शुक्रवार, 5 जून 2020

संदिग्ध हालात में विवाहिता की मौत, पुलिस ने विवाहिता के अधजले शव को कब्जे में लेकर शुरू कर दी है तफ्तीश


सुलतानपुर : अखंडनगर थानाक्षेत्र के बिलवाई चौकी के रायपुर गांव में एक विवाहिता की मौत को सामान्य मौत घोषित करने के उद्देश्य से शव को गुपचुप तरीके से अंतिम संस्कार करने की कोशिश की गई। जानकारी मिलने पर श्मशान घाट पहुंची पुलिस ने विवाहिता के अधजले शव को कब्जे में लेकर तफ्तीश शुरू कर दी है। रायपुर  गांव निवासी नीलम पत्नी इंद्रेश की बुधवार की रात संदिग्ध मौत हो गई। ससुरालजन गुरुवार की सुबह करीब सवा छह बजे गुपचुप रूप से गांव के प्राथमिक विद्यालय के बगल नदी किनारे उसका अंतिम संस्कार कर रहे थे। इसकी सूचना मृतका के पिता मनोज कुमार को दूरभाष पर किसी रिश्तेदार ने दी तो उन्होंने इसकी जानकारी डायल 112 पुलिस को सूचना दी। सूचना मिलते ही थाना प्रभारी बेंचू सिंह यादव दल-बल के साथ श्मशान घाट पहुंच गए। अंतिम संस्कार को रुकवा कर उन्होंने अधजले शव को कब्जे में ले लिया। मृतका के पिता, मां रिसा देवी और बहन प्रिया दर्जनों लोगों मौके पर पहुंच गए। मृतका की मां के अनुसार नीलम ने घर वालों की मर्जी के खिलाफ इंद्रेश गौतम से लगभग ढाई वर्ष पहले चुपके से शादी कर ली थी। दोनों का एक वर्ष का बेटा प्रियांश है। मृतका की बहन ने बताया कि दोनों में अक्सर झगड़ा हुआ करता था। थाने में दी गई शिकायत में पिता ने हत्या की आशंका व्यक्त की है। थाना प्रभारी ने बताया कि शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया है। रिपोर्ट आने के बाद मौत के कारणों का पता चल सकेगा। मामले की जांच की जा रही है।


सीएम योगी ने जन्मदिन पर पौधा लगाया , पीएम ने दी बधाई

विश्व पर्यावरण दिवस और जन्मदिन के मौके पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वृक्षारोपण किया। इस अवसर पर उन्होंने अपने आवास 5 कालिदास मार्ग पर पौधारोपण किया। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जन्मदिन की बाधाई दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने सुबह आठ बजे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फोन कर जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं। पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि उत्तर प्रदेश के ऊर्जावान और मेहनती मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जन्मदिन की बधाई। उनके नेतृत्व में राज्य सभी क्षेत्रों में प्रगति की नई ऊंचाइयों को छू रहा है।  पीएम मोदी ने कहा कि राज्य के लोगों के जीवन में बड़े बदलाव आए हैं। उन्होंने आगे लिखा कि भगवान उन्हें लंबी आयु दें और स्वस्थ रखें। आपको बता दें कि सीएम योगी आदित्यनाथ का जन्म पांच जून 1972 को हुआ था।


सीएम योगी ने दिया एक ही दिन में 25 करोड़ वृक्ष लगाने का लक्ष्य


वहीं मुख्यमंत्री योगी ने एक ही दिन में 25 करोड़ वृक्ष लगाने का लक्ष्य दिया है। जिसे जुलाई के प्रथम सप्ताह में पूरा किया जाएगा। इस अवसर पर आज गंगा यमुना के तटवर्ती किसानों को खेतों में वृक्षारोपण पर सरकारी सहायता प्रदान की जाएगी। उन्होंने जुलाई के प्रथम सप्ताह में 1 दिन में 25 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। जबकि पूरे सीजन में 30 करोड़ पौधे लगाए जाएंगे। यह सभी फलदार छायादार और इमारती लकड़ी वाले पौधे होंगे। गंगा जमुना के तटवर्ती क्षेत्रों में पौधरोपण का विशेष कार्यक्रम किया जाएगा। इसके तहत तटवर्ती किसान अपने खेतों में फलदार वृक्षों को लगाएंगे उसके लिए भी विशेष स्कीम होगी।


