शनिवार, 25 अप्रैल 2020

लोगों के लिए बनी मददगार प्रयागराज की संस्था ओम नम: शिवाय , 30 दिन में तीस लाख लोगों को कराया भोजन

देश में कोरोना वायरस (Coronavirus) के कारण हुए लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान कई संस्थाएं गरीबों और जरूरतमंदों के लिए आगे आई हैं. ऐसी ही एक संस्था प्रयागराज की भी है जो कि प्रदेश के चार शहरों में लोगों को भोजन करा रही है. संस्था का दावा है कि वह लॉकडाउन के दौरान अब तक प्रदेश में तीस लाख से ज्यादा लोगों को भोजन मुहैया करा चुकी है. ओम नम: शिवाय संस्था के स्वयं सेवकों ने 3790 लोगों के घर जा जाकर खाना उपलब्ध कराया है.

प्रयागराज में हर साल लगने वाले माघ मेले और छह वर्षों में लगने वाले कुम्भ मेले में अन्न क्षेत्र चलाने वाली इस धार्मिक संस्था की ओर से लॉकडाउन के दौरान 23 मार्च से लगातार प्रयागराज, कानपुर , अयोध्या और लखनऊ में प्रतिदिन एक लाख लोगों को भोजन कराया जा रहा है. जिन क्षेत्रों में खाने की समस्या हो रही है या लोगों तक खाना किसी कारण से पहुंच नहीं पा रहा है उनकी मदद के लिये संस्था ने टोल फ्री नंबर भी जारी किया है. टोल फ्री नंबर- 7266920638 और 7266902603 पर संस्था की ओर से लोगों को भोजन मुहैया कराया जा रहा है. प्रयागराज के 11 थाना क्षेत्रों में रामबाग, बैरहना, चौफटका, करेली, करैलाबाग, तेलियरगंज, शिवकुटी, झॢसी, अंदावा और नैनी इलाके में गरीबों और जरुरतमंदों तक खाना पहुंचाया जा रहा है. इसी तरह से टोल फ्री नंबर कानपुर, लखनऊ और अयोध्या में जरूरत मंद लोगों की मदद के लिये जारी किये गए है. प्रयागराज में 250 से अधिक स्वयंसेवक दिन-रात जरूरत मंद लोगों तक खाना पहुंचा रहे हैं. खासतौर मलिन बस्तियों में जहां पर दिहाड़ी मजदूर रहते हैं, उनके लिए संस्था वरदान बनी हुई है. संस्था के लोग गऊघाट, संगम क्षेत्र में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों का पेट भरने का काम कर रही हैं ओम नम: शिवाय संस्थापक के मुताबिक प्रयागराज में प्रतिदिन खाने में लोगों को चावल, सब्जी, बेसन की कढ़ी और पूड़ी का वितरण हो रहा है. इसके साथ ही पुलिस-प्रशासन की ओर से बताये गये क्षेत्रों में भी प्रतिदिन खाने का वितरण कराया जा रहा है. संस्था का कहना है कि लॉकडाउन खत्म होने तक संस्था लोगों की मदद करती रहेगी.


लोहिया अस्पताल पर विवादित कंपनी को टेंडर देने का आरोप

लखनऊ. डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट (Dr. Ram Manohar Lohia Institute) के मदर एंड चाइल्ड स्टेट रेफरेल हॉस्पिटल (Mother and Child State Referral Hospital) में ऑक्सीजन गैस पाइप लाइन के टेंडर को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में सैकड़ों मासूमों की मौत के जिम्मेदार ठहराए गए डॉ. कफील अभी सजा भुगत रहे हैं. आरोप है कि राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट के अधिकारियों ने उस आरोपी कंपनी को करोड़ों का टेंडर सौंप दिया है. इंस्टीट्यूट पर मानकों को दरकिनार कर विवादित फर्म को टेंडर देने का आरोप लगाया गया है. इससे पूरी टेंडर प्रक्रिया और अधिकारियों की भूमिका जांच के घेरे में है. टेंडर में गड़बड़ी को लेकर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से शिकायत भी की गई है.

