड़ा और दर्शन छोटा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है, क्योकि इस ग्राम सभा मे न हरी है और न ही दासी यहा अगर है तो सिर्फ दुब्यवस्था । ग्रामिणो ने बताया कि हमारे ग्राम सभा चन्दवक मे किसी भी गरीब का कोई काम नही कराया गया है चाहे वह शौचालय का काम हो या नाली अथवा खडंजा का काम प्रधानपति जी का स्पष्ट कहना है कि पाच साल बित चुका है जब अब तक मेरा कुछ नही हुआ तो अब क्या होगा? इतना ही नही प्रधान जी के सहोगियो का कथन है कि प्रधान जी कई तालाब और जलाशय बनवाये है मगर हरिदासी पुर मे एक पुराना तालाब हे जिसमे सालो पहले मछली पालन होता था परंतु उस समय भी इसका पानी इतना साफ था कि गाव की महिलाए उसी पानी से बर्तन तक धुलती थी परंतु आज ग्राम प्रधान गीता यादव के समय मे उस तालाब की ऐसी दुर्दशा है कि आस पास के लोगो का जीना दुभर हो गया है, नालियो से ऐसी दुर्गन्ध आति है कि मानो हरिदासीपुर के लोग किसी नर्क के द्वारा खड़े है जिसके चलते मच्छरो का पूरी तरह से प्रकोप हो गया है जहा आज तमाम गाव के प्रधान अपने गाव की सुरक्षा के लिए सेनेटाइजर का छिड़काव करवाते है वही चन्दवक के ग्राम प्रधान सिर्फ ग्राम विकास के नाम पर आया जनता का धन डकारने मे लगे है। 


आई एम ए के द्वारा 500 पीपीई किट मुख्य चिकित्सा अधिकारी रामजी पांडे को उपलब्ध करायी गयी

  विधायक जाफराबाद डा.हरेन्द्र प्रताप सिंह एवं जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह की उपस्थिति में आई एम ए के द्वारा 500 पीपीई किट मुख्य चिकित्सा अधिकारी रामजी पांडे को उपलब्ध करायी गयी। इस अवसर पर विधायक जफराबाद ने कहा कि जिला प्रशासन पूरी मुस्तैदी के साथ कोरोना वायरस से लड़ रहा है, जो कि प्रशंसनीय है । यह पीपीई किट स्वास्थ्य विभाग के लिए अत्यंत उपयोगी होगी। जिलाधिकारी ने कहा कि पीपीई किट की अत्यन्त आवश्यकता थी। आईएमए के द्वारा यह सराहनीय कार्य किया गया है ,आईएमए से और लोगों  को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। भाजपा प्रवक्ता ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि आई एम ए संगठन किसी भी आपदा में हमेशा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है ,उसी क्रम में आज 500 पीपीई किट देकर बहुत ही सराहनीय कार्य किया है  इस अवसर पर डॉ आर. के. सिंह , सीएमएस  पुरुष चिकित्सालय डॉक्टर  ए के शर्मा, आईएमए अध्यक्ष डॉ एन के सिंह, सचिव डॉक्टर मोहम्मद जाफरी, कृष्णा हार्ट केयर के डॉक्टर हरेन्द्र देव सिंह ,डॉ रजनीश श्रीवास्तव तथा आईएमए के अन्य सदस्य उपस्थित रहे।


साप्ताहिक बंदी को छोड़कर सभी दुकाने प्रातः 9.00 बजे से सायं 7.00 बजे तक खोली जा सकेगी

 



जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह द्वारा कलेक्ट्रेट कक्ष में व्यापारियों के साथ बैठक की गई। बैठक में निर्णय लिया गया कि साप्ताहिक बंदी को छोड़कर सभी दुकाने प्रातः 9.00 बजे से सायं 7.00 बजे तक खोली जा सकेगी। दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य होगा तथा ग्राहक एवं दुकान के कर्मचारी मास्क लगा कर रहे। 


दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों को बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता न देने के मामले में केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ खारिज की याचिका

दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों को बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता न देने के मामले में केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ याचिका खारिज की दिल्ली हाईकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जो केंद्र सरकार व दिल्ली सरकार के निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी। इस याचिका में केंद्र सरकार के साथ-साथ दिल्ली सरकार के भी उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता न देने की बात कही गई थी।न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि कानून में सरकार पर यह दायित्व ड़ाला गया है कि महंगाई भत्ते /महंगाई राहत में की गई वृद्धि का संवितरण समयबद्ध तरीके से करना होगा। अदालत ने यह भी कहा कि ऊपर बताए गए ऑल इंडिया सर्विसेज (महंगाई भत्ता) रूल्स के नियम 3 के तहत ही केंद्र सरकार को यह अधिकार भी मिला हुआ है कि वह उन शर्तों को तय कर सकती है, जिनके अधीन ही सरकारी अधिकारी इस महंगाई भत्ते को प्राप्त्त कर सकते हैं।अदालत ने यह आदेश एक जनहित याचिका में दिया है, जिसमें मांग की गई थी कि केंद्र और दिल्ली सरकार, दोनों के वित्त मंत्रालय को निर्देश जारी किया जाए ताकि सरकारी कर्मचारियों के बढ़े हुए महंगाई भत्ते को फ्रीज करने के संबंध में जारी अधिसूचना को वापस ले लिया जाए और मानदंडों के अनुसार इसे जारी कर दिया जाए। केंद्र सरकार के इस विवादित कार्यालय ज्ञापन में सूचित किया था कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिया जाने वाला मंहगाई भत्ता और केंद्र सरकार के पेंशनभोगियों को दी जाने वाली महंगाई राहत का भुगतान नहीं किया जाएगा। यह महंगाई भत्ता/ मंहगाई राहत 1 जनवरी 2020 से देय था। यह भी कहा गया था कि 01 जुलाई 2020 और 01 जनवरी 2021 से देय महंगाई भत्ते और महंगाई राहत की अतिरिक्त किस्त का भी भुगतान नहीं किया जाएगा। हालांकि मौजूदा दरों पर महंगाई भत्ता और महंगाई राहत का भुगतान जारी रखा जाएगा। वहीं उक्त ओएम में यह भी कहा गया है कि 1 जुलाई 2021 से महंगाई भत्ता और महंगाई राहत की भविष्य की किश्त जारी करने का निर्णय जब भी सरकार द्वारा लिया जाएगा, उस समय महंगाई भत्ता और महंगाई राहत की दरें 1 जनवरी 2020 से प्रभावी होंगी, जिसके बाद 1 जुलाई 2020 और 1 जुलाई 2021 को देय भत्ते को भी उसी अनुसार बहाल कर दिया जाएगा। याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष निम्नलिखित तर्क दिए थे- ए-केंद्र सरकार के कर्मचारियों और केंद्र सरकार के पेंशनरों को ऑल इंडिया सर्विसेज (डीए) रूल्स 1972 के तहत बढ़ाया गया महंगाई भत्ता/महंगाई राहत प्राप्त करने का एक निहित अधिकार है। बी- COVID19 महामारी को डीए को रोकने का एक कारण बताया गया है, परंतु उसके बावजूद भी यह आदेश आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित नहीं किया गया है। सी-सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत राष्ट्रपति द्वारा घोषित वित्तीय आपातकाल के दौरान ही उप-अनुच्छेद 4 (ए) (i) के आधार पर - राज्य के मामलों के संबंध में काम करने वाले सभी या किसी भी वर्ग के व्यक्तियों के वेतन और भत्ते में कमी का प्रावधान किया जा सकता है। चूंकि इस समय कोई वित्तीय आपातकाल घोषित नहीं किया गया है, इसलिए यह कार्यालय ज्ञापन जारी नहीं किया जा सकता था। न्यायालय की टिप्पणियां अदालत ने कहा कि 1972 के डीए नियम बताते हैं कि महंगाई भत्ता और महंगाई राहत पाने का अधिकार केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है। इसे केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट भी किया जा सकता है और सरकार वह शर्ते लगा सकती है, जिनको वह उपयुक्त समझती है। अदालत ने आगे कहा कि इस संबंध में कोई वैधानिक नियम नहीं है जो केंद्र सरकार को नियमित अंतराल पर महंगाई भत्ता या महंगाई राहत को बढ़ाने के लिए बाध्य करता हो। इसके अलावा केंद्र सरकार के कर्मचारियों या केंद्र सरकार के पेंशनरों को भी कोई ऐसा निहित अधिकार नहीं मिला हुआ है,जिसके तहत वह नियमित अंतराल पर बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता या महंगाई राहत प्राप्त कर सके या मांग सके। अदालत ने यह भी कहा कि- 'जहां तक 1 जनवरी 2020 से प्रभावी 4 प्रतिशत महंगाई भत्ता या महंगाई राहत प्राप्त करने का संबंध है तो इस मामले में जारी किए गए कार्यालय ज्ञापन में इसे हटाने या खत्म करने की बात नहीं कही गई है। सिर्फ इतना कहा गया है कि इसे फिलहाल स्थगित किया जा रहा है और इसका भुगतान एक जुलाई 2021 के बाद किया जाएगा।' उक्त ओएम को जारी करने के अधिकार के मुद्दे पर अदालत ने कहा कि इस विवादित ओएम में COVID19 महामारी का संदर्भ दिया गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि प्रतिवादी ने सिर्फ उन्हीं प्रावधानों को लागू किया है जो आपदा प्रबंध अधिनियम में निहित हैं। संविधान के अनुच्छेद 360 के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए तर्क को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि ओम में राज्य के मामलों के संबंध में सेवा करने वाले किसी भी व्यक्ति के वेतन या भत्ते को काटने या कम करने की बात नहीं कही गई है। अदालत ने कहा कि- 'हमने ऑल इंडिया सर्विसेज (डीए) रूल्स 1972 के नियम 3 पर गौर किया है। उक्त नियम में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि केंद्र सरकार महंगाई भत्ता दिया जाने की पात्रता के संबंध में अपना निर्णय कुछ शर्तो के तहत ही ले सकती है। यानि ऐसा करने के लिए सरकार को पहले एक नया नियम बनाना होगा या एक राजपत्र अधिसूचना जारी करनी होगी। कानून में ऐसी किसी आवश्यकता का उल्लेख नहीं किया गया है।' इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व डॉ प्रदीप शर्मा और श्री हर्ष ने किया था।