पिछले वर्ष एक दिन में लगाए थे 25 करोड़ पौधे 


इस स्कीम के तहत सरकार 3 साल तक सहयोग करेगी। जो लोग मेड़ पर बिना केमिकल, फर्टिलाइजर के पौधे लगाएंगे, उन्हें सरकार मुफ्त पौधे उपलब्ध कराएगी। बता दें कि पर्यावरण पर योगी आदित्यनाथ का विशेष ध्यान रहा है। पिछले वर्ष भी 25 करोड़ पौधे 1 दिन में लगाने का रिकॉर्ड बनाया गया था। वहीं उससे पहले 22 करोड़ पौधे लगाए गए थे। उन्होंने लोगों से ज्यादा से ज्यादा पीपल, बरगद, पाकड़, देसी आम, सहजन आदि के पौधे लगाने की अपील की थी।


 


 


प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद अब मामले के मूल याचिकाकर्ताओं ने अदालत की सहायता करने के लिए हस्तक्षेप आवेदन दिया


पिछले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने COVIDलॉकडाउन के बाद देश भर में फंसे प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पर स्वत संज्ञान लिया था,जिसके बाद एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज और हर्ष मंदर के अलावा, आईआईएम-अहमदाबाद के पूर्व डीन जगदीप एस. छोकर ने इस मामले में न्यायालय की सहायता करने की अनुमति मांगी है। इस मामले में हस्तक्षेप करने के आवेदन दायर करते हुए मांग की गई है कि ''आवेदक उनके द्वारा दायर पूर्व में दायर की जनहित याचिकाओं को रिकॉर्ड पर रखकर इस मामले में अदालत की सहायता करना चाहते हैं। यह जनहित याचिकाएं ''देश में हुए व्यापक लाॅकडाउन के बाद प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा के संबंध में दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था चूंकि लाॅकडाउन के बारे में कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी और जिसने पूरे देश में दहशत पैदा कर दी थी। वहीं इसके कारण एकदम से लाखों प्रवासी श्रमिकों की नौकरियां और रोजगार का साधना चला गया था।'' पहली याचिका भारद्वाज और मंडेर की ओर से दायर की गई थी, जिसमें मांग की गई थी कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वह संयुक्त रूप से सभी प्रवासी श्रमिकों को मजदूरी/न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करें। भले ही यह मजदूर किसी भी संस्थान, ठेकेदार या स्वरोजगार से जुड़े हों। चूंकि लाॅकडाउन के कारण वह काम करने और पैसा कमाने में असमर्थ हैं। दूसरी याचिका छोकर ने दायर की थी। जिसमें मांग की गई थी कि यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी प्रवासी श्रमिक अपने गांवों व घरों में सुरक्षित पहुंच जाए। इसके उनसे परिवहन का किराया न लिया जाए और यात्रा के दौरान उनको पर्याप्त भोजन आदि उपलब्ध कराया जाए। यह भी बताया गया कि ''उपर्युक्त दोनों याचिकाओं का संक्षिप्त सुनवाई के बाद निस्तारण कर दिया गया था।'' यह भी कहा गया कि ''चूंकि इस माननीय न्यायालय ने अब प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर स्वत संज्ञान लिया है। इसलिए आवेदक विनम्रतापूर्वक अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग करते हैं। वह उन विभिन्न मुद्दों के संबंध में अदालत की सहायता करना चाहते है,जिनका सामना लाॅकडाउन शुरू होने के बाद से यह प्रवासी श्रमिक कर रहे हैं। आवेदक जिम्मेदार और प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता व इस देश के शिक्षाविद हैं और लॉकडाउन के बाद से प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं।'' 21 अप्रैल को शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने इस मामले में दायर एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए कहा था कि इस समय देश खुद असामान्य स्थिति में है और इसमें शामिल हितधारक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं। इस जनहित याचिका में मांग की गई थी कि COVID19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिक गंभीर तनाव में है,इसलिए उनको मजदूरी का भुगतान किया जाए। अदालत ने रिट याचिका का निपटारा करते हुए संक्षेप में कहा था कि '' सॉलिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता ने एक स्थिति रिपोर्ट दायर की है और कहा है कि प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। उन्होंने आगे यह भी तर्क दिया था कि जमीनी धरातल पर इन मुद्दों को निपटाने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर प्रदान किया गया है। वहीं जब भी कोई शिकायत प्राप्त