क्या है पूरा मामला
लोहिया इंस्टीट्यूट के मदर एंड चाइल्ड स्टेट रेफरल हॉस्पिटल में ऑक्सीजन गैस पाइप लाइन का काम जल्द शुरू होने वाला है. जिसके लिए टेंडर की टेक्निकल बिड में पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड एंड यूनानी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का नाम फाइनल किया गया था. पूरी प्रक्रिया पर सामाजिक कार्यकर्ता श्वेता सिंह ने कंपनी की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए शिकायत दर्ज की थी. उनका कहना है कि साल 2017 में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई में गड़बड़ी के कारण सैकड़ों मासूमों की मौत हो गई थी. उस दौरान वहां का काम भी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड के पास ही था. उन्होंने कंपनी के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा संख्या 0703/2017 का हवाला देते हुए पुष्पा सेल्स के निदेशक मनीष भंडारी कई माह तक जेल में रहने की भी बात कही.


बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र से मांगा जवाब, COVID-19 मरीजों के अलावा अन्य का नहीं किया जा रहा है अस्पतालों में इलाज, जनहित याचिका में लगाया गयाआरोप

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को उन सभी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें आरोप लगाया गया है कि शहर के अस्पताल COVID-19 मरीजों के अलावा अन्य ( NON COVID-19) रोगियों का इलाज नहीं कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से लें और हलफनामा दायर करें, जिसमें इस समस्या के प्रभावी समाधान भी बताए जाएं। न्यायमूर्ति के.आर श्रीराम ने एक मेहरवान फारशेद की जनहित याचिका पर इन-चैंबर सुनवाई की। साथ ही निर्देश दिया कि इस जनहित याचिका में दिया गया आदेश अन्य दो जनहित याचिकाओं के मामले में भी लागू होगा, जो दयानंद स्टालिन और मुताहहर खान ने दायर की थी। सभी तीन जनहित याचिकाओं में एक जैसा मुद्दा उठाया गया था और कहा



गया था कि उन मरीजों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है,जो कोरोना से नहीं बल्कि किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हैं। इन सभी याचिकाओं में मांग की गई थी कि अस्पतालों को निर्देश दिया जाए कि उन मरीजों को भी पर्याप्त सुविधाएं प्रदान की जाए जो कोरोना के अलावा अन्य किसी बीमारी का इलाज करवाने आते हैं। खान की जनहित याचिका में कई समाचार रिपोर्टों का उल्लेख किया गया है, जिनमें बताया गया है कि मुंबई के कई अस्पतालों ने अपनी सारी सुविधाओं को COVID-19 की महामारी का मुकाबला करने में समर्पित कर दिया है, इसलिए इन अस्पतालों में किसी भी अन्य बीमारी से पीड़ित रोगियों का इलाज नहीं किया जा रहा है। यहां तक आपातकालीन या आकस्मिक विभाग में आने वाले मरीजों का भी इलाज नहीं किया जा रहा है,जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की मौत हो गई है। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से यह भी मांग की है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि शहर के अस्पतालों में Covid-19 से संक्रमित मरीजों के अलावा अन्य मरीजों का इलाज भी किया जाए। जनहित याचिका में कहा गया है कि आम जनता को ऐसे अस्पतालों की एक सूची उपलब्ध कराई जानी चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता ए.वाई सखारे नगर निगम की ओर से पेश हुए और उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि वह निगम को इस मामले में उचित सलाह देंगे और इन जनहित याचिकाओं के जवाब में एक हलफनामा 29 अप्रैल, 2020 तक दायर कर दिया जाएगा। सखारे ने सुझाव दिया कि यदि याचिकाकर्ताओं के पास कोई मूल्यवान सुझाव है तो वे निगम के वरिष्ठ विधि अधिकारी को इस संबंध में एक पत्र लिखकर अपने सुझाव से अवगत करा सकते हैं। इस मामले में सीनियर एडवोकेट गायत्री सिंह याचिकाकर्ता मुताहहर खान और गौरव श्रीवास्तव याचिकाकर्ता मेहरवान फरशाद की तरफ से पेश हुए। केंद्र सरकार की तरफ से पेश होते हुए एएसजी अनिल सिंह ने कहा कि इस याचिका में उठाए गए विषय के साथ-साथ कई अन्य बड़े मुद्दे भी भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन हैं।



राज्य में अदालतें और न्यायाधिकरण 3 मई तक बंद रहेंगे,इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सूचित किया है कि तीन मई को लॉकडाउन की अवधि समाप्त होने तक इसकी अधीनस्थ सभी अदालतें बंद रहेंगी। यह घोषणा राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा उच्च न्यायालय को संबोधित पत्र की पृष्ठभूमि में की गई है, जिसमें लॉकडाउन अवधि की समाप्ति के बाद ही अधीनस्थ अदालतों को खोलने के लिए उच्च न्यायालय से अनुरोध किया गया है। 19 अप्रैल को, उच्च न्यायालय ने घोषणा की थी कि सभी न्यायालय जो इस हाईकोर्ट के अधीनस्थ हैं और जो न्यायालय