होती है तो अधिकारी तुरंत उस मामले में सहायता करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारे सामने रखी गई सामग्री को ध्यान में रखते हुए हम प्रतिवादी-भारत सरकार को कह रहे हैं कि वह इस तरह के मामलों पर स्वयं विचार करें। वहीं याचिका में उठाए गए मुद्दों को निपटाने के लिए वह सभी कदम उठाए,जो उनको उपयुक्त लगते हैं।'' दूसरी जनहित याचिका के संबंध में अदालत ने एसजी की दलीलों को तरजीह देते हुए कहा था कि, ''इस याचिका में जो राहत मांगी गई है उसके लिए पर्याप्त रूप से मंजूरी दे दी गई है क्योंकि सरकार ने 29 अप्रैल 2020 को उन श्रमिकों की आवाजाही के मामले को स्वीकार कर लिया था,जो प्रवासी श्रमिक ,तीर्थयात्री, पर्यटक और छात्र हैं और विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए थे और एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जा पा रहे थे।'' शीर्ष अदालत ने कहा था कि,"श्री तुषार मेहता ने यह भी कहा था कि रिट याचिका दायर करने से पहले ही उस पर चिंतन चल रहा था और सरकार इस पर विचार कर रही थी। एसजी ने यह भी बताया था कि बाद में 01 मई 2020 को एक आदेश जारी किया गया था जिसमें रेलवे ने प्रवासी श्रमिकों को उनके गांवों या राज्यों में पहुंचाने के लिए ''श्रमिक स्पेशल''ट्रेन चलाने का फैसला भी किया था। इसके बाद फंसे हुए व्यक्तियों की पूर्वोक्त श्रेणी की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार ने इन फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों की कठिनाई को कम करने के हर संभव कदम उठाए हैं।'' कोर्ट ने पांच मई को याचिका का निपटारा करते हुए कहा था कि "इस तरह के परिवहन के लिए आवश्यक तौर-तरीके रेलवे के सहयोग से संबंधित राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा लागू किए जाने हैं। जहां तक श्रमिकों से रेलवे टिकट की राशि का 15 प्रतिशत वसूलने की बात है तो उस संबंध में यह अदालत अनुच्छेद 32 के तहत कोई भी आदेश जारी नहीं करेगी। यह संबंधित राज्य/रेलवे का काम है कि वह संबंधित दिशानिर्देशों के तहत आवश्यक कदम उठाए। इस रिट याचिका में मांगी गई राहत को पूरा कर दिया गया है। इसलिए हम मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के लिए वकील द्वारा उठाए जाने वाले अन्य मुद्दों पर विचार करके कोर्ट इस रिट याचिका के दायरे का विस्तार नहीं कर सकती हैं। ऐसे में अब इस याचिका को लंबित रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।'' न्यायालय ने केंद्र व सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्वत संज्ञान मामले में नोटिस जारी करते हुए 26 मई को कहा था कि ''अखबारों की रिपोर्ट और मीडिया रिपोर्ट में लगातार यह बताया जा रहा है कि प्रवासी मजदूर लंबी-लंबी दूरी पैदल पूरी कर रहे हैं या साइकिल आदि से चलने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इन रिपोर्ट में इन मजदूरों की दुर्भाग्यपूर्ण और दयनीय स्थिति दिखाई जा रही है। इतना ही नहीं आज भी प्रवासी श्रमिकों की समस्याएं जारी हैं क्योंकि बहुत सारे श्रमिक सड़क,रेलवे स्टेशन,हाईवे या राज्यों की सीमाओं पर फंसे हुए हैं। इसलिए केंद्र और राज्य सरकार बिना कोई पैसा वसूले तुरंत इनके लिए पर्याप्त परिवहन,भोजन और आश्रय की व्यवस्था करें।'' इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भी प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों पर केंद्र सरकार से कई सवाल किए। पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ''सबसे पहले व्यक्ति की अपनी जेब में पैसा होना चाहिए। किसी भी प्रवासी से कोई किराया नहीं लिया जाना चाहिए। इस किराए को वहन करने के लिए राज्यों के बीच कुछ व्यवस्था होनी चाहिए।'' पीठ ने पूछा, ''जिन लोगों को वापिस उनके घर भेजा जा रहा है क्या किसी भी स्तर पर उनसे परिवहन का किराया मांगा जा रहा है? एफसीआई के पास अतिरिक्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध है, ऐसे में क्या इन लोगों को उस समय भोजन की आपूर्ति की जा रही है,जब यह अपने घर जाने के लिए अपनी बारी आने की प्रतिक्षा करते हैंै?'' पीठ ने यह भी पूछा कि ''प्रवासियों को उनके घर वापिस भेजने के लिए आपको कितने समय की जरूरत है? वही इन लोगों के लिए भोजन और बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए क्या निगरानी तंत्र बनाया गया है?''



COVID-19 रोगियों के इलाज के लिए निजी अस्पतालों द्वारा शुल्क वसूलने की सीमा तय करने वाली याचिका पर SC ने केंद्र से जवाब मांगा


सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका में केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी है जिसमें कोरोना के रोगियों के इलाज के लिए निजी अस्पतालों द्वारा शुल्क वसूलने की सीमा तय करने और क्वारंटाइन व संक्रमण के बाद की सुविधाओं के लिए अस्पतालों में दाखिल के प्रयोजनों के लिए पारदर्शी तंत्र बनाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता अविषेक गोयनका ने अदालत को बताया कि निजी अस्पताल COVID रोगियों से अत्यधिक शुल्क वसूल रहे हैं, जिससे यह अधिकांश रोगियों के लिए दुर्गम हो जाता है, जिससे अनुच्छेद 14 और 21 प्रभावित होते हैं।जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि कोरोना वायरस रोगियों के इलाज के लिए निजी अस्पतालों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क पर ऊपरी सीमा लगाने के लिए केंद्र की ओर प्रतिक्रिया दर्ज करें। कोर्ट ने एक सप्ताह के बाद मामले को सूचीबद्ध किया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि अस्पतालों में दाखिले की मनमानी प्रक्रिया रोगियों के स्तर को आधार बनाती है और जो इलाज का खर्च नहीं उठा सकते हैं वो अलग रखे जाते हैं।याचिका में निम्नलिखित प्रार्थनाएं हैं- • " उत्तरदाताओं और बीमा कंपनियों को तुरंत, पूर्ण दावों, जो कि सरकार द्वारा निर्दिष्ट दरों के अनुसार हैं, देने के लिए उचित रिट/ निर्देश जारी करें। • उत्तरदाताओं को मरीज की पसंद और सामर्थ्य के अनुसार, कोविद -19 संक्रमण के मामले में निजी अस्पतालों की सुविधा के तुरंत लाभ के लिए तंत्र तैयार करने और विज्ञापित करने के लिए उचित रिट / दिशा- निर्देश जारी करें, • उत्तरदाताओं को COVID- 19 क्वारंटाइन के लिए तुरंत निजी सुविधा प्राप्त करने के लिए तंत्र बनाने और विज्ञापन देने के लिए उचित रिट/ दिशा- निर्देश जारी करें" इस पृष्ठभूमि में, याचिका कई समाचार रिपोर्टों पर निर्भर है जो यह सुझाव देते हैं कि बीमा कंपनियों ने कई लोगों के बीमा दावों को रोक दिया है और काउंटरों पर उनके लिए कैशलेस सुविधाओं से इनकार कर रहे हैं। याचिकाकर्ता का दावा है कि इस मुश्किल समय में कई नागरिकों को परेशानी में पहुंचा दिया है। "ये असाधारण समय हैं और कई नागरिकों को बिना किसी आय के छोड़ दिया गया है। उनकी बचत को भी नुकसान हुआ है। यदि दाखिले के दौरान कैशलेस की सुविधा नहीं दी जाती है, तो पर्याप्त नकदी के बिना रोगियों को अधर छोड़ दिया जाएगा और उन्हें निजी अस्पतालों में प्रवेश से सुसज्जित होने के बावजूद घटिया सरकारी सुविधाएंलेने के लिए मजबूर किया जाएगा। इसी प्रकार यदि डिस्चार्ज के दौरान दावों का सही तरीके से निपटान नहीं किया जाता है, तो रोगी को अस्पताल से छोड़ा नहीं जाएगा, जब तक कि रोगी परिवार, शेष राशि का भुगतान नहीं करता है। याचिका में पश्चिम बंगाल सरकार के निजी अस्पतालों के लिए जो दरें तय करने का हवाला देते हुए कहा गया है कि केंद्र उक्त उद्देश्य के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाकर ऐसा कर सकता है। "सरकार को उन क्षेत्रों के लिए, जहां कोई नीति नहीं है, नीतियों को बनाने करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है। क्योंकि एक नीति की अनुपस्थिति अराजकता और भ्रम को बढ़ाती है। केंद्र सरकार के परिपत्रों में ऐसा कोई तंत्र नहीं है, जो नोडल विंडो की स्थापना का निर्देश देता हो जो पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार को निजी -क्वारंटाइन और / या अस्पताल की सुविधाओं के लिए निर्देशित कर सकते हैं। "