इसके अधीन नहीं हैं, वे भी 20 अप्रैल से काम करने के लिए खोले जाएंगे। हालांकि, COVID के कारण मौजूदा असाधारण परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अधीनस्थ अदालतों को कामकाज के लिए खोलना 27 अप्रैल तक के लिए टाल दिया गया था। यूपी के सभी जिला जजों को संबोधित एक पत्र के माध्यम से, उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने अब सूचित किया है कि "उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह इवाम गोपन विभा के पत्र में लॉकडाउन अवधि की समाप्ति के बाद से ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय को खोलने के लिए अनुरोध किया गया है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में नॉवेल कोरोना वायरस (CO VID-19)। उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर, यह निर्देश दिया गया है कि इलाहाबाद में उच्च न्यायालय के अधीनस्थ सभी न्यायालय 03.05.2020 तक बने रहेंगे। "


वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुनवाई में वकील द्वारा बनियान पहनकर पेश होने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने किया सुनवाई स्थगित

एक दिलचस्प घटनाक्रम में राजस्थान उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को वीडियो कांफ्रेंस सुनवाई के दौरान एक वकील के "बनियान" पहनकर सुनवाई में शामिल होने पर ज़मानत अर्ज़ी पर सुनवाई स्थगित कर दी। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता के "अनुचित"



पोशाक के कारण न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा की एकल न्यायाधीश पीठ ने सुनवाई स्थगित कर दी और कहा कि वकीलों को वीडियो कॉन्फ्रेंस सुनवाई के दौरान उचित पोशाक में दिखना चाहिए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के लिए वकील से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संपर्क किया गया, जिसमें वह बनियान पहने हुए पाया गया। इस अदालत ने पहले ही यह कहा है कि इस महामारी के दौरान जहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से वकीलों के माध्यम से अदालती कामकाज उचित पोशाक में होना चाहिए। न्यायालय ने आगे कहा कि भले ही महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के दौरान कोर्ट रूम सुनवाई को वीसी सुनवाई में बदल दिया गया हो, लेकिन वकीलों को अपने क्लाइंट की ओर से पैरवी करते हुए मर्यादा बनाए रखनी चाहिए।



सैंपल जाँच के परिणामों में विविधता के कारण रैपिड ऐंटीबॉडी टेस्ट किट के प्रयोग पर लगाई गई है पाबंदी

 केंद्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा है कि रैपिड टेस्ट किट से मिलने वाले परिणामों में बहुत अंतर आने के कारण ही अभी इसके प्रयोग पर पाबंदी लगाई गई है। इसका प्रयोग सर्वेलेंस जाँच के लिए किया जा सकता है और वीआरडीएल (वायरल रीसर्च एंड डाइयग्नास्टिक लैबोरेटरी) केंद्र अभी इसका प्रयोग नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति एनडब्ल्यू सम्ब्रे कोरोना वायरस से लड़ने के बारे में विभिन्न मदों में अदालत के निर्देशों के लिए दायर की गई कई याचिकाओं के साथ टैग की गई सीएच शर्मा की याचिका और सुभाष जंवर की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। इससे पहले 20 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई में अदालत ने आईसीएमआर और राज्य सरकार से यह बताने को कहा था कि वीआरडीएल सुविधाएँ यवतमाल, चंद्रपुर, गढ़चिरौली और गोंदिया के सरकारी अस्पतालों में कब तक उपलब्ध हो जाएँगी। अदालत को बताया गया कि चंद्रपुर और यवतमाल में वीआरडीएल लैब 20 मई तक शुरू हो जाएगा। वीआरडीएल जाँच यानी आरटी-पीसीआर मशीन हाफ़्फ़क़ीन इंस्टिच्यूट उपलब्ध करा रहा है जो इसकी ख़रीद सिंगापुर से करता है और इसकी शिपमेंट में देरी हुई है। इसी वजह से ये लैब अभी शुरू नहीं हो पाए हैं। अदालत ने संबंधित अधिकारियों से कहा कि वे आरटी-पीसीआर मशीनों की डिलीवरी जल्द लेने का प्रयास करें। रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट में रक्त के नमूने का प्रयोग होता है जबकि आरटी-पीसीआर मशीन से होनेवाली जाँच में नाक या अगले से लिए गए स्वाब का प्रयोग होता है। अदालत ने नागपुर के संभागीय आयुक्त को हर लैब में लंबित नमूनों की संख्या का पता लगाने को कहा और इनकी जाँच उन लैब्ज़ से कराने को कहा जहाँ लैब की पूरी क्षमता का प्रयोग नहीं हो पा रहा है या जहां कम जाँच लंबित हैं। एमिकस क्यूरी अरुण गिल्डा ने पीठ को बताया कि नीरी (एनईईआरआई), नागपुर में आरटी-पीसीआर मशीन उपलब्ध है और एमएएफएसयू में भी अतिरिक्त मशीनें हैं। न्यायमूर्ति सम्ब्रे ने कहा कि संभागीय आयुक्त एम्स, नागपुर के चिकित्सा अधीक्षक के परामर्श से आरटी-पीसीआर मशीन के प्रयोग के मामले में उचित निर्णय लेंगे। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की जाँच व्यवस्था निजी मेडिकल कॉलेजों में भी उपलब्ध कराई जा सकती है बशर्ते कि वहाँ के स्टाफ़ को इस बारे में उचित प्रशिक्षण दिया जाए। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार को निजी मेडिकल कॉलेजों के वीआरडीएल केंद्रों को मान्यता देने की प्रक्रिया को तेज करनी चाहिए ताकि वहाँ भी जाँच शुरू की जा सके। भारत सरकार के एसएसजी यूएम औरंगबादकर ने अदालत से कहा कि रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट के एक हिस्से की ख़रीद केंद्र सरकार के स्तर पर पूरी हो चुकी है हालाँकि इसके प्रयोग पर रोक लगा दी गई है क्योंकि जाँच के परिणाम भ्रामक आ रहे थे।


लॉकडाउन के दौरान पूरे देश में ब्लॉक स्तर पर सामुदायिक किचन चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

महामारी के दौरान पूरे देश में अस्थाई रूप से ब्लॉक स्तर पर सामुदायिक किचन चलाने के लिए राज्यों और केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है सामुदायिक किचन चलाना इसलिए आवश्यक है, ताकि कोई व्यक्ति भूखा न रहे। यह याचिका एडवोकेट फूज़ैल अहमद अय्यूबी और अशिमा मंडला के माध्यम से दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य के फंड से सामुदायिक किचन चलाने की परिकल्पना देश और दुनिया के लिए कोई नयी बात नहीं है और तमिलनाडु (अम्मा उनवागम), राजस्थान (अन्नपूर्णा रसोई), कर्नाटक (इंदिरा कैंटीन), दिल्ली (आम आदमी कैंटीन), आंध्र प्रदेश (अन्ना कैंटीन), झारखंड (मुख्यमंत्री दाल भात) और ओडिशा (आहार सेंटर) जैसे राज्य भुखमरी और कुपोषण के संकट को दूर करने के लिए चलाए जा रहे हैं। फिर, इस सामुदायिक किचन का एक फ़ायदा यह होगा