गुरुवार, 4 जून 2020

एक चाकू के साथ अभियुक्त को थाना बक्सा पुलिस ने किया गिरफ्तार


पुलिस अधीक्षक के निर्देशन में अपराध एवं अपराधियों के विरुद्ध चलाये जा रहे अभियान के क्रम में थाना बक्सा पुलिस के द्वाराग्राम बडारी थाना बक्शा जौनपुर से एकअभियुक्त सलमान अहमद पुत्र शब्बीर अहमद ग्राम बडारी थाना बक्शा जौनपुर को एक अदद नाजायज चाकू के साथ गिरफ्तार किया गया। बरामदगी के सम्बन्ध में मु0अ0सं0 113/20  धारा 4/25 आर्म्स एक्ट पंजीकृत किया गया ।


गैंगस्टर एक्ट सम्बन्धित अभियुक्त जनक गिरी पुत्र हरिलाल गिरी उर्फ हर्ष लाल गिरी गिरफ्तार


पुलिस अधीक्षक जौनपुर के निर्देशन में अपराध एवं अपराधियों  के विरूद्ध  चलाये जा रहे अभियान के  क्रम में अपर पुलिस अधीक्षक ग्रामीण व क्षेत्राधिकारी मड़ियाहू के  निकट  पर्यवेक्षण मेंथानाध्यक्ष संतोष कुमार राय थाना नेवढ़िया जौनपुर के  नेतृत्वव श्री बालेन्द्र यादव थानाध्यक्ष रामपुर  मय हमराही के सहयोग  सेउ0नि0 श्री रामजी सैनी प्रभारी पुलिस चौकी भाऊपुर थाना नेवढ़िया जनपद जौनपुर मय हमराही पुलिस अधिकारी मु0आ0 पारसनाथ यादव , का0 अनवार अहमद , का0 विकास कुमार यादव , का0 विनय कुमार पासवानके  साथ मु0अ0स0 94/2020 धारा 3(1) उ0प्र0 गैंगस्टर एक्ट थाना नेवढ़िया जनपद जौनपुर से सम्बन्धित अभियुक्तजनक गिरी पुत्र हरिलाल गिरी उर्फ हर्ष लाल गिरी नि0 ग्राम कोटी गाँव गोसाईपुर थाना रामपुर जौनपुर को गिरफ्तार किया गया ।


हत्या के मुकदमें से सम्बन्धित एक वांछित अभियुक्त गिरफ्तार


पुलिस अधीक्षक जौनपुर के निर्देशन में अपराध की रोकथाम एवं अपराधियों की गिरफ्तारी हेतु चलाये जा रहे अभियान के क्रम में अपर पुलिस अधीक्षक नगर व क्षेत्राधिकारी शाहगंज के कुशल पर्यवेक्षण मेंप्र0नि0 थाना खुटहन श्री जगदीश कुशवाहा, उ0नि0 सन्तराम यादव, उ0नि0 सुरेश कुमार सिंह, का0 रामचरन, का0 आशीष यादव द्वारा दिनांक 02.06.20 को ग्राम बड़सरा थाना खुटहन जौनपुर में हुई घटना जिसमें गोली लगने से राजेश तिवारी की मृत्यु हो गयी थी से सम्बन्धितमु0अ0सं0- 120/20 धारा 302/504 भादवि थाना खुटहन जनपद जौनपुर से सम्बन्धित वांछित अभियुक्त  संदीप उर्फ सोनू तिवारी पुत्र कृष्णदत्त तिवारी निवासी ग्राम बड़सरा थाना खुटहन जनपद जौनपुर को उसके घर से दिनांक 02.06.20  को ही आलाकत्ल तमंचा मय एक अदद जिन्दा कारतूस व एक अदद खोखा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया गया ।


पुलिस लाइन स्थित सभागार में उ0प्र0 पुलिस फैमिली वेलफेयर एशोसिएसन (वामासारथी)के तत्वाधान में कोविड-19(कोरोना संक्रमण) से बचाव के दृष्टिगत पुलिस लाइन आवासीय परिसर में रहने वाली महिलाओं का सम्मेलन/कार्यशाला का आयोजन किया गया।