कि इसमें काम करने वाले लोगों को रोज़गार मिलेगा क्योंकि देश में बेरोज़गारी बढ़ रही है और यह भुखमरी और कुपोषण के चक्र को बढ़ा रहा है। संसद ने 10.09.2013 को खाद्य सुरक्षा क़ानून पास किया जो खाद्य सुरक्षा एक क्षेत्र में एक महत्त्वाकांक्षी क़दम है और इस क़ानून द्वारा कल्याण से आगे जाकर अधिकार को इसका आधार बनाया गया। देश में COVID-19 महामारी के कारण खाद्य असुरक्षा काफ़ी बढ़ गई है और लोगों के भूख के कारण मरने तक की नौबत आ गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मौखिक रूप से पूरे देश में सामुदायिक किचन चलाने की बात का समर्थन किया है, पर यह इस महामारी के फैलने से पहले की बात है। वर्तमान याचिका महामारी फैलने और लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के बंद हो जाने के कारण बहुत ही विषम स्थिति पैदा हो गई है और इसमें अदालत से पूरे देश में अस्थाई तौर पर सामुदायिक किचन सभी ब्लॉकों में चलाने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया गया है। इस समय लोगों के सामने खाने का जो संकट है उसकी गंभीरता को समझा जाना ज़रूरी है जो कि अप्रत्याशित, विशिष्ट और असीमित है और इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत भोजन के अधिकार जैसे मौलिक अधिकार को प्रभावित करने वाला है। हमारे देश में लगभग 19 करोड़ लोग जिसे सामान्य समय कहते हैं, उस समय में भी भूखे सो जाने के लिए मजबूर हैं'और अब COVID-19 के कारण लागू लॉकडाउन की वजह से इससे भी ज़्यादा लोगों के सामने भुखमरी की समस्या पैदा हो गई है और जिनके पास खाना ख़रीदने के लिए पैसे नहीं है। भुखमरी का डर प्रवासी मज़दूरों को शहरों से गांवों की ओर भागने के पीछे सबसे बड़ी वजह थी। यह कहा गया है कि कुछ राज्यों और एनजीओ, निजी व्यक्तिय सामुदायिक किचन चला रहे हैं। 13 अप्रैल को ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि लॉकडाउन के दौरान सामुदायिक किचन जरूरतमंदों का पेट भरने का एक सहज उपाय बनकर उभरा है। यह भी कहा गया कि सभी ग्राम पंचायतों में स्वयं सहायता समूहों की मदद से 10 हज़ार सामुदायिक किचन बिहार, झारखंड, केरल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में चलाए जा रहे हैं और इन स्थलों पर हर दिन लगभग 70 हज़ार लोगों को खाना खिलाया जा रहा है। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान अगले तीन महीने तक पीडीएस में पंजीकृत लोगों को 5 किलो अतिरिक्त अनाज और एक किलो दाल देने की घोषणा की है। क्वार्टज इंडिया में छपे एक आलेख में कहा गया है कि देश में 10 करोड़ लोग पीडीएस से बाहर हैं क्योंकि सरकार ने 2011 की जनगणना के आँकड़ों पर भरोसा कर रही है।



शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

लगातार इक्कतीसवे दिन जारी है लाॅकडाउन मे सेवा कार्य लायन्स क्लब जौनपुर गोमती के व्दारा

जौनपुर जिलाधिकारी महोदय श्री दिनेश कुमार सिंह जी के आव्हान पर लायन्स क्लब जौनपुर गोमती द्वारा आज 24/04/2020 को लाॅकडाउन मे लगातार इक्कतीसवे दिन भी जारी रहा सेवा कार्य। इस लाॅकडाउन मे कोई परिवार भूखा न रह जाए के भाव के साथ सेवा के लिए सदैव समर्पित व लगातार सेवा कार्य करने वाली सामाजिक संस्था *लायंस क्लब जौनपुर गोमती* के सौजन्य से वैश्विक महामारी करोना मे लायंस गोमती के द्वारा राशन का वितरण अध्यक्ष दिनेश कुमार श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में मंडल कोषाध्यक्ष मनीष गुप्ता, निर्वतमान अध्यक्ष गणेश जी साहू व गौरव श्रीवास्तव के साथ सेवा भाव से आज भी राशन विवरण का कार्य किया गया। आज के इस वितरण में राशन के 17 पैकेट, जिसमे 5kg आटा ,2kg चावल,1kg दाल, तेल, चीनी, नमक,बिस्कुट, साबुन व मसाले का वितरण गरीब व जरूरतमंद परिवारो के बीच गांव , हरिवंघनपुर ,लाईनबाजार कुदुपुर के गरीब व जरूरतमंद परिवारों के बीच मे किया गया।



आज के सेवा कार्यक्रम में मुख रूप से जोगेश्वर केसरवानी संजय सिंह मोहम्मद तैफिक ऋषिदेव गणेश गुप्ता ,प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव, मनोरमा श्रीवास्तव, संदीप जायसवाल आदि का विशेष योगदान रहा।


पत्रकार को गाड़ी से ठोककर जान से मरने की कोशिश का षड्यंत्र

भारत देश  की जनता को कोरोना वायरस से  बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 3 मई तक लॉक  डाउन लगाया गया है l  दिहाड़ी मजदूर तक अपने घर में बैठकर  लॉक डाउन का पालन करते नजर आ रहे हैं वहीं दूसरी ओर नेपानगर के रसूखदार साधन संपन्न व्यापारी रौनक जैन चंद रुपए कमाने की  लालच मे लोगों को मौत के घाट उतारने को भी आमादा है रौनक जैन के वायरल हुए वीडियो से साफ जाहिर होता है कि पत्रकारों को गाड़ी से उड़ा देने की किस तरह साजिश रची थी l