श्री अशोक कुमार पुलिस अधीक्षक जौनपुर महोदय द्वारा पुलिस लाइन में लगातार कपड़े का मास्क बनाने वाली महिला आरक्षियों को कोरोना वारियर्स का पुरस्कार प्रदान कर उनका उत्साहवर्द्धन किया गया। तत्पश्चात कार्यशाला में महिलाओं को पुलिस चिकित्सालय के चिकित्सक द्वारा कोरोना संक्रमण से बचाव के सम्बन्ध में स्वच्छता, उत्तम स्वास्थ्य, व अन्य उपयोगी बिन्दुओं पर विस्तार से बताया गया तथा कोरोना काल में व्यापक सावधानी बरतने के सम्बन्ध में भी अवगत कराया गया। कार्यशाला में उपस्थित समस्त महिलाओं एवं महिला कर्मियों को सुरक्षा के दृष्टि से मास्क, सेनिटाइजर, व उनके बच्चों के लिये बिस्किटव चाकलेट का वितरण किया गया। कार्यक्रम का संचालन महिला थानें में नियुक्त कम्प्यूटर आपरेटर ज्योति श्रीवास्तव द्वारा किया गया।सम्मेलन में अधिकारीगण की धर्मपत्नी भी उपस्थित रही। सम्पूर्ण  कार्यक्रम श्री रजतपाल राव, प्रतिसार निरीक्षक जौनपुर व श्रीमती तारावती देवी थानाध्यक्ष महिला थाना जौनपुर के दिशा निर्देशन में सकुशल सम्पन्न कराया गया।


चल पड़ी ट्रेन में नन्ही बच्ची को दूध देने के लिए आरपीएफ जवान ने की बहुत मशक्कत,

बहराइच का रहने वालीं साफिया हाशमी दुधमुंही बेटी को लेकर बेलगांव से चली थीं लेकिन रास्ते में कहीं दूध नहीं मिला, भोपाल में जवान इंदर यादव ने की मदद


भोपाल: Lockdown: लॉकडाउन में पुलिस ज्यादती की कई तस्वीरें सामने आईं. पुलिस वालों पर भी हमले हुए. लेकिन भोपाल स्टेशन पर एक ऐसी तस्वीर सीसीटीवी कैमरों में कैद हुई जो भरोसा जगाए रखती है. आरपीएफ के एक जवान ने एक दुधमुंही भूखी बच्ची को दूध देने के लिए जबर्दस्त मशक्कत की.


घर पहुंचकर एक वीडियो जारी कर साफिया ने कहा ''हम बहराइच के रहने वाले हैं, हम बेलगांव से चले थे लेकिन रास्ते में मुझे कहीं दूध नहीं मिला. भोपाल में इंदर यादव जी ने मदद की. उनका बहुत-बहुत शुक्रिया. जो मैसेज उन्होंने इंदर यादव को भेजा उसमें लिखा था आप हमारी लाइफ के रियल हीरो हैं और आप जैसे लोगों की देश में बहुत जरूरत है. आपने  ट्रेन रवाना होने से पहले बच्ची की मदद की. आपकी मदद से ही मेरी बच्ची मेरे साथ सकुशल घर लौट सकी है.''


 


 

बांदा में दुबई से लौटे युवक ने फांसी लगाकर की आत्महत्या





प्रतीकात्मक तस्वीर







उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के शहर कोतवाली क्षेत्र के स्वराज कॉलोनी में दुबई से लौटे एक युवक ने फांसी लगाकर कथित रूप से आत्महत्या कर ली. पुलिस ने इसकी जानकारी दी. शहर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक (एसएचओ) ने बुधवार को बताया, 'शहर कोतवाली के स्वराज कॉलोनी गली नम्बर-5 में मंगलवार दोपहर मनोज गुप्ता (26) मकान के बरामदे में पंखे की हुक में फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली है. घटना के समय परिवार के अन्य सदस्य मकान की ऊपरी मंजिल में थे.'




कोविड-19 की जांच के बाद महिला ने अस्पताल के टॉयलेट में फांसी लगाकर की खुदकुशी


त्रिपुरा के जीबी पंत अस्पताल में कोविड-19 की जांच के एक दिन बाद एक महिला ने कथित तौर पर अस्पताल के शौचालय की छत से फांसी लगाकर खुदकुशी कर लीअगरतला त्रिपुरा के जीबी पंत अस्पताल में कोविड-19 की जांच के एक दिन बाद एक महिला ने कथित तौर पर अस्पताल के शौचालय की छत से फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली. एक अधिकारी ने यह जानकारी दी. पुलिस को शक है कि 50 वर्षीय महिला के मन में संक्रमण का डर बैठ गया था और दहशत के मारे आत्महत्या कर ली होगी. स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव एसके राकेश ने कहा कि महिला को सोमवार को अस्पताल के फ्लू वार्ड में भर्ती कराया गया था.राकेश ने कहा, 'महिला का शव सुबह करीब पांच बजे अस्पताल के शौचालय की छत से लटका पाया गया, जबकि उसकी कोविड-19 रिपोर्ट सुबह 11 बजे आई. रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि हो गई.' महिला की मां सोमवार की रात उसे अस्पताल ले गई थी और उसने मंगलवार सुबह अपनी बेटी को बिस्तर से गायब पाया.एक पुलिस अधिकारी ने कहा, 'अस्पताल में बहुत खोजने के बाद, उसकी मां ने शव को शौचालय की छत से लटका पाया.'उन्होंने कहा कि महिला पहले से किडनी रोग और सांस की बीमारी से ग्रसित थी. उन्होंने कहा कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया और अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया गया है


सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल जज का कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे याचिकाकर्ता को बॉम्‍बे हाईकोर्ट जाने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मालेगांव ब्लास्ट मामले की त्वरित सुनवाई की के लिए ट्रायल जज के कार्यकाल को बढ़ाने की मांग कर रहे पर‌िजनों को बॉम्बे हाईकोर्ट जाने के लिए कहा है। मालेगांव ब्लास्ट की सुनवाई कर रहे मुम्बई की विशेष एनआईए कोर्ट के पीठासीन अधिकारी श्री पाडालकर, 29 फरवरी, 2020 को सेवानिवृत्ति चुके हैं। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने धमाके के पीड़ित के पिता को त्वरित सुनवाई के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट समक्ष अपील करने को कहा। पीठ ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ ज‌स्टिस इस सबंध में उचित निर्णय ले सकते हैं। Also Read - COVID 19 के बारे में चीन और WHO से पूरी जानकारी लेने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग : सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर पीठ, मालेगांव के 60 वर्षीय निवासी निसार अहमद सैय्यद बिलाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव के भिक्कू चौक पर हुए विस्फोट में उनके बेटे सैय्यद अजहर निसार अहमद की मौत हो गई ‌थी। याचिकाकर्ता की दलील थी कि मामले की सुनवाई में हो रही देरी संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है। याचिका में कहा गया था, "मुकदमे में हुई देरी के कारण याचिकाकर्ता और अन्य पीड़ितों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, याचिकाकर्ता त्वरित ट्रायल का हकदार है और विशेषकर तब, जबकि याचिकाकर्ता का बेटा धमाके में मारा गया हो।" Also Read - सुप्रीम कोर्ट ने असम को इनर लाइन एरिया से बाहर रखने वाले राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगाने से इनकार किया, केंद्र से जवाब मांगा याचिका में कहा गया था कि दुर्घटना 29 सितंबर 2008 की है, लेकिन मुकदमे के ट्रायल में 12 साल लग गए हैं और अब जज को बदलने पर और देर होगी, क्योंकि नए जज को सारे सबूतों को समझने में समय लगेगा। याचिकाकर्ता की दलील थी, "वह पिछले एक साल और 4 महीनों में 140 गवाहों के परीक्षण में सक्षम रहे थे। नया जज मामले के रिकॉर्डों को, जो कि हजारों पन्नों में है, और समय लेगा। पीठासीन अधिकारी रिकॉर्डों से वाकिफ थे, और उनका कार्यकाल बढ़ाना न्याय के हित में होगा।" याचिकाकर्ता ने इससे पहले एक फरवरी, 2020 को बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ ज‌स्टिस से पीठासीन अधिकारी के कार्यकाल के विस्तार के लिए अनुरोध किया था। हालांकि, उस संबंध में कोई निर्देश पारित नहीं किया गया। मालेगांव विस्फोट मामले के मुकदमे की प्रभावी प्रगति न होने के कारण 26 फरवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की खिंचाई भी की थी। इसके बाद, 27 फरवरी को, भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जो मालेगांव विस्फोट मामले के प्रमुख अभियुक्तों में से एक हैं, मुंबई की विशेष अदालत में पेश हुईं थीं। ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात लोग इस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। मालेगांव बम विस्फोटों छह लोग मारे गए थे और 100 से अधिक घायल हो गए ‌थे।