इस बिल्डिंग मैटेरियल व्यापारी ने सोची समझी साजिश के तहत चेकपोस्ट के नियमों को तोड़ा उसके बाद रास्ते में आए पत्रकारों को उड़ा दिया इतना संगीन मामल होने के बावजूद भी पुलिस ने मामूली धाराओं में मामला दर्ज किया है जिसे लेकर अब जिले के समस्त पत्रकार बिल्डिंग मटेरियल व्यापारी पर सोची समझी साजिश के तहत पत्रकारों पर हमला करने  उसके बाद अपने आप को बचाने के लिए पत्रकारों के खिलाफ झूठी साजिश का षड्यंत्र रचना ऐसे संगीन आरोप के तहत कार्रवाई किए जाने की मांग करते नजर आ रहे हैं l आपको बता दें कि बुधवार देर रात तहसील कार्यालय से कुछ ही  दूरी पर बने चेक्स पोस्ट पर वह हुआ जो सभी के लिए चौका देने वाला था नगर का रसूखदार बिल्डिंग मटेरियल वापारी खुद अपने वाहन को चला कर लाया और चेक पोस्ट पर सारे नियमों को ताक पर रखकर तेज रफ्तार से गाड़ी निकाल ले गया चेक पोस्ट पर मौजूद कर्मचारियों ने उसे रोकना चाहा लेकिन उसने अपना लोडिंग वाहन नहीं रोका चेक पोस्ट पर तैनात कर्मचारियों ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को बचाया वरना वह भी इस व्यापारी के वाहन की चपेट में आ जाते हैं l
वाहन थोड़ी ही दूरी पर खड़े नेपानगर के पत्रकार राजेश जाधव और करण इंगले के वाहन को भी मारी टक्कर पत्रकारों का वाहन हुआ क्षतिग्रस्त l पत्रकारों ने अपने आप को बड़ी मुश्किल से बचाया पत्रकारों को इस घटना में आई मामूली चोटें l  इस सबके बीच प्रशासनिक  मशीनरी की भी पोल खुल गई व्यापारी चेकपोस्ट तोड़कर पत्रकारों को अपनी गाड़ी से उड़ा कर नगर के बाहर भी गया और देर रात 2:00 बजे के दरमियान उसी चेकपोस्ट से वाहन वापस भी लेकर आया लेकिन इस दौरान प्रशासन ने उस व्यापारी पर कार्रवाई करने  का कोई कदम नहीं उठाया उठाई l 

चेक पोस्ट पर लगे कर्मचारियों पर भी व्यापारी ने वाहन चलाने का प्रयास किया लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने उस मामले पर कोई संज्ञान नहीं लिया पत्रकारों द्वारा मामला उठाए जाने  के बाद पत्रकारों  को फरियादी बनाते हुए  पुलिस ने आरोपी व्यापारी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया l  लेकिन ना तो व्यापारी का वाहन जप्त किया गया ना ही व्यापारी को अब तक थाने बुलाया गया व्यापारी नगर में खुलेआम घूमता नजर आ रहा है

नेपानगर नगर पालिका द्वारा  नगर को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए नाके लगाकर पूरे नगर को चारों ओर  से सील कर रखा है l बिना  आधार कार्ड  और एसडीएम की अनुमति दिखाए बगैर,  ना तो कोई नगर मे  दाखिल हो सकता है ना ही  नगर से बाहर जा सकता है l नाके से गुजरने वाले हर वाहन को इन चेकपोस्ट  पर तैनात  पुलिस  कर्मी और नगर पालिका के कर्मचारियों को अपनी पूरी जानकारी देनी होती है रजिस्टर में नाम पता और मोबाइल नंबर लिखाना होता है, लेकिन नेपानगर के इस रसूखदार व्यापारी ने अपने रसूख के चलते हैं  चेक पोस्ट के  सारे नियमों को तोड़ डाला, चेक पोस्ट तोड़कर वाहन निकाल लिया इतना ही नही रास्ते में मिले पत्रकारों के वाहन को भी व्यापारी ने उड़ा दिया l


जनता का 42,000 करोड़ रुपया लुटने से बचा , महेश्वर विद्युत् परियोजना का जन विरोधी समझौता रद्द

भोपाल । एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में मध्य प्रदेश सरकार ने महेश्वर परियोजना को सार्वजानिक हित के खिलाफ मानते हुए परियोजना का विद्युत क्रय समझौता(पी पी ए) रद्द कर दिया है.इस आदेश के साथ ही परियोजना के लिए दी गई एसक्रो गारंटी और पुनर्वास समझौते को भी रद्द कर दिया गया है. महेश्वर परियोजना के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन के तहत प्रभावितों के 23 वर्ष के निरंतर संघर्ष की यह एक एतिहासिक जीत है और इस प्रकार इस परियोजना के रद्द होने से प्रदेश की जनता का 42000 करोड़ रुपया लुटने से बच जायेगा.



क्या है आदेश?


राज्य सरकार के उपक्रम मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड द्वारा 18 अप्रैल 2020 को प्रयोजनाकर्ता श्री महेश्वर हायडल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को भेजे गए आदेश में कहा गया है कि परियोजनाकर्ता ने विद्युत क्रय समझौते के तमाम प्रावधानों का उल्लंघन किया है, परियोजना में वित्तीय धोखाधड़ी हुई है, और साथ ही परियोजना से बनने वाली बिजली की कीमत ₹18 प्रति यूनिट से अधिक होगी, अतः यह परियोजना सार्वजनिक हित में नहीं है. इसलिए इसके विद्युत क्रय समझौते सन 1994 एवं संशोधित समझौते 1996 को रद्द किया जाता है. इसके बाद दिनांक  20 अप्रैल 2020 के आदेश के द्वारा इस परियोजना के संबंध में किये गये पुनर्वास समझौते और दिनांक  21 अप्रैल 2020 के आदेश के द्वारा इस परियोजना के संबंध में दी गई एस्क्रो गारंटी को भी रद्द कर दिया गया है. (आदेश संलग्न हैं)

क्या है महेश्वर परियोजना:


महेश्वर जल विद्युत परियोजना के तहत नर्मदा नदी पर मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में एक बड़ा बांध बनाया जा रहा है. 400 मेगवाट क्षमता वाली इस बिजली परियोजना को निजीकरण के तहत 1994 में एस कुमार समूह की कंपनी श्री महेश्वर हायडल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को दिया गया था. राज्य सरकार ने कंपनी के साथ सन 1994 में विद्युत क्रय समझौता और सन 1996 में संशोधित विद्युत क्रय समझौता किया था. इस जनविरोधी समझौते के अनुसार बिजली बने या न बने और बिके या न बिके फिर भी जनता का करोड़ों रुपया 35 वर्ष तक निजी परियोजनाकर्ता को दिया जाता रहना था. इस परियोजना की डूब में 61 गाँव प्रभावित हो रहे थे.

विस्थापितों का 23 वर्ष का संघर्ष:


महेश्वर परियोजना के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल, चित्तरूपा पालित व् महेश्वर बांध प्रभावितों के नेतृत्व में गत 23 वर्षों से अनवरत संघर्ष किया जाता रहा है. नर्मदा आन्दोलन ने आंकड़ो और दस्तावेजो के आधार पर प्रारंभ से ही यह दर्शाया था कि इस परियोजना से कम बिजली बनेगी, और वह बहुत महंगी होगी. साथ ही परियोजनाकर्ता एस कुमार्स के साथ हुए जन विरोधी विद्युत् क्रय समझौते के कारण, मध्य प्रदेश सरकार को यह बिजली 35 साल तक खरीदनी ही पड़ेगी, और यदि नहीं भी खरीद पाए, तो भी हर साल भारी भरकम भुगतान करना होगा. अतः आन्दोलन ने लगातार मांग की कि चूँकि यह परियोजना प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था को बर्बाद कर देगी अतः  इसे जन हित में रद्द कर देना आवश्यक है. आन्दोलन ने परियोजनकर्ता द्वारा की गयी सैकड़ों करोड़ रूपये की वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया. आन्दोलन ने ज़मीनी हकीकत के आधार पर यह भी स्थापित किया था कि इस बांध से प्रभावित होने वाले 60,000 किसान, मजदूर, केवट, कहार, आदि प्रभावितों के लिए पुनर्वास नीति के अनुसार कोई व्यवस्था नहीं है.