जब अपहरण के बाद हत्या होती है तो कोर्ट अपहरणकर्ता को हत्यारा मान सकता है: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने तमिलनाडु के नेता एम के बालन को 2001 में हुए अपहरण और हत्या का दोषी करार दिया है। दो-सदस्यीय खंडपीठ के खंडित फैसले के कारण इस मामले को तीन-सदस्यीय पीठ को सौंपा गया था। न्यायमूर्ति (अब सेवानिवृत्त) वी. गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने 2016 में इस मामले में खंडित निर्णय दिया था। न्यायमूर्ति गौड़ा ने आरोपी को बरी कर दिया था, जबकि न्यायमूर्ति मिश्रा ने अभियुक्त को दोषी ठहराया था। (सोमासुन्दरम उर्फ सोमू बनाम पुलिस आयुक्त के माध्यम से राज्य सरकार, (2016) 16 एससीसी 355) उसके बाद इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के. एक. जोसेफ और न्यायमूर्ति वी. रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने की। बेंच ने इस मामले के साक्ष्य का आकलन करते हुए व्यवस्था दी कि अपहरण के बाद हुई हत्या के मामले में अपहरणकर्ता को हत्यारा माना जा सकता है। खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ द्वारा लिखे गये फैसले में कहा गया है, "यथोचित मामले में अपहरण के बाद हत्या की घटना कोर्ट को यह मानने में सक्षम बनाती है कि अपहरणकर्ता ही हत्यारा है। सिद्धांत यह है कि अपहरण के बाद अपहरणकर्ता ही यह बता पाने की स्थिति में होगा कि पीड़ित का अंतत: क्या हुआ और यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है तो यह स्वाभाविक है और तार्किक भी कि कोर्ट के लिए आवश्यक रूप से यह निष्कर्ष निकालना सहज हो सकता है कि उसने (अपहरणकर्ता ने) बदनसीब पीड़ित को खत्म कर दिया है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 भी अभियोजन के पक्ष में ही होगी।" बेंच ने आगे लिखा, "जहां अपहरण के बाद अपहृत व्यक्ति को गैर-कानूनी तरीके से कैद करके रखा जाता हो और बाद में उसकी मौत हो जाती है, तो यह अपरिहार्य रूप से निष्कर्ष निकलता है कि पीड़ित की मौत उनके हाथों ही हुई है, जिन्होंने उसका अपहरण करके कैद में रखा था।" न्यायालय ने 'पश्चिम बंगाल सरकार बनाम मीर मोहम्मद उमर (2000) 8 एससीसी 382' एवं 'सुचा सिंह बनाम पंजाब सरकार (एआईआर 2001 एससी 1436)' मामले में दिये गये पूर्व के निर्णयों का भी हवाला दिया। सुचा सिंह मामले में न्यायमूर्ति के टी थॉमस ने कहा था : "जब एक से अधिक व्यक्तियों ने पीड़ित को अगवा किया हो, जिसकी बाद में हत्या हो जाती है, तो तथ्यात्मक स्थिति को ध्यान में रखकर यह मानना कोर्ट के लिए न्यायोचित है कि सभी अपहरणकर्ता हत्या के लिए जिम्मेदार हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 34 का इसमें सहयोग लिया जा सकता है, जब तक कि कोई विशेष अपहरणकर्ता अपने स्पष्टीकरण के साथ कोर्ट को यह संतुष्ट नहीं करता कि उसने बाद में पीड़ित के साथ क्या किया, अर्थात् क्या उसने अपने सहयोगियों को रास्ते में छोड़ दिया था या क्या उसने दूसरों इस जघन्य कृत्य को करने से रोका था आदि, आदि।" इन मामलों में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अनुमान का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया गया था कि ऐसे मामलों में किसी अन्य प्रकार की परिस्थिति साबित करने का जिम्मा अभियुक्त का होता है। मामलों के तथ्यों को लेकर कोर्ट ने व्यवस्था दी कि अभियुक्तों द्वारा हत्या को अंजाम दिये जाने का अनुमान सही लगाया गया था।