इन मुद्दों को उठाते हुए, 23 साल के संघर्ष के दौरान हज़ारो परियोजना प्रभावित महिला और पुरुषो ने बार- बार धरने, प्रदर्शन, अनशन किये, लाठी चार्ज, गिरफ्तारी, जेल के शिकार बने. परियोजनकर्ता और सरकार ने आन्दोलनकारियों को प्रताड़ित करने के लिये मंडलेश्वर, खरगोन, भोपाल, मुंबई आदि न्यायालयों में सैंकड़ो झूठे केस दर्ज किये. आन्दोलन ने परियोजना प्रभावितों के पुनर्वास के सम्बन्ध में उच्च न्यायालय व् नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिकाएं भी दायर कीं. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में लंबित याचिका में ट्रिब्यूनल ने अपने अंतिम में निर्देशित किया था कि जब तक पूरी योजना के समस्त लोगो का सम्पूर्ण पुनर्वास पूरा नहीं हो जाता, बांध में पानी नहीं भरा जा सकता है. उल्लेखनीय है कि आज तक कि महेश्वर परियोजना प्रभावितों का 85% से अधिक पुनर्वास बाकी है.

बोलता कैमरा पूछता सवाल

कितना अजीब लगता है जब किसी सच्चाई को साबित करने के लिए किसी पीड़ित को कसम खानी पड़ती है फिर भी सरकारी तंत्र उसी का पक्ष लेते है जिसने गलत किया है और पीडित से यह कहा जाता है कि साबित करो कि यह व्यक्ति आपके साथ गलत किया है जबकि न्यायिक प्रकृया मे उस गलत व्यक्ति को साबित करने को कहा जाना चाहिए कि उसने गलत नही किया है। आखिर कब तक ऐसे पीड़ितो को न्याय मिलेगा?



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                                                साभार न्युज 18


MP में 8,526 कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट पेंडिंग, कमलनाथ ने कहा-बढ़ सकता है खतरा

भोपाल. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ (Kamalnath) में प्रदेश में कोरोना संक्रमण (Coronavirus) के लंबित सैंपल को लेकर चिंता जाहिर की है. कमलनाथ ने सरकार से लंबित सैंपल की तत्काल जांच करवा कर रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की है. कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा है कि प्रदेश में सैंपल के लंबित होने के मामले चिंता का विषय है और ऐसे में रिपोर्ट नहीं आने पर लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. कमलनाथ ने प्रदेश में सैंपल की जांच के लिए निजी लैब को अनुमति देने की मांग की है. उन्होंने यह आरोप लगाया है कि निजी अस्पताल कोरोना महामारी के दौरान मनमानी कर रहे हैं और इसपर लगाम कसने के लिए सरकार को जरूरी कदम उठाना चाहिए. मध्य प्रदेश में अभी 8,526 जांच की रिपोर्ट पेंडिंग(Test Report Pending) है.

 


                                                              प्रतीक तस्वीर


इंदौर में 2189 सैंपल जांच के लिए भेजे ही नहीं गए: जीतू पटवारी

वहीं पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने सीएम शिवराज को पत्र लिखकर लंबित सैंपल को लेकर चिंता जाहिर की है. जीतू पटवारी ने इस महामारी की विपदा में कांग्रेस का हाथ सरकार के साथ होने को बात कही है. जीतू पटवारी ने सीएम शिवराज को पत्र लिखकर कहा है कि मेरे संज्ञान में लाया गया है कि इंदौर में बीते कई दिनों से लगभग 2189 सेंपल जाँच के लिए भेजे ही नहीं गए हैं, जिन लोगों के सैंपल लिए गए हैं उनमें से कुछ लोग यैलो हॉस्पिटल में हैं और कुछ लोग अपने घरों पर हैं. अगर इनमें से कुछ लोग पॉज़िटिव होते हैं तो वे कई दूसरे लोगों के संपर्क में आकर संक्रमण फैला सकते हैं. जीतू पटवारी ने सरकार से टेस्टिंग पर ध्यान केंद्रित करने की मांग की है.
टेस्ट रिपोर्ट के इंतजार में हॉस्टिपल में 100 से ज्यादा फंसे
इंदौर में तकरीबन 100 से अधिक लोग जो ठीक होजीतू पटवारी ने सरकार से टेस्टिंग पर ध्यान केंद्रित करने की मांग की है चुके हैं उन्हें कई दिनों से सिर्फ़ इसलिए हॉस्पिटल में रखा गया है क्योंकि उनके सेंपल की टेस्ट रिपोर्ट नहीं आई हैं .